Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१३०१सू० १३ पूर्वाहारितादि पुद्गलनिरूपणम् २११ स्तथा चिता अपि, एवमुपचिता उदीरिता वेदिता निर्जीर्णाः। गाथा-परिणताश्चितावोपचिता उदीरिता वेदिताश्च निजीर्णाः। एकैकस्मिन् पदे, चतुर्विधाः पुद्गला भवन्तीति॥ १॥ मू० १३॥
टीका--अथ शरीरसंबन्धस्वरूपपरिणामात् पुद्गलानां चयादयोपि भवन्तीति चयादीन् प्रदर्शयन्नाह-'नेरइयाणं भंते' इत्यादि । हे भदन्त ! 'नेरइयाणं ' नैरयिकाणां=नारकजीवानाम् 'पुवाहारिया पुग्गला' पूर्वाहृताः पुद्गलाः पौद्गलिकस्कन्धोंको पूर्वकालमें अपने आहारके विषयभूत बनाया है ऐसे वे पौद्गलिक स्कंध (चिया) चित हुए हैं क्या ? (पृच्छा) ऐसा यहां प्रश्न होता है। उत्तर-(जहा परिणया तहा चिया वि) जिस प्रकार वे परिणत हुए हैं उसी प्रकारसे वे चित भी हुए हैं। ( एवं उवचिया, उदीरिया, वेड्या, निज्जिया) इसी प्रकार वे उपचित हुए हैं, उदीरित हुए हैं, वेदित हुए हैं और निर्जीर्ण हुए हैं। गाहा-गाथा-(परिणयचिया य उवचिया, उदीरिया वेड्या य निज्जिन्ना। एक्केकम्मि पदम्मि, चउविहा पोग्गला होंति) परिणत१, चित २, उपचित३, उदीरित४, वेदित और निर्जीर्ण६ इन पदोंमेंसे प्रत्येक पदमें चार प्रकारके पुद्गल होते हैं। ___टीकार्थ-परिणत-परिणामका संबन्ध शरीरके साथ है। इसलिये शरीरके साथ जो परिणामरूप संबन्ध है उस संबंधको लेकर पुद्गलों में चयादिक भी होते हैं। इसी विषयको स्पष्ट करनेके लिये सूत्रकारने यहां पर इन चयादिकोंका कथन किया है। सबसे पहले यहां यह प्रश्न किया અન્યોને પૂર્વકાળે પિતાના આહારના વિષયભૂત બનાવ્યા છે એવાં એ પગसि४२४ धे। (चिया) शुथित थया राय छ ? (पृच्छा) मेयो प्रश्न मी लवे छे. ___ उत्तर-(जहापरिणया तहा चिया वि) 2 प्रारे तेसो परिणत थयडाय छ मे ८ ५४ारे ते ति ५५ थया डाय छे. (एवं उवचिया, उदीरिया, वेइया, निज्जिया) मे १४ प्रमाणे ते उपस्थित थया डाय छ, Ra या डाय छ, वेहित थया जाय छ भने नि थया जाय छे. (गाहा) था-(परिणय, चिया य उवचिया, उदीरिया वेइयाय निजिन्ना । एकेकम्मि पदम्मि, चउव्विहा पोग्गला होति) (१) परिणत, (२) थित, (3) पथित, (४) GlRत, (५) वहित, અને (૬) નિર્ણ, એ પદેમાંના દરેક પદમાં ચાર પ્રકારના પુદ્ગલ હોય છે.
साथ-परिणत-परिणामो समय शरीर साथे छे. तेथी शरी२नी साथे જે પરિણામરૂપ સંબંધ છે તે સંબંધને લીધે પુદગલમાં ચયાદિક પણ થાય છે. આ વિષયનું સ્પષ્ટીકરણ કરવાને માટે જ સૂત્રકારે અહીં આ ચયાદિક પદેનું કથન કર્યું છે. સૌથી પહેલો પ્રશ્ન અહીં એ ઉદ્ભવે છે કે-પૂર્વકાળે આહારરૂપે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧