Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
२४०
भगवतीस
तस्य । एतेषु बन्धाद्यष्टसु बन्धादारभ्य निकाचनपर्यन्तमचलितस्य भवति, निर्जरा तु चलितस्येत्येतावानेव विशेषः । 'गाहा' गाथा - अत्र पूर्वोक्तसूत्रार्थानां संग्रहिका गाथा, तथाहि - ' बंधोदय' इत्यादि । 'बंध' इति बन्धप्रतिपादकं सूत्रम् १ | 'उदय' इति उदीरणा, अत्र - उदय शब्देन उदीरणा गृह्यते, तेन द्वितीयमुदीरणा सूत्रम् २ | 'वेद' इति वेदनाम् ३ । 'ओय' इति - अपवर्तनसूत्रम् ४। 'संकमे' इति संक्रमण सूत्रम् ५ । तथा 'णिहत्तण' इति निधत्तमुत्रम् ६ । 'णिकाये' इति निकाचनसूत्रम् ७। ' अचलियं कम्मं तु भवे ' अचलितं कर्मतु भवेत्-एषु सप्तसु अचलितस्य कर्मण में बंध से लेकर निकाचकपर्यन्त अचलित कर्म होता है, और निर्जरा मैं चलित कर्म होता है । तात्पर्य यह है कि जीव प्रदेशोंसे अचलित कर्मका हो वे नारक जीव बंध करते हैं, अचलित कर्मकी ही वे उदीरणा करते हैं | अचलित कर्मका ही वे वेदन करते हैं । इस तरह निकाचन पर्यन्त पाठ लगा लेना चाहिये। तथा निर्जरा वे चलित कर्मकी ही करते हैं । इतना ही फर्क इनमें है । गाथाका अर्थ पहले ही लिख दिया गया है। गाथा में जो उदय शब्द आया है उससे उदीरणाका ग्रहण किया गया है । बंध से बंध प्रतिपादकसूत्र, उदयसे उदीरणा प्रतिपादक सूत्र, वेदसे वेदना प्रतिपादक तीसरा सूत्र, "ओयह” से अपवर्तन प्रतिपादक चतुर्थी सूत्र, "संकमे" से संक्रमण प्रतिपादक पांचवां सूत्र, "णिहत्तण" से निघत्त प्रतिपादक छट्टासूत्र, “णिकाये" से निकाचन सूत्र इन सात सूत्रोंमें अचलित कर्म लिया गया है । अर्थात् इन सात सूत्रोंमें अचलित कर्मके
લઇને ‘નિકાચન’ સુધીમાં અચલિત કમ હાય છે. અને નિરામાં ચલિત ક હોય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે નારક જીવા જીવપ્રદેશેાથી અચલિત કોને જ અંધ અંધે છે, અચલિત કની જ ઉદીરણા કરે છે, અચલિત કર્માનું જ વેદન કરે છે. આ રીતે ‘નિકાચન’ સુધી આ પ્રકારનેા પાઠ સમજી લેવે. તથા તેઓ ચલિત કની જ નિર્જરા કરે છે. એટલો જ તેમની વચ્ચે તફાવત છે. ગાથાને અ પહેલાં જ આપી દેવામાં આવ્યા છે. ગાથામાં જે 'उदय' शब्द भाव्यो छे तेना द्वारा 'हीरागा' ने ग्रहण हरवानी छे. 'अध' પદ્મથી ખંધનું પ્રતિપાદન કરનાર સૂત્ર, ઉદયથી ઉદીરણાનું પ્રતિપાદન કરનાર सूत्र, 'वेद' थी बेहनानुं प्रतिपाद सूत्र, "ओयटु" थी शायवर्तननुं प्रतिपादन अश्नार थोथु ं सूत्र, “संकमे" थी सहभाणु प्रतिपा यांयभुं सूत्र, 'णिहत्तण' थी निघत्त प्रतिपाद छट्टु सूत्र भने “णिकाये” थी निभयन सूत्र, मे साते સૂત્રોમાં અચલિત ક લેવામાં આવ્યું છે. એટલે કે એ સાત સૂત્રમાં અચલિત
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧