Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेन्द्रकाठीका श०१ उ० ३ सू० २ काङ्क्षामोहनीय कर्मनिरूपणम् ५५५
एवम् = अनेन प्रकारेण 'चिए चिर्णिसु चिणंति चिणिस्संति' चितम् अचैषुः चिन्वति, चेष्यन्ति, तत्र - चितम् = कांक्षामोहनीयं कर्म प्रदेशानुभागादिना वर्द्धितम् । 'चिर्णिसु' अचैषुः - चयनं कृतवन्तः, एतेन कर्मचयस्य भूतकालिकत्वं प्रदर्शितम् । 'चिणंति' चिन्वन्ति - सम्प्रतिकालेपि कर्मणश्चयं कुर्वन्ति । अनेन वर्तमानकालिकत्त्वं कथितम्, 'चिणिस्संति' चेष्यन्ति - भविष्यत्कालेपि चयं करिष्यन्ति, एतावता चयनस्य भविष्यत्कालविषयता प्रतिपादिता । एवम् -' उवचिए ' उपचितम् - तदेव पौनःपुन्येन वर्धितम् । 'उवचिणिसु' उपाचैषुः- अतीतकाले उपचयं कृतवन्तः,
होते हैं । इसलिये अब सूत्रकार उन्हें दिखलाते हुए कहते हैं- " एवं चिए " इत्यादि । तात्पर्य यह है कि जो कर्म उपार्जित होता है उसी के चय उपचयादि होते हैं । अतः उस कर्म में चय उपचयादि दिखलाना अभीष्ट ही हैं - कर्म में प्रदेश अनुभाग आदि का बढना इसका नाम चय है | कांक्षामोहनीयकर्म जब प्रदेश अनुभागादि से बढ जाता है - तब वह चित कहलाता है । यह चित उसमें त्रिकालविषयक होता है। जीवोंने इस कांक्षामोहनीयकर्म का चय भूतकाल में किया, वर्तमानकाल में वे करते हैं और भविष्यत्काल में भी वे करेंगे । “चिणिसु चिणंति, चिणिस्संति " इन क्रियापदों द्वारा “ चय " में सूत्रकार ने त्रिकालता दिखलाई है । " चिणिसु " इस पद से उसमें भूतकाल विषयता “चिणंति" इस पद से उसमें वर्तमानकाल विषयता और “चिणिस्संति” इस पद से उसमें भविष्यत्काल विषयता है । उपचित- प्रदेश अनुभाग आदि का बारंबार बढना यह उपचय है । कांक्षामोहनीयकर्म में जब प्रदेश अनुभाग आदि वारंवार बढते रहते हैं तब वह उपचित
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थाय छे. तेथी सूत्रअर हवे ते वातने हर्शाविवाने भाटे “ एवं चिए " इत्याहि સૂત્રેા કહે છે. કહેવાના આશય એ છે કે જે ક` ઉપાર્જિત હાય છે, તેનોજ ચય, ઉપચય આદિ થાય છે, તેથી તે કમ માં ચય, ઉપચય આફ્રિદર્શાવવા ચાગ્ય ४ छे. उभभां प्रदेश अनुभाग सहिनी वृद्धि थवी तेनुं नाभ “चय" छे. न्यारे કાંક્ષામેાહનીય ક માં પ્રદેશ, અનુભાગ વગેરેથી વૃદ્ધિ થાય છે ત્યારે તે “ ચિત ” मुडेवाय छे. तेनाभां आा थित (ययन ) त्रिअणविषय होय छे, कवा अंक्षा. મેહનીયનેા ચય ભૂતકાળમાં કર્યાં છે, વત માનમાં કરે છે અને ભવિષ્યકાળમાં પણ કરશે. "Faforg, favifa, fafonėfa” zu ušldırı yasık ‘a’Hi lasını said I. चिणिसु " पहथी तेमां भूतअण विषयता, “चिणंति ” पहथी तेमां वर्तमान आज विषयता, भने “ चिणित्संति " पहथी तेमां लविष्य अजविषयता प्रगट थाय छे. उपचिय- प्रदेश, अनुलाग आहिनी वारंवार वृद्धि थवी तेनुं नाभ “ ઉપચય ” છે—જ્યારે કાંક્ષામેાહનીય કર્મમાં પ્રદેશ, અનુભાગ આદિ વારવાર
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧