Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. १ उ. ३ सू० ९ काङ्क्षावेदनीयस्योदोरणास्वरूपम् ६०३ पुरुषकारपराक्रमेणानुदीर्णमुदीरणाभव्यं कर्मोदीरयति, एवं सति अस्ति उत्थानमिति वा कर्मेति वा बलमिति वा वीर्यमिति वा पुरुषकारपराक्रम इति वा। तद् नूनं भदन्त ! आत्मनैवोपशमयति आत्मनैवगहते, आत्मनैव संवृणोति ? हन्त गौतम ! अत्रापि तथैव भणितव्यम् , नवरं अनुदीर्णमुपशमयति, शेषाः पतिषेधयितव्यास्त्रयः । तद् यद् भदन्त ! अनुदीर्णमुपशमयति तत् किम् उत्थानेनपुरुषकारपराक्रम से भी करता है । (णोतं अणुट्ठाणेणं, अकम्मेणं, अबलेणं अवीरिएणं अपुरिसक्कारपरक्कम्मेणं अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ) परन्तु उस अनुदीर्ण किन्तु उदीरणा के योग्य कर्म की उदीरणा वह अनुत्थान से, अकर्म से, अबल से, अवीर्य से और अपुरुषकारपराक्रम से नहीं करता है। (एवं सइ अस्थि उट्ठाणेइ वा, कम्मेइ वा बलेइ वा. वीरिएइ वा, पुरिसकारपरकमेइ वा ) जब ऐसी बात है तो उत्थान है, कर्म है, बल है, वीर्य है, और पुरुषपराक्रम है। (से नूणं भंते ! अप्पणा चेव उवसामेइ अप्पणा चेव गरहइ अप्पणा चेव संवरेइ?) हे भदन्त ! जीव क्या अपने आप ही कांक्षामोहनीय कर्म का उपशम करता है ? अपने आप ही क्या उसकी गर्दा करता है ? अपने आप ही क्या उसका संवर करता है ? (हंतागोयमा! एत्थ वि तहेव भाणियव्वं) हां गौतम ! यहां पर भी उसी तरह से समझना चाहिये । ( नवरं-अणुदिणं उवसामेइ सेसा पडिसेहेयव्या तिण्णि ) विशेष यह है कि अनुदीर्ण को उपशमाता है। बाकी के तीन मथी, वीथी भने पुरुष४।२५२।भथी ५५५ ४२ छ. ( णो तं अणुद्वाणेण, अकम्मेणं, अबलेण, अवोरिएणं अपुरिसक्कारपरकम्मेण अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ) ५२तु अनुही ५५] महीने योग्य भनी ही२९॥ ०१ અનુત્થાન, અકર્મથી, અબળથી, અવીર્યથી, અને અપુરુષકારપરાક્રમથી કરતા नथी. ( एवं सइ अस्थि उट्ठाणेइ वा, कम्मेइ वा बलेइ वा, वीरिइवा पुरिसकारपरक्कमेइ वा ) ले म छे तो उत्थान ५७ छ. ४ ५४ छ, म ५४ छ, વીર્ય પણ છે, પુરુષકારપરાક્રમ પણ છે જ
(से नूगं भंते अप्पणा चेव उवसामेइ, अप्पणा चेव गरहइ, अप्पणा चेव संवरेइ ?) 3 पून्य ! ७१ शु पातानी andr xiक्षामोडनीय भनी .७५शम કરે છે ? શું પિતાની જાતે જ તેની ગહ કરે છે? શું પિતાની જાતે જ તેને स१२ ४२ छे १ हता गोयमा ! एत्थ वि तहेव भाणियव्यं ) डा गौतम ! मी ५५ ते प्रमाणे २ सभा (3) ने मे ( नवरं-अणुदिण्णं उवसामेइ सेसा पडिसेहेयन्बा तिणि ) विशेषता से छे ३ 04 अनुही उपशमा छ. मीन
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧