Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीको
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गन्तव्यम् । तथोक्तम्
"सण्हा? य सुद्ध१२ वालु य १४, मणोसिला१६ सकरा१८ य खर पुढवी२२॥ एगं बारस चोदस सोलस अट्ठार बावोसा" ॥ इति ॥ छाया-श्लक्ष्णा च शुद्धा वालुका मनः शिला शर्करा च खरपृथिवी।
एकं द्वादश चतुर्दश षोडश अष्टादश द्वाविंशतिः ॥ ॥ इति । पुनः पृच्छति-'पुढवीकाइयाणं भंते ' पृथिवीकायिकाः खलु भदन्त ! 'केवा. कालम्स' कियत्कालेन 'आणमंति वा आनन्ति वा 'पागमति वा' प्राणन्ति वा ? ६० पल होनेसे यह (मुहूर्त। एकसौबीस (१२०) पलका होता है। शास्त्रोत स्तोक लव आदिके मापसे सतहत्तर (७७) लवका एक मुहूर्त होता है यह मुहूर्त वर्तमानकालीन घटीयन्त्र ( घड़ियाल )के मापसे अड़तालीस ४८ मिनिट परिमित काल एक मुहूर्त कहलाता है। उसमें यदि एक समय आदि की न्यूनता हो तो वह कालमुहूर्त के भीतर होने के कारण एक अन्तर्मुहूर्त कहा जाता है। बाईसहजार वर्षकी जो उत्कृष्ट स्थिति पृथिवीकायिक जीवोंको कही गई है। वह खरपृथिवीकी अपेक्षासे कही गई है।
कहा भी है"सहाय सुद्ध १२ वालय १४, मणोसिला १६ सकरा १८ य खर पुढवी२२॥ एगं यारस चोद्दस सोलस अट्ठार बावीसा" ॥ इति ।
लक्ष्ग-सूक्ष्म-पतली, शुद्ध-काममें नहीं लाई गई मिट्टी, बालुका, मनःशिला, शर्करा, और खरपृथिवी, इन छह पृथिवियोंकी स्थिति क्रमशः एक हजार, बारह हजार, चौदह हजार, सोलह हजार, अठारह हजार और बावीस हजारी है। સુહર્ત કહે છે. જે તેમાં એક સમયની પણ ન્યૂનતા હોય તે તે કાળને અન્ત મુહૂર્ત કહે છે, કારણ કે તે કાળ એક મુહૂર્તથી ઓછી હોય છે. પૃથ્વીકાયિક જીવોની બાવીસ હજાર વર્ષની જે ઉત્કૃષ્ટ રિથતિ કહી છે તે ખરપૃથિવીની અપેક્ષાએ કહેલ છે. કહ્યું પણ છે–
"सण्हा य सुद्ध १२ वालुय १४, मणोसिला१६ सकरा१८ य खर पुढवी२२ ।
एगं बारस चोइस सोलह अट्ठार बावीसा" ॥ इति । सण-सूक्ष्म-मारी, शुद्ध-उपयोगमा न सेवायेसी भाटी, वायु (२ती), मनः શિલા, શર્કરા, અને ખરપૃથિવી, એ છ પૃથિવીકાયની સ્થિતિ અનુક્રમે એક હજાર, બાર હજાર, ચૌદ હજાર, સોળ હજાર, અઢાર હજાર અને બાવીસ હજાર વર્ષની હોય છે.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧