Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
________________
भगवतीसूत्रे इहापि 'चलमाणे चलिए' 'एए णं भंते नव पया' इत्यादिमाथमिकप्रश्नोत्तरसूत्रयोर्मोक्षतत्त्वस्यैव प्रतिपादितत्वात् , मोक्षो हि जीवानां भवति, जीवा एव संसारमलातस्वाद् बद्धाः, ते च बद्धाः जीवा नारकादिप्रभेदेन चतुर्विंशतिप्रकाराः शास्त्रे प्रतिपादिताः। तथा चोक्तम्
" नेरइया असुराई पुढवाई बेइंदियादओ चेव ।
पंचिंदिय-तिरिय-नर-वितर-जोइसिअ-वेमाणि ॥१॥" छाया-नैरयिका असुरादयः पृथिव्यादयो द्वीन्द्रियादयश्चैव ।
पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग-नरा व्यंतरा ज्योतिषिका वैमानिकाः ॥१॥ नारकादिजीवानां दुःखबहुलस्थित्यादिश्रवणतो विवेकिनां मनसि वैराग्यं स्यात् , ततः संसारस्य तत्कारणकर्मणश्च स्वरूपमनित्यत्वादिभावनया विभाव्य
उत्तर-इस प्रकार की शंका नहीं करनी चाहिये, क्यों कि यहाँ भी "चलमाणे चलिए" "एए णं भंते ! नव पया" इत्यादि पहले के इन दो सूत्रों में मोक्षतत्त्व का ही प्रतिपादन किया है । यह मोक्ष जीवों को ही प्राप्त होता है, और वे जीव जबतक मुक्ति को प्राप्त नहीं हुए हैं तबतक वे संसाररूप मैल से मलिन बने हुए हैं, और इसी कारण वे कर्मों से जकड़े हुए हैं-बंधदशाप्राप्त हैं । ऐसे बंधदशाप्राप्त वे जीव नरकादि प्रभेदसे चौबीस प्रकारके शास्त्र में कहे गये हैं । सो ही कहा है(१) सात नैरयिक,(२)दस असुरकुमार आदि,(३)पाँच पृथिवीकाय आदि, (४) तीन दोइन्द्रिय आदि (विकलेन्द्रित्रय) (५) एक पञ्चेन्द्रियतिर्यश्च, (६) एक मनुष्य, (७) एक व्यन्तर, (८) एक ज्योतिषिक, और एक वैमानिक इस प्रकार से सब चौबीस जीव के भेद हैं।
उत्तर-यावी ४४२वी ने नहीं. ४।२१ गडी ५४ "चलमाणेचलिए" एएण भंते ! नव पया" छत्यादि पडसाना सय सूत्रोमा मोक्ष तत्त्वतुं २४ પ્રતિપાદન કરાયું છે. તે મોક્ષ જીવેને જ પ્રાપ્ત થાય છે. જ્યાં સુધી જીવ મેક્ષની પ્રાપ્તિ કરતા નથી ત્યાં સુધી સંસારરૂપ મેલથી મલિન બનેલું હોય છે. અને એજ કારણે તે કર્મોથી જકડાયેલેબંધ દશાવાળ હોય છે. એવા બંધ દશાને પામેલા જીવન નારક આદિ ૨૪ પ્રકાર શાસ્ત્રોમાં કહ્યા છે તે પ્રકારે આ प्रभारी छ-(१) नैयि (२) इस असु२ सुभा२ माहि, (3) पांय पृथ्वीय माद, (४) त्रीन्द्रिय माहि विसत्रय, (५) से पयन्द्रिय तियय, (6) से मनुष्य, (७) मे व्यन्त२ (८) से ज्योति०४ अने मे वैमानि४, २॥ રીતે બધા મળીને જીવના ૨૪ ભેદ છે.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧