Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. १ उ. १ २० २४ आरमारंभादिवर्णनम् पृच्छति-' से केणटेणं' तत् केनार्थेन केन कारणेन 'भंते !' हे भदन्त ! 'एवं बुच्चइ' एवमुच्यते 'अत्थेगइया जीवा' सन्त्येके जीवाः 'आयारंभावि ' आत्मारम्भा अपि ' एवं ' अनेन प्रकारेण 'पडि उच्चारेयव्यं' प्रत्युच्चारयितव्यं कथनीयम् यथा-परारंभावि तदुभयारंभावि नो अणारंभा, अत्थेगइया जीवा नो आयारंभा नो परारंभा नो तदुभयारंभा, अणारंभा" इत्युच्चारयितव्यमितिभावः । उत्तरमाह'गोयमा! हे गौतम ! 'जीवा दुविहा पणत्ता' जीवा द्विविधाः प्रज्ञप्ताः 'तं जहा ' तद्यथा-संसारसमावण्णगा य' संसारसमापनकाश्च-संसारिणः असंसारसमावण्णगा' असंसारसमापनकाश्च-संसारवर्जिताः, 'तत्थणं' तत्र खलु 'ये त असंसारसमावण्णगा' ये ते असंसारसमापन्नकाः 'तेणं सिद्धा' ते खलु सिद्धाः सन्ति । सिद्धा णं' सिद्धाः खलु ‘नो आयारंभा ३' नो आत्मारम्भाः ३ 'जाव' रंभी नहीं होते हैं किन्तु आरंभ रहित होते हैं । ऐसा जो कहा गया है वह सिद्धादि जीवोंकी अपेक्षा लेकर कहा गया है । “से केणद्वेणं भंते" इत्यादि सूत्रपाठ जो कहा गया है वह प्रश्नकारके इस प्रश्नको ध्यानमें रखकर कहा गया है वह शंका-"उपयरोगवत्वात्मक एक एक धर्म सर्व जीवोंमें विद्यमान होनेके कारण सब ही जीव जब समान हैं तो फिर कितनेक जीव आत्मारंभी होते हैं, कितनेक जीव परारंभी होते हैं कितनेक जीव उभयारंभी होते हैं यह विषमता कैसे आप कह रहे हैं"यह है। इसी आशयसे शंकाकारने यह पूछा है कि हे भगवन् ! आप यह किस कारणसे कहते हैं कि कितनेक जीव आत्मारंभी होते हैं कितनेक परारंभी होते हैं और कितनेक उभयारंभी होते हैं ? इत्यादि । तब शंकाकारकीइस शंकाका समाधान करनेके लिये प्रभुने कहा कि हे गौतम ! संसारसमापनक संसारी जीव, और असंसारसमापन्नक मुक्तजीव इस तरहसे जीव दो प्रकारके होते हैं। इनमें संसारसे रहित जो मुक्तजीव हैं वे सिद्ध આરંભરહિત હોય છે એવું જે કહેવામાં આવ્યું છે તે સિદ્ધાદિ જીવોને અનુ साक्षीने हे छ. “से केणदेणं भंते !" त्यादि सूत्रमा मापामांसाव्या છે તે પ્રશ્નકારની એવી શંકા બતાવવા માટે મૂક્યો છે કે “ઉપગવત્વાત્મક એક એક ધર્મ સર્વ જીવમાં મેજૂદ હોવાથી પ્રત્યેક જીવ સમાન છે. છતાં પણ કેટલાક જીવ આત્મારંભી કેટલાક જીવ પરારંભી, કેટલાક જીવ ઉભયારંભી હોય છે એ પ્રકારની વિષમતા આપ કેવી રીતે બતાવો છે ? શંકાકારની તે શંકાનું નિવારણ કરવાને માટે પ્રભુએ કહ્યું છે-“હે કૌતમ ! જીવના આ પ્રમાણે से प्रा२-(१) ससा२ समापन-(ससारी) मने (२) सससार समापन (મુક્ત જીવ ) આ રીતે જીવ બે પ્રકારનાં છે. તેમાં સંસારથી મુક્ત (મુક્ત
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧