Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रोपवन्द्रिकाटीका श. १३. १ सू०२५ नैरयिकादीनामात्मारंभादिनिरूपणम् ३१५
अथ नैरयिकादीनामात्मारम्भादिवक्तव्यता प्रस्तूयतेमूलम्-नेरइयाणं भंते ! किं आयारंभा परारंभा तदुभयारंभा अणारंभा, गोयमा ! नेरइया आयारंभा वि जाव णो अणारंभा, से केणद्वेणं भंते एवं वुच्चइ ? गोयमा ! अविरतिं पडुच्च, से तेणटेणं जाव नो अणारंभा एवं असुरकुमारा वि जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्ता जहा जीवा नवरं सिद्ध विरहिया भाणियव्वा, वाणमंतरा जाव वेमाणिया, जहा नेरइया, सलेस्सा जहा ओहिया, कण्हलेसस्स नीललेसस्स काउलेसस्स जहा-ओहिया जीवा, नवरं पमत्त अप्पमत्ता न भाणियव्वा, तेउलेसस्स पम्हलेसस्स सुक्कलेसस्स जहा ओहिया जीवा, नवरं सिद्धा न भाणियव्वा ॥ सू० २५ ॥
छाया-नैरयिकाः भदन्त ! आत्मारंभाः परारम्भास्तदुभयारम्भा अनाररम्भाः ? गौतम ! नैरयिका आत्मारम्भा अपि यावत् नो अनारम्भाः, तत्केनार्थेन उनसे निवृत्त नहीं हैं। इसलिये असंयत जीवोंकी अविरति आत्मारंभादिमें कारण है। इसलिये हे गौतम ! मैंने इस कारणसे ऐसा कहा है कि कितनेक जीव "जावअणारंभा"। यहां यावत् शब्दसे आत्मारंभादि प्रश्नसूत्रके निर्वचनमूत्र में जितने पद कहे गये हैं वे सब गृहीत हुए हैं।२४
नैरयिकादिकोंकी आत्मारंभादि वक्तव्यता__ 'नेरइयाणं भंते ! किं आयारंभा' इत्यादि। (भंते) हे भदन्त ! (नैरयिका) नारक जीव (किं) क्या (आयारंभा, परारंभा, तदुभयारंभा, अणारंभा) आत्मारंभी हैं या परारंभी हैं या तदुभयारंभी हैं या अनारंभी हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (नेरइया) नारक जीव ક્ષાએ તેમનામાં આત્મારંભતા આદિ છે જ. કારણ કે તેઓ તેમનાથી નિવૃત્ત હેતા નથી. તેથી અસંયત ની અવિરતિ આત્મારંભ આદિના કારણરૂપ भने छ. गौतम ! ते १२0 में से ४धु छ , 21 wो “जाव अणारंभा” मात्भारली डाय छे, त्यांथी २३ ४शन सूत्रमा मासा "अणारंभा" सुधीना 18 अY ४२वान। छ. ॥ सू. २४॥ નરકાદિ જેનું આત્મારંભાદિ વકતવ્ય" नेरइयाणं भंते ! किं ओयारंभा" इत्यादि।
(भंते) 3 महन्त ! (नैरयिका) ना२४ ० (किं) शु (आयारम्भा, परारंभा, तदुभयारंभा, अणारंभा? ) भाभा२ली छे, ५२२२ली छ, उलयाली छ,
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧