Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श०१३० १ सू० २४ आत्मारम्भादिवर्णनम् ३०५ अपि नो अनारम्भाः, सन्त्येके जीवा नो आत्मारम्भाः नो परारम्भाः नो उभयारम्भाअनारम्भाः। तत्केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते सन्त्येके जीवा आत्मारंभा अपि एव प्रत्युच्चारयितव्यम् । गौतम ! जीवा द्विविधाः प्रज्ञप्ताः तद्यथा संसारसमापनकाच, अससारसमापनकाच, तत्र खलु ये ते असंसारसमापनकास्ते खलु सिद्धाः । सिद्धा नो आत्मारम्भाः यावदनारम्भाः, तत्र खलु ये ते संसारसमापनकास्ते द्विविधाः अनारम्भ है ? (गोयमा) हे गौतम ! (अत्थेगइया जीवा आयरिंभा वि) कितनेक जीव आत्मारंभ भी हैं (परारंभा वि) परारंभ भी हैं (तदुभयारंभा वि) तदुभयारंभ भी हैं (णो अणारंभा) परन्तु अनारम्भ नहीं हैं। (अत्थेगइया जीवा णो आयारंभा) कितनेक जीव आत्मारंभ नहीं हैं (नो पररंभा) परारंभ नहीं हैं (नो तभयारंभा) तदुभयारंभ नहीं हैं। (अणारंभा) परन्तु अनारम्भ हैं। (से केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ) हे भदंत ! यह किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि (अत्थेगइया जीवा आयारंभा वि एवं पडिउच्चारेयव्वं ) कितनेक जीव आत्मारंभ भी हैं ? इस तरह से पूर्वोक्त सभी प्रश्न यहां पुनः कहना चाहिये। (गोयमा) हे गौतम ! (जीवा दुविहा पण्णत्ता) जीव दो प्रकार के कहे गये हैं। (तं जहा) वे इस प्रकार से हैं-(संसार-समावण्णगा य असंसारसमावण्गगा य) एक संसारसमापन्नक और दूसरे असंसारसमापन्नक। (तत्थ णं जे ते असंसारसमावण्णगा तेणं सिद्धा) इनमें जो असंसारसमापन्नक हैं वे डाय छ ? 3 ( अणारम्भा) मनामी य छ?
(गोयमा!) 3 गौतम ! (अत्थे गंइयाजीवा आयारम्भा वि ) मा छ। मात्भारली पण छ, (परारम्भा वि) ५२।२ली ५५ छ. ( तदुभयारम्भा वि) तहुनयाली छे, ( णो अणारम्भा ) पर अनार भी नथी. (अत्थे गइया जीवा णो आयारम्भा ) 2 ! मात्भार भी नथी, (नो परारम्भा) ५२।२'ली नथी, (नो तदुभयारम्भा ) तयार भी नथी, (अणारम्भा) ५९५ मनाली छ.
(से केणट्ठणं भंते ! एवं वुच्चइ ) 3 महन्त ! मा५ ॥ ४॥२णे मे ४३ छ। ॐ ( अत्थेगइया जीवा आयारम्भा वि एवं पडिउच्चारेव्वं) 20४ व આત્મારંભી પણ છે ? આ જગ્યાએ પૂર્વોક્ત બધા પ્રશ્નોનું પુનરુચારણ કરવું જોઈએ.
(गोयमा !) गौतम! (जीवा दुविहा पण्णत्ता) वन मे ५२ ४या छे. (तं जहा) ते २॥ प्रमाणे छ-( संसारसमावण्णगा य असंसारसमावण्णगा य) (१) ससा२ समापन १ (ससारी ०१) (२) अस सा२ समापन ७१ (तत्थणं जे ते असंसार समावण्णगा तेणं सिद्धा) तेभांथी सिद्धान सससार
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧