Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे
यावत् पुरुषकारपराक्रम इति वा । तद् नूनं भदन्त ! आत्मनैव वेदयति, आत्मनैव गहते, अत्रापि सैव परिपाटी, नवरं उदीर्ण वेदयति, नो अनुदीर्ण वेदयति, एवं यावत् पुरुषकारपराक्रम इति वा । तद् नूनं भदन्त ! आत्मनैव निर्जरयति आत्मनैव गर्हते, अत्रापि सैव परिपाटी, नवरम् उदयानन्तरपश्चात्कृतं कर्म निर्जरयति, एवं यावत् पराक्रम इति वा ।।सू०९॥ विकल्पों का प्रतिषेध कर देना चाहिये। ( जंतं भंते! अणुदिण्णं उवसामेइ तं किं उठाणेणं जाव पुरिसक्कारपरिकमेइ वा ? ) हे भदन्त ! यदि अनुदीर्णको उपशमाता है, तो क्या वह उसे उत्थान से उपशमाता है? इत्यादि यहां 'यावत्' शब्दसे पूर्वका प्रश्न और उत्तरका सब पाठ कहना चाहिये यहां तक कि 'यदि ऐसा है तो उत्थान कर्म बल वीर्य पुरुषका पराक्रम है' । ( से नूणं भंते ! अप्पणा चे वेदेइ अप्पणा चेव गरहइ ) हे भदन्त ! क्या वह उसे अपने आप ही वेदता है ? अपने आप हो उसकी गर्दा करता है ? ( एस्थ वि सच्चेव परिवाडी ) यहां पर भी वही सब पूर्वोक्त परिपाटी जाननी चाहिये ( नवरं ) विशेष यह है कि ('उदिन्नं ' वेदेइ णो अणुदिन्नं वेएइएवं जाव पुरिसकारपरिकमेइ वा) उदीर्ण का वेदन करता है, अनुदीर्ण का वेदन नहीं करता है। इस तरह कहना यहां तक कि-'पुरुषकार पराक्रम है। ' (से नूणं भंते ! अप्पणा चेव निज्जरेंति' अप्पणा चेव गरहइ ? ) हे भदन्त ! क्या वह उसकी अपने आप ही निर्जरा करता है ? ( एत्थ वि ऋणे विधान! महिं निषेध ४२वो नये, (जं तं भंते ! अणुदिण्णं उवसामेइ तं किं उदाणेणं जाव पुरिसकारपरक्कमेइ वा ) पूजन्य ! ७१ अनुद्दीन ઉપશમાવે છે તે શું તેને ઉત્થાનથી કે કર્મથી. બળથી, વીર્યથી કે પુરુષકાર५२।भथी ५मा छ ? त्याहिन्मही 'यावत्' ५४थी पूर्वी प्रश्न भने उत्तरना બધે પાઠ કહેવો જોઈએ અહીં સુધી કે “જો એવું છે તે ઉત્થાન કર્મ બાલ વીર્ય પુરુષકાર પરાક્રમ છે. ”
(से नूण भंते ! अप्पणा चेव वेदेह, अप्पणा चेव गरहइ) 3 orय ! शुते पोते १ तेनुं वेहन ४२ छ, शुते पाते । तेनी गड ४२ छ ? (एत्थ वि सच्चेव परिवाडी) मा ५५ पूर्वधित रीते समस्त परिपाटीनू थन ४२वु नये. (नवरं) विशेषता के छ ३ (उदिन्नं वेदेह णो अणुदिन्नं वेएइ एवं जाव पुरिसक्कारपरिकमेइ वा) ही नु वेहन ४२ छ. पण अनुही नु वेहन तो नथी. 21 अभाणे “ पुरुष४।२५२।" मडी सुधार्नु ४थन सेवातुं छे. ( से नूर्ण भंते ! अप्पणा चेव निजाति, अप्पणा व गरहइ ?) शु०१ पातानी on तेनी नि। ४२ छ? शु० पोतानी तेनी गा रे छ ? (एत्य वि
શ્રી ભગવતી સુત્ર : ૧