Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती सूत्रे
इत्याशङ्कायामाह - ' विगयपक्खस्स ' इति विगतपक्षस्य, वि- पूर्वकगमधातोः 'क्त' प्रत्यये कृते ‘विगत' इति रूपं भवति, विगमो वस्तूनामवस्थान्तरगमनं विनाश इति यावत्, तथा च - विगतपक्षमाश्रित्यैतानि पदानि प्रवर्तन्ते इति योजना उत्पादपक्षो वर्तमान भविष्यद्विषयकः, विगतपक्षी भूत वर्तमानविषयक इति तयोर्भेदः ।
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'विगतपक्षस्ये ' - त्यत्र विगतत्वं विवक्षित पुरुषापेक्षया सर्वकर्मणां क्षयोऽभि मतः । सर्वकर्मक्षयो जीवेनेतः पूर्व कदापि नानुभूतः, अतः सर्वकर्मक्षयोऽत्यन्तमेवोपादेयः । पुनश्च सर्वकर्मक्ष पार्थमेव पुरुषाणां प्रयत्नः । छिद्यमानं छिन्नमित्यादिपदानि
शंका- ये " निर्जीर्यमाणं निर्जीर्णम्" इत्यादि जो पद हैं वे विशेष विवक्षा की अपेक्षा भिन्न र अर्थवाले हैं परन्तु सामान्य की अपेक्षा ये किस पक्ष को लेकर प्रवृत्त होते हैं ?
शब्द
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उत्तर - विगत पक्ष को लेकर ये प्रवृत्त होते हैं । " विगत वि-उपमर्गपूर्वक गम - धातु से क्त-प्रत्यय करने से बना है। इसका अर्थ वस्तुओं का अवस्थान्तरगमनरूप विनाश " ऐसा होता है । इस तरह विगत पक्ष को आश्रित करके ये पद प्रवृत्त होते हैं, ऐसी योजना कर लेनी चाहिये । उत्पादपक्ष वर्तमानकाल और भविष्यत्काल, इन दो कालों को विषय करनेवाला है, और विगतपक्ष भूतकाल और वर्तमानकाल, इन दो कालों को विषय करनेवाला है । इस तरह विगतपक्ष में और उत्पादपक्ष में भेद सिद्ध होता है। विवक्षित पुरुष की अपेक्षा
मस्तकर्मों का क्षय विगमत्व माना गया है । सर्वकर्मक्षय जीव ने इससे पहले कभी भी अनुभूत नहीं किया है, अतः सर्वकर्मक्षय ४ - " निर्जीयमाणंनिर्जीर्णम्" इत्याहि ने यहो छे तेयो विशेष विवક્ષાની અપેક્ષાએ જુદા જુદા અર્થવાળાં છે. પણ સામાન્યની અપેક્ષાએ કયા પક્ષને લીધે પ્રવૃત્ત થાય છે ?
उत्तर—विगतपक्षने सीधे तेयो प्रवृत्त थाय छे. 'वि' उपसर्ग' साथै 'गम्’ धातुने 'क्त' प्रत्यय लगाउवाथी विगत शब्द मने छे. “वस्तुमानो व्यवस्था. ન્તર ગમનરૂપ વિનાશ” એવા તેના અથ થાય છે. આ રીતે વિગત પક્ષના આધાર લઇને એ પદે પ્રવૃત્ત થાય છે એમ સમજી લેવું. ઉત્પાદ પક્ષ વમાનકાળ અને ભવિષ્યકાળને વિષય કરનારા છે અને વિગતપક્ષ ભૂતકાળ અને વર્તમાનકાળને વિષય કરનારા છે. આ રીતે વિગતપક્ષ અને ઉત્પાદપક્ષ વચ્ચેના ભેદ્ય સિદ્ધ થાય છે. વિવક્ષિત પુરુષની અપેક્ષાએ સમસ્ત કર્મોનો ક્ષય વિગમત્વ ગણાય છે. જીવે કદી પણ સવ કક્ષયને અનુભવ કર્યો નથી. તેથી સકમ ક્ષય
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
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