Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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વરર
भगवतीसूत्रे लोके उत्कृष्टत उत्पत्तिर्भवति । ' तेरिच्छियाणं सहस्सारे कप्पे ' तैरश्चिकानां सहस्रारे कल्पे-उत्कृष्टत उत्पत्तिर्भवति ।' आजीवियाणं अच्चुए कप्पे' आजीविकानामच्युते कल्पे-उत्कृष्टतो द्वादशे देवलोके, ' आभिजोगियाणं अच्चुए कप्पे ' आभियोगिकानामच्युते कल्पे आभियोगिका अप्यच्युतदेवलोके समुत्पधन्ते । सलिंगिदंसणवावनगाणं उवरिमगेविज्जएम' सलिङ्गिदर्शनव्यापनकानामुपरिमोवेयकेषु उत्कृष्टत उत्पत्तिर्भवतीति ॥ १४ ॥ मू० १३ ॥
असंज्ञिनामायुष्यविचारःअसंज्ञिनो जीवा देवलोकेषु समुत्पद्यन्ते इत्युक्तम् , यत्र कुत्रोत्पत्तिरायुकाधीना, अतोऽसंज्ञिजीवानामायुर्निरूपयन्नाह-" कइविहेणं भंते असन्नि आउए' इत्यादि।
__ मूलम् कइविहे णं भंते ! असन्निआउए पन्नत्ते । गोयमा! चउबिहे असन्निआउए पन्नत्ते, तं जहा-नेरइयअसन्निआउए, तिरिक्खजोणियअसन्निआउए । मणुस्सअसन्निआउए, देवअसन्निआउए । असण्णी णं भंते ! जीवे किं नेरइयाउयं व्राजकों की ब्रह्मलोककल्प में ९, किल्विषिकों की लान्तककल्प में छठे देवलोक में उत्कृष्ट से उत्पत्ति होती है १० । " तेरिच्छियाणं सहस्सारे कप्पे" तिर्यंचयोनिक जीवों की उत्पत्ति-उत्कृष्ट से महस्रारकल्प में होती है ११ । आजीविकों की उत्पत्ति उत्कृष्ट से १२ वें देवलोक में होती है। १२। आभियोगिकों की भी उत्पत्ति उत्कृष्ट से इसी १२ वें देवलोक में होती है १३। और जो सलिंगिदर्शनव्यापन्नक हैं, उनकी उत्पत्ति उत्कृष्ट से उपरिम ग्रैवेयकों में होती है १४ ।। म्यू० १३ ॥
असंज्ञि आयुष्कविचार असंज्ञिजीव देवलोकों में उत्पन्न होते हैं, ऐसा कहा है। सो जीवका जहां कहीं भी उत्पन्न होना आयुकर्म के आधीन है। इसलिये अब કલ્પમાં, કિલિવષકની લાંતક કપમાં (છઠા દેવલોકમાં), તિર્યંચની સહઆર કલ્પ, આજીવિકેની બારમા દેવલોકમાં, આભિયોગિકેની પણ બારમાં દેવલોકમાં અને સલિ ગિદર્શન વ્યાપન્નકની ઉત્પત્તિ ઉપરના પ્રિવેયક સુધી થાય છે. સૂ૦૧૩
असज्ञि आयुध पियारઅસંસી છવો દેવલોકમાં ઉત્પન્ન થાય છે એવું કહ્યું છે. જીવનું કઈ પણ નિમાં ઉત્પન્ન થવું તે આયુષ્યકર્મને અધીન છે તે કારણે સૂત્રકાર
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧