Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श.१ उ.२ सू०९ सलेश्यजीवविचारः भणितव्याः, नवरं मनुष्याः सरागा वीतरागाश्च न भणितव्याः, गाथा-दुःखायुष्के उदीणे आहार कर्मवर्णलेश्याश्च, समवेदनसमक्रियाः समायुष्कं चैव बोद्धव्याः।मू०९। ___टीका-'सलेस्सा णं भंते !' हे भदन्त ! सलेश्याः-लेश्यया युक्ताः ये ते सलेश्याः लेश्यावन्त इत्यर्थः । 'नेरइया किं सवे समाहारगा' नैरयिकाः सर्वे किं समाहारकाः अस्थि जहा ओहिओ दंडओ तहा भाणियव्या) जिनको तेजोलेश्या
और पद्मलेश्या है। उन्हें औधिक दण्डक की तरह जानना चाहिये। (नवरं) विशेषता यह है कि (मणुस्सा सरागा, वीयरागा न भाणियव्वा ) मनुष्यों के सराग और वीतराग ऐसे दो भेद नहीं कहना चाहिये। (गाहा) गाथा ( दुक्खाउए उदिण्णे आहारे कम्मवन्नलेस्सा य। समवेयण समकिरिया समाउए चेव बोधव्वा ) दुःख, कर्म और आयुष्य ये उदीर्ण हो तभी वेदे जाते हैं, अतुदीर्ण नहीं। आहार, कर्म, वर्ण, लेश्या, समवेदना, समक्रिया और समायुष्क, इनके सबंध में जैसा पहले कहा गया है वैसा ही जानना चाहिये
टीकार्थ-लेश्या से युक्त का नाम सलेश्य है । अर्थात् जो लेश्या से युक हैं वे सलेश्य-लेश्यावाले हैं। प्रश्न यहां पर ऐसा किया गया है कि जो नारकजीव लेश्या वाले हैं वे सब क्या समान-आहारवाले होते हैं ? " नेरइया सव्वे समाहारगा" इस सूत्र से “ आहार, शरीर, उच्छ्वास, कर्म, वर्ण, लेश्या, वेदना क्रिया और उपपात इन नामके
. (तेउलेस्सा पम्हलेस्सा जस्स अस्थि जहा ओहिआ दंडओ तहा भाणियव्वा) तेन्सेश्या अने पवेश्यावाणाने मोधित नी हेभ समपा- (नवरं) पण तमा मेसी विशेषता छ (मणुस्सा सरागा, वीयरागा न भाणियव्वा) भनुष्याना सी मने पीत मावा रे लेह न ४२वा (गाहा) गाथा(दुक्खाउए उदिण्णे आहारे कम्मवन्न लेस्सा य ! सम्मवेयण समकिरिया समाउए चेव बोधव्वा) ः५ म मने आयुष्य, मी डोय तो ४ वेहवामां आवे છે. અનુદીર્ણ નહીં. આહાર, કર્મ વર્ણ વેશ્યા, સમવેદના, સમક્રિયા અને સમઆયુષ્યના વિષયમાં પહેલાં કહ્યા પ્રમાણે જ સમજવું.
ટીકાર્થ–સલેશ્ય એટલે લક્ષ્યાથી યુક્ત. એટલે કે વેશ્યાથી યુકત જે હોય. છે તેને સલેશ્યર્લેશ્યવાળા-કહેવામાં આવે છે. અહીં એ પ્રશ્ન પૂછવામાં આવ્યો છે કે જે નારક જીવ લેશ્યાવાળા હોય છે તેઓ શું સમાન આહાર पाडाय छ १ "नेरइया सव्वे समाहोरगा" २॥ सूत्रमा “माडा२, शरीर,
०७१।स, भ, , वेश्या, वेदना, या, मने ७५पात मे न पहा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧