Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेक्चन्द्रिका टीका श०१३० १ सू० १६ कर्मबंधनिरूपणम्
२३५ गौतम नो चलितं कर्म उदीरयंति, अचलितं कर्म उदीरयति । एव वेदयन्ति, अपवर्तयन्ति, संक्रमयन्ति, निदधति, निकाचयन्ति, सर्वेष्वचलितम् नो चलितम् । नैरयिका भदन्त ! किं जीवतः चलितं कर्म निर्जरयन्ति अचलितं कर्म निर्जरयन्ति ? गौतम ! चलितं कर्म निर्जरयन्ति नो अचलितं कर्म निर्जरयन्ति गाथा(णो चलियं कम्मं उदीरेंति ) नारकजीव चलित कर्मकी उदीरणा नहीं करते हैं । किन्तु (अचलियं कम्मं उदीरेंति ) अचलित कर्मकी उदीरणा करते हैं । (एवं वेदेति, उवटेंति, संकाति, निहत्तेति, णिकायेंति, सब्वेसु अचलियं, नो चलियं) इसी प्रकारसे नारकजीव अचलित कर्मका वेदन करते हैं। चलितकर्मका नहीं। अचलितकर्मकी उद्वर्तना करते हैं, चलितकर्मकी नहीं । अचलितकर्मका संक्रमण करते हैं, चलितकर्मका नहीं। अचलितकर्मका निधत्तकरण करते हैं, चलित कर्मका नहीं। अचलितकर्मका निकाचन करते हैं, चलित कर्मका नहीं। इस तरह इन समस्तपदोंमें अचलितकर्मकी योजना करना, चलित पदकी नहीं। (भंते) हे भदन्त । (णेरइयाणं) नारकजीव (किं ) क्या (जीवाओ) जीवप्रदेशसे (चलिय कम्म णिजरेंति ) चलित कर्मको निर्जरा करते हैं ? या (अचलिथं कम्मंणिजाति)अचलित कर्मकी निर्जरा करते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! नारकजीव ( चलियं कम्म णिजरेंति) चलित कर्मकी निर्जरा करते हैं (णो अचलियं कम्मंणिज्जति) अचलित कर्मको निर्जरा नहीं
(गोयमा !) गौतम ! (णो चलिये कम्मं उदीरे ति) ना२४ ॥ यसित भनी ी२|! ४२ता नथी, ५९] (अचलिय कम्म उदीरे ति) अन्यसित भनी उहीर! ४२ छे. (एवं वेदेति, उवटेंति, संकाति, निहत्तेति, णिकायेति, सव्वेसु. अचलियं, नो चलिय) से प्रमाणे ना२४ ७ सयलित भर्नु वेहन ४२ छ, ચલિત કર્મનું નહીં. અચલિત કર્મની ઉદ્વર્તન કરે છે, ચલિત કર્મની નહીં. નારાજી અચલિત કર્મનું સંક્રમણ કરે છે. ચલિત કર્મનું નહીં, અને અચલિત કર્મનું નિકાચન કરે છે ચલિત કર્મનું નહીં. આ રીતે આ બધાં પદે साथे मयसित भनी प्रयोग ४२वो नये, यलित पहनी नही. ( भते) 3. महन्त ! (णेरइया णं किं जीवाओ चलियं कम्म णिज्जाति) न॥२४ ७ . प्रशथी यसित भनी नि२४२ छे (अचलियं कम्मं णिज्जरेति) भयलित भनी नि२॥ ४२ छ ? (गोयमा !) 3 गीतम! ना२४ ०। (चलिय कम्मणिज्जरेंति) यसित भनी नि२१ ४२ छ, ५४ (णो अचलिय कम्मं णिज्जरेंति) અચલિત કર્મની નિરા કરતા નથી. આ વાત જે ગાથામાં બતાવી છે તે ગાથાને
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧