Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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_ भगवतीसूत्र कर्मणोनिषेधाभावः कथितः । असंयतोऽविरतश्चेत्यनेन वर्तमानकालिकपापस्यासंवरणं प्रतिपादितम् । अथवा-अप्रतिहतप्रत्याख्यातपापकर्मत्यस्यायमर्थः-न-नैव प्रतिहतम् ततश्चरणादिभिमरणकालात् प्रागेवक्षपितम् , तथा नैव प्रत्याख्यातम्= आश्रवनिरोधेन मरणकालेऽपि पापकर्म नैव नाशितं येन स अप्रतिहतप्रत्याख्यात. पापकर्मा, अथवा-न-नैव प्रतिहतं सम्यग्दर्शन प्रतिपत्त्या पापकर्म दूरीकृतं, तथा न प्रत्याख्यातं, सर्वविरतिमंगीकृत्य ज्ञानावरणीयाद्य शुभं कर्म न परित्यक्तं येन स अप्रतिहतप्रत्याख्यातपापकर्मा । 'इओ' इत:-प्रत्यक्षमाप्तमनुष्यादिभवात् 'चुए' च्युतो मृत इत्यर्थः, 'पेच्चा' प्रेत्य अन्यजन्मनि 'देवेसिया' देवः स्यात्इस कथन से अतीतकाल और अनागत पापकर्मों का उसके अभाव प्रकट किया गया है। तथा “असंयतः अविरतः” इन पदों द्वारा उस जीव के वर्तमानकालिक पापका असंवरण कहा गया है । अथवा "अप्रतिहतप्रत्याख्यात पापकर्मा” इसका यह अर्थ है जिसने मरणकाल से पहले ही तपश्चरण आदि द्वारा पापकर्मों को क्षपित नहीं किया है, और न आस्रव के निरोध से मरणकाल में भी जिसने अपने पापकर्मों का विनाश किया गया है ऐसा वह जीव अप्रतिहतप्रत्याख्यातपापकर्मा है। अथवा जिसने सम्यक्दर्शन की प्रतिपत्तिद्वारा पापकों को दूर नहीं किया है, तथा सर्वविरति को स्वीकार कर जिसने ज्ञानावरणीय आदि अशुभ कर्म परित्यक्त नहीं किये हैं ऐसा वह जीव अप्रतिहत प्रत्याख्यात पापकारी है । "इतः" इससे प्रत्यक्ष में प्राप्त हुए मनुष्य आदि भव से । “चुओ" मर कर । “पेच्चा" परलोकमें अन्य जन्म में “ देवे सिया" देव होता है या नहीं ? ऐसा यह प्रश्न है। भगवान ने इस
આ કથન દ્વારા તેનામાં ભૂતકાળ અને ભવિષ્યકાળના પાપકર્માને मला मतावाम मा०ये। छे. तथा " असंयतः अविरतः” पह! द्वारा ते જીવના વર્તમાન કાળનાં પાપનું અસંવરણ પ્રગટ કરવામાં આવ્યું છે. मथवा " अप्रतिहत प्रत्याख्यात पापकर्मा "नो मेवो मथ थाय री મરણકાળ પહેલાં જ તપશ્ચરણ આદિ દ્વારા પાપ કર્મોનો ક્ષય કર્યો નથી અને આસ્રવનો નિરોધ કરીને મરણ કાળે પણ જેણે પિતાનાં પાપ કર્મોનો વિનાશ કર્યો નથી એવા જીવને “અપ્રતિહત પ્રત્યાખ્યાત પાપકર્મા” કહે છે. અથવા રણે સમ્યકદર્શનની પ્રાપ્તિ દ્વારા પાપકર્મોને દૂર કર્યા નથી તથા સર્વવિરતિને સ્વીકારીને જેણે જ્ઞાનાવરણીય આદિ અશુભ કર્મનો પરિત્યાગ यो नथी सेवा ने “ मप्रतिडत प्रत्याज्यात ५५ " ४ छ." इतः" तथी प्रत्यक्ष३पे पास थयेसा मनुष्य माहि थी "चु ओ" भरीने “पेच्चा" परशोभा-अन्य समभा "देवसिया" देव थाय छे नहीं ? सो गीतम
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧