Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श०१ उ०३ सू०१० नैरयिकादिविषयेतवेदनादिस्वरूपमू ६३
छोया-नैरयिकाः खलु भदन्त ! कांक्षामोहनीयं कर्मवेदयन्ति, यथा औधिकास्तथाः, यावत् स्तनितकुमाराः। पृथिवीकायिकाः भदन्त! कांक्षामोहनीयं कर्म वेदयन्ति, हंत ! वेदयन्ति । कथं खलु भदन्त ! पृथिवीकायिकाः कांक्षामोहनीयं कर्म वेदयन्ति, गौतम! तेषां जीवानां नो एवं तर्क इति वा, संज्ञेति वा, प्रज्ञेति वा,
नैरयिकादि प्रकरण कांक्षामोहनीय कर्म के वेदन आदि से लेकर निर्जरा तक के सूत्र समुदायको नारकादि चौबीस दंडकों के साथ जोड़ते हुए मूत्रकार कहते हैं-'नेरइयाणं भंते ! कंखामोहणिज्जं कम्मं वेएंति' इत्यादि ।
(नेरड्याणं भंते ! कंखामोहणीज्जं कम्मं वेएंति ?) हे भदन्त ! नारक जीव क्या कांक्षामोहनीय कर्म को वेदन करते हैं ? ( जहा ओहियो जीवा तहा नेरइया जाव थणियकुमारा ) हे गौतम ! जिस तरह सामान्य जीव कहे हैं उसी प्रकार से नारक जीव जानना चाहिये, और इसी तरह से स्तनितकुमार तक जानना चाहिये। ( पुढिविक्काइयाणं भते ! कंखामोहणिज्ज कम्मं वेएंति ? ) हे भदन्त ! पृथिवीकायिक जीव क्या कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं । ( हंता वेएंति ) हां गौतम वे कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं। (कह णं भंते ! पुढविकाइया कंखामोहणिज्ज कम्मं वेएंति ?) हे भदन्त ! पृथिवीकायिक जीव कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन किस रीति से करते हैं ? (गोयमा ) हे गौतम !
नैरयि ५४२५કાંક્ષામોહનીય કર્મના વેદનથી લઈને નિર્જરા સુધીના સૂત્રસમુદાયને नारसी पोरे यावीस औनी सात सूत्र २ ४ छे --" नेरइयाण भंते ! कंखामोहणिज्ज कम्मं वेएंति' त्यादि।
(नेरइयाणं भंते ! कंखामोहणिज्न कम्मं वेएंति ?) पूज्य! नासीना
शुक्षामोडनीय मनु वेहन ४२ छ ? ( जहा ओहिया जीवा तहा नेस्इया जाव थणियकुमारा) 3 गौतम ! मी ५ सामान्य वाना समां જેવી રીતે પૂર્વે કહેવામાં આવેલ છે તેવી જ રીતે નારકોના સંબંધમાં પણ समन्. मने मे प्रमाणे ४ स्तनितभार सुधी तयु. (पुढविक्काइयाणं भंते ! कंखामोहणिज्जं कम्मं वेएंति ?) 3 पून्य ! शु. पृथ्वीयि यो ianानीय भनु वेहन ४२ छ ? (हंता, वेएंति ) , गौतम ! ते ५ siक्षाभानीय भनु वहन ४२ छ. ( कह णं भते ! पुढविकाइया कंखामोहणिज्जं करम बेएंति १) पूल्य ! पृथ्वीय वेवी रीते क्षामोडनीय भन वेहन 3रे छे ? ( गोयमा !) 3 गौतम ! (तेसिणं जीवाणं णो एवं तकाइ वा,
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧