Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.१ उ. १ सू०९ 'चलमाणे चलिए 'इनवपदव्याख्या १५१ चलिए' इत्यादि । इति प्रश्नाशयः । तदेवं गौतम गणधरेण पृष्टान् नव प्रश्नान् श्रुत्वा भगवानाह - 'हंता' इत्यादि । 'हंते' - ति पदं कोमलामंत्रणे विद्यते, अथवा - 'हे गौतम ! यत्त्वया पृष्टं तत्तथैवास्ति' इत्येवंरूपेण तस्मिन् स्वकीयस्वीकृतिपरकं हंतेति पदम् । 'गोयमा' हे गौतम! 'चलमाणे चलिए जाव निज्ञ्जरिज्जमाणे निज्जिण्णे' चलत चलितं यावत् निर्जीर्यमाणं निर्जीर्णम्, 'चलमाणे चलिए' इत्यारभ्य 'निज्जरिज्जमाणे निज्जिणे' इतिपर्यन्तं ये प्रश्नाः त्वया कृतास्ते तथैव सन्तीति भगवदभिप्रायः ।
तानेव स्पष्टयति- 'चलमाणे चलिए ' इति कर्मविवेचकस्य प्रथमसूत्रस्यैव प्रथमतः कथनं कृतम्, तत्र - (१) 'चलमाणे ' - ति चलतू = स्थितिक्षयादुदयमा
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यह
चलनादिकों में अतीतकालविषयत्व कैसे संभव हो सकता है। जब ऐसी बात है तो फिर " चलमाणे चलिए " ऐसा आप कैसे कहते हैं ? इस प्रकार गौतमने “ चलमाणे चलिए ” इत्यादि नौ प्रश्न किये, इनका स्वीकार करते हुए भगवान् ने कहा " हंता " । " हंत पद कोमल आमन्त्रण में है । अथवा हे गौतम! जो तुमने पूछा है वह वैसा ही है इस प्रकार की उस विषय में अपनी स्वीकृति दी । अर्थात् भगवान् गौतम गणधर से कह रहे हैं कि हे गौतम ! 'चलमाणे चलिए ' यहां से लेकर ' णिज्जरिज्जमाणे णिज्जिपणे ' यहां तक जो प्रश्न तुमने किये हैं वे उसी प्रकार से हैं। ऐसा भगवान् का अभिप्राय है । अब इन्हीं प्रश्नों को स्पष्ट किया जाता है - " चलमाणे चलिए " यह प्रथम सूत्र कर्मविवेचक है सो सूत्रकारने इसका ही प्रथम कथन किया है।
આરીતે વર્તમાનકાળવિષયક ચલત્ આદિકોમાં ભૂતકાલવિષયત્વ કેવી રીતે સંભવી शडे छे ? या प्रमाणे सभेगो होवाथी “चलमाणे चलिए" मेवु आप देवी रीते उड़े। छो ? या प्रमाणे “चलमाणे चलिए" इत्यादि नव प्रश्नो गौतम स्वा મીએ ભગવાનને પૂછ્યા. તેને સ્વીકાર કરતા लगवाने धुं, "हंता" 'हंत' પદ કામળ આમંત્રણરૂપે આવે છે. અથવા ‘હે ગૌતમ ! તેં જે પૂછ્યું છે તે એ પ્રમાણે જ છે” એવી તે વિષયમાં પેાતાની સ્વીકૃતિ આપવારૂપ છે. એટલે में लगवान महावीर गौतम गणुधरने छेडे गौतम ! 'चलमाणे चलिए ' थी श३ ४रीने “णिज्जरिज्जमाणे णिज्जिण्णे” सुधीना ने प्रश्नो तभे पूछया ते એ પ્રમાણે જ છે (તેમાં કાઇ સંશય કરવા જેવું નથી) એવા ભગવાનને અભિआय छे. हवे ते प्रश्नोनुं स्पष्टी४२ अरवामां आवे छे - 'चलमाणे चलिए' मे પહેલું સૂત્ર કવિવેચક છે તેથી જ સૂત્રકારે સૌથી પહેલું તેનું કથન કર્યું છે.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧