Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१३० १ सू० १९ पृथिवीकायिकादिनिरूपणम् २१
माहारमाहरन्ति, गौतम द्रव्यतो यथा नैरयिकाणाम् यावत् निर्व्याघातेन षड्दिशम् , व्याघातं प्रतीत्य स्यात् त्रिदिशम् , स्यात् चतुर्दिशं स्यात् पंचदिशम् । वर्णतः काल नील पीत लोहित शुक्लानि, गन्धतः सुरभिगन्धादिकम् , रसतः तिक्तादिकम् , स्पर्शतः कर्कशादिकम् , शेषं तथैव, नानात्वम्-कतिभागमाहारयन्ति आहारेंति ?) हे भदन्त ! पृथिवीकायिक किसका आहार करते हैं ? (गोयमा ) हे गौतम! (दव्वओ जहा नेरइयाणं) पृथिवीकायिकजीव द्रव्यकी अपेक्षासे नारकजीवोंकी तरह अनन्त प्रदेशवाले द्रव्योंका आहार करते हैं (जाव निव्वाघाएणं छदिसिं) यावत् वे व्याघात सहित न होंतो छहों दिशाओंसे आहार लेते हैं । (वाघायं पडुच्च) और व्याघात सहित हों तो (सिय तिदिसिं) कदाचित् तीन दिशाओंसे (सिय चउद्दिसिं) कदाचित् चार दिशाओंसे (सिय पंचदिसिं) कदाचित् पांच दिशाओंसे आहार लेते हैं (वन्नओ काल-नील-पीत-लोहिय-सुकिल्लाई) वर्णकी अपेक्षा-काले, नीले, पीले, लाल तथा हल्दी जैसे रंगवाले और शुक्ल रंगवाले द्रव्योंका आहार लेते हैं। (गंधओ) गंधकी अपेक्षा (सुन्भि गंधाइयं) सुगंधित, दुर्गंधित द्रव्योंका आहार लेते हैं। (रसओ) रसकी अपेक्षा (तित्ताइयं ३) तिक्तादि रसवाले द्रव्योंका आहार लेते हैं। (फासओकक्खडाई ८) सर्शकी अपेक्षा कर्कश आदि स्पोंसे युक्त द्रव्यका आहार लेते हैं। (सेसं तहेव) कहने से जो विषय अवशिष्ट रहा है वह नारक जीवोंके आहार संबंधी कथनकी तरह जानना चाहिये। शेन! मा.२ ४२ छ ? (गोयमा। ) ॐ गौतम ! (दृव्वओ जहा नेरइयाणं) पृथ्वी કાયિક છે દ્રવ્યની અપેક્ષાએ નારક જીવોની જેમ અનંત પ્રદેશવાળાં દ્રવ્યોને मा२ ४२ छ. (जाव निव्वाघाएण छदिसिं) ने तेसो व्याघातयुत न डाय तो छ हिशामेथी माडा२ से छ, (वाघायं पडुच्च) मने व्याधात सडित जाय तो (सिय तिदिसिं) ४ पा२ १ हिशामेथी (सिय चउदिसि ) अ पा२ या२ हिशामेथी, (सिय पंच दिसिं ) भने ६ पार पांय हिशमेथी मा२ से छ. ( वन्नओ काल-नील-पीत लोहिय-सुकिल्लाई ) पनी अपेक्षा કાળા, નીલા, પીળા, લાલ, હળદર જેવા રંગવાળાં અને સફેદ રંગવાળાં દ્રવ્યને भाडा२ छे. (गंधओ) गधनी २५पेक्षा ( सुब्भि गंधाइयं) सुचित मने गधित द्रव्योन। माडार से छ. (रसओ) २सनी अपक्षासे (तित्ताइयं) तिsila २सवाजा द्रव्योन। माडा२ से छ. (फासओ) २५शनी मपेक्षा (कक्खडाई) ४ मा २५शवाज द्रव्योन। सा.२ से छे. (सेसं तहेव) २॥ सिवायन જે કથન બાકી રહેતું હોય તે નારક જીવોના આહાર વિષેના કથન પ્રમાણે જ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧