Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श० १ उ०३ सू० ९ काङ्कामोहनीयस्योपशमादिवर्णनम् ६१९ अनुदीर्णस्यापि वेदनं स्वीकुर्यात्तदा उदीर्णानुदीर्णयोः को भेदः स्यात् ? न कोऽपि। अनुदीर्णादेर्वेदननिषेधं कथयति, 'यो अणुदिन्नं वेएई' नोऽनुदीर्ण वेदयति, अनुदीर्णस्य कर्मणो वेदनं न भवति, ‘एवं जाव पुरिस्सकारपरक्कमेइ वा' एवं यावत् पुरुषकारपराक्रम इति वा 'एवम् ' अनेन निषेधप्रकारेण अन्यौ द्वौ विकल्पावपि विज्ञेयो, तौ यथा-"नो अणुदिणं उदीरणाभवियं कम्मं वेदेइ, नो उदयाणंतरपच्छाकडं कम्मं वेदेइ ' इति । अत्र यावच्छब्देन उदीरणासूत्रोक्तः सर्वोऽपि पाठो वाच्यः 'पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा' पुरुषकारपराक्रम इति वा, इति पर्यन्तम् । वेदितं अनुदीर्ण कर्म का भी वेदन होना माना जावे तो फिर उदीर्ण और अनुदीर्ण में भेद क्या होगा ? कुछ भी नहीं । यही बात " णो अणुदिन्नं वेएइ" इस सूत्र द्वारा बताई गई, है कि अनुदीर्ण कर्म का वेदन नहीं होता है। " एवं जाव पुरिसकारपरकमेइ वा" इस निषेधप्रकार से अन्य दो विकल्पों का भी निषेध किया गया जानना चाहिये। वे दो विकल्प इस प्रकार से हैं "णो अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं वेएइ, नो उद्याणतरपच्छाकडं कम्मं वेएइ" जिस प्रकार से यह जीव अनुदीर्ण कर्म का वेदन नहीं करता है उसी प्रकार जो अनुदीर्ण उदीरणाभविक है उसका भी वेदन नहीं करता है, और जो कर्म उदयानन्तरपश्चातकृत हैं उसका भी वेदन नहीं करता है । यहां यावत् शब्द से उदीरणास्त्रोक्त समस्त पाठ कह देना चाहिये । अर्थात् उदीरणासूत्र में जो पाठ कहा गया है वह सब यहां पर लगा लेना चाहिए, और यह पाठ वहां का यहां " पुरिसक्कारपरकमेइ वा” इस सूत्र तक ग्रहण करना चाहिये। માની લેવામાં આવે તે ઉદીર્ણ અને અનુદીર્ણ કર્મમાં કઈ ભેદ જ ન રહે. मे४ वात " णो अणुदिन्नं वेएइ " 20 सूत्रथी तावामा भावी छे , मनुही भनु वेहन थतु नथी “ एवं जाव पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा " सवारीते ઠેઠ પુરુષકારપરા કમ સુધી જાણી લેવું આ નિષેધ સૂત્રથી બાકીના બે વિકલ્પોને ५४ निषेध ४२॥2॥ छे ते मे विzeो 20 प्रमाणे छ-" णो अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं वेएइ, णो उदयाणंतरपच्छाकई कम्मं वेएइ" वी शते मनुદીર્ણ કર્મનું વેદન કરતું નથી એવી જ રીતે અનુદીર્ણ તથા ઉદીરણાભાવિક કર્મનું પણ વેદન કરતું નથી, અને જે કર્મ ઉદયાનન્તરપશ્ચાતકૃત છે તેનું वेहन ५६ ०१ ४२ते नथी. मही. “ यावत् ” ५४थी ये सूयन ४२वामा मावेस છે કે ઉદીરણસૂત્રમાં કહેલ સમસ્ત પાઠ અહીં પણ કહે, એટલે કે ઉદીરણા સૂત્રમાં જે પ્રશ્નો અને ઉત્તરે છે તે અહીં વેદન સૂત્રમાં પણ કહેવા. અને “ पुरिसकारपरकमेइ वा” सूत्र सुधीन। ५8 ५४ या ४२वी.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧