Book Title: Neminahacariya Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Lalbhai Dalpatbhai Series No. 23 HARIBHADRA'S NEMINAHACARIYA [Volume II] Edited by Prof. H. C. Bhayani, M. A.; Ph. D. Prof. M. C. Modi, M. A.; LL. B. 14 LALBHAI DALPATBHAI BHARATIYA SANSKRITI VIDYAMANDIR AHMEDABAD-9 Jain Education in Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Lalbhai Dalpatbhai Series No. 33 General Editor Dalsukh Malvania HARIBHADRA'S NEMINĀHACARIYA [Volume II] Edited By Prof. H. C. Bhayani, M. A., Ph. D. Prof. M. C. Modi, m. A., LL. B. LALBHAI DALPATBHAI BHARATIYA SANSKRITI VIDYAMANDIR AHMEDABAD-9 2010_05 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ First Edition: 500 Copies Printed by Swami Tribhuvandas Shastri, Shree Ramanand Printing Press, Kankaria Road, Ahmedabad-22; and published by Dalsukh Malvania, Director, L. D. Institute of Indology, AHMEDABAD-9 Copies can be had from L. D. Institute of Indology, Motilal Banarasidass, Sarasvati Pustak Bhandar, Munshi Ram Manoharlal, Mehar Chand Lachhamandas, Chowkhamba Sanskrit Series Office, 2010_05 August 1971 Ahmedabad-9 Patna-4, Varanasi, Delhi-7 Hathikhana, Ratan Pole, Ahmedabad-1 Nai Sarak, Delhi Delhi-6 Varanasi Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरि-हरिभद्द-सूरि-विरइउ नेमिनाहचरिउ [द्वितीयो भागः] संपादक प्राध्यापक हरिवल्लभ चू. भायाणी प्राध्यापक मधुसूदन चि. मोदी काशक लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर अहमदाबाद-९ 2010_05 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2010_05 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOREWORD The L. D. Institute of Indology has great pleasure in offering to the world of scholars the second volume of Sri Haribhadrasūri's Nemināhacariya. In this second volume the remaining portion of the text is given. The L. D. Institute is thankful to Prof. H. C. Bhayani and Prof. M. C. Modi for undertaking the editing of this voluminous and important Apabhramsa work. They have spared no pains in making it as flawless as possible. They intend to give in a separate volume the general introduction covering important topics like life and work of the author, language, metre, form of the poem etc., together with a glossary of important words occurring in the text. It is hoped that the publication of this work will fecilitate the studies and researches in Apabhramsa language and literature. L. D. Institute of Indology, Ahmedabad-9. 15th Aug. 1971 Dalsukh Malvania Director 2010_05 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2010_05 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PREFACE This Second Volume of Nemināhacariya contains the rest of the text of the poem. Verses 1930 to 3310 give an account of the ninth bhava of Naminātha. It is interwoven with the biography of Vasudeva as also of Kıšņa, Balabhadra and Jarāsandha, who together constitute the ninth trio of Vasudeva, Baladeva and Prati-Vāsudeva. The works dealing with these subjects are known as Harivamśa in the Jain tradition. Verses 3311 to 3338, making up the concluding prasasti of the work tell us about its author, .time, place and the circumstances under which it was composed. As the Neminahacariya was composed at the request of Prthvipāla, a minister of Jayasimha and Kumārpāla, the well-known Chaulu. kya kings of Gujarat, the prašasti gives at some length information about his illustrious forebears and their relations with the then reigning kings of Gujarat. Thus it possesses a unique historical importance. With the publi. cation of this volume the complete text of the Neminahacariya has been made available. The remaining Third Volume will be devoted mainly to the study of a few aspects of the poem from textual and historical viewpoints. Ahmedabad, September 1, 1971. H. C. Bhayani M. C. Modi 2010_05 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयनिर्देशः नेमिनाहचरिउ (नवमो भवः) हरिवंशवृत्तान्तः वसुदेववृत्तान्तः कृष्णचरितम् बालचरितम् पद्याङ्काः १९३०-३३१० १९३०-२०१० २००१-२२८४ २२८५-२३१५ २४२६-०६०६ २६१७-२९४७ ३१७१-३२८२ २२८५-२३१५ २४२६-२५१३ २५१४-२५७० २५७१-२६०६ २६१७-२६४७ २६४८-२७५२ २७५३-२९०३ २९०४-२९१७ ३१७१-३२८२ पृष्ठाङ्का ४३७-७११ ४३७-४५३ ४५३-५२० ५२०-५२८ ५४५-५८६ ५८८-६५७ ७०२-७२७ ५२०-५२८ ५४५-५६६ ५६७-५८० ५८१-५८६ ५८८-५९५ ५९५-६१४ ६१५-६४८ ६४८-६५७ ७०२-७२७ यादवजरासन्धविरोधः द्वारावतीनिर्माणम् रुक्मिणीहरणम् प्रद्युम्नचरितम् जरासन्धवधः कृष्णस्य अर्धचक्रित्वम् द्वारावतीदहनं कृष्णबलभद्रमरणं च नेमिचरितम् नेमिजन्म नेमियौवनप्राप्तिः नेमिप्रवज्या नेमिनिर्वाणम् ग्रन्थकारप्रशस्तिः शुद्धिपत्रम् २३१६-२०१५ २६०७-२६१६ २९४८-३१७० ३२८२-३३१० ३३११-३३३८ ५२८-५१५ ५८६-५८८ ६५७-७०२ ७२७-७३१ ७३५-७४१ ७१३ ____ 2010_05 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरि-हरिभद्दसूरि-विरइउ नेमिनाहचरिउ [द्वितीयो भागः] ____ 2010_05 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2010_05 Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरि- हरिभद्दसूरि- विरइउ नेमिनाहचरिउ [१९३०] अह समासिण नवम-भव भावि तंतु नेमहि पहुहु तत्थ य किल नेमि - जिणु इय पढमं चिय अक्खियय जह पुथ्विल्ल महाकइ हिं संखाइय निव-सह कोसंविनियरियहिं भण्णमाणु सुण एग - चित्तिण । समवइण्णु हरिवंसिस कइण ॥ हरि-वंसह उत्पत्ति । भणिय अस्थि सिद्धति ॥ [१९३१] उ सह-भरहहं वइसि अइकंत 2010_05 तयणु तित्थि सीयल - जिर्णिदह | आसि निवइ गुरु राय - विंदह ॥ रूत्र - विणिज्जिय-विसमसरु पसरिय-तेय - निहाणु । - जहिहि विवसुमइहि * सामि सुमुह-अभिहाणु ॥ [१९३२] अवर - अवसरि रायवाडीए गच्छंतु नराहिवर नियइ दइय वीरय - कुविंदह । aणमा - नामिण पड मुहिण सरिस दलियारविंदह || अह अणुरयाउर - मणिण अवहरेवि सा वाल | निवरण अंतेउरि खिविय सोहग्गेण विसाल ॥ [१९३३] तय पंच वि विसय सेवेइ सह ती नराeिas गच्छमाणु दिणु निसि व अ-मुरुि । अ- नियंतउ निय-दइय कह कह धरहं न परियडिउ विरह-विहरु वीरो वि विलविरु ॥ कह कह जगि न विगुत्तु । कुव्वंतर पुणरुत्तु ॥ aणमालह नाम गगहणु * From here upto १९३१. १. क. उसह• अमुणिरु in 1933 क is mostly illegible. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१९३४ नेमिनाहचरिउ [१९३४] *अवर-अवसरि नियय-धवलहर वायायण-संठिइण सविह-विहिय-वणमाल-देविण । अवलोइउ निविण पहि परिभमंतु सह डिंभ-सहसिण ॥ परिवियलिय-अंबर-जुयलु भसमुद्धलिय-गत्तु । सु जि वीरउ पुणु पुणु सुयणु वणमाल त्ति भणंतु ॥ [१९३५] तयणु पसरिय-पच्छयावेण नरवरिण स-पिययमिण घिसि वराठ किं एहु एरिस । संपत्तउ विसम दस एह मज्झ विसयम्मि अ-सरिस ॥ ता वियरेमि इमस्सु इह तरुणिय इय चिंतंतु । तडि-पडणिण स-पिओ वि निवु मरिऊणं डझंतु ॥ मिहुण-भाविण हुयउ हरि-वरिसि स-पिओ वि-हु कप्प-तरु- दिण्ण-सयल-वछिय-समिद्धिउ । परिचिट्ठइ अहिलसिय- विसय-मुहिहिं ससि-सुद्ध-बुद्धिउ ।। इयरु वि तारिस-दुह-दविण संतवियंगोवंगु । अंतम्मि य कह-कह-वि कय- अन्नाणिय-तव-संगु ॥ [१९३७] पढमु मुर-घरि अप्प-रिद्धीसु देवेसु तियसत्तणिण हुयउ तयणु जाणिवि विभंगिण । हरि-वरिसि सु सुमुहु निवु स-प्पिउ वि हुउ मिहुण-भाविण ॥ ता कोवारुण-नयणु तहं कुणइ निहणणोवाउ । चिट्ठइ पुणु मिहुणत्तणिण अ-प्पह विरु स-विसाउ ।। * From here upto tanto in line 4 # is illegible. १९३५. ७. क. तरुणि व; ख. इ चिंततु. १९३६. ७. क. संतविअं. १९३७. १. पढम. ____ 2010_05 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३९ नवमभवि हरिवंसवुत्तंतु [१९३८] एत्य-अंतरि पुरिहि चंपाए अणहुंत-अंगुब्भविउ चंदकित्ति-अभिहाणु नरवइ । पंचत्तह पत्तु अह फुरिय-दुक्ख-पब्भारि जणवइ ॥ नायर नियहि निवइ-पयह समुचिउ पुरिस-विसेसु । निय-नाणिण तेण वि सुरिण जाणिवि एहु अ-सेसु ॥ [१९३९] नणु न तीरहिं ताव निहणेउ एयाई मिहुणत्तणिण एत्थ जम्मि इय नियय-सत्तिण । तह कीरउ जिण लहहिं वहुय-दुहई अइ-दुट्ठ-चित्तिण ॥ इय चिंतेविणु धणुह-सय. उद्ध त जुयलु करेवि । चंपह उववणि परिमुयइ हरिवरिसह आणेवि ।। [१९४०] तियसस-त्तिण तम्मि उज्जाणि आरोवइ कप्प-दुम भणइ पुरउ नायरह पुणु जह । ससि-संख-सस्थिय-कलस- पउम-कुलिस-लंछियउ एयह ।। नयरिहि सामिउ तुब्भ-कइ हरिवरिसह आणीउ । चिहइ इहु हरि-नामु निय- गुरु-सज्जणहं विणीउ । [१९४१] एह पुणु पिय इमह हरिणि त्ति अभिहाणिण पायडिय इय इमेसि बढेज्ज विणइण । वियरेज्जह भोयणि वि कप्प-तरुहुँ फल स-हिय तेसिण ॥ तह जह स-मइरु केवल जि मंसु एहि भुंजति ।। ता नायर हरिसिय-हियय तं तह पडिवज्जति ।। १९३८. १. अंतरि. __१९४१. ५. The first letter after सहिय is illegible in क. ६. The first letter after स is illegible in क. ____ 2010_05 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१९४२ नेमिनाहचरिउ [१९४२] अह सु तियसह तस्सु वयणेण आरोविवि रह-रयणि नयर-मज्झि निउ गरुय-रिद्धिण । संतुट्ठउ हुयउ पुर- जणु वि सयल निय-कज्ज-सिद्धिण ॥ कम-जोगेण य हरि-निवइ साहिय-रिउ-कुल-वूहु । हुयउ पसिद्धउ धरणि-यलि पणमिर-राय-समूहु ॥ [१९४३] तियस-सत्तिण मंस-असणिण वि हुय लहुयर-आउ-ठिइ तत्थ तस्सु हरि-धरणिरायह । ता मरिउण सु स-पिउ वि हुयउ ठाणु दुग्गइ-निवायह ॥ तह हरि-वंसह आणियउ जुयलु तेण हरि-वसु । हरिहि व जायउ एहु इय हुउ पसिद्ध हरि-वंसु ॥ [१९४४] हवइ एरिसु जुयल-अवहारु पुणणंत-कालह कह-वि भणिउ एहु तित्थाहिराइहि । एत्तो च्चिय अच्छरिय- दसगि पढिउ परमत्थ-वाइहि ॥ तं पुण नायव्वउं इमह गाहा-जुयह वसेण । सीसिण आ-वालोवचिय- जिण-उवएस-वसेण ॥ जहा - [१९४५] उवसग्ग-गब्भहरणं इत्थी तित्थं अ-भविया पुरिसा । कण्हस्स अवरकंका अवयरणं चंद-सूराणं ॥ [१९४६] हरिवंस-कुलुप्पत्ती चमरुप्पाओ य अट्ठ-सय सिद्धा । अस्संजयाण पूया दस वि अणंतेण कालेण ॥ १९४२. The portion from after सा° in line 7 to स in liya 4 in 1943 is missing in ख. १९४३. ५. क. दुग्गय. ६. ख. हरिवरिसह. 2010_05 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९५० ] नवमभवि हरिवंसबुत्तंतु [१९४७] eos नंदणु yesवइ-नामु तत्तणउ महागिरि ति हिमगिरि त्ति पुणु तस्सु नंदणु । अव सुरगिरि त वि सुउ मित्तगिरि ति निवु भुवण-रंजणु ॥ गय-संखिहि नरवइहिं समइगइहिं हरि-वंसि । उ सुमित-निव भवणि मुणि सुव्वय-जिणु तेयंसि ॥ [१९४८ ] तसु वि नाहह वंसि वहुए हिं नमि-जिर्णिद - तित्थि पयइ | अइकंतिर्हि नरवहि सिरि-महुरहं पुरि-वरिहिं सउरिनामु नर-नाहु वह || पुणु लहु-बंध विमल - गुण-निहाणु जुव-राउ | आसि सुवीरय-रूव (?) निय- अभिहाणिण विक्खाउ ॥ [१९४९] अवर-अवसर सउरि नर-नाहु लहु-बंध तहिं पुरिहिं ठाविऊण रज्जम्मि स-हरिसु । गंतूण कुसट्ट- जणवयह मज्झि सयमवि हु अ-सरिसु ॥ काणण-भवण - जिर्णिदघर - पसरिय- लच्छि - निहाणु | विणिवेसावर नवउं पुरु सोरियपुर - अभिहाणु ॥ 2010_05 [१९५० ] तत्थ अंधगवfor ह- पामुक्ख भूसियंग धरणियल - मंडण | काल-कमिण संजाय नंदण || भोजवण्हि पामुक्ख । पिसुण-हणण-कय-लक्ख ॥ नाणा - विह-गुण- रयण सिरि- सउरिनराहिवह सुत्र सुवीर नरेसरह जाया अंगुव्भव बहुय १९४७. ७. क. समगइय added margially. રે Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१९५१ नेमिनाहचरिउ [१९५१] काल-जोगिण महुर-नयरीए निक्खंति सुवीर-निवि भोजवण्हि जायउ नरेसरु । सउरिम्मि य गहिय-वइ सिवह पत्ति धरणियल-सुहयरु ॥ सिरि सोरिय-पुरि नयरि तहिं ससहर-विमल-सहावु । अंधगवहि-नराहिवइ हुयउ उदग्ग-पयावु ॥ [१९५२] महुर-नयरिहिं भोजवहिस्सु नर-नाहह अंग-रुहु उग्गसेण-नामिण पसिद्धउ । संजायउ निवइ जय- अहिय-महिमु गुण-मणि-समिद्धउ ॥ अंधगवण्हि-नराहिवइ- सिरि-समुद्द-देवीण । जाय तणूह एहि दस गुरुयण-चलण-निलीण ॥ [१९५३] पढमो समुद्दविजओ अक्खोभो तह-य तयणु तिमिउ ति । अह सागरो चउत्थो हिमवतो पंचमो होइ ॥ । [१९५४] अयलो धरणो तह पूरणो ति नवमो य होइ अभिचंदो । दसमो उण वसुदेवो कुंती मद्दी य दो धूया ॥ . [१९५५) पंडु-निवइण कुंति परिणीया वीवाहिय मदिय वि चेदि-नाह-दमघोस-निवइण । अह अंधगवण्हि-निवु नियय-रज्जु हत्थेण नियइण ॥ सिरि-समुहविजयह नियय- गुरु-तणयह वियरेइ । अप्पणु पुणु सुह-गुरुहु पय- सविहिहिं चरणु चरेइ ॥ १९५१.९. क. उदग्गु. 2010_05 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९५९] इओ य [१९५६] जम्मि पच्छिम चरिवि चारित्तु पणवन्न- वच्छर- सहस जाव विवि-तव-कम्म- जोगिण | कय-वेयावच्च विहि मुणि-जणस्सु सु-विसुद्ध - भाविण ॥ चाल -काल- भाविउ सरिवि अंत- दसई दोहग्गु । ashaणु निय-तव-फलिण रूविण सह सोहग्गु ॥ नवमभवि हरिवंसवुत्तंतु चविण य सुर- घरह वसुदेव-नामिण पडु सोहग्ग-नर- सिरि-तिलउ हुउ अरेण वि धर-वलइ इओ य [१९५७ ] अमर-मंदिर गंतु ठिइ-खइण [१९५८] महुर-नयरिहि नीहरंतेण सिरि- उम्गसेणिण निविण ता पणमिवि तसु पइहि पसिय महा- मुणि पारणउं दिठु एगु वालय - तवस्सिउ । उग्गसेणु जंपर जसंसिउ ॥ मह भवणम्मि करेज्ज । जह अप्पाणु व कुणउं हउं किं-चि कयत्थउं अज्ज ॥ कह-कहमवि निव-वयणु सो गयउ अहक्कमिण एहु जीवु तसु नंदिसेणह | हुयउ चंदु जदु-गेह-गयण || माणिणि माण-घरटु । पसरिय- गरुय - मरट्टु | [१९५९] अह तवस्सिण तेण पडिवन्तु [ तयणु ] अंति निय-मास - खमणह | दार- देसि नरनाह - भवणह || - उण ण- विवि-जणिण तारिस - विहिहि वसेण । आलविवि सुखमगु अह पज्जलंतु रोसेण ॥ 2010_05 १९५७ १. The portion from तेण to जणिण in line 6 is missing in ख. ३. क. The text is defective. ४४३ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ [ १९६० [१९६०] पइहिं तेहिं वि घरह नोहरिवि लहु गंतुज्जाण-वणि मास-खमणु आरभइ अवरु वि । एहु वइयरु जाणिउण उग्गसेण-निवु स-परिवारु वि ॥ निय-अवराहु खमाविउण लम्गिवि खवग-पएसु । भणइ भवणि मह पारण पत्तावसरु करेसु । _ [१९६१] __गेहि एगहं गिज्झ भिक्ख त्ति कय-उग्गाभिग्गहु सु खवणु निवइ-उवरोह-दोसिण । परिसुसिय-असेस-तणु- रुहिर-मंसु वियइज्ज-मासिण ।। पारणयह दिणि कह-वि गउ उग्गसेण-घरि जाव । निय-निय-कज्जाउल-मणिण जणिण न दिडु वि ताव ॥ [१९६२] तयणु मिसिमिसिमाण-वयणिल्लु रोसारुण-नयण-दलु फुरुफुरंत-अहरुट-पल्लवु । नीहरिउण निव-घरह गयउ वहिहिं अवगणिय-सुह-लवु ।। उग्गसेण-वसुहाहिषु वि आयण्णिय-वुत्तंतु । वाढ-धवक्किय-मण-पसरु खवग-सविहि संपत्तु ॥ [१९६३] भणइ - मुणिवर खमसु अवराहु एसो वि पमाय-पर- परियणस्सु मह पाव-पडियह । न य एरिसु दुविणउ पुणु वि करिसु हउं तुह सु-चरियह ।। अह सविसेस-फुरंत-गुरु- अमरिसु खवग-तवस्सि । जंपइ जइ मह तवह फलु किं-चि त पाव मरिस्सि ॥ १९६०.५. क. निव. १९६१. २. क. °भिग्गह. १९६३. ३. क. परिणयस्सु. ____ 2010_05 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६७ ] नवमभवि हरिवंसवुत्तंतु [१९६४] मह पहाविण अवर-जम्मे वि इय पद्ध-नियाण-विहि अवगणेवि मुक्कउ नरिंदिण । ता मरिउण धारिणिहि पियह निवह तमु पुक्त-भाविण ॥ अवइन्नउ कुक्खिहि खवगु ता तमु अणुहावेण । जायउ देविहि दोहलउ दुट्ठ-विवागु फलेण ॥ [१९६५] तयणु धारिणि कसिण-पक्खम्मि ससि-रेह व पइ-दियहु झिज्जमाण-सव्वंगुवंगिय । तयणु कारणु पुट्ट नरवरिण कणय-दव-गोर-अंगिय ॥ अह दीहर-नीसास-भर- परिसुसंत-वयणिल्ल । कह-कहमचि धारिणि कहइ निवह दुहई नियइल्ल ॥ [१९६६] देव जाणहुँ जइ तुहंगस्सु उक्कत्तिवि परिगलिर- रुहिर-मंस-खंडाइं भक्खहुं । इय एरिसु दोहलउ निय-मुहेण तुह केम्व अक्खहुं ॥ तयणंतर नरवइ भणइ सुयणु म खेउ करेसि । हउं तुहु पूरिसु दोहलउ सुय-मुह-कमलह रेसि ॥ [१९६७] अवर-अवसरि सचिव मेलेवि तहं धारिणि-दोहलउ रहि कहेइ नरवइ स-मूलु वि । ता निवइहि सचिव-गणु कहइ एग-वक्केण सयलु वि ॥ जह - गिह-अब्भंतरि हविवि निय-तणु उवरि ठवेवि। देविहि पूरसु दोहलउ छग-मसई वियरेवि ॥ १९६६. ८. क. तुहुं. 2010_05 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ [१९६८] अहह सचिवहु जुत्तु जुत्तु त्ति परिजंपिरु धरणिवइ अंधयारि धारिणि निवेसिवि । वाहरिवि महाण सिय स-तणु-उवरि छग-मंस ठाविवि ॥ अणुमन्नइ पत्थुय-विसइ ता सिक्कार-परस्सु । उग्गसेण-चमुहाहिवह अइ-करुमउं रसिरस्सु ॥ [१९६९] उवरि-देसहु मंस-खंडाई छग-संतिय खंडिउण निव-निउत्त धारिणिहि वियरहिं । इयरी वि-हु नरवइहि मंस-खंड एहि त्ति वुद्धिहि ॥ उवभुजइ परितुट्ठ-मण गब्भह अणुभावेण । अह परिपूरिय-दोहळय हूय स स-सहावेण ॥ [१९७०] दिहि-मग्गह निवि वि अइकंति उवसंतइ करुण रवि मउ निधु त्ति चिंतत धारिणि । रइ न लहइ विलवइ य अहह ह जि पिय-खयह कारिणि । इय निय-दुक्खई कसु कहउं को करिहइ उवयारु । मह वेरीण वि मा हवउ एरिसु गब्भु अ-सारु ।। [१९७१] गम्भ-साडण-हेउ विविहाई पीयंतिहि ओसहई सत्तमम्मि दियहम्मि मुहयरु । किउ सज्जउ वहु-विहिहिं इय भणेउ दंसियउ नरवरु ॥ जो मह कसिण-चउद्दिसिहि तिहिहिं मूल-रिक्खम्मि । विहिहिं जायउ पाव-सुउ दिणि कय-बहु-दुक्खम्मि । १९७१. ८. विद्धिहिं. ____ 2010_05 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७ नवममधि हरिवंसवुत्तंतु [१९७२] सो न सुंदरु इय मुणिवि कंसमंजूसह मज्झि वहु- रयण कणय-आहरण-सहियउ । नव-जाउ वि चेडियहं करिहि जमुण-सरियाए पहियउ ॥ निवह निवेइउ पुणु - तणउ मउ 'जायउ देवीए । इय रयणीए वि पस्ठिकिंउ वहिहिं नेउ नयरीए ॥ [१९७३] नइ-पवाहिण नीय मंजूस सिरि-सोरिथपुरि नयरि गोस-समइ अह विहि-निओइण'। सविहम्मि समागरण तिण सुभद्द-वणिएण अइरिण॥ जल-मज्झह कढिवि गहिचि उग्घाडिय मंजूस । तत्थ य अवलोइय विधिह- भेष-कणय भणि दूस ॥ [१९७४] उग्गसेणह निवह अभिहाणकय-चिंध-मुद्दा-रयण- सहिउ सो ज्जि वर-रूत्रु नंदणु । ता निंदुहु निय-पियह करि विइन्तु सो रिद्धि-रंजणु ॥ कंसमयहं मंजूसियहं लद्धउ इय सु-विहाणु । जणणी-जणइहिं वियरियउं कंसु त्ति य अभिहाणु ॥ [१९७५] अह सुभद्दह भवणि सो वालु गिरि-काणणि विस-तरु व लहइ त्रुढि विग्घिहिं विवज्जिउ । परितावइ डिंभ-रूय कुणइ आलि न सहेइ तजिउ ॥ आणावइ पिउ-मायरहं नव नवयर उवलंभ । न य संसहइ स-वप्पिण वि कह-वि पयासिय डंभ ।। ____ 2010_05 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिनाहचरि [१९७६] तयणु वणिण तिण सुभदेण मा एहु अणत्थु कु-वि वसुदेवह वियरियड जह अच्चंत - उदार-तणु नूण न इहु सामन्नु कु-वि वसुदेविण संगहिउ वाहतर कल कमिण सुहिं रमंति सह राहु-ग्गह-ससहर व दु-वि [१९७७] मित्त भाविण पढम- दंसणिण वि 2010_05 आणवेज्ज अम्हं ति चितिवि । कंस - कुमरु तेणावि मंतिवि ॥ रूववंतु सागारु । दीसह वणिय- कुमारु* ॥ अह दुवे व समकालु सिक्खहिं । सुयण - पिसुण-सम्भावु लक्खहिं || सह पूयहिं गुरु-देव | अछहिं कंस- वसुदेव ॥ अवर - अवसरि ति-क्खंड -वसुहाहिविण निय दूयउ पेसियउ तेण वि भणियउं जह विजयपुर - आसन्न -पएसि । सिरि-सीहउरि असेस पुर - पवरइ नयर - विसेसि ॥ पडिवक्खिउ सीहरहइय को विजु निवइ तसु वंधेऊण य निय-करिहिं सो मह कन्नय जीवजस * क. ख. ग्रंथानं ५०००, [१९७८ ] विहि-निओएण नरवरेण जरसंघ - नामिण । समुद विजय - नरवइहि वेगिण || [१९७९] नियय-य-वल- दलिय-दुदंत नाम- पयडु चिट्ठे नरवरु | निय-वलेण निहणिवि मडप्फरु | मह सविहहिं आइ । तह इच्छिउ पुरु लेइ ॥ [ १९७६ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८३] नवमभवि हरिवंसवुत्तंतु [१९८० __ ता खणद्धिण सीहरह-उवरि वहु-परियण-परियरिउ समुदविजय-नरनाहु चलियउ । वसुदेविण अह पइहि पडिवि कंस-सहिएण भणियउ ॥ नणु कुवियहं तुम्हहं पुरउ केत्तिय-मेत्तु सु सत्तु । तुह वयणिण अम्हे वि लहु आणउं एत्थ निरुत्तु ॥ [१९८१] अह नरिदिण गरुय-निव्वंधि आणत्त पत्थुय-विहिहिं पउर-वलिण वसुदेव-कंसय । अक्खंड-पयाणइहिं वे-वि नियय-कुल-कमल-हंसय ॥ रण-रस-पुलयंचिय-तणुहिं सुहड-सइहिं संजुत्त । सीहरहह तसु नरवइहि देसासन्नि पहुत्त ॥ [१९८२] तयणु निय-चर-चयण-विन्नायनीसेस-वइयरु रिउ वि गरुय-दप्पु तह समुहु चलियउ । वसुदेवु वि कंस-परियरिउ तस्सु रण-महिहिं मिलियउ ॥ तयणंतर कुंजर करिहि रहिय पुणो रहिएहिं । तुरय तुरंगिहि भड भडिहिं जुडिय स-पहु-वयणेहिं ॥ [१९८३] एत्थ-अंतरि असम-पसरंतरोसारुण-लोयणिण सारहित्तु परिहरिवि कंसिण । संचुन्निउ सीहरह- रहु गयाए रणि ता अमरिसिण ॥ विज्जुज्जल रिउ-दप्प-हरु करि करवाल धरेवि । धावइ वेगिण सीहरहु कंसु स-लक्खु करेवि ॥ १९८०. ६. क. पुरओ. १९८१. ७. क. संजुत्तु. 2010_05 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १९८४ नेमिनाहचरिउ [१९८४] जाव खग्गिण हणिवि दो-खंड तसु कंसह कुणइ सिरु ताव चाव-कट्ठिय-विमुक्किण । वसुदेविण दुह विहिउ सत्तु-खग्गु निहणिवि खुरुप्पिण ॥ ता संपाविय-अवसरिण कंसिण वलिउ वि सत्तु । वंधिवि वसुदेवह पुरउ मुक्कु स-गव्व-विउत्तु ॥ [१९८५] तयणु जायव जाय-संतोस सिरि-सोरिय-पुरि नयरि पत्त स-चल ता समुदविजइण । अहिणंदिउ वहु-विहिहिं लहुय-बंधु वसुदेव-पमुइण ॥ काराविउ वद्धावणउं निय-नयरम्मि समग्गि । जायइ तारिस-रिउ-विजइ तुइ जायव-वग्गि ॥ [१९८६] ता करेप्पिणु पासि वसुदेवु जरसंघह सम्मुहउ समुदविजय-नरनाहु चलियउ । जा ताव निमित्तिएण कोठुइगिण इहु निवइ भणियउ ॥ जह - तुहउ जरसंध-निवु देसइ वसुदेवस्सु । धुवु निय-कन्नय जीवजस सा उ न मुहय अवस्सु ॥ [१९८७] __ पढमु करिहइ मरणु दइयस्सु ता जणय-सहोयरहं तयणु तासु सयलह स-वंसह । वसुदेवह सयलु इहु रहि कहेइ निवु तयणु कंसह ॥ दाविज्जउ धुवु जीवजस इय मंतणउं करेवि । समुदविजउ अत्थाणियहं स-परिवार निवसेवि ॥ 2010_05 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९९३ ] नवमभवि हरिवंसवुत्तंतु [१९८८] भणइ-निसुणहु तुब्भि नरवरहु कंसेण ता सीहरहु गहिवि समर-धरणीए वद्धउ । जरसंघ-निवो वि इहु वणि-सुउ त्ति जाणिवि पसिद्धउ ॥ जइ निय-कन्नय जीवजस कहमवि न पयच्छेज्ज । ता तमु पुरउ महा-निवह इहु जणु किमु जंपेज्ज ॥ [१९८९] तयणु पभणहिं इयर स-वियक्क नणु देव न वणि-सुयहं हवइ एह सारीर-चंगिम । सरत्तणु एहु न य न-वि य एह विन्नाण-वढिम ॥ ता केणावि हु खत्तिइण कंसिण धुवु भवियव्यु । इय उवउत्त-परिण मणिण सामिण इहु मुणियव्वु ॥ [१९९०] ___ अह सुभद्दय-वणिउ तत्थेव सदाविवि नरवरिण पुठ्ठ कंस-पुव्विल्ल-वइयरु । तयणंतरु अ-च्छलिउ मग्गिऊण साहेइ वणि-वरु ॥ ता मंजूस नराहिविण तत्थ वि आणावेवि । अवलोइय सह परियणिण जा ता तत्थ निएवि ॥ [१९९१] सिरि-उग्गसेग-नरवइ-धारिणि-नामंकियाओ मुद्दाओ। तह भुज्ज-खंडमेगं गाहा-जुयलेण संजुत्तं ॥ तद् यथा[१९९२] सिरि-उग्गसेण-नरवइ-भज्जाए गब्भ-दोहलो दुट्टो । संजाओ लीलाए तत्तो पइ-पाण-रक्खट्टा ॥ [१९९३] कसिय-मंजूसाए खिविओ रयणाइ-संजुओ एसो। जउणा-नईए सलिले पवाहिओ जणय-अहिओ ति ॥ १९८८. ६. क. मिय. १९८९. ८. क. उपसलय; ख. 'यरिण. 2010_05 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १९९४ नेमिनाहचरिउ [१९९४] इय सुणेविणु दह्रमवि कंसवुत्तंतु स-तोस-मण समुदविजय-निव-पमुह जायव । अन्नोन्निण भणहिं जह सलहणिज्जु पिउ जणणि भाय व ॥ ते च्चिय हरिवंसुब्भविय जहिं सिरि-कंस-सरिच्छ । जायहिं ससहर-विमल-गुण-रयणावलि-पडिहच्छ ॥ [१९९५] ___ कहिं व उज्झिवि वंसु जायवहं सुय-रयण कंसह सरिस होंति भुवण-असमाण-वीरिय । इय भणिउण सीहरहु गहिवि पुरउ कंसह करा विय ॥ सिरि-जरसंधह वियरिउण समुदविजउ साहेइ । जह - जय-सहु कु एरिसउ पागय-पुरिसु वहेइ ॥ [१९९६ उग्गसेणह निवह तणएण एएण कंसाभिहिण गहिउ सीहरहु समर-धरणिहिं । वंधेउण निय-करिहिं तयणु जीवजस-पवर-तरुणिहि ॥ पाणि गहाविउ वित्थरिण जरसंघेण सु कंसु । तह जंपिउ जह-कंस तुहुं इच्छिउ पुरु मग्गेसु ॥ [१९९७] तयणु जणणी-जणय-उवरिम्भि परिओसु वहतिइण महुर-नयरि कंसेण मग्गिय । इयरेण वि विसय-जुय सा विइण्ण तमु ता निसग्गिय ॥ उज्जालंतउ वेर-मइ कंस-हयासु सु गंतु । महुरहं नयरिहिं पिउ-जणणि वंधेऊण तुरंतु ॥ १९९६. ९. क. पुर. 2010_05 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २००१ ] नवमभवि हरिवंसवुत्तंतु [१९९८] वज्ज-पंजरि खिवइ घटुंतु पुचिल्लई मम्म-पय अह निएवि संसार-विलसिउ । सिरि-उग्गसेणह निवह जेट्ट-पुत्तु गुरु-गुणिहिं भूसिउ ॥ आगंतूण तहा-विहहं गुरुहुं चलण-मूलम्मि । अयमुत्तउ चारित्तु पडिवज्जइ. पवर-दिणम्मि ॥ । [१९९९] अह नियल्लय-गुणिहिं गारविउ जरसंधिण वाइयउ तण-समाणु भुवणं पि मन्नइ । तत्तो वि हु लहुयतरु निवइ-निवहु माणिणवगन्नइ ॥ ताजीवजसहं कामिणिहिं सह वर-विसय-सुहाई। उवभुजंतउ कंस-निवु अइवाहइ दियहाई ॥ [२०००] ___ तह सुभद्दय-वणिउ स-पिओ वि आणाविवि इहु जणउ एह जणणि इय संपहारिवि । सम्माणइ आयरिण निवइ-देवि-ठाणेसु ठाविवि ॥ वसुदेवो वि-हु निय-जणिहिं सह सोरिय-पुरि गंतु । वहु-विणोय-कीला-रसिण परिचिट्ठइ कीलंतु ॥ अवि य [२००१] कसिण-कुंतलु वियड-भालयलु मिग-लोयणु ससि-वयणु लंव-बाहु सु-विसाल-उरयलु । गंभीर-नाहि-दहउ हरि-किसोर-कडि कमल-करयलु ॥ दीसइ जहिं जहिं नयर-पहि कय-निरुवम-सिंगारु । तर्हि तहिं खोहइ तरुणि-मण सिरि-वसुदेव-कुमारु ॥ 2010_05 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५४ नेमिनाहचरिउ [२००२ [२००२] का-वि उज्झइ गेह-वावार क-वि लेइ न आहरण का-वि वाल भोयणु वि न कुणइ । क-वि मक्कडु सुय-मिसिण कुणइ कडिहिं क-वि सुन्नु पभणइ ॥ का-वि नियंसणु सिरि ठविर सयलु हसावइ लोउ । क-वि नयणहं अग्गइ ठिउ वि न नियइ एहु विणोउ ॥ [२००३] नयर-मग्गिहि घर-गवक्खेहिं सर-कूव-वावी-तडिहिं चडिय विविह-रूवावलंविर । वसुदेव-कुमार-तणु- विसय-असम-सोहग्ग-विनडिर ॥ अह वा सोरिय-पुरि भमिरि कुमरि तम्मि वहु-भेय । किं किं चेयहिं कामिणिउ मयणिण हरिय-विवेय ॥ [२००४] तयणु नायर-पवर-पुरिसेहि विन्नत्तु नराहिवइ पत्थुयत्थ-वुत्तंत-कहणिण । ता मंतिवि निय-मइण भणिउ समुदविजएण निवइण ॥ कुमर भमंतह तुह नयरि हवइ कलह वाघाउ। ता गेण्हसु घर-गरुडिहिं जि स-गुरुहु-सविहि कलाउ ॥ [२००५] अह तह-च्चिय कुमरु वटुंतु अइवाहइ दिण कइ-वि अवर-दियहि नरनाह-दासिय । कक्खलिय-चंदण गहिवि हत्थि भणिय जह - मह पयासिय ॥ किं इहु कत्थ व जासि तुहुँ इय साहसु वुत्तु । ता गुरु-कोविण दासडी भणइ कुमार तुरंतु ॥ २००४. ३. क. पेत्यु. ____ 2010_05 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०११ ] नवमभवि हरिवंसवष्तंतु [२००६] नियय - दोसिहिं चैव विहगु व्व सु-नियंतिवि मंदिरह अह किं-चि स-विब्भमिण वसुदेवह कहमवि कहिउ एग - देसि मुक्को सि छउमिण । तेण पुट्ठ सा तयणु दासिण ॥ पुव्व-उत्तु वुत्तंतु । ता लज्जहं अहिमाणिण वि कुमरु किं-चि तूरंतु ॥ [२००७] ase - वेसण घरह नीहरिवि परिवंचिय- इयर - जण - सोरियपुर-नर-हि जोपुर-सविहिहिं चिह्न रवि मडगु एगु आणे । हिउण गोउर-थंभियहं अक्खर - पंति लिइ ॥ नयण - मग्गु वसुदेवु रयणिहि । गंतुक मेलिविस पाणिहिं ॥ जहा -- [२००८] निमुणेइ जस्स दोसो लोयाओ गुरुयणो वि सो पुरसो । उप्पाइय-गुरु- दुक्खो कह जीवइ विगय-गुण-जीवो ॥ [२००९] किं तेण सु-सीलेण वि किं वा गुणवंतएण वि नरेण । जस्स विरज्जइ लोओ जायइ दुक्खं च पियराण ॥ 2010_05 [२०१०] इच्चाइ भाविऊणं चियाए एयाए अज्ज वसुदेवो । पंचतं संपत्तो मय- किच्चं तस्स कायव्वं ॥ [२०११] इय लिहेविणु निसि गमावेवि एगत्थ-देवउलियहं गोसि चलिउ कमसो य पत्तउ । सिरि- विजयखेड पुरि तर्हि सुगीव - नरवरिण वृत्तउ || बहु-पडिवत्ति करेवि जह परिणह भद्द इमाउ । मह धूयउ गुण-मणि- निहिउ साम - विजयसेणाउ ॥ २०११. ७. क. इयाओ; ८. क. मिहिओ; ९. क. सेणाओ. ४५५ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५६ [२०१२ नैमिनाहचरिउ [२०१२] अह मुगीवह निवह वयणेण सुपवित्तइ लग्ग-दिणि दो-वि ताउ वसुदेवु परिणइ । भुजंतउ विसय-मुह ताहिं समगु गय दियह न मुणइ ॥ कम-जोगेण य अंगरुहु हुयउ विजयसेणाए । दिन्नउं नामु अकूरु इय तसु सिरीए महयाए ॥ [२०१३] अवर-वासरि कुमरु वसुदेवु वहु-देस-दसण-मणिउ नीहरेउ मंदिरह रयणिहिं । एगत्थ-महाडइहिं गउ रउद्द-जिय-भीम-धरणिहिं ॥ तत्थ जल-त्थिउ सरवरह समुहउ चल्लिउ जाव । उब्भिय-करु वण-कलहु तमु समुहु पहाविउ ताव ॥ [२०१४] अहह एत्थ वि सुकय-जोगेण कोऊहलु आगयउं इय मणम्मि चिंतंतु कुमरु वि । खेल्लाविवि वहु-विहिहिं खलिवि झत्ति वण-करिहि पसरु वि ॥ दंतग्गिहि अवलंविऊण करि-खंधम्मि चडेइ । तह चेव य कित्तिउ वि पहु मण-वेगिण गच्छेइ ॥ [२०१५] ___ जाव ताव य दोहिं खयरेहिं हरिऊण खणेण करिवन्न-नामि उज्जाणि नीयउ । ता खयराहिविण सिरि- असणिवेग-नामिण विणीयउ ॥ निरुवम-गुण-गण-रयण-निहि सामा नाम स-कन्न । तमु सोहग्गि-सिरोमणिहि वसुदेवह पविइण्ण ॥ २०१२. ३. क. ताओ. २०१५. ९. क. पविइण्णु; ख. पविइण. ____ 2010_05 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०१९ ] अंगार - खेयरिण अवहरिउण गयण-यलि पुट्टि पहारिण हणिउ रिउ अङ्गारय खयरिण कुमरु [२०१६] अवर- अवसर निसिहिं सुह-सुत्त असणिवेग-खयरिंद-वइरिण । नवमभवि वसुदेववत्तंतु [२०१७] पडिउ चंपय- पुरिहि उज्जाणि विप्पेण चंपह पुरिहि ता वीण- विणोय-कयपुच्छे य fate पुरउ चत्र-वावारु निरु 2010_05 नीउ जाव ता कुलिस-कढिणिण ॥ तह जह झत्ति कराउ । मुक्कउ ता गयणाउ || एगस्स महा-सरह कलहंसु व भुय - जुइण सरु तरेव वसुदेव चंगउ ॥ पच्छइ सिरि-वसुपुज्ज- जिण - चेइयहरु अइ रम्भु । मज्झमि य पविसिवि थुणइ जिणु कय-जय - सिव- सम्मु ॥ जिय-स-विहव- वेसवणु तस्सासि असेस-गुणगंधव से इ पाय- पुरिस सम्मुहु वि मज्झ तयणु अखयंगुवंगउ | [२०१८ ] गोस- अवसर पुणु सहेगेण मझ - देसि वसुदेव पविसइ । एग-चित्तु जुव-वग्गु पासइ ॥ किह इह सयलु वि लोउ । वीण कुणइ विणोउ ॥ [२०१९] तयणु विष्पिण भणिउ - इह अस्थि चारुदत्त अभिहाणु वणि वरु । रयण-खाणि सिय- कित्ति - कुलहरु | अभिहाणिण सु-पसिद्ध । न नियइ कलहं समिद्ध ॥ २०१७. ८. क. मज्झमि य changed to मज्झ निय. २०१९. ९. क. कलिहिं ५८ ४५७ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५८ [२०२० नेमिनाहचरित [२०२०] भणइ पुणु जह - मई सु परिणेइ जो वीणा-वायणिण निज्जिणेइ तुम्हहं समक्खु वि । इय सयलु वि तरुण-जणु कामिणीए तहिं वद्ध-लक्खु वि ॥ मासह मासह अंति इह परियट्टेइ उदग्गु । सिरि-जसगीव-सुगीवयहं गुरुहुँ सविहि अणुओगु ॥ [२०२१] अह सुगीवह घरि समागंतु वसुदेवु कुऊहलिण सीस-भावु तमु संपवज्जिवि । नीसेस-कलालउ वि अ-मुणिरत्तु अप्पुणु हु पयडिवि ॥ अणु-दियहु विगंधव्व-कल अवहिउ अब्भस्सेइ । तहं चट्टहं मज्झ-ट्टियउ न-उ अप्पउं पयडेइ ॥ [२०२२] किर न-याणहुं वीण-गुण-ताललय-मुच्छा-ठाणगहं मज्झि किं-पि इय संपयासिरु । तणु-तंतिं आहणिरु मूलदेसि वीण वि अ-वाइरु ॥ तयणु जडो त्ति विचिंतिउण अवहीलियउ गुरूहिं । तह परिणेसइ इहु जि पर तरुणि स इय भणिरेहि ॥ [२०२३] हसिउ चट्टिहिं वहु-पयारेहिं अणुओग-दिणम्मि पुणु कीलणत्थु वर-कुसुम-वासिउ । ठिउ मंदिरि वणि-वरह महरिहम्मि आसणि निवेसिउ ॥ एत्थंतरि थिरु चंकमिर रूविण रइ विहसंत । सा तहिं आगय ससि-वयणि तरुणहं हियव हरंत ॥ २०२०. ३. क. समक्खु हि. २०२१. २ क. वसुदेव; ४ क. कलालओ. ____ 2010_05 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२७ ] नवमभवि वसुदेववृत्तंतु [२०२४] अह कुमारह रूवु अ-समाणु सच्चविवि विम्हिय-हियय नूण एहु अमरो त्ति चिंतिर । सयलम्मि वि तरुण-जणि आगयम्मि तह मणि वियंभिर ॥ सा तरुणिय तरुणहं कमिण वीणउ वियरावेइ । वसुदेवु वि सयलाउ लहु दूसिवि छड्डावेइ ॥ [२०२५] तयणु सतरस-तंति-विणिवद्धनीसेस-लक्खण-कलिय गलिय-दोस उदंड-दंडय । वसुदेवह निय-करिहिं नियय-वीण अप्पिय पयंडय ॥ अह मुच्छाविवि दाहिणिण करिण भणिउ कुमरेण । कहसु नियंविणि वीण इह वायहुं केण सरेण ॥ __ [२०२६] ता चमक्किय-हियय-वावार गंधव्वसेणा भणइ अमर-खयर-सामिहि जु गिज्जइ । सिरि-विण्हुकुमार-मुणि- पुरउ कोवु सु वि जिण विसज्जइ ।। सो वीणा-सहेण सरु गिज्जउ अज्ज निरुत्तु । कुमरेण वि तह विहिउ लहु किंतु विसेसिण जुत्तु ॥ [२०२७] ता समग्गिण तेण लोगेण उववूहिउ कुमरवरु तम्मि सा वि अणुरत्त वालिय । सुग्गीवु वि विम्हियउ तहिं जि गइय वणि-वस हियालिय ॥ किं पुण गुणिहिं इमेरिसिहि एहु न धुवु सामन्नु । ता न कहं-चि वि समुचियउ एयह काउ अ-वन्नु । २०२४. ५ क. माणि. ____ 2010_05 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६० नेमिनाears [२०२८] इय विचितिवि चारुदत्तेण एगत-पसि वमुदे धूय-सहिण स- संकिण | संलत्तउ नर-रयण धुवु इमेण तनु-कंति कित्तिण ॥ नज्जसि सुर- गिरि- तुंगि कुलि कत्थ-वि तुहुं उप्पन्नु । arot महं इमिहि गुणिहि न हवाइ नरु सामन्नु ॥ [२०२९] वणिय - मित्तह इमह इह धूय गंधव्वसेति तुहुं परि निसुणसु वालियह आसि महिढपुर-पवरु निम्मल सम्मद्धिट्ठि । अहिगय-जीवाजीव - विहि भाणु नामु इह सेट्ठि ॥ 2010_05 चिंतयंतु चिट्ठसि स चित्तिण । इमह कहहुं उप्पत्ति लेसिण || [२०३०] तस्स भारि पुणु सुभद्दति तेसिं तु उयाइइहिं कम जोगिण तरुणियणतयतरु वहु- सुहि- सहिउ पेक्ख स-पिओ वि-हु खयर- पयई तीरि सरियाए || तयसारिण वच्चतर कयलि - हरि तवारि तहोसहिहिं सह एगेण महा- दुमिण खयरु एगु वेयण-विहरु जाउ चारुदत्तोत्ति नंदणु । हियय-हरणु सो पत्तु जोव्वणु ॥ कीलंतर वहियाए । [२०३१] अग्ग - मग्गम्मि fart कुसुम - सत्थरि मणोहरु | वलय तिन्नि पुरओ य वच्चिरु ॥ की लिउ अय- कीलेहिं । नियइ नियय- नयणेहिं ॥ २०२८. ८. क. मुणिहि. २०२९. ३. क. दिंतयंतु, ख. वितयंतु; क. वत्तिण; ९ ख. सिडि. [ २०२८ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६१ २०३५ ] नवमभवि वसुदेववुत्तंतु [२०३२] विहि-निओइण गरुय-करुणाए घरिसेविणु ओसहिहि वलउ एगु उवरिम्मि कीलहं । विणिहित्तु तडत्ति करि नीहरीय कीलय वि लीलहं ॥ वीओसहि-वलएण पुणु रोहिय सयल-वणाइं । तइएण उ सो सज्जु हुउ अह वियसियई सुहाई ॥ [२०३३] ता पयंपिउ चारुदत्तेण नणु साहसु को सि तुहं कह व पत्तु दस विसम एरिस । ता लज्जिरु खयर-नरु भणइ - कहउं कि तुज्झ सु-पुरिस ॥ तह-वि हु तुहुँ मह जणय-समु जीवियव्व-दाणेण । इय वइयरु साहेमि तुह मुणु अवहिय-हियएण ॥ तहा हि [२०३४ जंवू-दीविहिं भरह-वासाम्म वेयड्ढ-महागिरिहिं दाहिणाए सेढीए मणहरु । सिवमंदिरु नाम पुरु आसि तत्थ गुरु-गुणिहिं सुंदरु ॥ सिरि-महिंदविक्कमह खरिदह नंदणु एगु । अमियगइ त्ति पसिध्दु हउं अवरावसरि सुवेगु ॥ [२०३५] गयउ परिमिय-सार-परिवारु हिमवंत-नामय-गिरिहिं तहिं हिरण्णरोमाभिहाणह । एगयरह तावसह धृय दिट्ठ मई तयणुरागह ॥ वसिहयउ हउं सच्चविउ निउ जणणी-जणएहिं ।। तयणंतर परिणावियउ तमु जि रिसिहि भणिएहिं ॥ 2010_05 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६२ नेमिनाहचरिउ [२०३६ [२०३६] एत्थ-अंतरि धूमसिह-खयरु मह दइयह लुद्ध-मणु निहणणत्थु छिड्डइं पलोइरु । परिथक्कउ कालु चिरु हउं वि अज्ज सह पियह कीलिरु ॥ पाविण तेण निरिक्खिउण मुणिउण एगागि त्ति । मह एयारिस दस करिवि दइय हरेवि गओ त्ति ॥ [२०३७] __इय दुवे वि-हु विविह-सुह-दुक्खकह-जोगिण ठाउ खणु निय-निएस ठाणेसु पत्तय । वणि-पुत्तु वि मित्तवइ- नाम स-पिय वहु-गुणिहिँ जुत्तय ॥ वयणेणं पि हु नालवइ न कुणइ क-वि पडिवत्ति । चिट्ठइ विसयहं विमुह-मण- पसरु जहा सु मुणि त्ति ॥ [२०३८] ... इहु सुणेविणु जणय-जणणीहि । दुल्ललिय-गोद्विहिं तणउ ख्रिविउ तिहिं वि निय-वुद्धि-जोगिण । कलिंगसेणा-गणिय- धुय-वसंतसेणा-पसंगिण ॥ वासाविउ तह कह-वि जह थोवेहिं वि वरिसेहिं । सोलस-कंचण-कोडियउ फेडइ सह स-जसेहिं ॥ [२०३९] अह सु निद्धणु मुणिवि गणियाहिं नीहारिउ निय-घरह परिभमंतु पुणु स-घरि पत्तउ । तयणंतरु मय-जणणि- जणउ सयल-मुहि-सयण-चत्तउ ॥ ता निय-धरिणिहि आहरण- मोल्लिण भंड गहेवि । वाणिज्जिण सह माउलिण नयरंतरि गच्छेवि ॥ २०३६. ३. क. निहणत्यु, ख. निहणणुत्थु. २०३७. १. क. इव. ____ 2010_05 Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६३ २०४३ ] नवमभवि वसुदेववुत्तु [२०४० भंड-दविणिण गहिवि कप्पासु चलियउ अह अद्ध-पहि दटु सयल सु दवग्गि-पसरिण । ता लक्खण-रहिउ इहु इय मुणेवि परिहरिउ सयणिण ॥ पय-चारेण पियंगु-पुरि चारुदत्तु संपत्तु । जा ता तत्थ निएइ सुरइंददत्तु पिउ-मित्तु ॥ [२०४१] तिण वि निसुणिय-पुव्व-वइयरिण पसरंत-करुणा-भरिण चारुदत्तु निय-तणय-बुद्धिण । अवलोइउ न-उण तहिं थक्कु चत्तु चिर-सुकय-रिद्धिण ॥ अह उद्धारइ सय-सहसु एगु गहेविणु तत्थ । चलिउ जउण-दीवह समुहु भरिवि विविह वोहित्थ ॥ [२०४२] कमिण कणयह अट्ठ-कोडीउ समुवज्जिय कह-कह-वि वहु-विहे हिं देसिहि भमंतिण । आगमिरह पुणु स-पुर- समुहु फुटु वोहित्थु अ-इरिण ॥ जल-निहि-मज्झम्मि य भमिवि सत्त अहो-रत्ताई। विसहेविणु मण-तणु-जणिय- नाणाविह-दुक्खाइं ॥ [२०४३] फलह-खंडिण उत्तरेऊण रायउर-उज्जाण-वणि नियइ एगु तेदंडि-जोगिउ । उवसंतउ वहिहिं अइ- दुछ अंति तसु पइहि लग्गिउ ॥ चारुदत्तु पणमिवि कहइ निय-वुत्तंतु असेसु । तयणु भणिउ इयरिण- करिमु हउं तुह रिद्धि-विसेसु ॥ २०४०. ८. क. इ added above the line after निए; ख. निए. २०४२. १. क. कोडीओ. २०४३. ४. क. उवविहिहिं. ____ 2010_05 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६४ [२०४४ नेमिनाहचरिउ [२०४४] अह दुवेहिं वि तेहिं जणवाउ सच्चाविउ जं भणइ लोउ- एत्थ लोहिठ्ठ झुट्टिण । भामिज्जइ इय तवसि विहव-लुद्ध-वणिएण धट्ठिण ॥ पारद्धउ सेवेउ अह दो वि ति सिहरि-विसेसि । गंतु हवेउण एगयर- विवरह उवरि-पएसि ॥ [२०४५] भणइ तावमु-वच्छ पविसेउ रस-कूवि एयम्मि तुहुँ भरिवि रसह आणेसु तुंवउ । तयणतरु अ-क्खुहिउ चारुदत्तु इच्छिरु मुवन्नउं ॥ पिच्छंतउ भोसण-सयई गच्छंतउ अ-खलंतु । रस-कूविय-उवरि-ट्ठियहं गिरि-मेहलहं पहुत्तु ॥ [२०४६] अह निवारिउ नरिण एगेण तहिं पुव्व-पविटइण जह-म भद तुहुं एज्ज अग्गहु । इह हउं वि कवालिइण इमिण खिविउ धणि कय-असम्गहु ॥ खज्जतउ एइण रसिण कडियडु जाव विलीणु । चिट्ठहुं कंठ-पइ-हय- जीवियव्वु अइ-दीणु ॥ [२०४७] किंतु दवरिण गाहु वंधेवि रस-तुंवउं मह समुहु खिवसु जेण अप्पेमि भरिउण । इयरो वि तह त्ति तसु वयणु सयल अ-वियप्पु करिउण ॥ तावस-खिवियहं दवरियहं अवलंविवि जा पत्तु । रस-कूविय-तडि ता मुणिय- कावालिय-वुत्तंतु ॥ 2010_05 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६५ २०५१ ] नवमभवि वसुदेववृत्तंतु [२०४८] रसह तुंवउं कह-वि पढमयरु अ-पयच्छिरु मग्गिउ वि फुरिय-गरुय-कोविण ति-दंडिण । पेल्लेविणु रस-जुउ वि खिविउ विवरि अह दुहिण चंडिण ॥ आउलु खलिर-प्पडिरु गउ मेहलहं वि हेट्टम्मि । न-उ मरणंत-दुहावणइ पडियउ रसि दुट्टम्मि ॥ [२०४९] भीय-कंपिरु भणइ पुणु पुरउ तमु पुव्व-पविट्ठयह अहह भाय किह नरय-सरिसह । एयस्स महा-दुहह उत्तरेसु ता तसु हयासह ॥ पुरउ पयंपिउ पुवयर- पुरिसिण जह - न उवाउ । चिट्ठइ मरणह अंतरिण अह पसरंत-विसाउ ॥ [२०५०] चारुदत्तु सु भणइ पुणरुत्तु जह - बंधव तह वि कु-वि कहसु तयणु इयरेण साहिउ । इह एही गोह इग तीए पुच्छि लग्गेउ अवहिउ ॥ गच्छेज्जसु विवरह वहिहिं अन्नह पुणु झिज्जंतु । हंत रसंतरि निवडियउ मरिसि करुणु विलवंतु ॥ [२०५१] विहि-निओइण चारुदत्तो वि तसु विवरह उत्तरिउ पुणु वि जाउ अप्पाणु मन्निरु । तमु सिहरिहि उत्तरिवि किं-चि अग्ग-मग्गम्मि गच्छिरु ॥ वण-महिसिण एगिण वि वणि जगडिज्जंतु अणाहु । छुट्टउ कहमवि गरुयरहं सिलहं विलंविय-काहु ॥ २०४८. ९. क. पडिवउ. २०५०. १. क. पुणुरुत्तु; ५. क. पुच्छ. 2010_05 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६ वस - विहलिय-सयल - विहि घिसि मई किउ पुव्व-भवि भमहुं महीयलि न उण मह न य मिउ-महुरिण वयणिण वि मई परिताय को वि ॥ नेमिनाहचरिउ [२०५२] चिर- समज्जिय- असुह-वावार [२०५३] इय विचितिरु जणय - मित्तस्सु भवियव्व-वसेण परिमिलिउ रुद्ददत्ताभिहाणह । उसुवेगवइ-ति-अभिहाण - नइहि तीरम्मि दुग्गह ॥ वेत्तलइय-अभिहाणयह गिरि - कूडह मझेण । कंचण - विसयासन्न दु-वि पत्त गरुय कट्ठेण ॥ - जह घेण य अज-जुलु छल-पवेसु जायइ मणूसहं । चलिय समुह अग्गिमहं देस ॥ कम - जोगेण य सविह-ठिय- छगल-वसिण गय- विग्ध । अइ- दुल्लंघु वि छगल-पहु लंघहिं पवण व सिग्घ ॥ इत्थ अजार्ह विणु चारुदत्तु चिंते विलविरु । असुहु किं-पि तं जेण खिज्जिरु ॥ जायइ सुहहं लवो वि । [२०५४ ] तणु निणिवि जगह वयण 2010_05 [२०५५] ता पयंपिउ रुद्ददत्तेण एत्तो वि हु करु अग्ग-मग्गु इय संपहारिवि । सविह- उ संगहिवि अज्ज एहु अज-जुयलु मारिवि । यच्चम्मिण भत्थडिय काउ तहुत्थल्लेवि । मज्झमि य पविसेवि ॥ संलीगंगोवंग तह २०५२. ८. क. न मिउ. [ २०५२ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६७ १९६७ ] नवमभवि वसुदेववृत्तंतु [२०५६] मंस-भंतिण लुद्ध-हियएहिं भारुड-पक्खिहिं गहिय मुहिण जाहुं सोवन्न-भूमिहि । अह चारुदत्तिण भणिउ नणु सु-पुरिस नेरिसिहि कम्मिहि ॥ छिप्पहिं जं छगलहं वसिण अम्हि इहागय सिग्घु । ता किह कीरइ नरय-फल एयहं एरिसु विग्घु ॥ [२०५७] अह कुवेविणु रुद्ददत्तेण संलत्तउं- अरिरि तुहं धम्मिओ सि वीहसि य नरयह । इय चिट्ठसु इह वि ठिउ न-उग सामि एयाहं छगलहं ॥ हउं पुणु करिवि जहारुइउ गच्छिसु कणय-दीवि । इय जंतु वि परिमुयइ छुरिय-घाउ अज-गीवि ॥ [२०५८] ता खणद्धिण करुणु विरसंतु पंचत्तह पत्तु अजु एगु तयणु धाइउ सु वीयह । एत्थंतरि वज्जरिउ समुहु चारुदत्तिण स-छगलह ॥ भद्द न सक्कउँ ताव हर्ष संपइ तई रक्खेउ । तुहं पुणु डरियह भुवणह वि रक्खण-खमु जिणु देउ । [२०५९] दस-पयारिण समण-धम्मेण सु-पवित्तु सु-साहु-गुरु जिय-अजीव-पमुह नव-तत्तई । परमेहि वि पंच-विह सुगइ-सुहय जिण-इद-वुत्तइं॥ पडिवज्जसु तह पुव्व-कय- दुकय-सयई गरिहेसु । भावण एगग्गिण नियय- मण-पसरिण भावेसु ॥ २०५८. १. क. विलसंतु. ७. क. तई. 2010_05 Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪૮ [२०६० नेमिनाहचरिउ [२०६०] चारुदत्तह विविह-चयणाई एवंविह निसुणिरिण किं-चि समिय-सारीर-दुक्खिण । नवकार-परायणिण गाढ-वद्ध-जिणधम्म-लक्खिण ॥ भावाराहिय-अणसणिण जणिय-पाव-कम्मंतु । रुद्ददत्त-हत्थिण छगिण पाविउ जीविय-अंतु ॥ २०६१] तयणु अ-विरल-गलिर-रुहिरेहि उत्थल्ल-तय-भत्थडिहिं रुद्ददत्तु पविसेइ एगहं । गइमन्नमपेच्छिरउ चारुदत्तु पुणु विसइ अवरहं ॥ ता भारुंड-प्पक्खिइहि दु-वि आमिसह मईए । उक्खिविउण नहयल-पहिण निय दूरयर-महीए ॥ [२०६२] किं तु छुट्टिवि विहि-निओएण भारुड-चंचु-पुडह चारुदत्तु निवडिउ जलासइ । अह छुरियइ छिदिउण भत्थडि पि पसरंत-आवइ ॥ कह-कहमवि हु अगाह-जलु तरिवि पहुत्तउ तीरि । संपाविय-चेयन्न-लवु तहिं वायंति समीरि ॥ [२०६३] अह अ-माणुस-अडइ-मज्झम्मि मिणमाणु व गयणयल तुंगु एगु पव्वउ निरिक्खइ। ता आरुहमाणु तहिं सणिउ सणिउ गच्छंतु लक्खइ ॥ चारण-मुणिवरु एगु अह सिरि कर-कोसु करेवि । अप्पु कयत्थउं मुणिरु तमु पय-पउमई पणमेवि ॥ २०६१. २. उच्छलइतय. 2010_05 Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६९ २०६७ ] नवमभवि वसुदेववुर्ततु [२०६४] उचिय-आसणि ठाउ स-वियक्कु जंपेइ य - मुणि-वसह कहसु कत्थ दिट्ठो सि तुहुँ मई । ता चारण-मुणि भणइ भद्द चंप-नयरीए जो तई॥ कंठागय-जीविउ खयरु अमियगई-अभिहाणु । जीवाविउ सो तइयहं वि रिउ-उद्धरण-पहाणु ॥ [२०६५] दप्पु दलिउण नियय-सत्तुस्सु परिवेप्पिणु निय-दइय गंतु झत्ति वेयड्ढ-सिहरिहि । उवभुंजिवि विसय-सुहु करिवि हरिस-पब्भारु स-सुहिहि ॥ नियय-तणुब्भवु सीहजसु संठविऊण य रज्जि । अवरु वराहस्सीहु पुणु विणि वेसिवि जुव-रज्जि ॥ [२०६६] गहिय-जिणवर-चरिय-चारित्तु परिसीलिय-विविह-तवु कणयकुंभ-मुणिवरह सविहिहिं । विहरंतु सु अमियगइ कुंभकंठ-दीवम्मि सिहरिहिं ॥ कक्कोडय-नामम्मि इह एहु सु हउँ चिट्ठामि । एत्थंतरि निव-जुवनिवइ दो-वि ति नहयल-गामि ॥ [२०६७] पउर-परियण तत्थ संपत्त वंदंति मुणिंद-पय गरुय-भत्ति-रोमंच-अंचिय । गंधव्वसेणा वि लहु- भइणि तेसि गुरु-मुहिहि संचिय ॥ निय-जणयह चारण-मुणिहि अमियगइहि तसु पासि । आयन्नइ वर-धम्मकह भुवणाभोग-पयासि ॥ २०६४. ८. क. तइंयहं. २०६६. ५. क. ख. समुहिहिं. ___ 2010_05 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७० नेमिनाहचरिउ [ २०६८ [२०६८] अह पयंपिउ समण-रयणेण निय-नंदण-दुहियरहं पुरउ - भद एसो वि तुम्हहं । जणगो इव इय नमहं अह ति भणहिं -- नणु किह णु अम्हहं ॥ जणय-समाणउ एहु अह नीसेसु वि पुव्वुत्तु । तेसि निवेयइ मुणि-वसहु चारुदत्त-वुत्तंतु ॥ [२०६९] ता वियासिय-नयण-तामरस पणमंति ते तमु चलण- कमल एत्थ-अंतरि पहुत्तउ । गयणयलह असम-जुइ पउर-अमर-परियणिण जुत्तउ । तियसाहिवइ-समाण-तणु- कंति-कलावु स-उण्णु । अमरु एगु पणमइ पढमु चारुदत्तु स-करुण्णु ॥ [२०७० तयणु पणमइ मुणिहि चलणेसु ता झत्ति स-विभमिण सीहजसिण वज्जरिउ- सुंदर किह पढमु वि मुणि-पयई मुइवि इमहं पणओ सि सुर-वर अह गुरु-हरिसिण सुरिण तिण भणिउ- मज्झ गुरु एहु। जइ पुणु कोउगु तुम्ह इह ता वइयरु निसुणेहु ॥ तहा हि [२०७१] संति स-किरिय-करण-कय-लक्ख वाणारसि-पुरवरिहि वाल-घुट्ठ-गुरु-साहु-सद्दय । पव्वाइय दुन्नि तहं पढम सुलस वीया सुभद्दय ॥ तहिं आगउ अवरावसरि जन्नवक्क-अभिहाणु । जोगिउ निययई सयलहं वि किरियहं विसइ पहाणु ॥ २०६८. ५. क. महु. २०७१. १. क. करुण; ६. क. आगमो. ____ 2010_05 Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०७५] ४७१ नवमभवि वसुदेववुत्तु ४७१ [२०७२] अह जु जिप्पइ जेण सो तस्सु सुस्सूस करेइ इय कय-पइण्णु वायम्मि दुक्कइ । सह सुलसहं निव-सहहं न य लवं पि निय-कलहं चुक्कइ ॥ ता निज्जिय तिण सुलस तमु सुस्मृसिय संजाय । चिट्ठति य दु-वि अणवगय- दिणयर-रयणि-विभाय ॥ [२०७३] तहिं ललंतहं चत्त-वय-भंगअभिमाण-दोसाहं तहं काल-कमिण संजाउ नंदणु । अह सुलसहं नणु जणु वि मा मुणिज्ज मह-वयह खंडणु ॥ इय चिंतेविणु पिप्पलह हेट्टि चत्तु निय-पुत्तु । लोय-पवायह भइण पुणु दो-वि ति नट्ट निरुत्तु ॥ [२०७४] विहि-चसेण य वयणि निवडंत भक्खतउ पिप्पलह पिप्प वालु दिद्वउ सुभदई । ता घेप्पिणु निय-करिहिं अ-वितहत्थु फुरियावसदहं ॥ तसु तीए च्चिय वियरियउं पिप्पलाद इय नामु । सो उण संगोवंगई वि वेयहं हुउ गुरु-धामु ॥ [२०७५]] तयणु सुलसह जन्नवक्कह वि पुव्वुत्तु वइयरु सयल परिसुणेवि वयणिण सुभद्दह । कोवारुण-नयण-दलु पिप्पलादु हुउ उवरि जणयहं ॥ नणु पडिवज्जिय-सील-वय किह संपइ एयाइं । खंडिय-सीलई सुय-वहिण किय-पावई जायाई ॥ २०७२. २. क. सुस्सू left out. ____ 2010_05 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७२ [२०७६] इय विचितिरु तेसि हणणत्थु पसरंत अमरिस - वसिण निय चट्टहं पुरउ पुणु लग्गाविउ लोग हि सयल विविह असुह-वावारि । सवसिण अज्जु वि भमइ चउ - गइ भव-संसारि ॥ नेमिनाहचरिउ जओ भणिर्य [२०७७] पिइमेह - माइमेहा पसुमेहा तुरयमेह - गयमेहा । सुमेह वंधुमेहा गोमेह - नरिंदमेहा य ॥ भरहह-भणिय सयलि वि तिरोहिय । कहिय वेय एरिस अणारिय || [२०७८] उट्ट - खर- विरहियाणं जीवाणियरेसिमवि-हु वह - हेऊ । resuारिय-वेया पत्ता पिप्पलाएण ॥ - जह जन्नि हम्मंत जिय विणिवाइवि निय-जणणिइय पाविण तिण गिरि-गरुयपावु पयासिउ जं तमिह 2010_05 [२०७९] भणिवि पुणु जण - मज्झयारम्मि [२०८०] पिप्पलायह हुयउ पुणु सीसु अभिहाणिण वायवलि सो उ इयर - लोगम्मि पयडिउ । पुव्वोय-वेय अह सत्तमम्मि नरयम्मि निवडिउ ॥ परिभमिऊण य सुरु भवि पंच-वार छगु होउ । निय - मंसिण जन्निहि हयउ पोसिवि जन्निय - लोउ ॥ निव्वियप्पु सग्गम्मि वच्चहिं । जणय हुणइ मज्झम्मि अग्गहि || अहिणिवेस- नडिएण । किज्जइ अजु-वि जणेण ॥ [ २०७६ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८४ ] नवमभवि बसुदेवबुत्तु [२०८१] छट्टमम्मि उ रुद्ददत्तेण हम्मंतउ छगल-भवि टंकणम्मि विसयम्मि अ-सरणु । निक्कारण-कारुणिय- रुइण इमिण कारविउ सुमरणु ॥ जिणवर-धम्मह सुह-गुरुहं नव-भेयहं तत्ताह । अन्नेसि पि तहा-विहहं जिण-पणीय-भावाहं ॥ [२०८२] अंत-अवसरि जाय-सम्मत्तु आलोइय-दुच्चरिउ सरिय पंच नवकारु भाविण । अवहत्थिय-तणु-असुहु सुद्ध-झाणु परिचत्तु जीविण ॥ जायउ सोहम्मम्मि सुर- मंदिरि देव-कुमारु ।। तक्खणमवि तसु सुर-गणिण दंसिउ सुर-सिरि-सारु ॥ २०८३] अवहि-नाणिण मुणिय पुव्वुत्तु वुत्तंतु स-धम्म-गुरु- नाम-मंतु मुमरिवि स-परियणु । सो हउं जि इहागमिवि नमहुं इमह मिल्लेवि मुणि-जणु ॥ ता विम्हिय नहयर सयल पमुइय अमर-कुमार । चारुदत्त-तियसहं पुरउ पयडहिं हरिस-वियार ॥ [२०८४] चारुदत्तह पुरउ अह अमरु साणंदु समुल्लवइ देसु मज्झ आएसु वणि-वर । तयणंतरु भणइ वणि- पवरु - एज्ज सुमरियउ सुर-चर ॥ अह चारण-मुणि-वरह पय पय वणिणो वि नमेवि । सेवइ तियसु सु सुर-सुहई सुर-मंदिरि गच्छेवि ॥ २०८३. ७. क. कुमारु. २०८४. ४. क. तियणतरु. ६० 2010_05 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०८५ नेमिनाहचरिउ [२०८५] चारुदत्तु वि तेहिं खयरेहि पणमेप्पिणु गुरु-पइहि नीउ नियय-ठाणम्मि स-हरिसु । ता पयडिउ निय-जणय- मइहिं असमु तसु पूय-पगरिसु ॥ अह गंधव्वस्सेण निय- भइणि समप्पिवि तस्सु । जंपिउ जह – वसुदेवु इह वीवाहिहइ अवस्सु ॥ [२०८६] जमिह अम्हहं कहिउ चिट्टेइ नेमित्तिएण एरिसउं दिक्ख-गहण-समयम्मि पिउण वि । आइटउं आसि जह ठविवि चारुदत्तस्स भवणि वि ॥ मोएयव्य कुमारि इह सो वि गरुय-रिद्धीए । परिणाविस्सइ वणिय-वरु नियय-धूय-बुद्धीए ॥ [२०८७] अह गहेविणु कुमरि कय-तोसु खयरिंद-सम्माणियउ मिलिय-रयण-धण-कणय-वित्थरु । तक्कालागइण तिण मुरिण दिन्न-आहरण-सुंदरु ॥ वहु-विज्जाहर-सुर-नियर- सहिउ कुमारि गहेवि । चंपहं पुरिहिं पहुत्तु हउं एहु सु इम वि भणेवि ॥ [२०८८] जिणइ जो मई वीण-वायणिण सो परिणइ न-उ इयरु इय ललंत चिट्टइ निरंतरु । चिर-कालह आगयउ तुहुँ वि एत्थ सव्वंग-सुंदरु ॥ इय निसुणिवि वसुदेवु परितुट्ठउ परिणइ कन्न । इयरि वि तिण सह अणुहवइ विसय-सुहई अ-सवन्न ॥ ____ 2010_05 Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०९२] नवमभवि वसुदेववुत्तंतु इओ य-- [२०८९] महि-नियंविणि-तिलइ वेयइढि सिरि-नमि-खयराहिवह वंसि गइहि गय-संख-निवइहि । पहसिउ खयरिंदु हुउ तसु हिरन्नवइ-नाम-दइयहि ॥ निरुवम-सिविणुवसूइयउ पसरिय-गुणहं निहाणु । जायउ खयराहिव-तिलउ सिरि-मुदाढ-अभिहाणु ॥ [२०९०] तिण हराविवि सुत्तु वसुदेवु आणाविवि निय-भवणि सुइरसिद्ध-वेयाल-पासह । सम्माणिउ वहु-विहिहिं पूरणत्थु निरु नियय-आसह ॥ तयणतरु ससि-विमल-कल- निरुवम-गुण-मणि-धाम । नियय दुहिय भुवणब्भहिय सिरि-नीलंजस-नाम ॥ [२०९१] सा महा-मह-पुव्वु तिण तस्सु वसुदेवह दिन्न अह तीए समगु स-पयाव-दिणमणि । सो अँजिरु विसय-सुह गमइ कालु जायव-सिरोमणि ॥ अवरम्मि उ अवसरि सरई सिरि-हिरिमंत-नगम्मि । ताई दुवे वि-हु गंतु खणु ललहिं कयलि-हरयम्मि ॥ [२०९२] एत्थ-अंतरि चलिर-चूलिल्लु अलि-गवल-तमाल-दल- कंठ-नाल-देसिण विहूसिउ । पसरंत-केकारविण पंच-वन्न-अंसिण अ-दूसिउ ॥ परिनच्चंतु सिहंडि इगु पूरिय-गरुय-कलावु । अवलोइउ वालियहं तहिं अमय-महुर-आलावु ॥ २०८९. २. क. विनमि. 2010_05 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०९३ ४७६ नेमिनाहचरिउ [२०९३] अह पहाविय तस्सु गहणत्थु कोऊहल-हरिय-मण वाल जाव ता पुरिस-रूविण । अइ-करुणउं पलविर वि नीय कह-वि तेणावि हरिउण ॥ तीए विओइ अरन्न समु भुवणं पि-हु मन्तु । नर-विज्जाहर-सुर-तरुणि- मण-वणराइ वसंतु ॥ [२०९४] कयलि-हरयह नीहरेऊण तक्खणिण वि सउरि-कुल- गयण-चंदु अच्चंत-दुक्खिउ । तं तरुणी-रयणु निरु नियइ धरहं इयरिहिं अ-लक्खिउ ॥ कम-जोगेण य एगयरि पत्तउ पुरि जा ताव । वेय पढंत सुणइ दिय जि जलहर-गहिरालाव ॥ [२०९५] तयणु पुच्छिउ तेण दिउ एगु किं एत्थ दीसहिं दिय जि निच्चु वेय-उग्गार-पच्चल । अह विप्पिण भणिउ - इह अस्थि कलहं कोसल्लि निच्चल ॥ धुय सुरदेवह दिय-वरह वेय-कलाहं निहाण । खत्तिणि-पिय-तणु-संभविय सोमस्सिरि-अभिहाण ॥ [२०९६] पत्त-जोव्वण भणइ सा वाल - परिणिस्सइ सु ज्जि पर जो जिणेइ मई वेय-विज्जहं । इय निसुणिवि विप्प-जणु लटु तमु जि परिणयण-कज्जहं ॥ एम्व निरंतरु इह नयरि वेयब्भासु करेइ । वंमदत्त-विप्पह पुरउ पढिय परिक्ख वि देइ ॥ ____ 2010_05 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१०० ] नवमभवि वसुदेववुत्तंतु [२०९७] वडुय-वेसिण वंभदत्तस्सु गेहंगणि कोउगिण गंतु पुरउ तसु सउरि जंपइ । जह - गोयम-गुत्तु दिउ तुम्ह पुरउ पढणत्थु संपइ ॥ चिट्ठहुँ पत्तउ इय पसिय मई वि पढावहु वेय । तयणंतरु वंभणु भणइ वेय हवंति दु-भेय ॥ [२०९८] तत्थ ताव य भरह-नाहेण कय आरिय-वेय इय फुड पुराण-सत्थिहि निसुम्मइ । इयरे उण जेण कय तमु सुणेह उप्पत्ति संपइ ॥ सिरि-चारणजुयलम्मि पुरि निवइ अजोहण-नामु । तसु पणइणि दिति-नाम पुणु असरिस-गुण-मणि-धामु ॥ [२०९९] तेसि निय-कुल-गयण-ससिलेह सुलस त्ति नामिण पयड धूय आसि अह अवर-वासरि । जणएण करावियइ तीए जोग्गि मंडवि सयंवरि ॥ रयणिहिं मंतणयम्मि निय- धृयह पुरउ भणेइ । जह - जुत्तिण माउलय-सुउ तइं महुपिंगु वरेइ ॥ [२१००] खिवसि जइ पुणु कसु वि अवरस्सु कंठम्मि वर-माल तुहुं ता महंतु मह असुहु हविहइ । अह सुलस समुल्लवइ जणणि-अमुहु नणु को णु करिहइ ॥ सो च्चिय निय-माउलय-सुउ हउं महपिंगु वरेसु । न-उण कह-चि वि सिविणगि वि जणणिहि असुहु करेसु ॥ २०९९. २. क. पयड. 2010_05 Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७८ [ २१०१ नेमिनाहचरिउ [२१०१] एहु सयलु वि मुणिवि मंतणउं मंदोयरि-नामियइ चेडियाए सिरि-सयर-निवइहि । आगंतु कहीउ अह धरणि-नाहु संगहिउ अ-रइहिं ॥ उवविसिऊण सयंवरह मंडवि नियय-पहाए । वच्चावइ निय-लक्खणई जा ता कुमर-सहाए ॥ [२१०२] इहु निलक्खण-कुक्खि महुपिंगु सव्वेसि निवंगयह इमहं मज्झि इय भणिवि दढयरु । निद्धाडिउ तह कह-वि जह न दिछ नयणिर्हि वि सु कुमरु ॥ सयर-नरिदिण पुणु सुलस वीवाहिय अइरेण । निय-निय-पुरि इयरे विगय समगु स-परिवारेण ॥ [२१०३] विण्हुरायह भवणि जाओ वि निव-वंस-मुत्तामणि वि सिरि-मुदाढ-निव-भाइणिज्जु वि । सिरि-सोमवंसुब्भवु वि सुलस-तरुणि-एगंत-जुग्गु वि ॥ निद्धाडिवि वल-वड्डिमहं हउं परिखिविउ विएसि। लुद्धिण सयर-निवाहमिण सुलसह तरुणिहि रेसि ॥ [२१०४] किंतु कहमवि जइसु तह जेण सव्वे वि-हु निव-अहम एइ हुंति अच्चंत-दुक्खिय । इहरह कह एरिसउं पावु करिवि हविहई सु-सिक्खिय ॥ इय चिंतिरु वि अ-पहविरउ तेस तिम्मि जम्मम्मि । उज्जमिउण अइ-दुक्करइ वाल-तव-क्कम्मम्मि ॥ २१०१. ६. क. पयंवरहं. 2010_05 Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७९ २१०८] नवमभवि वसुदेववृत्तंतु [२१०५ मरिवि जायउ भवण-चासीण महकाल-अभिहाणयहं मज्झि तियस-पहु परम-अहमिउ । निय-नाणिण परिमुणिवि वइयरो वि निय-पुव्व-जम्मिउ ॥ चिंतिवि जह – सयर-प्पमुह नरवइ-अहम ति सव्वि । नरइ निवाडिवि हरहुं मइ पर पिययम गहियव्वि ॥ [२१०६] मुणिवि पुणु पसु-जन्न-विहि-कहण. अवराहिण सुत्तिमइ- पुरिहि नयर-लोइण समग्गिण । निव्वासिउ पव्वयगु कूर-कम्म-परिणइ-निसग्गिण ॥ सो महकाल-सुराहिवइ अहम-चरिउ महुपिंगु ।। आवइ पव्वयगह पुरउ भणइ - भणसि तुहुं चंगु ॥ [२१०७] - किंतु पाविण नयर-लोएण अविवेय-चहुलत्तणिण तुहुं वि एम्ब अवगणिउ संपइ । जं खीर-कयंवगु वि तुज्झ जणउ एमेव जंपइ ॥ तसु उवझायह पुरउ तई मई वि हु इहु जि सुणीउ । संपइ पुणु पेक्खेवि तुह नायर-जणु अ-विणीउ ॥ [२१०८] स-गुरु-वंधव-नेह-गुण-बद्ध हउं पत्तउ एत्थ तुह जणिण जणिउ अवमाणु पिक्खिवि । अह पेक्खसु जे कुणहुँ इय भणेवि बहु-भेउ सिक्खिवि ॥ सुरवइ-अहमु सु पुरि सयलि जियहं विउव्वइ मारि । अ-सिवाणि वि नाणा-विहई तहिं तारिसि अवगारि ॥ 2010_05 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८० नेमिनाहचरिउ [२१०९ [२१०९] तयणु नायर रोग-विहुरंग सुहि-सज्जण-मरण-भय- अहर-देह पव्वयग-सविहिहिं । आगच्छहि हवहिं पुणु तदुवइट-दियहाण अवहिहिं ।। पसुमेहाइ अणेग-विह जन-विसेस जजंत । जायहिं दिव्य-वसेण गय- रोग समम्गि वि सत्त ॥ [२११०] ता विसेसिण सयलि नायरय संजाय-पच्चय तहिं जि पाव-कम्मि पसुमेह-पमुहइ । सव्वायरु उज्जमहिं अ-सिव-हरणि पव्वयग-कहियइ ।। निच्चु वि जल-थल-नहयरह नाणाविहहं जियाहं । संजायइ संहारु पइ- दियहु वि तहिं किरियाई॥ [२१११] सयर-निवइहि लोउ पुणु सयलु पीडिज्जइ बहु-विहिहि दूसहेहिं वाहिहि निरंतरु । पव्वयगह वयणु अणुसरिवि असुह-पब्भार-निभरु ॥ अठुत्तर जन्नहं सहसु कारइ दिक्खिउ होउ । उज्जमइ य तेण वि कमिण सयलु वि नायर-लोउ ।। [२११२] देइ अणु-दिणु दाणु विप्पा अवहीलइ धम्मियणु कुणइ भणिउ पव्वयग-पावह । धण-लुद्धय वंभण वि तसु जि चेव गच्छंति सेवहं ॥ एत्थंतरि नारय-रिसिहि मित्तु दिवायर-नामु । खयर-कुमारु जिणाहिवइ- भणिय-किरिय-कुल-धामु ॥ २१०९. ४. ख. आगच्छहि नूण पुणु २०१०. ९. क. करियाहं. २११२. ९. क. कुधामु. ____ 2010_05 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २११६ ] नवमभवि वसुदेववुत्तंतु [२११३] जन्न-कज्जिण जीव पसु-पमुह पव्वयगिण आणविय अवहरेउ जन्नाई भंजइ । वारण य पव्धयग- पावु जिणिवि धम्मियणु रंजइ ॥ इहु मुणिउण सुरवइ-अहमु तमु विज्जह अहलत्थु । ठाविवि रिसहेसर-पडिम जन्नि हणइ जिय-सत्थु ॥ [२११४] जन्नि निहणिय जिय वि पयडेइ गयणम्मि विमाण-गय ता भणइ नीसेसु लोगु वि । जह - जन्नि निसुंभियउ जाइ जीयु सग्गम्मि सयलु वि ॥ तयणु विसेसिण जणु कुणइ पसु-वहाइ-जन्नाई । ता जा सयर-नराहिवइ सुलस वि तहिं हुणियाई ॥ [२११५] इय अणारिय-वेयहं पवित्ति पव्वयगिण किय पढम तयणु तेण महुपिंग-तियसिण । ता पाव-मलीमसिण पिप्पलाय-चालय-तवस्सिण ॥ तइयहं नारय-महरिसिण परिणिय खयरहं धूय । संपइ पुणु वंसम्मि तह इह सोम-स्सिरि हुय ॥ [२११६] तयणु दु-विह वि वेय अइरेण वसुदेविण पढिय अह जिणिवि सोमसिरि कमल-वयणिय । अच्चंत- महूसविण दलिवि दप्पु इयरेसि परिणिय ॥ चिट्ठइ तीए सह सुइरु विसय-सुहई सेवंतु । अवरम्मि उ अवसरि गयउ पुर-काणणि कीलंतु ॥ २११५. ९. क. सामस्सिरि. ____ 2010_05 Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८२ [ २११७ नेमिनाहचरिउ [२११७] जाव ता तहिं विहिय-दिय-वेसु सच्चवियउ वहु-कवडु इंदसम्मु दहु इंदयालिउ । वसुदेविण तमु पुरउ गहिउ मंत-तंतोहु अणलिउ ॥ किं पुण निसिहं चडाविउण गुरु-विमाणि वसुदेवु । अवहरियउ नहयल-पहिण किं तु सु अ-कय-क्खेवु ।। [२११८] तसु विमाणह उत्तरेऊण तह कह-वि गयउ जह इंदसम्म-धुत्तिण वि न मुणिउ । तिलसोसय-नामि पुणु सन्निवेसि निय-सुकय-उवणिउ ॥ आगंतूण पुरह वहिहिं देवउलम्मि पसुत्तु । चिट्ठइ रयणिहिं नर-रयणु सो सुहि-सयण-विउत्तु ॥ [२११९] एत्थ-अंतरि कणयपुर-सामि जियसत्तु-नराहिविण नियय-पुत्तु नर-मंस-लुद्धउ । निद्धाडिउ निय-पुरह स-विसए वि पविसिरु निसिद्धउ ॥ सो य भमंतउ नग-नगर- गामाउल-वसुहाए । वावायंतु अणाह वहु माणुस मंसासाए॥ [२१२०] विहि-निओइण रयणि-मज्झम्मि मंसासण-लुद्ध-मण- पसरु पत्तु वसुदेव सविहिहिं । आयइढिवि असि-लइय जा पहारु तसु देइ अ-विहिहिं ॥ ता वसुदेविण उद्विउण केस-कलावि गहे वि । पावु सु पंचत्तह नियउ निय-खग्गिण निहणेवि २११७. ९. क. कितु. 2010_05 Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___४८३ ४८३ २१२४ ] नवमभवि वसुदेववृत्तंतु [२१२१] अह वियाणिय-पगय-पुत्ततु नीसेसु वि नयर-जणु विहिय-विविह-सम्माणु सउरिहि । वियरेइ महायरिण सयई पंच निय-नियय-कुमरिहि ॥ वसुदेवो वि हु काउ निय- सत्तहं तरुणिउ ताउ । अयलगामि सत्थाह-घरि एगयरम्मि पराउ ।। [२१२२] मित्तसिरि इय नामु त कन्न परिणीय महा-महिण गमइ दियह सह तीए मुक्खिण । अवरम्मि उ दिणि सउरि- पुरउ भणिउ एगिण मणूसिण ॥ वेयसम्म-नामम्मि पुरि निवइ कविल-अभिहाणु । चिट्टइ कविला-नाम तमु धुय गुरु-गुणहं निहाणु ॥ [२१२३] तसु निमित्तिण कहिउ हिरिमंतसिहरिम्मि समागयउ पाण-नाहु वसुदेव-नामगु । आणयण-पओयणिण इंदयालि-गुरु इंदसम्मगु ।। तसु सविहिहिं पेसिउ निविण सो वि-हु तं गहिऊण । जा चलियउ ता तमु नयण- मग्गु अइक्कमिऊण ।। [२१२४] गयउ कत्थ-वि झत्ति वसुदेवु इयरेण वि नरवइहिं कहिउ सयलु पुव्वुत्तु वइयरु । नरनाहु वि संसइउ हुयउ जाव ता भणइ इगु नरु ॥ जह - पहु तिण नेमित्तिइण अवरु वि अस्थि कहीउ । जा फुलिंगवयणु त्ति तुह तुरउ दमेइ गहीउ ॥ २१२१. १. क. वियारइ. ___ 2010_05 Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ [ २१२५ [२१२५] सौ जि कविलह तुज्झ कन्नयह गिहिस्सइ पाणि धुवु तयणु निविण निय-नयरि सायर । घोसाविउ जह - जु मह इहु फुलिंगवयणो त्ति हय-वरु ॥ दमिउण पट्टिहिं आरुहइ सो ज्जि कविल परिणेइ । सउरि वि तसु वयणिण सयलु निय-वुत्तंतु मुणेइ ॥ [२१२६] अह तुरंगमु दमिवि लीलाए परिणेविणु ससि-वयणि कालु को-वि सह तीए चिट्ठिवि । उप्पाइवि सुय-रयणु कविल-नामु तस्सु वि पइटिवि ॥ देसंतर-गमणुम्मणिउ हुउ वसुदेवु सु जाव । नीलकंठ-खयरेण करि- रूविण हरियउ ताव ।। [२१२७] तयणु मुट्ठिण कुलिस-कढिणेण हणिऊण खयराहमु सु धरणि-वीढि पाडियउ सउरिण । अह उढिवि नह-पहिण सो पलाणु हियएण विहुरिण ॥ वसुदेवो वि हु अ-क्खुहिय- मण-वावारु कमेण । सालगुहाए महा-पुरिहिं पत्तउ सुह-उदएण ॥ [२१२८] तहिं पढाविउ सयलु धणु-वेउ वसुदेविण आयरिण भग्गसेण-अभिहाणु नरवइ । पउमावइ नाम निय- धूय सरय-ससि-जुण्ह-सम-मइ ॥ वियरिय तेण नराहिविण वसुदेवह कुमरस्सु । गच्छंति य दिण तीए सह तसु वर-विसय-परस्सु ॥ २१२५. २. पाणि त्रुटु (2); ख. धुवु वयणु. २११८. ५. क. सेसि. ____ 2010_05 Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१३२ ] नवमभवि वसुदेववुत्तंतु [२१२९] अवर - अवसर भग्गसेणस्सु सह जे सोयरिण ता अवितह - नामु निय- ससुरु द संगामंगणि पविसिउण मउलिय-वयण - वियासु । भग - मड फरु लहु विहिउ सो महसेण - हयासु ॥ समरु लग्गु महसेण - नामिण | वसुदेव - वीरिण ॥ [२१३०] ता निरिक्खिवि सउरि-माहप्पु पडिवज्जिवि सेव तसु वसुदेवह गुण-नियरु वेयमि वड्डिम महिम -हरि वियरय धूय निय 2010_05 संहरेवि संगर- मडप्फरु । मणि धरेवि सव्वंग-सुंदरु ॥ जोव्वण - रूव- निहाण । आससेण- अभिहाण ॥ [२१३१] कालु कित्तिय- मेत्तु तहि ठाउ कोहल - हरिय-मणु सिरि- भद्दिलपुरि-नयरि जाइ तर्हि ति दयइउ तपुर - नाहेण वि निविण नेमित्तिय वयणेण । पुंड नाम निय-धूय तसु वियरिय गरुय महेण ॥ सउरि पुरह तसु नीहरेविणु । सह तीए व विसय-सुह संजायउ अंगरुहु तसु पुणु वसुदेविण गरुयकिउ पंडु त्ति समग्ग- सुहि [२१३२] असम - लक्खण- रयण-धरणीए २१२९. ५. क. ससुर; ६. क. पविविऊण. ११३१. ५. क. जाई. · भुंजिरस्सु तसु देव - कुमरह अणहु उ निय-वंस-पसरह ॥ रिद्धिण जण-अभिरामु । सयणहं पयडउं नामु ॥ एविणु ॥ ४८५ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८६ [२१३३ नेमिनाहचरिउ [२१३३] अवर-दिणि पुणु खयर-कुमरेण अंगारय-नामगिण सुह-पसुत्तु पडिवक्ख-दूसणु । कलहंस-रूव-च्छलिण अवहरेउ जायव-विहूसणु॥ खित्तउ गंग-महानइहि सलिलि अणोरप्पारि । किं पुण खण-मित्तिण सउरि तरिउण सुर-सरि-वारि ॥ [२१३४] चिर-समज्जिय-मुकय-पब्भारु इलवद्धण-नाम-पुरि गंतु कमिण वणि विवणि चीहिहिं । उवविठ्ठउ कं-चि खणु हट्टि नयर-उत्तिमह सेट्ठिहि ॥ तसु अणुहाविण सेटिण वि सय-सहस्सु दविणस्सु । ववहरमाणिण अज्जियउ मज्झि वि एग-दिणस्सु ॥ [२१३५] तयणु सेट्ठिण स-घरि नेऊण सम्माणिवि वहु-विहिहिं तसु विइन्न भुवण-प्पहाणिय । रयणवई नाम निय- धूय सरय-ससि-सोम-वयणिय ।' तीए सह तमु चिट्ठिरह गच्छंतिहिं दियहेहिं । संपत्तउ तहिं सरय-रिउ सह कलहंस-सएहि ॥ [२१३६] __अह सु कंचण-रहि समारूदु ससुरेण सह इंद-मह- पेच्छणत्थु गउ पुरि महापुरि । कीलंतउ पुणु पुरह तस्सु वहिहिं उज्जाणि मणहरि ॥ पेच्छइ निय-सिरि-अवगणिय-तियसासुर-भवणाई । तुंग-विसालई धवलहर जय-जण-मणहरणाई ॥ २१३६. ५. वहिहिं. ____ 2010_05 Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७ २१४० ] नवममधि वसुदेववृत्तंतु [२१३७] तयणु पुच्छइ ससुर-पासम्मि किं एहु दीसइ अवरु नयरु किं-पि ता भणइ ससुरउ । इह नरवइ-कन्नयह जोग्गु रम्मु किर आसि विहियउ ॥ एहु सयंवर-मंडवउ किंतु अज्ज सा कन्न । दुस्सह-चाहि-समागमिण हुय गलंत-चेयन्न । [२१३८] अह नियत्तिवि सयल निव-कुमर संजाय विवन्न-मुह निय-निएसु ठाणेसु अइगय । वसुदेवु वि कइ-वि पय देइ जाव ता तहिं पहुत्तय ॥ सेट्टि-पुरोहिय-मंडलिय- सचिवाहिव-सामंत । उचिओचिय-ठाणिहि वि ठिय हरिसिण पुलइज्जंत ॥ [२१३९] एत्थ-अंतरि तहिं जि संपत्तु संतेउरु धरणिवइ किं तु भग्ग-आणाल-हत्थिण । कड्ढेविणु रह-वरह गहिय एग निव-कन्न सुंडिण ॥ ता हा-हा-रवि पसरियइ मिलियइ नायर-लोइ । तसु पुणु करि-अहमह समुहु पगु वि न वियरइ कोइ । [२१४० किंतु सउरिण समुहु धावेवि वामोहिवि दुट्ठ-करि कड्ढिऊण वहु-दुह-करालिय । परिमुक्क पासाय-तलि निय-करेहिं सा निवइ-वालिय ॥ तक्खणमवि सयलहं महिहिं जायउ साहुक्कारु । सेट्टिण पुणु महया महिण निय-घरि नियउ कुमारु ॥ २१४०.६ क. गहिहिं. ____ 2010_05 Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८८ [२१४१ मेमिनाहचरिड [२१४१] अह सिणाणिण वर-विलेवणिण नाणाविह-भूसणिण विहिय-चारु-सिंगारु मणहरि । पल्लंकि निसिएइ खणु जाव सविहि संठियइ वणि-वरि ॥ ताव समागय वणि-चरह तसु मंदिरह दुवारि । परिवियसिय-मुह-कमल इग नरनायग-पडिहारि ॥ [२१४२] ता पयच्छिवि हत्थि वणि-चरह नर-नाहिण पेसियउ वहु-पसाउ साणंदु सउरिहि । सविहम्मि भणेइ जह सोमदत्त-नरवरिण कुमरिहि ॥ सोमस्सिरि-अभिहाणयह निय-धूयह पाउग्गि । कयइ सयंवर-मंडवइ निय-सिरि-अहरिय-सम्गि ॥ [२१४३] विविह-नरवइ-कुमर आहृय सद्दाविय सुहि-सयण गणय-पुरिस आगय अ-संखय । परिपिडिय तक्खणिण वंदि-विंद वहु-संख-लक्खय ॥ अह सव्वाण-महामुणिहि केवल-नाण-महम्मि । चलियासणि पत्तइ खणिण तहिं जि देव-निवहम्मि ॥ [२१४४] कत्थ एरिसु अमर-निउरुवु मई दिछु इय चिंतिरिहि सोमसिरिहि हुउ जाइ-सुमरणु । ता केण समाणु इह जंपियव्वु इय करिवि ददु मणु ॥ मोण-व्वउ अवलंविउण चिट्ठइ वियसिय-अच्छि । पुच्छिज्जत वि निवइण वि किं-पि न कहइ मयच्छि ॥ २१४१. ८. क. कमल. २१११. ८. क. ख. निवहणु. ____ 2010_05 Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८९ २१४८ ] नवमभवि वसुदेवघुत्तंतु [२१४५] तयणु आणिवि कुमरि एगति मई पुच्छिय - नणु सुयणु किं न कसु वि परमत्थु साहसि । न-हि निय-दुहि अ-कहियइ तुहुँ वि अ-सुह-अवसाणु पावसि ॥ अह दीहरु उत्तम्मिउण सोमस्सिरि पभणेइ । को मह विरहिण तमु पियह दुह-अवसाणु कुणेई॥ जओ [२१४६] ___ आसि सत्तम-देवलोगम्मि सुर-सामि-समाण-सिरि नंदिसेण-सुरु मज्झ पिययम् । तेणं च समाणु मई विसय-सुक्खु सेविउ मणोरम् ॥ अवरम्मि उ दिणि समगु मई नंदीसर-वरि दीवि । गंतु करेविणु जिण-महिम निसुणिवि गुरुहुँ समीवि ॥ [२१४७] धम्म-देसण-जणिय-जम्मंत संचल्लिउ सत्तमह तियस-गिहह निययस्सु सम्मुहु । जा ताव पंचम-अमर- मंदिरस्सु सविहम्मि वहु-दुहु ॥ दि-विणटु जु हुयउ लहु पवणाहय दीवु व्व । तयणंतर संजाय हउं दुह-दवग्गि-दड्ढ व्व ॥ [२१४८] तत्थ तत्थ य भमिर कुरु-विसइ एगयर-पुरोववणि गंतु सविहि केवलिहि एगह । मई जंपिउ जह - कहसु हउं मिलेसु कइयहं स-दइयह ॥ तयणु पयंपिउ केवलिण सुंदरि भरह-क्खित्ति । उप्पन्नउ सो तुह दइउ हरि-वंसम्मि पवित्ति ॥ २१४५. ६. क. ख. उत्तम्मिऊण. २१४६. ८. क. महिन. २१४७. ९. क. ख. दट्ठव्व. ___ 2010_05 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २१४९ नेमिनाहचरिउ [२१४९] तं पि हविहसि सोमदत्तस्सु नर-नाहह सोमसिरि नाम धृय सुर-तरुणि-सरिसिय । जायम्मि य इंद-महि दुट्ठ-करिण अच्चंत-धरसिय ॥ जो सु-पुरिसु तई रक्खिसइ निय-जिउ पणु मिल्लेवि । सो च्चिय तुह हविहइ दइउ पिसुणहं मण सल्लेवि ॥ [२१५० एहु केवलि-वयणु निमुणेवि अंतम्मि नियय-ट्ठिइहि चविवि सोमदत्तह नरिंदह । हउं कन्नय हूय इय विरहि तस्सु वयणारविंदह ॥ कसु अग्गइ अक्खउं दुहई कसु व सुहइं साहेमि । अह पडिहारि समुल्लविवि जुइ-न ज हउं वि करेमि ॥ _ [२१५१] गंतु निवइहि पाय-मूलम्मि परिसाहइ सोमसिरि- कहिउ सयलु पुव्वुत्त वइयरु । ता निवइण तक्खणि वि निव-कुमर काऊण उत्तरु ॥ निय-निय-नयरि वि सच्चविय सयमुज्जाणि पहुत्तु । जा ता पयडीहुयउ करि- विसइ तुम्ह वुत्तंतु ॥ [२१५२] सोमसिरि पुणु दुट्ट-करि-वरह तई तइयहं छोडिय वि विसम-सरिण हम्मंत संपइ । तह चिट्ठइ कह-वि जह तमु सरूवु सेसु वि न जंपइ ॥ इह मह मुहिण सुणावियउ तुह भणियव्व-विसेसु । ता निय-पाणिग्गह-कवय- दाणिण आसासेसु ॥ ____ 2010_05 Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९१ २१५६ ] नबमभवि वसुदेववुत्तंतु [२१५३] तयणु सउरिण सा वि परिणीय ता पुन्व-जम्मह वसिण तेसि जाउ पडिवंधु अ-सरिसु । अह निसुणिवि निय-खयर- मुहिण सयल वुत्तंतु एरिसु ॥ चित्तंगय-खयराहिवइ- सुय-माणसवेगेण । सुत्तइ सउरिहिं सोमसिरि रयणिहिं हरिवि हटेण ॥ [२१५४] नीय निय-पुरि सिरिसुवन्नाभि तयणंतर वेगवइ नाम भइणि नियइल्ल बुत्तिय । तह कहमवि भणसु जह एह हवइ मह चेव रत्तिय ॥ वेगवईए वि सा भणिय न-उण पवज्जइ किं-पि । विमल-सील-चिंतामणि वि न विराहइ ईसिं पि ॥ [२१५५ अह परुप्परु जाउ पडिवंधु अवरम्मि उ दिणि भणिय सोमसिरिहिं वेगवइ जह – सहि । सो जायव-सिरि-तिलउ कह-वि मज्झ आणेउ मेलहि ॥ अह जा गयणिण वेगवइ उज्जाणुवरि पहुत्त । ता विम्हय-रस-भरिय-मण विहसिय-मुह-सयवत्त ॥ [२१५६] नियय-कंतिण विजिय-दिण-इंदु निय-रूविण जिय-मयणु चत्त-पाण-भोयण-विलेवणु । अवलोइय सोमसिरि सोमसिरि ति जंतु पुणु पुणु ॥ ढुंदुल्लंतउ तहिं जि वणि सयल-महीयल-सारु । परिमउलिय-वयणंबुरुहु सु जि वसुदेव-कुमारु ॥ २१५९. ४. क. नह. २१५५. ७. क. पहुत्तु. ___ 2010_05 Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२१५७ नेमिनाहचरिउ [२१५७] तयणु मयणिण विहुर वेगवइ किं को-वि करावडिउ फल-विसेसु वियरेइ अन्नह । परिणयणह विणु न पुणु हवइ दइय-संगमु सु कन्नहं ॥ इय चिंतिवि विज्जा-वलिण सोमसिरिहि रूवेण । तसु वसुदेवह सन्निहिहिं पयडीहूय खणेण* ॥ [२१५८] ता वियासिय-वयण-तामरसु वसुदेवु जंपइ - अहह सुयणु सुयणु कत्तो सि पत्तिय । इयरी वि समुल्लवइ अज्ज-उत्त हउं तई विउत्तिय ॥ थक्किय इत्थ वि तिन्नि दिण कुल-देवयहं सकासि । मोणिण ओयाइउ कयउं जं तुह कइ मई आसि ॥ [२१५९] किंतु अज्ज वि किं-पि कायव्यु परिचिट्ठइ तई जि सह किं किमित्ति पुट्ठम्मि सउरिण । इयरीए समुल्लविउ हियय-मज्झि पसरिइण हरिसिण ॥ अज्ज-उत्त पाणिग्गहण- विहि करेवि पुणरुत्तु । सेवेयव्वउं विसय-सुहु तई सहुँ अज्ज निरुत्तु ॥ [२१६०] __ अह तह च्चिय निविण विहियम्मि कयली-हरि गंतु चिरु विसय-सुहई सेवंति दोन्नि वि । गच्छंति य विलसिरहं तेसि तत्थ वासर दु-तिन्नि वि ॥ तयणु सहावावन्नयहं वेगवइहिं जह वुत्तु । साहिउ वसुदेवह पुरउ सयलु वि निय-वुत्तंतु ॥ * क. ख. ग्रन्थान ५५०० ___ 2010_05 Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९३ २१६४ ] नवमभवि वसुदेववृत्तंतु [२१६१] अह ललंतउ तीइ सह सुइरु अइवाहइ वासरई अवर-समइ रयणिहिं हरेविणु । परिखित्तु अगाह-जलि सुर-नईए गयणिण निएविणु ॥ विहिहि निओएण उ पडिउ खंध-देसि खयरस्सु । विज्ज-सिद्धि-कइ तहिं गयहं चंडवेग-नामस्सु ॥ [२१६२] तयणु तुट्टिण तेण खयरेण संलत्तउं - सप्पुरिस सिद्ध विज्ज मह तुह पहाविण । इय मग्गसु दुल्लहु वि जेण देमि तुह अइर-कालिण ॥ ता वसुदेविण तसु सविहि नहयल-गामिणि विज्ज । गहिवि निवेइय-विहिहिं लहु साहिय कय-वहु-कज्ज ॥ [२१६३] एत्थ-अंतरि दिव्व-आहरणदेवंगिय-वत्थ-वर- रूव-पढम-जोव्वणिहिं चंगिय । ससि-विमल-कला-निलय पयडिहूय तसु इग नयंगिय ॥ तीइ हरिवि जायव-तिलउ सिरि-वेयड्ढ-नगम्मि । अहरिय-अमरावइ-विहवि अमियधार-नयरम्मि ॥ [२१६४] नीउ अह तसु करिवि पडिवत्ति सिरि-दहिमुह-नामगिण नहयरेण स जि नियय-भइणिय । संखेविण दिन्न अह सउरिणा वि सा तरुणि परिणिय ।। पत्तावसरिण पुणु पुरउ तमु जंपिउ खयरेण । जह विन्नती सुणसु मह पसिउण एग-मणेण ॥ ___ 2010_05 Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९४ [ २१६५ नेमिनाहचरिउ तहा हि [२१६५] अत्थि एत्थ वि गिरिहिं दिवितिलयअभिहाणिण विस्सुयउं नयरु तत्थ हय-सत्तु-खेयरु । परिचिट्ठइ खयर-वइ पत्त-कित्ति नामिण तिसेहरु ॥ तस्स य केण-वि नहयरिण निम्मल-गुणहं निहाण । उवएसिय इह ससि-वयण मयणवेग-अभिहाण ॥ [२१६६] तेण मग्गिय एह मह भइणि निय-तणयह सुप्पगह हेउ न उण अम्हाण जणगिण । सिरि-विज्जुवेगाभिहिण तमु विइन्न तो फुरिय-कोविण ॥ वंधेवि हढिण तिसेहरिण नीउ जणउ अम्हाण। अम्हे वि-हु तमु भय-विहुर इह आगया पलाण ॥ [२१६७] ता पसीउण कुणसु नर-रयण निक्कारण-कारुणिय वंध-मोक्खु अम्हाण जणयह । गिण्हेसु य आउहई मंत-सिद्ध खय-कर विवक्खहं॥ अम्ह अउन्नहं कुल-कमिण समुवागयइ इमाई । तुह चिर-संचिय-सुह-भरहं वंछियत्थ-जणयाई ॥ जहा - [२१६८] वंभसिरं नामत्थं अग्गेयं वारुणं च माहिदं । जसदंडं ईसाणं वायव्वं वंध-मोक्खं च ॥ [२१६९] सल्लुद्धरणं वण-रोहणं च उच्छायणं च लोगस्स । हरणं छेयणमुजिभणं च सव्वत्थ-छेयं च ॥ २१६५. ३. क. ख. वंद; ७. ख. ‘गयई. 2010_05 Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९५ २१७७ ] नवमभवि वसुदेववुत्तंतु [२१७०] एयाई अन्नाणि वि दिन्नाई सुभूम-चक्किणा जाई। ससुरस्स मेहनायस्स ताई सयलाई सस्थाई ॥ [२१७१] जायव-कुल-गयणंगण-मंडण पव्वण-विहावरी-रमणो । दहिमुह-नहयर-पुरओ गिण्हइ जह-भणिय-विहि-पुव्वं ॥ [२१७२] अह दहिमुह-पमुहेणं नहयर-निवहेण परिवुडो चलिओ । वसुदेवो य खणेणं दिवितिलय-पुरम्मि ॥ [२१७३] अह तेण सत्तुणा सह जायं समरं तहिं महाघोरं । माहिंदत्थेण सिरं छेत्तुं च तिसेहर-निवस्स ॥ [२१७४] मोयाविउं समप्पइ पुत्ताणं विज्जुवेगमह सउरी । मुंजेइ सयं रज्जं तत्थ समं मयणवेगाए ॥ [२१७५] जाओ य अणाहिही नाम सुओ महियलम्मि विक्खाओ । अवरावसरे सिद्धाययणे वंदेउ जिण-इंदो ॥ [२१७६] नियय-दइयह समगु वसुदेवु जा पत्तउ निय-नयरि ताव कह-वि सुप्पणहि-नामिण । भइणीए तिसेहरह नयरु सयलु जालिउ खणद्धिण ॥ अवहरिऊण य रायगिह- पुरह वहिम्मि विमुक्कु । सउरि-कुमरु अह ससि-विमल-कलहं कलावि अ-चुक्कु ॥ . [२१७७] गंतु सालहं जूययाराण परिकीलिवि कं-चि खणु कोडि एग कणयह जिणेप्पिणु । वियरेविणु मागहहं निव-विहीए भोयणु करेप्पिणु ॥ जा परिकीलइ कं-चि खणु ता तमु पुरह पहुस्सु । परिसाहिउ नेमित्तिइण जह तुह नाह अवस्सु ।। २१७३. १. क. तहि. 2010_05 Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२१७८ नेमिनाहचरिउ [२१७८] मरणु हविहइ सउरि-नंदणह हत्थेहिं ता नरवरिण निय-नरेहिं निरु संगहाविवि । मोयाविउ गिरिवरह गरुय-सिहरि एगहं चडाविवि ॥ निवडंतउ पुणु अद्ध-पहि अल्लिवि वेगवईए । निउ हिरिमंति सु-तिथि वर- संगमि पंच-नईए ॥ [२१७९] ता पयंपिउ पुरउ तमु - नाह तुह वइयरु सयल मई मुणिउ निय-विज्जाणुहाविण । अज्जं तु नहंगणिण वच्चिरीए हय-विहि-निओइण ॥ काउस्सग्गिण ठिउ महिहिं अक्कमियउ मुणि एगु । तयणु पलीणउ सयलु मह विज्ज-सत्ति-अइरेगु ॥ [२१८०] ___ इय अ-सक्किर नहिण वच्चेउ परिचिहुं धरणि-गय जाव ताव तुहूं इत्थ मिलियउ वसुदेवु वि अणुक्कमिण गयउ तावसासमि स-दइयउ ॥ अह अन्नय सह भारियहं सरियह तीरि पहुत्तु । नाग-पास-वद्धउं नियइ तरुणी-रयणु रुयंतु ॥ [२१८१] अह गहेविणु वेगवइ पुच्छ परिछिदिवि वालियह नाग-पास वसुदेव जंपइ । नणु सुंदरि को णु इहु वइयरु त्ति मह कहसु संपइ ॥ अह दीहुण्हुस्सास-बस- परिसुसंत-अहरिल्ल । वसुदेवह सविहिहिं कहइ दुहई सयल नियइल्ल ॥ २१७९ ६. क. काउसग्गिण. ____ 2010_05 Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८५ ] नवमभवि वसुदेववुत्तंतु जहा [२१८२] धरणि-मंडणि गिरिहिं वेयड्ढि सिरि-गयणवल्लहि नयरि विनमि-निवइ-वंसम्मि बहुइहिं । उदिओदिय-परक्कमिहिं अइगएहिं खयरिंद-तणइहिं ॥ संजायउ खयराहिवइ विज्जुदाम-अभिहाणु । तेण य गच्छंतिण नहिण उवसम-लच्छि-निहाणु ॥ [२१८३] काउसग्गिण ठियउ मुणि एगु उवसग्गिउ वहु-विहिहिं तयणु तस्सु उवरिम्मि रुहिण । धरणिंदिण अवहरिय विज्ज-सत्ति सयल वि पउट्ठिण ॥ ता खयरिंदिण अणुणइउ लग्गिवि पय-पउमेसु । जंपइ धरणाहिवइ जह केसु वि मंत-पएसु ॥ [२१८४] तुज्झ कुलह वि सिद्धि हविहइ न उ रोहिणि-पमुह-गुरु- विज्ज-विसइ इय भणिवि पुणु पुणु । धरिणिंदु स-ठाणि गउ विज्जुदाढ-खयराहिवो उणु॥ चिट्टइ निय-दुक्कय-हयउ आणिय-स-कुल-कलंकु । वालचंद-अभिहाण पुणु हउं तसु धूय अ-संकु ॥ [२१८५] मुणिय-लक्खण-छंद-साहिच्चसर-नट्ट-वाइत्त-विहि गहिय-विज्ज-वर-मंत-सत्थय । आराहिय-गुरु-चलण समुवलद्ध-असमाण-विज्जय ॥ जा परिसीलहुं विज्ज-विहि ताव नाग-पासेहिं । वंधेविणु हउं विहुर-तणु कय भुयगह पासेहिं ॥ २१८२. ४. क. ख. पक्खमिहिं. २१८५. ३. क. गहिए. ____ 2010_05 Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ [२१९४ [२१९४] देवु धम्म वि गुरु वि पर-भवु वि अ-गणंतउ भणिउ मई भद्द भद्द करि धम्म-कम्मई । मा निवडिवि भव-गहणि सहसि दुहई न लहसि य सम्मई ॥ ता जंपिउ पाविण इमिण अ-वियाणिय-तत्तेहिं । कि वा मोहिउ सुह-मिसिण तं पि हु पहु धुत्तेहिं ॥ [२१९५] नत्थि धम्मु वि न य अहम्मो वि नो सुकय न दुक्कय वि ता किमित्थ गुरु-देव-धम्मिहि । परिचिट्ठइ जगु सयलु पंच-भूय-समुदाय-कम्मिहि ॥ जा जीविज्जइ ता मुहिण नत्थि मरण-समु सत्तु । इंगालीभूयह मयह जियह पुणागमु कत्तु ॥ [२१९५] इय पयंपिरु विविह-जुत्तीहिं पडिसिटूटु विन-वि मुयइ जाव कह-वि कुग्गहु नियल्लउ । निद्धाडिउ ताव मई एहु जइ वि अइ-खरउ भल्लउ ॥ तेणं चिय वइरिण इह वि एयह छिन्नउ पाउ । तारिस-कम्मिण पुणु असुरु लोहियक्खु इहु जाउ ॥ [२१९७] इय सुणंतह लोहियक्खस्सु संमत्त-चिंतारयणु जाउ तम्मि देसम्मि पत्तह । सेट्ठी वि सुणेवि इहु सुमरणत्थु स-महिस-चरित्तह ॥ कारावइ विच्चिवि दविणु तिणि देव-हरयाई । महिमु ति-खुरु एगई अवरि मिगधय-मुणि-रूवाई ॥ ____ 2010_05 Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२०१] ५०१ नवमभवि वसुदेववुत्तंतु [२१९८] देवउलियहि पुणु तइज्जाए मज्झम्मि कारावियउं नियय-रूवु सह ति-खुर-महिसिण । अवलोएऊण पुणु ताइं तिन्नि देवउल सउरिण ॥ पुढउ कसु वि तहाविहह नरह सविहि वुत्तंतु । तेण वि साहिउ तमु पुरउ सयलो वि-हु पुव्वुत्तु ॥ [२१९९] तह पयंपिउ एहु वंसम्मि तमु सेहिहि हुयउ इह कामदत्त-अभिहाणु वणि-वरु । वंधुमई नाम तमु धूय अत्थि अह मयण-मंदिरु ॥ वत्तीसहि दढ-अग्गलहिं अग्गलियउं जो को-इ । उग्घाडेइ कहं-चि सु जि बंधुमइं परिणेइ ॥ [२२००] इय निवेइउ अत्थि एगेण नेमित्तिय-माणविण सुणिवि एहु वसुदेवु सायरु । उग्घाडइ तक्खणि विनिय-करेहिं तं मयण-मंदिरु ॥ एत्थंतरि तहिं आगयउ मयणह पूयण-हेउ । सो च्चिय वणि-वरु कु सु कुमरु कामएव-कुल-केउ ॥ [२२०१] तयणु सउरिहि दिन्न निय कन्न तेणावि महा-महिण सा तहेव तत्थेव परिणिय । वंसम्मि मिगधयह एणिपुत्तु हुउ तसु वि जणणिय ॥ स-कइण जलगप्पह-सुरह घरिणित्तिण संजाय । तीए पसाइण निवह तमु अ-पयट्टत-अवाय ॥ ____ 2010_05 Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०४ [२२१० नेमिनाहचरिउ [२२१०] कंठ-कंदल-लुलिर-नर-मुंड पुरिसहि-मालिय-विहिय- सयल-अंगुवंगिल्ल-मंडण । वसुदेविण वाल इग दिट्ठ तयणु संभंत-नयणिण ॥ पुच्छिय तावस जह किह णु एरिस वालिय एह । चिट्ठइ रूविण एरिसिण इय पसिऊण कहेह ॥ [२२११] ता पयंपिउ वुड्ढ-तावसिण एगेण - महा-पुरिस एय अस्थि गरुयर कहाणिय । तह वि-हु सुणि एग-मणु जह कहेमि हउँ जह वियाणिय ॥ सिरि-जरसंध-नराहिवइ- कुल-नहयल-ससिलेह । नंदिसेण-अभिहाण सिरि- जियसत्तुहु पिय एह ॥ [२२१२] कवड-वेसिण कूड-विज्जेण परिवायग-माणविण किण-वि कह-वि चिट्ठइ वसीकय । ता अवगय-वइयरिण निविण हणिउ सो एह इहागय ॥ एवं-विहु भूसणु करिवि परिवायग-अट्ठीहिं। चिट्ठइ सोय-जलाविलिहिं परिमिलाण-दिट्ठीहि ॥ [२२१३] अह खणेण वि सयलु वसियरणु उत्तारिउ वालियह नियय-सत्ति-जोगेण सउरिण । वसुदेवु वि तहिं धरिउ तवसि-जणिण कय-साहुकारिण ।' ता जियसत्तु-नराहिविण अवगय-वुत्तंतेण । सद्दावेविणु सउरि निय- मंदिरि स-निउत्तेण ॥ २९१३. ४. क. धरि. ___ 2010_05 Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२१७ ] नवमभवि वसुदेववुत्तंतु [२२१४] देइ स- वहिणि उमर - नाम पसरंत महसविण अह डिंभग-नाममिण जंपिउ जह जिण विथरिय निय-कुल- नहयल-ससिपहह [२२१५] सो जयस्तु वि. परम-उवयारि अ-विलंविण पेसवसु अह कंचण-रहि चडिवि भणिवि - जरासंध्रेण तुहुं अज्जु वज्झु आणत्तु । परिवेढेविणु चउ-दिसिहिं असिहिं हणिउमाढत्तु । सुइ-मुहुत्ति हरिवंस-तिलयह । * नरिण पुरउ जियसत्तु - रायह ॥ जीविउ तुज्झ पियाए । नं दिसे - नामा ॥ नरनाहह जह - किह णु अह जंपहि इयर जह को-विजु करिहइ सञ्ज-तणु तसु नंदण तुह होहिसइ तिण आयरिण आता हि इय 2010_05 सन्निहाणि जरसंघ - निवइहि । चलिउ सउरि जा ताव सुहडिहि ॥ [२२१६] तणु पणिउ भडिहिं जियसत्तु हु व आण देविण । हिउ पहुहु नेमित्ति - पुरिसिण ॥ नंदिसेण तु धूय । नूण कर्यंत दूय ॥ [२२१७] इय सुणेविणु मुणिय- निय-धूय पत्थुयत्थि जरसंघ - निवइण || निहणिय इहु अज्जु अइरिण || एत्थतरिक्त कि तहं सयलहं वि भडाहं । अवहरिण [ पहाव हि ] नीउ मज्झ खयराहं ॥ * The portion from 2214 5 to 22184 is dropped in ख. २२१७. ८. The letter between पहाव and हैं. is wiped out in क. i. e. it is पहाव हं. ૪ ५०५ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२२१८ नेमिनाहचरिउ [२२१८] अमर-मंदिर-रिद्धि-चोरम्मि सिरि-गंधसमिद्धि पुरि दलिय-सयल-रिउ-राय-दप्पह । गंधारपिंगल-निवह सन्निहाणि निययस्सु वप्पह ॥ तेण वि आणंदिय-मणिण सुह-मुहुत्ति निय-कन्न । सा पसरंत-महूसविण सउरि-कुमारह दिन्न ॥ [२२१९] अह ललंतउ तीए सह दछु वसुदेवु देव्वह वसिण सुप्पगेण तेणेव पाविण । हरिऊण गोदावरिहि नइहि तीरि परिखित्तु वेगिण ॥ इयरो वि-हु तरिऊण नइ सज्जण-कमल-सरम्मि । सुकय-सेन्न-परिवारियउ गउ कोल्लाग-पुरम्मि ॥ [२२२०] तत्थ पुण सिरि-पउमरह-रायकुल-गयण-मयंक-पह पउम-वयण पउमसिरि-नामिय । परिणेइ महा-महिण सउरि-कुमरु निय-जणय-दिनिय ॥ अह चंपा-सरवरि खिविउ हरिवि नीलकंठेण । तत्थ वि परिणइ निव-दुहिय सलिलु तरिवि हरिसेण ॥ [२२२१] अह तिसेहर-सुइण तेणेव । सामरिसिण सुप्पगिण पुण-वि हरिवि सुर-सरिहिं खिवियउ । तत्तो वि-हु उत्तरिवि गुरु-अरन्नि पल्लीए सु गयउ ॥ तत्थ वि परिणइ पल्लिवइ- कन्नय जराकुमारि । तीए सह वट्टइ विसय- सुह-रसि पंच-पयारि ॥ २२१८.७. क. सुहु. २२१९. १. क. ललंत; ८. क. परिवारिउ. २२२१. ३. क. पुणहि. ७. क. कन्न. ____ 2010_05 Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०७ ५०७ २२२५ ] नवमभवि वसुदेववुत्तंतु [२२२२] कमिण जायउं तीए सुय-रयणु नामं च विइन्नु तसु जरकुमार इय जगि पसिद्धउं । वसुदेविण पुणु भुवण- भरण-दक्खु जसु पउरु लद्धउं ॥ अह अवंतिसुंदरि तयणु सूरसेण हरिणच्छि । ता निव-कन्नय जीवजस वीवाहेइ मयच्छि ॥ [२२२३] एम्व वहुविह-सेटि-सत्थाहसामंत-नराहिवइ- खयरराय-कन्नय-सहस्सई । परिणंतु अरिहपुरि पत्तु दिसिहि भामिरु स-जस्सई ॥ तत्थ य तइयहं आसि सिरि- रुहिर-नामु नर-राउ । तस्स उ मित्ता नाम पिय तेसिं पुणु संजाउ । [२२२४] सुकय-जोगिण सुउ हिरण्णाभअभिहाणिण विस्सुयउ तह अणेग-गुण-रयण-धरणिय ।। नीसेस-कला-कुसल रोहिणि त्ति अभिहाण कुमरिय ॥ कयइ सयंवर-मंडवइ •तसु कुमरिहि पाउग्गि । मिलियइ सिरि-जरसंध-निव- पमुहि नराहिव-वग्गि ॥ [२२२५] गुरु-कुऊहल-वसिण कय-रूव परिचत्तु आउज्जियहं मज्झि होउ करि पणवु घेप्पिणु । जा वायइ सउरि वहु- विहिहिं सुरहमवि मणु गहेप्पिणु ॥ ता तत्थागय रंभ-रइ- लच्छिहिं सोह हरंत । सा रोहिणि कन्नय वि दिह- सहि-विदिण सोहंत ॥ २२२५. ७. ख सियह. ___ 2010_05 Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२२२६ नेमिनाहचरिउ [२२२६] ___ अह पुर-ट्ठिय-अवधाईए सव्वे वि नरिंद-सुय रोहिणीए पिहु पिहु निदंसिय । न-उ कत्थ-वि रोहिणिहिं निव-कुमारि दिहि वि निवैसिय ॥ एत्थंतरि पणवह रविण हरि-वंसह सिरि-केउ । गाढ-चमक्किय-विवुह-मणु पढइ फुडक्खरु एउ ॥ [२२२७] हरिण-लोयणि तुरिउ आगच्छ पेच्छेमु निद्धिच्छणिहिं मज्झ एहु सम-विडवि सहलस । तुह संगम-समूसुयउ लोउ एहु इय निरु निहालसु ॥ अह जा तं रोहिणि नियइ ता तमु तहिं तह लीण । दिहि कह-चि वि जह हवइ वालिज्जंती वीण ॥ [२२२८] तयणु लोयण-कहिय-मग्गेण सा वाल सउरिहि सविहि गइय गरुय-अणुराय-विहुस्यि । तयणंतरु पुर-अररि- गुरु-उरम्मि तमु स वर-मालिय ॥ तीए तह परिखित्त जह वियलिय-कज्न-क्पिार । खण-मित्तेण वि हुय सयल वसुहाहिवइ-कुमार ॥ [२२२९] भणहिं पुणु परिफुरिय-आडोव सविहम्मि रुहिरह निवह अहह किह णु तं-पि-हु उवेक्खिसि । सरिया इव नीय-गइ दुहिय अहव कि न बरु वि पेवखसि ॥ जइ वा वहुइण किमियरिण इमहं नरिंदह मजिस । वियरसु कसु वि नराहिवह दुहिय म विहल निशि ॥ ____ 2010_05 Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६३] नवममधि वसुदेववृत्तंतु [२२३०] ___ इय भणंत वि के-वि निंदंति तं तरुणी-रयणु कि-वि अवगणंति जायव-विहूसणु । कि-वि हीलहिं रुहिर-निवु देंति के-वि सयलहं वि दूसणु ॥ एत्थंतरि सउरिण भणिउ किं इह रंडा-राडि । हवइ परिक्ख भडाहं नणु पविसंतह रण-वाडि ॥ [२२३१] _इय मुणेविणु कसु-वि जइ अल्थि सामत्यु किं-चि वि भडह ता गहेवि करवालु हल्थिण । सु जि पयडीहवउ मह सविहि किं नु सुत्थयहं सत्थिण ॥ भुय-दंडेसु जि वहइ वलु भडहं न-उण वायाए । इय सउरिहिं वयणई सुणिवि तुइ तहि विलयाए । [२२३२] कोव-कंपिर-काय नर-राय सव्वे-वि-हु सन्नहिवि दुक्क दप्प-दछुट्ट-पल्लव । वसुदेव-रुहिरा वि तहं समुहिहूय तड्डविय-सेल्ल व ॥ एत्थंतरि दहिमुह-खयरु निय-रहवरु गिण्हेवि । वेगवइ वि अंगारवइ- सहिय विलंबु चएवि ॥ [२२३३] पत्त सउरिहि सविहि अह देव्य कोदंड तूणीर सर वियरिऊण जपंति अइरिण । रह-रयणि समारूहिवि दलसु दप्पु सयलहं वि वइरिण ॥ तयणु करेविणु सारहिउ दहिमुहु खयर-कुमारु । सयमारुहिउण रह-रयणि सो जायव-कुल-सारु ॥ २२३१. ९. क. तुहह. २२३२. ८. क. वेगवइहि. ____ 2010_05 Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२२३४ नेमिनाहचरिउ [२२३४] रुहिर-नरवइ-विहिय-साहज्जु समरंगणि पविसिउण दलइ दप्पु वहु-लक्ख-संखहं । कर-कलिय-महाउहहं समरि समुहु एंतहं विवक्खहं ॥ किं पुण रुहिर-नराहिवइ गंजिउ किं-चि परेहिं । अह एगागि वि सउरि पर- वलि वरिसेइ सरेहिं ॥ [२२३५] ता खणेण वि घण व पवणेण वसुदेविण एगिण वि विमुह विहिय रिउ-राय सयलि वि । अह गरुय-मडप्फरिण स-वलु सत्तुजय-निवइ वालिवि ॥ जंपइ वसुदेवह पुरउ अरि अरि रणि म मरेसु । मह वयणेण वि गंतु घरि जणणिहिं हरिसु करेसु ॥ _ [२२३६] तयणु जोइवि समुहु स-विलासु ईसीसि विहसिवि सउरि भणइ अहह एरिसिहि वयणिहि । तुहं मेइणि नाह धुवु रंजवेसि मणु नियय-परिणिहि ॥ रंजिज्जति भडाहं मण पुणु पुरिसक्कारेण । वाइण मग्गण विवुह पुणु अणह-वयण-पसरेण ॥ _[२२३७] इय पयंपिर दो-वि रणवीर जुझंति उज्झिय-करुण वहु-वियप्पु किं पुण खणद्धिण । वसुदेविण हणिउ रिउ पत्त-कित्ति गुरु-गुण-समिद्धिण ॥ अह पयडिय-अमरिस-पसरु दंतवक्क-नरनाहु । पविसइ सह सउरिण समरि पउरिण वलिण सणाहु ॥ २२३५. ५. सवल; रालिवि २२३६. ४. क. तुंहु. ___ 2010_05 Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५११ २२४१ ] नवमभवि वसुदेववृत्तंतु [२२३८] किंतु तिण सु विगलिय-संरंभु मुसुमरिय-समर-रसु तसिय-चित्तु संपत्त-अवजसु । संगहिउण निय-करिहिं खिविउ महिहिं उत्तसिय-माणसु ॥ तयणंतरु उहिउ सयल- दुज्जण-माणस-सल्लु । तसु वसुदेवह सम्मुहउ कुविउण नरवइ सल्लु ॥ [२२३९] तयणु सउरिण सो वि विद्दविउ अच्चंत-महल्लउ वि वण-करि व्व केसरि-किसोरिण । अह मगहाहिविण जरसंध-निविण गुरु-खोह-पसरिण ॥ आइहउ तिण सहुं समरि समुदविजय-धरणिंदु । अह रवि-उदयम्मि व सउरि वियसिय-मुह-अरविंदु । [२२४०] करि धरिप्पिणु दिव्वु कोदंडु संधिप्पिणु दिव्वु सरु दलिवि दप्पु तसु वलह सयलह । साणंदु समुल्लवइ सविहि समुदविजयह भुवालह ॥ जह – वसुहाहिव किं इमिहिं कीडय-सम-सत्तेहिं । चल्लि-न अभिडहुं दुवि वि निय-निएहिं गत्तेहिं ॥ [२२४१] अह रणंगणि दो वि वग्गंति पहरंति दो-वि-हु सुइरु पुरिसयारु दो-वि-हु पयंसहि । रंजंति सुहडहं मणइं दो-वि दो-वि निठुरउं भासहि ॥ किं पुण पहरइ निक्करुणु समुदविजय-नरनाहु । वसुदेवो उण तमु जि सर छिदइ अकयावाहु ॥ 2010_05 Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१२ कमिण पुणु सव्वे - वि पहीण अह अवलोsवि निय-हिययपच्छुत्ताव-दवानलिण पुव्व-लिहिय- अक्खरु मुयइ नेमिनाहचरि [२२४२] सर समुदविजयस्तु जाय - Tor - वेलक्खु निवइ सु । नीहरंत नीसेंस - अमरिसु ॥ । परिउज्झिर - सव्वंगु सरु जायव-कुल- चंगु ॥ [२२४३] समुदविजयस्तु तह जहा त पय-अग्गिय निवडियउ तयणु तेण विम्हइय- हियइण । संगवि सरु नियय- पाणिण ॥ अवलोइय- अक्खरिण समुद विजय- नरनायगिण पढमु विभाविय - चित्ति । अह वाइय गहिर - स्सरिण एरिस अक्खर पंति ॥ जहा [२२४४ ] तुम्ह कणिट्ठो भाया छलेण जो निग्गओ अहेसि घरा । सो वरिस साओ इह आगंतु नमेइ वसुदेवो ॥ ―――― [२२४५ ] अहह जायव - चंस - जस-कलस नर-रयण विउज्झिउण इय चिंतिरु पुणु पुणु वि उत्तरिउण निय-रहवरह इयरु वि नियय-सरूव-धरु स-हरिसु गुरु वंधुस्सु ॥ 2010_05 Tas कत्थ सामत्थु निरुवम् । समुदविजय नरवई स-संभमु ॥ चलिउ समुह सउरिस्सु । [२२४६] सविहि वेगिण गंतु पय- पउम पणमिप्पिणु भत्ति भरु लहु-बंधुहु दुव्विणउ मह वंधव जयवंतु हुउ दुव्विणउ वि जइ खलहं परि २२४६. ७. क. तुहु. ख. तुहं. भणइ भाय मरिसेज्ज सयल वि । समुदविजउ पुणु भणइ विहल कि ॥ तुह दंसणि रण - रंगु । गउ अलग तुह संगुः ॥ - [ २२४ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२५० ] नवमभवि वसुदेववृत्तंतु [२२४७] इय निरिक्खिवि रुहिर-नरनाहपमुहाखिल-निव-निवह हरिस-भरिण मायहिं न पुहइहिं । तरुणी इव सउरि-गुण- रयण-माल धारहिं स-हियइहिं ॥ मागह-गणु पुणु गुण-लवु वि लेइ न इयर-भडाहं । पहिं सज्जण जह - चडइ को-इ न सउरि-वडाहं ॥ [२२४८] तयणु सउरिण गरुय-हरिसेण असमाण-महूसविण तरुणि-रयणु रोहिणि विवाहिय । संपत्तावसरु निय- सुह-दुहाई भायहं पसाहिय ॥ अवरो उण नरवइ-निवहु निय-निय-ठाणि पहुत्तु । रुहिरवरोहिण सउरि ठिउ तहिं रोहिणि-संजुत्तु ॥ [२२४९] अवर-अवसरि सुकय-जोगेण चत्तारि महा-सिविण नियवि निसिहिं सहसत्ति उहिय । सिरि विरइय-पाणि-पूड कहइ देवि दइयस्सु तुहिय ॥ सउरी उण पभणइ - सुयणु निय-कुल-नहयल-चंदु । हविहइ तुह नंदण-रयणु सुयण-भमर-अरविंदु ॥ इओ य [२२५०] आसि कत्थ वि पुर-विसेसम्मि दो वंधव सरिस-सुह- दुक्ख सुदढ-नेहाणुवंधय । अवरम्मि दियहि गय काणणम्मि ता गहिय-कट्ठय ॥ सगडारूढ गिहागमिर मग्गि महोरगि एग । गंडाहर-निवडिय नियहिं दो-वि ति विसम-विवेग ॥ २२४७. ३. क. पुइहिं. ___ 2010_05 Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ [ २२५१ [२२५१] तयणु जेट्ठिण भणिउ - अरि रक्खि सुह-मुत्त महोरगिणि ता कणिठु पभणेइ - निसुणहि । कसरक्कउ जारिसउ हवइ चक्क-चंपियहि एयहि ॥ चोएइ य संदण-वसह तह जह कसरक्केण । चक्किण चंपविणु निहय झत्ति महोरगि तेण ॥ [२२५२] अह तहाविह-स-कय-जोगेण एगम्मि महा-नयरि उरगि पवर-सेहिस्स कन्नय । संजाय जोव्वण-समइ तिण वि पवर-वणियस्सु दिन्नय ॥ ते-वि-हु तेसिं वि-य ललिय- गंगएव-अभिहाण । जाया दो-वि-हु अंगरुह निय-सुह-असुह-निहाण ॥ [२२५३] किंतु जेट्टउ तणउ तर्हि इछु अच्चंत-अणिटु लहु इय स जयइ तसु हणण-कज्जिण । इय मुणिउण दूरयरि घरि विमुक्कु तो नेउ जणइण ॥ अवरम्मि उ वासरि हुयइ गरुयइ पव्व-विसेसि । पिउ-चयणिण उवविसिवि निय-मंदिर-दार-पएसि ॥ [२२५४] गंगए० सु जाव भुंजेइ ता जणणिहिं सच्चविउ तयणु पुव्व-भव-भावि वइरिण । निस्सारिउ अमरिसिण धरिवि पइहि निय-घरह दारिण ॥ अक्कोसिउ नाणा-विहिहिं निहणिउ विविह-पयारु । एत्थंतरि तहिं आगयउं मुणि-जुयलउं जय-सारु । २२५१. ८ क. नियह. ____ 2010_05 Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२५८ ] नवमभवि वसुदेववृत्तंतु [२२५५] तयणु जणइण जिट्ट-बंधुण वि मुणि एगु नमंसिउण पुठ्ठ - कहसु केरिसिण वइरिण । इह एयह सुयह निरु अवगरेइ एरिस-पयारिण ॥ तयणु नाण-दिणयरु सु मुणि साहइ तेसि अ-सेसु । पुव्व-जम्म-संचिउ दुसह- वइयरु वइर-विसेसु ॥ [२२५६] अह ति वंधव दो-वि दढ-नेह वेरग्गिण तेण तहि मुणिहि सविहि निक्खंत तक्खणि । वहति य एगग्ग-मण चरणि जणिय-सिवमग्ग-सम्मणि ॥ अह दोहग्गिण दूमियउ गंगएवु अंतम्मि । कुणइ नियाणउं जय-असम-सोहग्गह विसयम्मि ॥ [२२५७] आउ-कम्मह अंति ते दो-वि मरिऊण महिइढि सुर हूय तयणु सुकयाणुहाविण । उवभुंजिवि तियस-गिह- उचिय-सुहई निय-ठिइहिं अंतिण ॥ रोहिणि-कुक्खिहिं अवयरिउ सिविणुवलंभ-खणम्मि । ललिय-तियसु अणुकमिण पुणु निरुवम-लग्ग-दिणम्मि ॥ [२२५८] ललिय-लक्खणु दित्त-कंतिल्लु निय-वंसह जस-कलसु तणय रयणु पसवेइ रोहिणि । समयम्मि य नंदणह नाम-करण-महिमाए कारणि ॥ सद्दावेविणु सुहि-सयण पयडिवि तह सम्माणु । रामएयु इय विस्सुयउं दिण्णु सुयह अभिहाणु ॥ ___ 2010_05 Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२२५९ नेमिनाहचरिउ [२२५९] अवर-वासरि वाल-चंदाए पुवोइय-वालियइ धणमइ त्ति नहयरि पठाविय । तसु जायव-कुल-गयण- ससिहि सविहि वेगेण आविय ॥ भणइ य जह – तइयह ज तई तोडिय-नाग-प्पास । वालचंद-नामिय-खयरि किय कय-जीविय-आस ॥ [२२६० सा भणावइ वेगवइ-सहिय आगच्छह पहु पसिय को-वि कालु वेयड्ढ-सिहरिहिं । पुरि गयणवल्लहि तयणु भणिउ निविण सह खयर-कुमरिहिं ॥ नहयल-मग्गिण आगयउ सउरि-कुमारु खणेण । तयणतरु खयराहिविण सिरि-कंचणदाढेण ॥ [२२६१] नियय-कन्नय वालचंद त्ति तसु वियरिय आयरिण तयणु वेगवइ-वालचंदर्हि । सह रयण-विमाण-ठिउ पढिय-कित्ति वह-वदि-विंदहि ॥ परिगिण्हइ पसरत-बहुविह-गुण-रयण-निहाण । सिरि-दहिमुह-नहयर-भइणि- मयणवेग-अभिहाण ॥ [२२६२] तो सीहदाढ-धृयं नीलजसं असणिवेग-सुय-सामं । गिण्हइ पियंगुसुंदरि-बंधुमईओ य सावत्थि ॥ [२२६३] निव-सोमदत्त-धूयं महापुरे गिण्हए य सोमसिरिं । इलवद्धणम्मि नयरे सत्थाह-सुयं च रयणवइं ॥ [२२६४] भदिलपुरम्मि पुंडं जयपुर-नयरम्मि आससेणं च । सालगुहा-पउमसिरि कविलं पुण वेयसाम-पुरे ॥ ___ 2010_05 Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२७३ ] नवमभवि वसुदेववुत्तंतु [२२६५] वणि-दुहिय-मित्तसेणं अयलग्गामम्मि गिण्हए तत्तो । तिलसोस-संनिवेसे गिण्हइ कन्नाणं पंच-सए ।। [२२६६] गिरितड-गामे गिण्हइ सोमसिरिं वच्चए तओ चंपं । गंधव्वसेण-भज्जं अमच्च-धृयं च गिण्हेइ ॥ [२२६७] सुग्गीव-जसोग्गीवाण पुव्व-परिणीय दोन्नि धृयाओ । तत्थेव गिहिऊणं गओ पुरे विजयखेडम्मि ॥ [२२६८] सामं च विजयसेणं गिहिउं गिण्हए य केउमई । पउमसिरि कोल्लउरे तओ जरं पल्लि-नाहस्स ॥ [२२६९] तत्तो अवंतिसुंदरि-जीवजसा-सूरसेण-पमुहाओ । घेत्तूणं भज्जाओ रयण-सुवन्नय-समिद्धाओ ॥ २२७०] उज्जोयंतो गयणं विज्जाहर-सेण्ण-परिगओ सउरी । सोरियपुरम्मि पत्तो परमाणंदेण वंधणं ॥ [२२७१] वद्धावणयं विहियं गरुय-पमोएण जायवेहिं तओ । भज्जाहिं समं कीलइ सउरी कंसेण य पहिट्ठो ॥ [२२७२] तयणु कंसिण महुर-नयरीए वसुदेवु नेहिण नियउ तत्थ निच्चु कीलंति ते दु-वि । अवरम्मि उ दिणि सउरि कंस-निविण साणंदु पभणिवि ॥ परिणाविउ देवय-निवह कन्नय देवइ नाम । तसु बद्धावण-महि हुयइ परितोसिय-पुर-गाम ॥ [२२७३] तहिं य अवसरि कंस-लहु-बंधु अइमुत्तय-नामि रिसि पत्तु भमिरु गोयरिय-चरियहं । धवलहर-दुवारि अह समुहिहूँय-भव-भावि-दुरियहं ॥ मइरा-मय-भर-पाडलिय- नयण सिढिल-धम्मिल्ल । ल्हसिर-नियंसण रणरणिरि- रसणावलि-सोहिल्ल ॥ २२६५. २. क. तिलसोस corrected as तिलसेस; ख. तिलसोस. ____ 2010_05 Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१८ [२२७४ नेमिनाहचरिउ [२२७४] पवण-चंचल-कमल-दल-नयण परिकंपिर-अहरदल- पाणि-पाय पीवर-पओहर । पिहु-जहण-नियंव-थल परिल्हसंत-उत्तरिय-अंवर ॥ कंठि विलग्गिवि जीवजस अइमुत्तयह रिसिस्सु । पभणइ - अवसरि आगयह मरहुं मरहुं दियरस्सु ॥ [२२७५] गीय-वाइय कुणसु तुहुं अज्जु हउँ नच्चिसु तुह पुरउ इय भणंत कहमवि न विरमइ । न य कंठ-नालु विमुयइ जाव ताव महरिसि पयंपइ ॥ धिसि घिसि पाविणि जीवजसि जीए महि नच्चेसि । सत्तम-गम्भिण तीए तुहुं हय-जणय-प्पिय होसि ॥ [२२७६] इय सुणंति विगलिय-मय-वेग भय-कंपिर-पीण-थणवह मुइवि जीवजस महरिसि । परिसाहइ एहु सिरि- कंस-निवह अह सो वि अ-सरिसि ॥ भय-जलहिम्मि निवुड्ड-तणु सिरि-वसुदेवह पासि । जाइ तयणु सउरिण भणिउ कज्ज-विसेसु पयासि ॥ [२२७७] ____ता पयंपिउ कंस नरवरिण वसुदेवह सविहि जह सत्त गब्भ देवइहि वियरह । अह अ-कहिवि देवइहि पत्थणत्थु अ-मुणेवि कंसह ॥ पडिवन्नउं कंसह वयणु वसुदेविण नीसेसु । एत्तो उण चिट्ठइ मलय- नामगु देस-विसेसु ॥ २२७७. ४. क. देवइवि. 2010_05 Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१९ २२८१ ] नबमभवि वसुदेववृत्तु [२२७८] तत्थ भदिलतिलय-अभिहाणि नयरम्मि अ-मिणिय-दविणु नागदत्त-नामोत्थि वणि-वरु । तसु उत्तिम-कंति-धर विणय-सील गुण-मणिहिं कुल-हरु ॥ जिणवर-धम्मुल्लसिय ससि-निम्मल-कित्ति-कलाव । सुलसा नाम अहेसि पिय परहुय-महुरालाव ॥ [२२७९] वाल-कालि वि तीए पुणु कहिउ केणावि निमित्तिइण जह – हवेसि तुहुं निंदु सुंदरि । तयणंतरु ससि-वयणि सा निसन्न एगत्थ जिण-हरि ॥ हरिणिगमिसि-सुरु मणि धरिवि ठिय काउस्सग्गेण । ता चल-कुंडल-आहरणु तहिं सु पत्तु वेगेण ॥ [२२८०] भणइ – वंछिउ वरसु हरिणच्छि ता मुलस समुल्लवइ निंदुयत्त-दुहु मह निहोडिसु । निंदुत्तणु विहिहि वसि तसु दुहाई पुणु हउं वि फेडिसु ।। अब्भुवगमिउण इय सुरु सु तह कहमवि-हु करेइ । जह देवइ सुलसा वि इग- दियहम्मि वि पसवेइ ॥ [२२८१] तयणु सुलसह जाय-मित्ता वि मय-नंदण अवहरिवि मुयइ नेउ देवइहि सविहिहिं । सुय तीए उण सुलस- सविहि नेइ निय-पाणि-पुडइहिं ॥ कंसु वि स-निउत्तय-नरिहिं मय-वालय आणेवि । उप्पायइ पुणु मणह मुहु सिलहं ति अप्फालेवि ॥ २२८१. ८. क. मह सुहु. 2010_05 Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२० [ २२८२ नेमिनाहचरिउ [२२८२] सुलस पुणु हरिणेगमेसेण जीवाविय मज्झ सुय इय मुणंत परम-प्पमोइण । कीलावइ अंगरुह वइहमाण-वहुविह-विणोइण ॥ पत्तावसरु कलायरिय- चलण-मूलि चिटंत । एए छस्संख वि कुमर पढहिं गुणिहिं उदयंत ॥ जहा - [२२८३] नामेण अणीयजसो पढमो वीओ अणंतसेणो त्ति । तइओ य अजियसेणो अभिणय-नामो उण चउत्थो ॥ [२२८४] देवजस-सत्तुसेणो पंचम-छट्ठा य रूव-वल-कलिया । सिरि-वच्छंकिय-वच्छा पाविय-सप्पुरिस-माहप्पा ॥ इओ य [२२८५] नियय-तणयहं मुहई अ-नियंत पेक्खतिय पुत्तवइ विलय-सहस चिहंत स-हरिम् । सिरि-देवइ-देवि निय- मणिण खेउ उव्वहइ अ-सरिसु ॥ झूरेइ य अप्पाणु जह हउं जि पाव जिय-लोइ । जा न मरहुं फुट्टिवि हियउं एरिसि तणय-विओइ ॥ [२२८६] इय सु-दुस्सह-दुक्ख-पब्भार आऊरिय-गल-सरणि गलिर-नयण जल-सित्त-वयणिय । कह-कहमवि उ अइगमइ काल को-वि सा हरिण-नयणिय ॥ अवरम्मि अवसरि निसिहि मज्झ-रत्त-समयम्मि । पेच्छइ सत्त महा-सिमिण सुह-निसन्न सयणम्मि ॥ 2010_05 Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२९० ] नवमभवि कण्हजम्मु ५२१ तं जहा [२२८७]] दरिउ कुंजरु फुरिउ हरि-पोउ पसरंतउ जलणु जय- जंतु-जाय-मणहारि सुर-घरु । महु-लुद्ध-महुयर-नियरु पउम-संडु उदयंतु दिणयरु ॥ तयणु महल्लउ परिकणिर- किंकिणि-जाल-रवन्नु । पेच्छइ पविसिरु मुह-कमलि सयल-सिविण-मुहवन्नु । [२२८८]. अह समुट्टिवि कहइ सउरिस्सु इयरो वि अस्थाणियहं उवविसेवि गुरु-हरिस-निब्भरु । निय-सिविण-पाढग-नरहं कहइ देवि-सिविणाण वित्थरु ॥ ते वि-हु एगत्तिण हविवि परिभाविवि सत्थत्थु । साहहि वसुदेवह सविहि एहु सिविण-परमत्थु ॥ [२२८९] नाह हविहइ तुज्झ सुय-रयणु भरहद्ध-वसुंधरह सामि-सालु संजमिय-दुज्जणु। जय-वज्जिर-जस-पडहु दुसह-तेउ सुहि-नयण-रंजणु ॥ अहवा किं इयरिण बहुय- विहल-वयण-जालेण । तुह हविहइ भुवणब्भहिउ नंदणु सुकय-फलेण ॥ [२२९०] तयणु पमुइउ स-पिउ वसुदेवु मुहि-सयण समुल्लसिय पगइ-लोगु अंगि वि न मायइ । सक्कारिय सिविण-वुह देवई वि निय-मणिण भायइ ॥ आयन्निवि सुय-रयण-गुण सरिवि कंस-वुत्तु । पेक्खिवि सत्त महा-सिविण तह रिउ-जणु आवतु ॥ २२८७. ९. सिमिण. ६६ ____ 2010_05 Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२२ नेमिनाहचरिउ [२२९१] अह सुसत्तम देव - लोगस्सु irea देवहि कुक्खिहिं । चविऊण सुरिंद-समु अवइन्न तय परिफुरिय-तेय चिंतेइ - अक्खिहिं ॥ जइ पेक्खिस्सइ वणिय-सुउ कंसाहमु सो पावु । ता हरिहइ मह अंगरुहु to चिर-परिचिय - गा ॥ [२२९२] जाइ वुढिर्हि पुणु विसेसयरु सो गन्भु कंसाहमिण आसोय-सियमहिं उच्च- द्वाण-परिट्ठियइ सोमग्गहिहिं निरिक्खियइ पुणु जम्मण लम्गमि ॥ 2010_05 [२२९३] पावसु य गह - विसेसेसु एक्कारसमम्मि पर संfore सव्वे यणिहिं । सिरि-वच्छ-लंछिय-वियड- वच्छु सहिउ गुण - सहसरणिहिं || पिसुण- पयासिय-दुव्विणय- तरु- उम्मूलण दक्खु । पसव देव - देवि सुय रयणु रूव सहसक्खु ॥ अहिवासिणि देवयहिं सद्दाविवि सउरि कयकंस - हयासह तमु कि हउं अहव कि कवि महाहवह विहिय- रक्खु निय-भडिहिं दक्खिहिं । गयइ चंदि पुणु सवण - रिक्खिहिं ॥ सयल-ग्गह- चक्कम्मि । [२२९४] सूइ-कम्मुवि विउ भरहद्ध तयणु रूव पिक्खेवि तणयह । को भणिउ देवि मोल्लिण किरिणिय दासि । तिण हउं रक्खिय आसि ॥ [ २२९१ वणिह ॥ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२३ २२९८ ] नवमभवि कण्हजम्म [२२९५] खेत्त-वइरु व पत्त-वइरु व्व मई समगु चिठेइ तसु गोत्तिओ व दाइउ व सो मह । अवरद्धउं किं व मई अत्थि तस्सु हय-वणिय-जायह ॥ जाय जाय गिव्हिवि हणइ जं मह सुय सो एम्ब । हम्महि रनि नि-नायगहं पसुहु तणूरुह जेम्व ॥ [२२९६] गरुय-विरिइ वि हय-विवक्खे वि परियाणिय-वइयरि वि नियय-दइय-सम-सुक्ख-दुक्खि वि। एगम्मि वि सुय-रयणि किं न करुण कय सामि नु मइ वि ॥ अहव किमनिण वित्थरिण एत्तिय करुण करेसु । एहु एगु सुय-रयणु मह गोउलि नेउ धरेसु ॥ [२२९७] तयणु एरिमु जुत्तु जुत्तु त्ति परिचिंतिरु जंपिरु वि सुत्ति कंस-परियणि समग्गि वि । अरिहंत-सिद्धहं करिवि थुइ-विसेसु उम्मग्गि लग्गिवि ॥ पाणि-पुडय-कय-सुय-रयणु सु सउण-साहिय-लाहु । अद्ध-भरह-देवय-धरिय- छत्तु सउरि नर-नाहु ॥ [२२९८] पुरउ जलिरिहि कणय-दीविहिं परिढलिरिहि चामरिहि कुसुम-पयरि मुच्चंति देविहि । गायंतिहि किन्नरिहि हरिस-वसिण पडिवन्न-सेविहि ॥ महुरह गोउरि जा गयउ ता चारय-रुद्धण । उग्गसेण-निवइण सउरि दिद्वउ विहिहि वसेण ॥ २२९८. १. क. ख. जलरिहि. ___ 2010_05 Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२४ [ २२९९ नेमिनाहचरिउ [२२९९] अह सु पुच्छिउ सवह-विहि-पुव्बु किं दीसइ अच्छरिय- भूउ एहु ता सउरि जंपइ । जो ठविही निवइ-पइ पोहु संतु इह तई जि संपइ । सो वच्चइ इहु सुय-रयणु किंतु न एहु रहस्सु । साहेयव्वउं कसु वि तइं जिय-अंते वि अवस्सु ॥ [२३०० तयणु अइरिण पुरह नीहरिवि उत्तरिउण जउण-नइ गोउलम्मि गंतूण स-हरिसु । तह नंद-जसोययहं पासि मुयइ सुय-रयणु अ-सरिसु ॥ किंतु सउरि सुय-जम्म-खणि जाय जसोयह धृय । आणिवि वियरइ देवइहि अह स स-तोसीहूय ॥ [२३०१] किं तु तक्खणि जाय-पडिवोह ते कंस-निउत्त-नर नंद-धूय उववेत्तु वेगिण । संपत्त कंसह पुरउ सो वि पावु वियलिउ विवेगिण । चिंतइ - वितहीहुउ वयणु अइमुत्तयह रिसिस्सु । जं किं हउं अवलह इमह हस्थिण हणिउ मरिस्सु ॥ [२३०२] तह नहग्गिण दलिवि नास-उड्डु मेल्लाविवि देवइहि सविहि वाल निस्संकु चिट्ठइ । ता नंद-जसोययहिं हरिसियाहिं वसुदेवि तुइ ॥ दियहि दुवालसि गोउलि य उचिय-महिण अभिहाणु । तसु कण्हो त्ति विइन्नु जय- जंतु-पमोयह ठाणु ॥ २३०१. ८. क. हउं. ____ 2010_05 Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३०६ ] नवमभवि कण्हवालत्तणु [२३०३] गिरिहि कंदरि कप्प-विड वि व्व सिय-पक्खि रयणीयरु व विगय-विग्घु सो जाइ वुड्ढहिं । ववएसु करेवि कु-वि देवई वि सु-सिणिद्ध-वुद्धिहि ॥ वच्चइ अंतर-अंतरिण तसु सुय-रयणह पासि । पेक्खिवि पुणु तसु रूव-सिरि भणइ स-पियह सयासि ॥ [२३०४] पावु किं मई अवर-जम्मम्मि परिसंचिउ जेण हउं पुहइ-तिलय-निय-सुय-विउत्तय । परिचिट्ठहुं पुत्तवइ नामु विहलु निय-मणि वहंतय ॥ अह वियरिय-थणु सुउ धरिवि खणु अप्पुणुहु सयासि । देवइ करुणु समुल्लविर मुयइ जसोयह पासि ॥ [२३०५] सउरि-देवइ-पमुहि पुणु लोइ निय-नियय-ठाणिहि गयइ भरह-अद्ध-वासिणि सुरंगण । परिवालहिं कण्हु कय- भत्ति-भाव अणु-दिणु वि इग-मण ॥ अह सुप्पणहिहि धूय दु-वि पूयणि-सउणी-नाम । सुमरिय-वसुदेवोवहय- जणय-जणिय-संगाम ॥ विस-विलिंपिय-नियय-थण-चीढ समुवागय हरि-सविहि ता खिवेइ थणु वयणि पूयण । सउणी उ विउव्विउण मुयइ सगडु कण्हह निसुभण ॥ ता हरि-रक्खग-देवयहं तेणं चिय सगडेण । निहय रडं तिय करुण-सरु गय पंचत्ति खणेण ॥ २३०६. ६. रक्खय. 2010_05 Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२३०७ नेमिनाहचरिउ [२३०७] हरिउ पुणु वि सु हरिहि वयणस्सु परितुट्ठउ गोवि-जणु कण्ह-वयणु चुवेइ पुणु पुणु । रिखंतउ हरि कह-वि वाल-हारु पालेइ सु-निउणु ॥ तह वि-हु तमु करयलह हरि मोयाविवि अप्पाणु । महिउ महंतहं गोवियहं कुणइ खीर-दहि-पाणु ॥ [२३०८] __ अह जसोयहं उयर-देसम्मि • उक्खलइण समगु हरि वंधिऊण परिमुक्कु दामिण । इय दामोयरु भणिउ जणिण तत्थ ता इमिण नामिण ॥ पयडीहूयउ जगि सयलि अजु वि सु सउरिहि पुत्तु । एत्थंतरि नियय-प्पियहु वह-वइयरिण विगुत्तु ॥ [२३०९] खयरु सुप्पग-नामु निय-विज्जसामत्थिण अज्जुणय-नाम-विडवि-जुयलउं विउविवि । हरि कलिउ वि उक्खलिण तरुहुँ मज्झ-देसम्मि आणिवि ॥ जाव निवायइ भीडिउण तेण वि विडवि-जुएण । तासु जि ताडिउ देवयहं तिण तह कहमवि जेण ॥ [२३१०] निहय-उत्तिम-अंगु परिगलिररुहिराविल-सयल-तणु नीहरंत-मुह-कुहर-रसणउ । उक्खडिय-नयणंदुरुहु दलिय-नासु परिभग्ग-दसणउ ॥ अज्जुणय-दुम-जुयलिण वि कलिउ पडिवि महि-वट्टि । दुसह-पहारिण विहुरियउ मयउ निमीलिय-दिहि ॥ २३०५. ५. पाल हाहु. ८. क. महंतह. 2010_05 Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३१४] नवमभवि कण्हवालत्तणु ५२७ [२३११] तयणु चुन्निउ सगडु कण्हेण खयरंगण दु-वि हणिय दलिय विडवि सुप्पगु निवाइउ । इय पसरिउ धरणियलि सुणिवि सउरि हरि-गरुय-भाइउ ॥ रोहिणि-देविहि अंगरुहु वलभदु त्ति पसिद्ध । कंसोवद्दव-रक्ख-कइ पेसइ गुणि हि समिद्धु ॥ [२३१२] अह सु पत्तउ हरिहि सविहम्मि जायम्मि य पढमयरि दसणम्मि सो को-वि पसरिउ । पडिवंधु दुवेण्हमवि जो न सक्कु सुरिण वि वियारिउ ॥ ता गेण्हइ वलि-सविहि हरि सदाइय-गणियंत । सयल-कलावलि अइरिण वि निय-नामु व दिप्पंत ॥ [२३१३] नील-उप्पल-दल-समाणम्मि कण्हम्मि निरिक्खियइ गोवि-वग्गु मयणग्गि-दुत्थिउ । तसु संगम-अमय-रसु लहिवि कह-वि जइ हवइ सुत्थिउ ॥ लायण्णामय-मइउ हरि जह जह वुइढि लहेइ । तह तह गोउलि गोवियहं मयणु मणाई दुहेइ ॥ [२३१४] कण्हु गोउलि कील कुव्वंतु तह कहमवि हरइ मण सह ललंत गोवीण वग्गह । जह नूण निमेसमवि न-वि चलेइ लायण्ण-मग्गह ॥ लग्गइ छलिण करंगुलिहि पक्खंतरिहि भमेइ । मयण-परव्वसु गोवियणु हरिहिं जि समगु रमेइ ॥ २३१२. १. हरिहिं; ३. क. दंसणं. ____ 2010_05 Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२८ नेमिनाहचरिउ [ २३१५ [२३१५] कहि नच्चिरि रामि गायंति गोवीयणि ताल-वु वियरमाणि गोवालि मिलियइ । तहि गोउलि को-वि रसु हवइ जो न कहिउं पितरियइ ॥ वालु व तरुणु व वुड्ढउ व पुरिसु व रमणियणु व्व । सो नत्थि च्चिय जु न भमइ हरिहि गुणिहिं रत्तु व्व ॥ इओ य [२३१६] धरणि-कामिणि-तिलय-सरिसम्मि सिरि-सोरियपुरि नयरि समुदविजय-नरनाह-भारिय । गुण-रयण-रोहण-वसुह पुहइ-लोय-कल्लाण-कारिय ॥ पणयागय-जय-कप्पलय उवसम-सिरिहिं समिद्ध । चिट्ठइ तरुणीयण-तिलय सिवदेवि त्ति पसिद्ध ॥ [२३१७] सा य जुण्ह व रयणि-नाहस्सु रंभ व्व सुराहिवह निय-पियस्सु अच्चंत-वल्लह । चिर-संचिय-सुकय-भर अकय-सुहहं दंसणि वि दुल्लह ॥ परिसेवंती विसय-सुह अइवाहेइ दिणाई । अह अन्नय चउदह नीयइ एह महा-सिमिणाई ॥ जहा[२३१८] गय-वसह-सीह-अभिसेय-दाम-ससि-दिणयरं झयं कुंभं । पउमसर-सागर-विमाण-रयणुच्चय-सिहिं च ॥ [२३१९] तयणु उढिवि समुद्दविजयस्सु सिर-विरइय-कर-कमल कहइ देवि सिविणइं अ-सेसि वि । तयणंतर तुट्ठ-मणु भणइ समुदविजयावर्णिदु वि ॥ जह - सुंदरि महि-कामिणिहि असम-विहूसण-हेउ । तुह धुवु हविहइ सुय-रयणु हरि-चंसह सिरि-केउ ॥ २३१५. ६. क. ख. तरुण. ____ 2010_05 Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२९ २३९३ ] नवमभवि नेमिजम्मु [२३२०] अह ति रयणिहि सेसु अगमहिं जिणधम्म-धम्मिय-कहहिं तयणु वंदि-विदिण पढंतिण । पसरंतइ मंगलिय- तूरि भिच्च-वग्गिण मिलंतिण ॥ पच्चूसम्मि समुट्ठिउण काउ गोस-कज्जाई । उवविसिउण अत्थाणियहं पिहु पिहु जह-जोग्गाई ॥ [२३२१] नियय-माणुस पेसवेऊण सदावइ सयल निय कोटगाइ-सिविणय-विसारय । कर-कलिय-पहाण-फल ते वि तत्थ वेगेण आगय ॥ जा ता उवसम-सिरिहिं परिगूहिय-अंगोवंगु । परिसीलिय-दस-विह-समण- धम्म-विसेसिण चंगु ॥ [२३२२] नियय-कंतिण हरिय-तिमिरोहु संपीणिय-भविय-जणु मुत्तिमंतु सु-स्समण-धम्मु व । सेयंवर-पावरिउ. द? नहह आगमिरु तरणि व ॥ मूलुत्तर-गुण-भूसियउ असरिस-पत्त-विवेगु । निवइण निव-घरि वाहरिउ चारण-मुणिवरु एगु ॥ [२३२३] ता करेविणु पउर-पडिवत्ति गुरु-हरिसु पयासिउण महरिहम्मि आसणि निवेसिवि । पणमिप्पिणु मुणि-पइहि उचिय-ठाणि सयमवि-हु निवसिवि ॥ सायरु उत्तिम-अंगि निय- कर-संपुडु विरएवि । आउच्छइ भावत्थु पिय- सिविणई उवसाहेवि ॥ ६७ ____ 2010_05 Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २३२४ ५३० नेमिनाहचरिउ [२३२४] __ तयणु निम्मल-दसण-किरणोलिपरिधवलिय-दिसि-वलउ तमु कहेइ चारण-महा-मुणि । जह - नरवर अवहियउ पत्थुयत्थु भावेसु निय-मणि ॥ अंग-सुविण-सर-वंजण वि तह उप्पाय-विसेस । अंतरिक्ख-महि-वंजण वि अट्ठ-निमित्त-विसेस ॥ [२३२५] हवहिं साहय सुहहं असुहहं वि संसारिय-माणवहं तत्थ ताव इयराहं चिट्ठहुँ । संपइ पुणु पत्थुयइं किंचि एहि सिविणाई भन्नहुँ ॥ आगमि सामभिण भणिय वाहत्तरि एयाई । तहिं अ-पवित्तई तीस इयराई पुणु पवराई ॥ [२३२६] तहिं वि तीसइ धुवु महा-सिविण इयरे उ मज्झिम हवहिं तत्थ चक्कि तित्थयर-मायर । गय-पमुह चउद्दस जि नियहिं सुमिण गुण-रयण-सायर ॥ सिरि-वच्छंकह जणणि पुणु सत्त महा-सिमिणाई । पेक्खइ वलभद्दह जणणि पुणु चत्तारि जि ताई । [२३२७] निवइ-तलवर-सचिव-सामंतसत्थाह-जणणीउ पुणु नियहिं किं-पि एक्केक्कु सिविणउं । सिव-देविहिं दिट्ठ पुणु जाइं सिविण तिहि हउं वियाणउं॥ हविहइ नंदणु जय-सरणु तित्थाहिदु भयवंतु । अद्ध-भरह-सामिउ हरि जि पुणु चिट्ठइ वइहंतु ॥ २३२४. ७. असेस. २३२५. ५. भिन्नहुं. ____ 2010_05 Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३१ २३३१ ] नवमभवि नेमिजम्म [२३२८] इय कयत्थउ तुहूं जि नर-नाह जसु मंदिरि अवयरिउ जय-सरन्नु तइलोय-दिणयरु । पणमंत-चिंतारयणु भव-समुद्द-तारणु जिणेसरु ॥ इय उववूहिरु निव-नमिउ मुणि विहरिउ अन्नत्थ । कय-किच्चउं अप्पउं मुणइ सिवदेवि वि सव्वत्थ ॥ [२३२९] सिविण-दसण-समइ पुणु संखु अवराजिय-सुर-भवण- सुहई भोत्तु तेत्तीस अयरई । ठिइ-अंतिण परिचविवि घेत्तु तिन्नि नाणाई पवरई ॥ कत्तिय-किण्हहं वारसिहिं चित्ता-नक्खत्तम्मि । जय-वंधवु अवइन्नु तहिं सिवदेविहि गब्भम्मि ॥ तयणु देविहि सविहि आगंतु चलियासण सुर-पवर थुणहिं देवि गंभीर-वाणिहिं । जह – भयवइ धन्न तुहुं जीए पुत्तु सह सु-गुण-रयणिहि ॥ हविहइ भवसायर-पडिर- जिय-उद्धरण-समत्थु । तित्थाहिवु वावीसमउ नेमिनाहु सु-कयत्थु ॥ [२३३१] को णु न नमइ तुज्झ पय-पउम जय-वच्छलि जय-जणणि जय-सरन्नि जय-अग्ग-गा*मिणि । . जं वद्धउ एहु तई पुन्न पवइहि(2)मज्झम्मि सामिणि ॥ नहि विणु केसरिणिहि जणइ का-वि-हु सीह-किसोरु । न य पुवह विरहिण तरणि जणइ का-वि करभोरु ॥ २३२९. १. क. सिविणु. २३३०. ८. क. ख. ममत्थु. * As the sheet numbered. 498 in the photostat of ms क, corresponding to the recto sides of folios 221 to 229 is missing, the text corresponding to these portions in the edited text has been based soely on the ms. ख. The portion from °मिणि (2331. 3) to एंति (2335. 4) is based on ms. ख. only. ___ 2010_05 Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३२ नेमिनाहचरिउ [२३३२ [२३३२) इय +थुणेप्पिणु जिणह +उप्पत्ति परिसाहिवि निय-नियय- सुर-घरेसु गय तियसायरिय । सक्केण उ मणि-कणय- अंवरेहिं भंडार पूरिय ॥ पुन्वुपन्नय वाहि-भर उवदवा वि उवसंत । पसरिय-विहव असेस-जण तहिं चिट्ठहिं विलसंत ॥ [२३३३] तुरय-कुंजर-रयण-दाणेण पूइज्जइ नरवइहिं समुदविजय-नरवइ पमोइण । उयर-द्रिय-जिण-रयण रिद्र-नेमिनाहाणुहाविण ॥ देवी वि-हु भत्ति-भरिण विहिय-एग-चित्तेहिं । वंदिज्जइ सुर-नरवइहिं +पुलयंचिय-गत्तेहिं ॥ [२३३४] __ कमिण सावण-+सुद्ध-पंचमिहिं चंदम्मि चित्तहं गयइ +अद्ध-रत्ति सुह-दिण-मुहुत्तिण । उप्पायइ देवि सुय- रयणु रवि व पुव्व-दिसि मुक्खिण ॥ सो को-वि-हु भुवण-त्तइ वि नत्थि तम्मि समयम्मि । जो न पमोयावन्नु हुउ तहिं जिगवर-जम्मम्मि ॥ [२३३५] (१५) तो +आसण-कंपिण मुणिवि तित्थु जायउ जिणु लक्खण-सय-पसत्थु । अह लोयह अट्ठ-दिसा-कुमारि हरिसेण एंति वियवाहिगारि ॥ २३३२. १. थुणोप्पिणु; प्पंउन्नि. २३३३. ९. पुलंयचित्त. २३३४. १. सावणणुद्ध. २. अट्टरत्ति. २३३५. १. भासुंण. ४. नियहा; क. 'हिमारि. ___ 2010_05 Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३३ २३४३ ] नवमभवि नेमिसूइकम्मु [२३३६] जिणु जणणि नमिवि तो चउदिसि पि संवट्टय-पवणिण सोहयंति । सव्वत्थ वि जोयण-मेत्तु खेत्तु कुव्वंति य तिण-कयवरिहिं चत्तु ॥ [२३३७] तो उइह-लोय-दिसि-देवि अट्ठ परिसिंचहिं मेहिण महि पहट्ट । पोरस्थिम-रुयगह दिसि-कुमारि संपत्त अट्ट आयंस-धारि ॥ [२३३८] ता दाहिण-रुयगह अट्ट देवि भिंगार ठंति करयलि करेवि । पुणु पच्छिम-रुयगह अट्ठ पत्त तहिं ठंति धरिवि वीयण पवित्त ॥ [२३३९] तो उत्तर-रुयगह देवि अट्ठ चामर धरंति आवेवि लट्ठ । अह विदिसि रुयग-चउदिसि-कुमारि विदिसीसु ठंति सु-पईव-धारि॥ [२३४०] अह मज्झिम-रुयग-निवासिणीउ चउदिसि-कुमारि सु-नियंसणीउ । जिण-नाहि-नालु कप्पिवि पवित्तु वियरइ खिवंति रयणेहिं जुत्तु । [२३४१] हरियाल-पीटु तस्सुवरि ताउ विरयंति भत्ति-भाविय-मणाउ । तो जम्मण-घरह पुरथिमेण दाहिणिण तहेव य उत्तरेण ॥ [२३४२] कयलीहराई सु-मणोहराई चउसालय-मंदिर-संजुयाई । वर-रयणमइय-सिंहासणाई कुवंति ताउ वेउन्वियाई ॥ [२३४३] तो दाहिण-कयलीहरि जिणिंदु सिवएविहिं सहुं *भवणेग'-इंदु । अभंगिवि उव्वदेवि +देहि तो निति पुव-कयलिहर-गेहि ॥ २३३६. १. क. चउद्दिसिं. *The portion from भ° (2343. 2.)to °मयर (2354. 3.) is based on ms. ख. only. २३४३. २. भवण३. वेहि. 2010_05 Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ [२३४४ [२३४४] गंधोदय तह(?), पुप्फोदएहिं सुद्धोदएहिं सु-सुयंधएहि । व्हावंति जणणि जिणु मंगलेहि भूसंति वत्थ-वर-भूसणेहिं॥ [२३४५] तो उत्तर-कयलीहरि नयंति गोसीसु पवरु चंदणु दहति । वंधति रक्ख-पोद्दलिय ताण परिरक्खिय-सयल-जय-त्तयाण ॥ [२३४६] तुहं पचाउ (?) भव इय +भणंत रयणुप्पल वायहि सवण-पत्त । इय अहवण-तिलेवण-भूसणेहिं सक्कारिवि जण-मण-तोसणेहिं ॥ [२३४७] निव्वत्तिवि सयलु वि रक्ख-कम्मु इच्छंति य नर-सुर-सिद्धि-सम्मु । जिणु जणणिहिं सहिउ वि निति ताउ वास-हरि मणोहरि हरिसियाउ ॥ [२३४८] छप्पण्ण वि तो तहिं दिसि-कुमारि गायंतिउ चिट्ठहिं जिणु जियारि । [२३४९] इय सयल-कुमारिहि विविह-पयारिहि सूइ-कम्मि विहियइ जिणह । सोहम्म-सुरिंदहं नय-सुर-विदह होइ कंपु सीहासणह ॥ [२३५०] (१६) ओहि-नागेण तो ना य-जिग-जम्मणो झत्ति-परिचत्त-रयणमय-+सीहासणो पयई सत्तट्ट गंतूण परितुटुओ महिहिं उण नियय-लग्गंत-कर-मत्थओ ॥ [२३५१] जिणह पणमेवि सिरि विहिय-कर-+संपुडो भणइ सक्क त्थवं वयण-मण-संवुडो। करिवि गुण-गहणु जिणवरह सुर-सामिउ हरिणयन्नेसि आणवइ गय-गामिउ। २३४५. २. वदणु. ३. वंधति; ४. त्तयाणं. २३४६. १. भरणत. २३५०. २ सीहसिणो. २३५१. २, संछु(बु ?)डो. ____ 2010_05 Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३५ २३५८ ] नवमभवि नेमिण्हवणु [२३५२] सो वि वाएइ जोयण-मुहं सुह-मणो सुणइ घंटं सुघोसं जहा सुर-यणो । तीए पडिसह-+सम्मद-रहसुटिओ सेस-घंटा-गणेणं[]खोणि-हिओ ॥ २३५३] सग्गि सयले वि सो व[-]उन्जिभिओ देव-देवी-यणो ताव मणि विम्हिओ। तक्खणुप्पन्न-संखोह-विक्खभणं कहइ रि[]णाणणो तयणु जिण-जम्मणं ॥ [२३५४] इय समायन्निऊणं लहुं +सुर-जणा सेस-कज्जाइं मोत्तूण हरिसिय-मणा । के-वि करि-तुरय-नर-मयर-पटि-ट्टिया अवरि हरि-हरिण-सहूल-सिहि-संठिया ॥ [२३५५] अन्नि क-वि कुंच-रह-सरह-वद्धासणा पसरियासेस-दिसि-तेय-उब्भासणा। के-वि वर-वइर-सारं विमाणं गया विहिय-सिंगार-बहु-अच्छरा-परिगया ॥ अवरि मणि-जाण-जंपाणमारूढया देव-बग्गा समग्गा वि संबूढया । तयणु मणि-थोर-थमावली-सोहयं पसरियासेस-दिसि-वलय-उज्जोइयं ॥ [२३५७] किंकिणी-मुहल-धय-मालिया-मंडियं भुवण-लच्छीए नं भुयहिं अवगुंठियं । जंवुदीव-प्पमाणं विमाणं वरं कारवेऊण पूरंत-गयणंतरं ॥ [२३५८] तत्थ आरुहिवि सहसक्खु संपढिओ देव-गण-परिवुडो जिण-वरुक्कंठिओ। दाहिणिल्लम्मि करइ करग सेले तओ(?) संखिवंतो विमाणं स-इढिं गओ॥ २३५२. ३. समद्द. २३५४. १. सुरसणो. २३५६. १. क. संपाण'. ____ 2010_05 Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३६ नेमिनाहचरिउ [ २३५९ [२३५९] खणिण संपत्तु जिण-भवणि आखंडलो विहिय-जिण-जणणि-अइपवर थुइ-मंगलो। ठविवि पडि विंचु दाऊग असोयणिं गिहए जिणवरं भुवण-चिंतामणिं ॥ [२३६० इय करयलि ठाविवि मणि परिभाविवि जिणु अणंत-गुणु भत्ति-भरि । कय-पंचहिं रूविहिं पवर-सरूविहिं नेइ सक्कु सुरगिरि-सिहरि ॥* [२३६१] (१७) पंडु-सिलायलि खीर-समुज्जलि कय-कुसुमुक्करि गय-रय-निम्मलि । फार-फुरंत-रयण-सीहासणि सक्कि निलीणि अंक-संठिय-जिणि ॥ [२३६२] आसण-कंप-मुणिय-जिण-जम्मण ईसाणिंद-पमुह हरिसिय-भण । आगय सयल वि तत्थ सुरेसर ठिय निय-निय-सुरयण-अग्गेसर ॥ [२३६३] जोइस-वंतर-भवण-निवासिय आगय सुर असंख तहिं हरिसिय । धरहिं के-वि जिणवर-सिरि छत्तई ढालहिं चमर के-वि सु-पयत्तई ॥ [२३६४] धृव-कडच्छुय-बावड केइ-वि के-वि सुराहिव दप्पणु लेइवि । ठंति जिर्णिदह अग्ग इ मुह-मण अण्णि पढंति सजल-घण-निस्सण ॥ [२३६५] गायहिं के-वि तियस कि-वि नच्चहि के-वि सरसु कुसुमुक्कुरु 'मुच्चहि । करहिं के-वि गलगज्जिउ वंधुर तह हय-हेसिउ रव-भरियंवरु ॥ *ग्रंथानं ६००० २३६१. ४. निलीणिं; क. जिणिं, ख. जणि. २३६४. * The portion from °इ (2364. 3.) to पो (2372.. 1.) is based on ms. a. only. ___ २३६५. १. कि निवहिं. २. मुवहिं. ___ 2010_05 Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३७२ ] नवमभवि नेमिण्हवणु [२३६६] इय नेमि-जिणिंदह पणय-सुरिंदह सक्कुच्छंगि निवेसियह । अग्गग्गुर(?) भत्तिहिं निय-निय-सत्तिहिं सेव करहिं हय-वम्महह ॥ [२३६७] (१८) अह वियसंत-वयण-सयवत्तिहि +रोमंचुग्गम-पयडिय-भत्तिहिं । कुसुमंजलि उक्खित्त मुरिंदिहिं +नच्चिर-अमरविलासिणि-+विदिहिं ॥ [२३६८] पारियाय-[त]रु-मंजरि-मंडिय उप्पल-कंचणार-दल-चड्डिय । मल्लिय-मालइ-मउलिहिं मीसिय चंदण-कप्पूरागुरु-वासिय ॥ [२३६९] कुरवय मरुवय वहु-सेवत्तिय चंपय वियसिय [x] पारत्तिय । +गंधाखित्त-भमिर-भिमरावलि मुंचहि तहिं सुरवर कुसुमावलि ॥ [२३७०] इय वर-कुसुमंजलि वियरिय-रय-गणि नेमि-जिणिंदह कम-जुयलि । मुक्किय सुर-राइहि गुरु-अणुराइहि जणिय-हरिस-सुरयणि सयलि ॥ [२३७१] (१९) एत्थंतरि अच्चुय-सुरवइणा आणत्त सयल निय-तियस-गणा। आणिति ते-वि तो धवल-पहं खीरोय-महन्नव-जल-निवहं ॥ [२३७२] तह पोक्खराइ-सायर-विमलं दह-तित्थ-कुंड-सरियाण जलं । सुर-पायव-मंजरि-संवलियं आणति चुण्ण-वासिहि कलियं ॥ २३६७. २. रोमंच; ४ निच्चिर, विदिहिं. २३६८. १. मंजरिहिं. ३. उप्पलं. ३. मल्लिय, गउलिहिं. २३६९. ३. गंधखित्त; भमिरावलि; कुसमावलि. २३७०. २. मणि. २३७१. २. मणा. २३७२. २. क. दहिं. ___ 2010_05 Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३८ नेमिनाहचरिउ [ २३७३ [२३७३] पंडग-वण-सोमणसाइगयं हिमवंत-पमुह-ठाणाणुगयं । सव्वोसहि-सरिसव-कुसुम-भरं आणंति तुरिउ मट्टिय-नियरं ॥ [२३७४] हरियंदण-चुन्न-सुगंध-गणं उवणिति सुरा ण्हवणथमिण । [२३७५] इय सयलहि देविहि कय-जिण-सेविहि आणंतिहि ण्हवणंग-गणु । अच्चुय-सुरनाहिहिं हरिस-सणाहिहिं पूरिउ दिट्ठउं सहु गयणु॥ [२३७६] (२०)विमल-मणि-मउड-दिप्पंत-सिर-मंडलो तयणु भत्तीए समयच्चुयाखडलो । पवर-आहरण-वत्थेहि सोहंतओ फुरिय-मणि-रयण-किरणोह-भासंतओ॥ [२३७७] संगरक्खो स-परिसोस-सामाणिओ लोयपालेहिं सद्धिं स-वेमाणिओ। सत्त-अणिएहिं अणियाहिवेहि समं उव्वहंतो महंतं मणे संभमं ॥ [२३७८] करिहिं उक्खिवइ निट्ठविय-भावारिणो ण्हवण-कज्जेण तित्थयर-जिण-नेमिणो। चित्तरूवं सहस्सं सहस्संवरं भिण्ण-भिण्णं सु-कलसाण अट्ठा [२३७९] मणिमया एकि अन्ने य सोवन्निया कलस रेहंति विवुहेहिं संवण्णिया। के-वि पु*णु सेय-कलहोय-निम्माविया सुकइ-पुन्नेहिं सुरवरिहिं करि पाविया॥ [२३८०] कणय-+रुप्पुब्भवा कणय-रयणामया के-वि पुण रयण-रुप्पेहि निप्फन्नया । के-वि तवणिज्ज-मणि-रयण-संपन्नया के-वि पुणु ताण मज्झम्मि मट्टिय-मया॥ २२७३. २. सद्धि सव्वे विमाणिउ. *The portion from °णु (2379. 3.) to जि (2389. 2.) is based on ms. ख. only. २३८०. १. रूप्पुभवा. ____ 2010_05 www.jainelibr Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८८] नवमभवि नेमिण्हवणु [२३८१] के-वि साहाविया के-वि वेउव्विया अब्भहिय-अट्ठ-सहसाई सव्वे ठिया । पवर-भिंगार-आयंस-गण-संजुया चंदणुद्दाम-कुंभा य स-कडच्छुया ॥ [२३८२] पुणु[xxxx]चंगेरि-पडलाइणो ण्हवण-कालम्मि उक्खिवहिं सुर-राइणो । तयणु हरियंदणुप्पंक-चच्चिक्किया सुरहि-सिय-कुसुम-मालाहिं समलंकिया॥ [२३८३] अच्चुइंदेण सव्वायरं ढालिया सहहिं वर-कलस खलहल-रवुम्मालिया । [२३८४] इय विहियइ मज्जणि रंजिय-सज्जणि अच्चुय-इंदिण सुर-महिउ । सिरि-नेमि-जिणेसरु मुणि-अग्गेसरु रेहइ तहिं भुवणभहिउ ॥ [२३८५] (२१)एएण विहाणिण तो ण्हवेइ पाणय-कप्पिंदु वि कलस लेइ । तो बहावइ जिणु सहसार-नाहु पक्खित्त-विमल-नीर-प्पवाहु ॥ [२३८६] तो सत्तम-कप्प-निवासि सक्कु जिणु ण्हवइ छिण्ण-संसार-चक्कु । अह लंतय-कप्पह सामि हिट्छु अहिसिंचइ जिणु गुण-गण-गरिछु ॥ [२३८७] तो वंभ-लोय-+पहु जिण-वरिंदु व्हावेइ पणय-सुर-नरवरिंदु । माहिंदु तय[णु] +सणयंकुमारु ईसाणु ण्हवइ तो सुरहं सारु ।। [२३८८] अह चमर-पमुह भवणवइ कमिण पहावंति जिणिंदु विमुक्क तमिण । . पुणु ण्हवहिं पिसायाहिवइ-पमुह वंतर-गण-नायग सुगइ-समुह ॥ २३८१. ५. मग्गिसरु. २३८५. २. पाणाय. २३८७. १. पडु; ३. सयणकुमारु. ____ 2010_05 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ [ २३८९ [२३८९] पुणु चंदु ण्हवइ तह दिवस-नाहु जिणु नेमि निरुद्ध-+भव-प्पवाहु । २३९०] इय विहियइ मज्जणि भव-भय-भंजणि सेस सुरिदिहि जिणवरहं । सोहम्मह सामिउ मुगइहि गामिउ जह करेइ कित्तेमि तह ॥ [२३९१] २२) कय-पंच-रूवु ईसाण-इंदु उवविसइ अंक-कय-जिणवरिंदु । ___ तो कुंद-धवल चत्तारि वसह वेउव्वइ चउ-दिसि सक्कु जिणह ॥ [२३९२] अह ताण अट्ठ-सिंगुब्भवाउ उच्छलिवि सलिल-धारउ वराउ । उद्धंमुह-वर-खीर-प्पहाउ एक्कहं मिलेवि निवडंति ताउ ॥ [२३९३] मरगय-सिल-सच्छहि नेमि-वच्छि हारावलि व रेहंति सच्छि । तो ण्हवइ जहेवच्चुय-सुरिंदु तह सक्कु वि व्हावइ जिण-वरिंदु ॥ [२३९४] तो सुरहि-कसाइय-चीवरेण लूहेइ अंगु सव्वायरेण । उवलिंपइ पवर-विलेवणेहिं भूसेइ वत्थ-वर-भूसणेहि ॥ [२३९५] सु-सुयंधिहिं सुरतरु-संभवेहिं पूएइ अ-संखिहिं सुमणसेहिं । वज्जंतिण तो दुंदुहि-गणेण पूरिज्जइ अंवरु पडिरवेण ॥ [२३९६] इय भव-भय-गंजणु कुणहिं ज मज्जणु भत्ति-भरिण विवुहाहिव वि। तं सुर-गुरु-तुल्लु वि मइहिं अ-भुल्लु वि को वण्णइ जीहा-सउ वि ॥ २३८९. २. •भवण. ____ 2010_05 Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४०५ । नवमभवि नेमिण्हवणु [२३९७] (२३)अह सयल सुरनाह उन्भेवि निय-वाह । नच्चंति सु-पहिह निय-मणिण संतुह ॥ २३९८] रणझणिर-मणि-वलय थरहरिय-महि-वलय । गुरु-मुक्क-पय-भार तुटूंत-वर-हार ॥ [२३९९] जिण-चरिय सु-समेय गायंत-कल-गेय । अच्छरहं संघाय सुह-वयण-मण-काय ॥ [२४००] इंदाण मज्झम्मि नच्चंत मेरुम्मि । पुण कुणहिं कल-गेउ जिण-गुणिहि अ-पमेउ ॥ [२४०१] वहु-जणिय-आणंदु नच्चत-सुर-विंदु । वरिसंति रयणेहिं सुर के-वि *कणएहिं ॥ [२४०२] गंधडूढ-नीरेहिं वर-सुरहि-कुसुमेहिं । उक्किट-नाएहिं पडिसह-सारेहि ॥ [२४०३ सुर केइ वग्गंति घण जेम्ब गज्जति । हय जेंव हिंसति हरि जिम्ब निनाएंति ॥ [२४०४] वंदि व्व उद्दामु ति पदंति अभिरामु । वड्ढंत-अणुराउxxxx ॥ [२४०५] सिरि-नेमि-+जिणु थुणइ सुर-लोउ सहु सुणइ । * The portion from कणएहिं (2401. 4.) to निवि (2409.3.) is based on ms. ख. only. २४०५. १. जिण. - ____ 2010_05 Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४२ [२४०६ नेमिनाहचरिउ तथा - [२४०६] (ज्ज ?) भव-तरु-भंग-समीर गुण-मणिण नीरालय भीम-मोह-करि-कुंभ तरुण-कंठीरवामीलाय (?)। अंवर-विमल कलंक-पंक-वारि-भर महा-वल चरण-नीररुहमिह नमामि तव देव कलामल ॥१ [२४०७] कलिल-कमल-हिम-पूर-जडिम तम-भर-रवि-मंडल केवल-वुद्धि-निवास-गेह भासुर-भा-मंडल । गुण-गण-धाम सु-राम काम-कंदलि-विगुणानिल माया-वल्लि-समूल-दाह-दारुण-दावानल ॥२ [२४०८] परमागम-सुरसिंधु-मूलकारण-हिमगिरिवर स-जलसंग-नव-नीरवाह-सम-सुंदर गुरुवर । सिद्धि-कमल-वर-भसल सुकुल-संभव भव-तारण वंदे देव भमंत-मगल(?)कमलागम-कारण ॥३ [२४०९] चरण-करण-करुणोरु-वद्ध-रस-रस-निर-निवारिण(?) रामासंग-विरंग-चित्त करुणा-संधारण । अ-रणासंग नीरीह निविड-दम-बद्ध सु-संगम करण-तुरंगम-रज्जु-वंध वंधुर-वंधागम ॥४ - २४०६ ३: नहावल. २४०७. ४. माह. २४.८. .. २. गुरुरव. 2010_05 Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४३ २४१४ ] नवमभवि इंदकयनेमिथुइ [२४१०] जलरुह-दल-सच्छाय-चरण पर-बुद्धि-परायण रागोरग-गण-गरुड लोभ-सागर-पारायण कुनय-कुसंग-कुवास-हास-मच्छर-नग-दारण अंतराय-परमाणु-निवह-रस-संचय-वारण ॥५ [२४११] असम-जरामय-मरण-वार मोहारि-महा-मह हरि-विरिंचि-हरि-वीर-मार-वल-समर-जयावह । किन्नरगण-दंभोलिपाणि नर-विसर-महत्तम तव नुवामि चरणारविंदमजरामर-सत्तम ॥६ [२४१२] अमर-निरंतर-समवसरण भू-मंडल-सुंदर कुंद-कुसुम-दल-धवल-दंत वर-वाणी-डंवर । मंदरचल-रमणीय-देह गंभीरिम-सागर सु-गुण-चित्त-सम-तुंग-चित्त जय-जंतु-दयावर ॥७ [२४१३] सोम स-दय सु-समिद्ध सिद्ध संवुद्ध निरामय लीला-केलि-विलास-दारु-दव सिद्धि-रमामय । परम-गरिम संसार-सलिल-संचय-संतारण देव देहि भव-विरहमखिल-दंदोलि-निवारण ॥८ ॥ इतींद्राष्टकं समाप्तम् ॥ [२४१४] एवं संस्कृत-वचनैः प्राकृत-तुल्यैः प्रमोदतः स्तुत्वा । जिनवरमरिष्टनेमि पंचांगं प्रणमति सुरेशः ॥ २४१०. २. मण. ४. रसंचय. २४११.२. क. माल for °मारवल.' 2010_05 Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २४१५ नेमिनाहचरिउ [२४१५] इय थोऊणं सक्को नेमि-जिणं नेइ जणणि-पासम्मि । रयण-सुवन्ना इ-निहाणएहिं पूरेइ जिण-भवणं ॥ [२४१६] जंवू-पन्नत्तीओ नेयं जिम्म-मह-सेस-कारिज्जं । वत्तीस-सुरिंदेहिं कय-सिक्कारो पुणो नेमि ॥ [२४१७] दटुं पहाय-समए समुद्द-विजयाइणो मणे तुट्ठा। अह वारसम्मि दिट्ठो काऊण महूसवं गरुयं ॥ [२४१८] चिर-रिट्ट-रयण-मइयं जं नेमि सुमिणए नियइ जणणी । पियराइं रिट्ठ-नेमि त्ति तेण नामं निवेति ॥ [२४१९] अहवा +य अरिहाई नहाई जं इमेण जाएणं । इट्ठो व अरीणं पि-हु अरिट-फल-सामलो वा वि ॥ [२४२०] ठावंति तेण नामं अरिठ्ठ-नेमि ति जिण-वरिंदस्स । रूवेण य चरिएहिं आणंदिय-सयल-भुवणस्स ॥ [२४२१] अह वड्ढइ सो भयवं सेविज्जतो सुरेहिं पइ-दियहं । पुण्ण-परमाणु-निवहो ब्व कीरमाणम्मि जिण-धम्मे ॥ * The portion from इ-निहाण (2415. 2.) to सुमरिऊण (2425. 1) is based on ms. ख. only. २४१६. १. जम्मामह, करिज्ज; २. सक्कार. २४१९. १. अहवा वा; पइमेण. ____ 2010_05 Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२७ ] [२४२२] इय चिह्न जाव जिणो सुहेण नेमी समुहविजय- घरे | नाओ [ओ य स ] यलो वृत्तंतो कण्ह - मुसलीहिं ॥ [२४२३] अह सि दुवे पि- जाओ वयणेण अ-विसओ तोसो । एतो पुण+ महुराए सो निल्लज्जो कह-वि कंसो ॥ [२४२४] वसुदेव-घरम्मि गओ कण्णं छिन्नेग- नासियं तत्थ । कीलति निज्झायइ सुर ( ? ) सो वहु-विगप्पेहिं ॥ नवमभवि कण्हवालत्तणु [२४२५] ता [इ] मुत्य-महरिसि निवेइयं सुमरिऊण वृत्त । संजाय - गरुय - हिययासंको निय-मंदिरम्मि गओ ॥ इओ य - [२४२६] कंस - निवइहि भवणि संपत्तु अग-निमित्त-वस मुणिय-काल-तय- भावि - वइयरु । महरिहम्मि आणि कयायरु ॥ नेमित्तिउ एगु अह उववेसेवि स- संक-मणु उलि- मुह-अरविंदु | सविहिहिं तसु नेमित्तियहं पुच्छर कंस - नरिंदु ॥ तं वयणु अइमुत्तह जह सत्तमु देवइहि [२४२७] भद्द साह हुयउ किमलीउ २४२२ २. नाउ यलो. २४२३. २. यण. २४२४ २. कीलंति. 2010_05 संपाविय तारुन्न- भरु rea foo[]- अस्थि रिउ अ-विहिय वयण - वियारु ॥ २४२७. ८. अवह, अच्छि ६९ रिसिहि भणिउ जं आसि तइयहं । गब्भु मज्झ सालयहं ससुरहं ॥ for after संहारु । ५४५ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ [२४२८ [२४२८] नणु कहं-चि वि तरणि पच्छिमहं संपावइ उदय-दस परिहरेइ मज्जाय जलहि वि । धरणीयलु थरहरइ खडहडेइ सुरराय-सिहरि वि ॥ न-उण कह-चि महा-मुणिहिं भासिउ वितहु हवेइ । मई जिम्व अ-खइउ तुह रिउ वि संनिहियउ चिठेइ ॥ [२४२९] अह धवक्किय-हियउ परिगलिरपस्सेय-जलाविलउ कंस-अहमु जंपेइ दीणउं । जह - भद्द करेसु तह कह-वि जेण हउं सत्तु जाणउं ॥ जइ पुणु अज्ज-वि कहमवि-हु रक्खिज्जइ अप्पाणु* । कज्जि विणहइ विहि-वसि[ण किं] करेइ सु-वियाणु ॥ [२४३०] __ तो निमित्तिउ भणइ - नणु हउं वि छउमत्थु जि इय कहणु तुज्झ सत्तु सम्मउं वियाणहूं । सो नज्जइ लक्खणिहिं ताई पुणु हउं [तई य] +निवेयहं॥ अह जइ एम्ब तई जि सह सो दंसिउ सत्तु त्ति। इय कंसिण भणि[य]इ क[ह]इ इहु नेमित्ति नरु त्ति ॥ जहा. [२४३१] वियड-कंधरु तिक्ख-सिंगग्गु अइ-दुद्धर-दप्प-भरु हय-विवक्खु निरु ढिक्करंतउ । गो-नागु अरिह इय नामु धरणि सिंगिहि दलंतउ ॥ तह हेसा-रव-पडिहणिय-इयर-तुरंगम-थटु । केसि-नामु खर-खुरु तुरउ दुद्धर-माण-मरटु ॥ २४२८. ७. क. वितहु. * The portion from °णु (2429. 7.) to स (2435. 5.) is based on ms. ख only. २४२९. ८-९. वसिं करेइ. २४३०. ५. नेवेयहुं. ८. कइइह for कहइ इहु ___ 2010_05 Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमभवि कण्हवालत्तणु [२४३२] चवल-खर-खुर-खणिय-खोणियल अइ-कढिण-दसण-चलिहिं विदवंतु जिय-वग्गु दप्पिण । कर-फरिसि वि उल्ललिरु भुंकमाणु अइ-गरुय-सद्दिण ॥ दंतिहि तुंडिण पटुइहि जणिय-भुवण-उव्वेउ । पीवरु तुंगु स-दप्पु तुह रासहु खर-कुल-केउ ॥ [२४३३] दप्प-दुद्धरु दलिय-पडिवक्खु अइ-चंचलु उव(?)चरणु पूइ-गंध-मुहु मेसु चउथउ । विंदारय-वणि जु कु-वि निहणिहेइ अइरिण समत्थउ ॥ आरोविस्सइ जो य तुह धणु[ह-रयणु] दढ-दप्पु । सो' मुणियव्वउ नियय-रिउ नर-वर तई अ-वियप्पु ॥ [२४३४] एहु निसुणिवि कंसु निव-अहमु सदाविवि निय-सचिवु भणइ - वसहु खरु तुरउ मेसु वि । +पुव्वुत्तु विंदार-वण- मज्झि मुयसु जत्तेण पोसिवि ॥ जह जो कु-वि तहं सम्मुहु वि आगच्छइ सु हणंति । अप्पणयहं परहं वि जणहं न विसेसं पि कुणंति ॥ [२४३५] तह य +मुट्ठिग-मल्लु चाणूरमल्लो वि महायरिण उव+यरेसु तह कह-वि जह लहु । अवलोयण-मित्तिण वि फुरिय-दप्प निहणंति रिउ सहु ॥ सचिवो वि-हु सयलं पि इह अब्भुवगमिवि करेइ । कंसो उण रिउ-वह-निसिय- माणसु रइ न लहेइ ॥ २४३२. ८. तुंगु रु. २४३३. ८. स. २४३४. ४. पुव्वत्त; वंदारय. २४३५. १. मट्ठिग. ३. उतपरेसु. ____ 2010_05 Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४८ नेमिनाहचरिउ [२४३६ [२४३६] न-उण पावइ निद्द न य भुक्ख निक्कारणु परिकुवइ हणइ लोउ अ-कयावराहु वि । अवमाणइ मंति-यणु पगइ-वग्गु दंडइ अ-दोसु वि ॥ गह-गहियम्मि व कंसि इय अंतेउर-पुर-लोउ । सयल्लु विरत्तउ भणइ - तसु जं भावइ तं होउ ॥ [२४३७] कण्हु पुणु वलभद्द-परिकलिउ तहिं गोउलि गोवि-यण- जणिय-हरिसु वहु-विहिहि विलसइ । अह सरय-समागमणि स-हल महिहिं परितुट्ठि कासइ ॥ भमिरु अरिह-सरिच्छ-पहु पीवरु वसहु अरिछ । जियहं खयंकरु आगयउ गोउलि कण्हिण दिछ । [२४३८] तयणु - अरि अरि हणसि गो-वग्गु गोवि-यणु वित्तासिहसि विद्दवेसि घर-हट्ट-छेत्तई । मारेहिसि विविह जिय निदलेसि पसुयाहं गत्तई ॥ ता किह छुट्टसि मह पुरउ रिह-वसह जीवंतु । इय जंपिरु हरि तसु पुरउ परिकीलिरु आगंतु ॥ [२४३९] कण्ह म-न करि कोवु एयम्मि . मा गच्छ सविहिहिं इमह किं न नियसि एएण भुवणु वि । विद्दवियर्ड इय भणिरि गोवि-वग्गि पभणइ कण्हु वि ॥ जो लीलाइ वि उक्खिवइ कोडि-सिला सु-महल्ल । तसु मह कित्तिय-मेत्त इहु इय कि न मुणह गहिल्ल ।। २४३८. ८. क. पुरओ. ____ 2010_05 Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४३ ] नवमभवि कण्हवालत्तणु [२४४०] अह कुऊहल-वसिण सह तेण जुज्झविणु कं-चि खणु तयणु वसहु सो पुच्छि घेप्पिणु । भामेवि चक्क-ब्भमिण कुच्छि-देसि मुट्ठिण हणिप्पिणु ॥ तह कहमवि खिवियउ महिहिं जह निल्लालिय-जीहु । वसह-हयासु सु निस्सरणु पडिवज्जइ पहु दीहु ॥ [२४४१] वीय-वासरि तहिं जि विहि-वसिण लंबोयरु तुंग-तणु विसम-उठु दप्पिडु दुट्ठउ । गुरु-दाढ-कराल मुह- *कुहरु केसि-हउ हरिण दिद्वउ ॥ तुंडग्गिण पय-पट्टयहिं भुवणु वि विदावतु । हेसारव-वहिरिय-गयणु तुरिउ समुहु आवंतु ॥ [२४४२] नियय-कुप्पर+ खिविवि वयणम्मि तसु दुह-तुरंगमह फुरिय-दप्प-दछुट्ट-पल्लवु । दामोयरु लीलई जि कुणइ करिहिं दो-खंड हय-सवु ॥ तयणु सु पीण[-प]ओहरिहिं+ तसिय-हरिण-नयणीहिं । आलिंगिज्जइ पुणु पुणु वि हसिवि गोव-तरुणीहिं ॥ [२४४३] गोव-गोवी-जणिण साणंदु थुव्वंतय बहु-विहिहिं अवर-दियहि ते दो-वि वंधव । विंदारय-वणि जि गय कीलणत्थु वलएव-केसव ॥ अह कहिण(?) निसुणियउं इह चिट्ठइ दुह-विवागु । जउण-नईए दिहि-विसु दुसहउ कालिय-नागु ॥ * The portion from कुहरु (2441. 4.) to आइ8 (2446. 4.) is based on ms, a only. २४४२. १. तुप्पर; ३. फरिय. ६. पीण उहरिहिं. ९. तरुणेहिं.. ____ 2010_05 Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५० [२४४४ नेमिनाहचरिउ [२४४४] तयणु पविसिवि सलिल-मज्झम्मि उववेत्तु निय-करयलिण जिन्न-रज्जु-खंड व विहंडिवि । कड्ढेवि सरियह वहिहिं महिहि एग-देसम्मि छड्डिवि ॥ गोव-डिंभ-सहसिण सहिउ जल-कीलहं कीलेवि । गोउलि पत्तउ हरि जणह पहु निविग्घु करेवि ॥ [२४४५] ते-वि रासह-मेस दुद्धरिस जे आसि इयरहं जण दिट्ठ-मेत्त-गुरु-खेय-कारण । विदारय-वण-गहणि पत्त संत पेक्खिय-जणद्दण ॥ गलिय-मडप्फर हरि-करिण पावहिं जीविय-अंतु । कण्हु वि तहिं मुसलिण कलिउ खणु चिट्ठइ कीलंतु ॥ इओ य - [२४४६] एहु वइयरु मुणिवि' कंसेण पसरंत-भयाउरिण जीय-रक्ख-अक्खणिय-चित्तिण । आइट्ट निय-धणु-रयण- पूयणत्थु अंगिण पवित्तिण ॥ वत्थाहरण-विलेवणिहि कय-निरुवम-सम्माण । नियय-भइणि वर-देह-पह सच्चहाम-अभिहाण ॥ [२४४७] पुरि कराविय पुणु निउत्तेहिं उग्घोसण जह - जु कु-वि सुहड-वंस-जस-कलस-सरिसउ । आरोवइ धणु-रयणु मज्झ भइणि परिणिवि सु अइसउ ॥ पावइ मज्झि नरामरहं पयडिय-कित्ति-कलावु । लहइ य रज्जह अधु अह इहु निमुणिवि आलावु ॥ २४४६. १. मुणवि. ____ 2010_05 Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५१ २४५१ ] नवमभवि सच्चहामसयंवरु [२४४८] धणु-चडावण-महि समारद्धि नाणाविह-मंडलिय- सचिव-सेट्ठि-सत्थाह-पुत्तय । तसु कंसह घर-अजिरि . विहिय-चारु-सिंगार पत्तय ।। इय निसुणिवि सोरिय-पुरह नयरह चलियउ ताई। पयडु अणाहिहि ति सुउ सउरि-मयणवेगाहं ॥ [२४४९] वसिउ पुणु वलएव-सविहिम्मि तहिं गोउलि गोसि पुणु अग्गिमम्मि मग्गम्मि चलियउ । अब्भत्थइ पुणु वलह सविहि कण्हु साहज्जि वलियउ॥ तेण वि वियरिय अह ति दु-वि गच्छहिं अग्गिम-मग्गु । ता नग्गोह-महदुमहं साहहं तहं रहु लग्गु ॥ [२४५०] अह विवन्नउ हुउ अणाहिट्टि अ-तरंतु खेडेउ रहु तयणु फुरिय-पोरिसिण कहिण । उम्मूलिउ सयल दुमु पहरिऊण वाम-पय-पण्हिण ॥ इय वंधुहु वलु परिकलिवि सु मयणवेगह पुत्तु । पमुइय-मणु कण्हेण सहुं चाव-हरम्मि पहुत्तु ॥ [२४५१] ___ अह ति देक्सहिं दो-वि कोदंड मणि-कंचण-मंडियउ गुरु-पहावु देवय-अहिहिउ । पणवन्न-रयणिहिं घडिय वेइयाइ उवरि प्पइट्ठिउ ॥ तह घण-चक्कल-पीण-थण धणुहह सविहि वइ । स-नरामर-मण-मोहणिय सच्चहाम तिहिं दिह ॥ २४५० ४. सलु for सयलु. 2010_05 Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५२ नेमिनाहचरिउ [२४५२ [२४५२] *तयणु सउरिहि सुउ अणाहिट्टि परिखुधु वि वद्ध-पह- वसिण जाव कोदंडु गिण्हइ । ता पडियउ घुम्मिउण किण-वि भडिण नं हणिउ पण्हिइ ॥ एत्थंतरि रिउ-घर-गउ वि अकय-परिप्फंदो वि । तिक्ख-कडक्ख-सरावलिहिं तरुणिहिं हम्मतो वि ॥ २४५३] वाम-हत्थिण गहिवि कोदंडु आरोविवि दाहिणिण मुइवि तहिं जि मणिमइय-वेइहिं । अवलोइरु तरुणिय[णि] तहिं जि समुहु अणिमिसिहि नयणिहि ॥ सहिउ अणाहिहिण सउरि- कुल-गयणयल-ससंकु । अलहिज्जंतउं[x] जणिण कंस-घरह नीसंकु ॥ [२४५४] विजिय-कुंजर-वसह-कलहसवर-तुरय-सिहंडि-गइ कमिण कंस-निव-अहम-भवणह । नीहरिउण गयउ गिह- दार-देसि वसुदेव-रायह ॥ मयणवेग-देविहि तणय वयणिण तत्थ वि थक्कु । हरि पइसेउण परिय(?) गरुयर-हियय-चमक्कु ॥ [२४५५] गंतु सउरिहि सविहि साणंदु परिसाहइ जह - जणय धणुहु कंस-नरनाह-अहमह । आरोविउ मई खणिण मज्झि तस्सु वहु-निवइ-निवहह ॥ अह गुरु-रोसारुण-नयणु चलिर-अहरु वसुदेवु । जंपइ - अरि अरि पाव-मइ तुह किं रुट्ठउ दइवु ।। *The portion from तयणु (2452. 1.) to तस्सु (2455.6.) is based on ms. e. only. २४५२. ५. पण्हइ. २४५४ हरि यइ से उण परिय. ____ 2010_05. Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४५९] ५५३ नवमभवि कंसकिउ चावमहु [२४५६] केण पेसिउ तत्थ तुहं हंत वाहरिउ व इत्थ किण धणु व केण कज्जिण चडाविउ । ता मरिहसि नूण तुहं कंस-करिण मह भवणि आविउ ॥ धणुहारोवण-छलिण निय-रिउ-जसु अछइ नियंतु । इय हणिहइ अ-वियप्पु तई सुणिउण धणु-वुत्तंतु ॥ [२४५७] तयणु कपिर-अंगुवंगिल्लु सो जंपइ - जणय मह नूण नत्थि सामत्थु एरिसु । आरोविवि धणु-रयणु हरिण लद्ध इह कित्ति-पगरिसु ॥ ता स-विसेस-ससंक-मणु सउरि भणइ तूरंतु । गोउलि कण्हु विमुत्तु तुहुँ अछि सोरियपुरि गंतु ॥ [२४५८] करिवि अ-वितहु इहु अणाहिडि नीसेसु वि अइरिण वि गमइ दियह जणओवएसिण । एत्थंतरि पसरियउ जण-पवाउ पुहइहिं विसेसिण ॥ जह – सोहग्गि-सिरोमणिण कण्हिण नर-रयणेण । आरोविउ लीलई धणुह- रयणु नंद-तणएण ॥ [२४५९] अह कहं नणु नंद-तणएण गोउलिय-नराहमिण गरुय-महिम-देवय-अहिद्विउ । आरोविउ धणु रयणु अह व मुणिसु हउं तसु वि चेहिउ ॥ इय चिंतंतउ कंस-निवु कोव-कुडिल रत्तच्छु । हरिहि विघायण-हेउ गुरु- अ-विवेइण पडिहच्छु ॥ ____ 2010_05 Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २४६० नेमिनाहचरिउ [२४६०] महुर-नयरिहि निय-निउत्तेहिं घोसावइ चाव-महु हट्ट-सोह कारवइ जत्तिण । संचावइ मंच पुर- पहिहि दाणु दावइ स-वित्तिण ॥ मल्ल-जुज्झु होइहइ इह इय ववइसिवि महल्ल । सदावइ वलवंत महि- वलइ जि निवसहिं मल्ल ॥ [२४६१] एहु वइयरु गोव-वयणेण निसुणेविणु केसविण भणिउ पुरउ रोहिणिहि तणयह । जह - बंधव चलि-न जिह गंतु तत्थ तसु कंस-रायह ॥ चावूसवु अवलोइउण स-हरिमु तेण वि दिन्न । वित्थारहुं निय-जस-पसरु परिणेविणु सा कन्न ॥ [२४६२] अह - सहोयर एत्थ किमजुत्तु पूरेसु स-कोउहलु चलसु गंतु जिह तहिं खणद्धिण । पेक्खिज्जहिं विविह-निव- निवह पत्त निय-निय-समिद्धिण ॥ इय वियरेविणु केसवह पडिउत्तरु वलभदु । नाइसन्न-ठाण-ट्ठियह कुणइ जसोयह सदु ॥ [२४६३] तयणु पभणइ – ण्हाण सामग्गि अम्हाण पउग्ग तुहं कुणसु तुरिउ नरराय-विहविण इयरी वि खलिर-प्पडिर- कर त करइ जा ताव मुसलिण । इहु अवसरु इय चिंतिउण कय-कित्तिम-कोवेण । भणिउ - पावि किं लज्जिहिसि नियय-दासि-भावेण ॥ 2010_05 Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६७] नवमभवि कण्हस्स महुरागमणु [२४६४] किं न वेगिण कुणसि जं भणिउ किं न नियसि ऊसुयउ एहु लोउ चलिओ त्थि महुरहं । अह अ-मुणिरु तारिसउ हेउ तेसि तारिसहं वयणहं ॥ जणणि-पराहव-दुह-हयउ मउलिय-मुह-कंदुटु । भाव-सिणेहिण वंधविण किं-चि वि दलिय-मर१ ॥ [२४६५] हुयउ केसवु तह-वि परिविहियनिय-उचिय-असेस-विहि किय-सिणाण-भोयण-विलेवणु । वलभदिण सह चलिउ महुर-समुहु रहवरि चडेविण ॥ पत्तावसरिण अद्ध-पहि . पुणु मुसलिण सो वुत्तु । जह - किं दीससि कण्ह तुहुँ गरुय-दुहिहिं संजुत्तु ॥ [२४६६] तयणु दुम्मणु मुक्क-नीसासु परिमउलिय-मुह-कमलु भणइ कण्हु - किं भाय जंपहुं । निय-सवणिहिं दुव्वयण जणणि-विसइ एरिस निमुणहुँ ॥ स-गुण-सिरोमणि नय-निउणु विउसु विणीय-पहाणु । तुहुं वि पयंपहि एम्ब इय मह कि न खडिउ माणु ॥ [२४६७] ___ता हसेविणु मुसलि जंपेइ नणु वच्छ जसोय तुह जणणि नेय न य जणउ नंदु वि । तुहुं सउरि-देवइहिं सुउ इह उ मुक्कु चिट्ठसि उविंदु वि ॥ कंस-निवाहम-भएण अह कह कह कहि कहि भाय । इय पुच्छंतइ कहि वलु कहइ स-वइयर-जाय ॥ २४६५. ८. क. तुहु. २४६७. ९. क. वइर. ____ 2010_05 Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २४६८ ५५६ नेमिनाहचरिउ [२४६८] जहा - दस-दसारहं निवहं लहु वंधु सोहग्गि-सिरोरयणु खयर-मणुय-तरुणियण-मणहरु । परिसेसिय-पिसुण-जणु सुयण-जणिय-आणंद-सुंदरु ॥ अहवा भुवणव्भहिय-गुरु गुण-रयणेहिं समिछु । सिरि-वसुदेवु नराहिवइ तुह जणउ त्ति पसिद्ध ॥ [२४६९] ध्य देवय-धरणिनाहस्सु वसुदेवह सहयरिय विजिय-भुवण-तरुणियण-चंगिम । नीसेस-कला-निलय सुयण-सुहय-सह-जाय-वढिम ॥ महुर-पयंपिर थिरु गमिर सुंदर-गुरु-गुण-गाम । नारायण तुह जय-पयड जणणी देवइ-नाम ॥ [२४७०] थोव-थोवहं दियह अवसाणि गो-वग्ग-पूयण-च्छलिण वाह-सलिल-पडिपुन्न-नयणिय । तुह वयणि खिवेइ थण- दुधु स ज्जि छण-चंद-चयणिय ॥ तह सिरि-समुदविजय-निवह सउरि-गरुय-वंधुस्सु । तिहुयण-तरुणि-सिरोमणिहिं सिवदेविहि दइयस्सु ॥ [२४७१] तणउ सुरवर-खयर-नर-नमिउ तयलोय-चिंतारयणु जणिय-भुवण-आणंद-वित्थरु । तुह वंधवु अतुल-वल्लु जय-सरण्णु सिरि-नेमि-जिणवरु ॥ वालत्तणि तुह रक्खणह कज्जिण जेट्ठउ बंधु । हउं पेसवियउ सउरिण जि पयडिय-गुरु-पडिवंधु ॥ २४६९. ६. क. विरगमिरु. २४७०. ३. क. ख. वाहु. ____ 2010_05 Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५७ २४७५ ] नवमभवि कण्हस्स महुरागमणु [२४७२] इय मुणेविणु कण्हु पभणेइ जइ एवं ता किह णु भाय तम्मि गोउलि वसिज्जइ। तयणंतरु मुसलिण वि वच्छ तुज्झ एहु जि कहिज्जइ ॥ इय भणिरिण अइमुत्त-रिसि- कह अक्खिय पुव्वुत्त । ता जा कंसिण हणिय तुह सरिस छ देवइ-पुत्त ॥ [२४७३] इय सुणंतु वि वियड-भिउडिल्लु रोसारुण-नयण-दलु भणइ कण्हु - मह जेण अवल व । छ-स्सोयर विद्दविय सो कर्हि वि दक्खेसु बंधव ॥ जइ हउं अज्जु न हणहुं रिउ निय-बंधव-खय-कालु । वाल-वुड्ढ-गुरु-धायगहं गइ ता लहहुँ अयालु ॥ [२४७४] तयणु वियसिय-वयण-हरिणंकु गाढयरु आलिंगिउण भणइ मुसलि – इमिणेव कज्जिण । आकुट्ट जसोय मई इहरहा उ कह निन्निमित्तिण ॥ तुहुँ जाणहि पुच्छहि य मई पुव्व-उत्तु वुत्तंतु । संपइ पुणु तई एरिसिण मणिण हउ जि सो सत्तु ॥ [२४७५] इय करेविणु मुसलि-पच्चक्खु गिरि-गरुय-पइन्न हरि गयउ महुर-नयरीए अइरिण । ता अवगय-वइयरिण हरिहि रक्ख कय वहुय सउरिण ॥ समुदविजय-पमुहा य तहिं सद्दाविय निय-भाय । अक्कूराइ वि सउरि-सुय समुदाइण तहिं आय ॥ २४७३. ९. क. लहुहु. २४७४. ३. क. भण. ____ 2010_05 Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२४७६ नेमिनाहचरिउ [२४७६] अह ति निय-निय-उचिय-मंचेसु उवविट्ठ अहक्कमिण समगु इयर-नरवइ-सहस्सिण । कंसस्स उ दोन्नि करि- राय संति पसरिय स-तेइण ॥ रिउ-निव-करडि-मरट्ट-हरु गुरु-पोरिस-अभिरामु । पउमुत्तर-अभिहाणु इगु वीयउ चंपग-नामु ॥ [२४७७] विहि-वसेण य कण्ह-हलहरहं हणणत्थु कंसाहमिण दु-वि ति हत्थि मय-भरु लियाविय । स-निउत्त-आओहणिहि पुणु पओलि-दारेसु ठाविय ॥ एत्थंतरि वहु-गोव-जुय कय-असरिस-सिंगार । जा पविसहिं महुरहं पुरिहिं दो-वि ति सउरि कुमार ॥ [२४७८] ताव कुंजर गडयडेऊण कर-डंड उब्भीकरिवि समुहु ते ति दुण्ह वि पहाविय । बल-हरिणुट्ठिवि दह इह असम-विरिय-सुहडत्त-भाविय ॥ निय-रह-रयणु विउज्झिउण करिहिं करेसु विलग्ग । पहरहिं अहरिय-करुण दु-वि पयडिय-पोरिस-मग्ग ॥ कहं वा [२४७९] हणहिं मुट्ठिर्हि चडहिं कुंभयडि मुसुमरहिं मय-पसरु दसण-मुसलि लग्गंति धाविवि । परिखेवहिं चक्क-भमि खंध-देसि आरुहर्हि आविवि ॥ इय कंचि-विखणु कीलिउण चुज्जु जणेवि जयस्सु । उप्पाडहिं लीलई दसण- मुसल करिंद-जुयस्सु ॥ २४७६. ४. क. उं. ____ 2010_05 Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८३ ] नवमभवि मुट्ठिगचाणूरवहु [२४८०] सि निठुर-मुट्ठि धाएहिं परिजज्जर कुंभयड अणवरय-गलंत-तणुहरि-वल- उप्पाडिय - दसण गुरु-विमुक्क- चिक्कार | हूय कर्यताजिर- अतिहि कुंजर तयणु कुमार ॥ [२४८१] गोव-वग्गण विहि-सक्कार उत्ताविय - पिसुण-मण महरा -नयरिहिं मागहिहिं अणुमग्गागच्छन्त - वहु - गोव- जणिय-संमद ॥ थुवंत मुहि-सज्जणिहिं कय- चमक्क आरोह- हिययहं । मणि वसंत कामिणि-समूहहं ॥ पयडिय - जय जय - सद्द | दलिय दप्प तह सीह-नाइहिं । रुहिर-पूर असिवेणु घाइहिं ॥ मुताहल-मालियहिं गंधोदय-से-चरउत्तम वत्थ- पहाण - मणिसच्चहाम उक्कंठ-मण [२४८२] चारु- चंपय- जाइ - वियइल्ल 2010_05 निय - सोहा - अवगणियसंपत्त ति दो-वि अह तहिं अ-लहंत तहा - विहउं as afaण माणुस वियि - विविह-अवऊल-मणहरि कुसुम - पयर - सव्वंग-सुंदरि ॥ कणय-सिला-कय-सोहि । आगय विवि- निवोहि ॥ [२४८३] मल्ल- खलयह नाइदूरम्मि सुर -विमाणि मंचम्मि एगहं । मंचि निचिइ माणुसहं चंगहं ठाणु स भुय दंडेहिं । कइ-वि ति ठंति सुहेहिं ॥ २४८०. ३. क. नाइहि. ८. क. अतिहिं. ९. क. कुमारू. ५५९ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६० नेमिनाहचरिउ २४८४] [२४८४] तयणु अहरिय-इयर-तेयस्सु पसरंत-देह-प्पहह वाहु-दंड-विलसंत-लच्छिहि । गंभीरिम-सायरह हरिहि पुरउ वियसिरिहि अच्छिहि ॥ जंपिउ वलभदेण जह इहु सु कंसु तुह सत्तु । एहि ति समुदविजय-पमुह एहु सु जणउ पवित्तु ॥ [२४८५] ___इय असेसि वि राय पत्तेउ उवदंसइ वलु हरिहि जाव ताव कंसस्स वयणिण । नाणाविह मल्ल तहिं जुडहिं अन्नमन्नेण दप्पिण ॥ धावहिं वग्गहिं अभिडहिं पहरहिं मोडहिं अंग। टालहिं संधिअ संधिहिं वि भंजहिं अंगोवंग ॥ [२४८६] एत्थ-अंतरि तिवइ फोडेवि सीहारवु मेल्लिउण हणिवि सुहड खर वयण-सिल्लिण । अप्फालिवि वक्करिय गुरु-मरट्ट-चाणूर-मल्लिण ॥ आकंपाविवि धरणियलु निय-पय-ददरएण । भणिउ - अरिरि इह अस्थि कु-वि जायउ निय-जणएण ॥ [२५८७] जो विहूसिउ गरुय-परकमिण भुय-दंड-चंडिम-बहिरु . मल्ल-जुज्झ-उच्छाह-सोहिरु । आगच्छिवि मह समुहु जुडइ समर-धरणिहिं अ-कायरु ॥ ता सूरउ ता चारहडु जा घरि सविहि पियाए । मई दिट्टउ पुणु सयलु भडु पविसइ तलि वसुहाए । ___ 2010_05 Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४९१ ] नवमभवि मुहिगचाणूरवहु [२४८८] इय सुणंतउ सवण-दुह-जणय चाण-मल्लह वयण फुरिय-रोस-बस-अरुण-लोयणु । निय-मंचह उत्तरिवि गुरु-पयाव-अहरिय-विरोयणु ॥ सीह-किसोरु व वण-करिहि तरणि व तिमिर-भरस्सु । रंग-महिहिं समुहीहुयउ कण्हु तस्सु मल्लस्सु ॥ [२४८९] गयणु फुडइ व धरणि विहडइ व उल्ललइ व रयण-निहि कणय-सिहरि व पडइ उविंदह । पय-पहर-प्पडिरविण आसणं पि चलइ व सुरिंदह ॥ इय अवइन्नउ कण्हु रण- रंगि निरिक्खिवि लोउ । अन्नुन्नेण समुल्लवइ किं-चि पयासिय-सोउ ॥ [२४९०] पीण-खंधरु सुदढ-भुय-दंड कय-करणु चाणूरु इह एहु कण्हु पुणु वालु अज्जु वि । इयइ-महल्ल-काउ खमु हवइ कह-वि धुवु जुज्झ-कज्जु वि ॥ इय लोयहं वयणइं सुणिवि पभणइ कंसु स-कोवु । अरि लोयहु किं एहु मइं इह हक्कारिउ गोवु ॥ . [२४९१] दुद्ध-पाणिण मत्तु जइ एहु । उप्फिडिउण पडइ इह ता पडेउ किं तुम्ह सत्तिण । इय वयणु कंसह सुणिवि ठिउ लोउ मोणावलंविण ॥ तयणंतरु गहिरक्खरिहिं जणह समुहु कण्हेण । भणिउ - दलिज्जहिं महिहर वि कि न लहुइण वज्जेण ॥ २४८८. ३. क. 'लोयण. २४८९. ४. क. पहरह. २४९०. २. क. चाणूर; ४. क. अमहल्ल; ८. क इहु. २४९१. ८. क. महिहरि. ____ 2010_05 Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २४९२ ५६२ नेमिनाहचरिउ [२४९२] जुझं च होइ चउहा वाया-दिट्ठी-निजूह-सत्थ-मयं । मोत्तूण सत्थ-जुझं पहाण-जुज्झाइं इयराई ॥ [२४९३] मल्लाण निजूह-मयं वाया-जुज्झं तु होइ वाईणं । सत्थ-मयं अहमाणं उत्तिम-पुरिसाणं दिहि-मयं ॥ [२४९४] एयम्मि मल्ल-जुज्झे कय-करणो चेव एस चाणूरो । अहयं तु अकय-करणो इय पेच्छउ अंतरं लोगो ॥ [२४९५] इय निरिक्खिवि हरिहि पागब्भु अइ-भीउविग्ग-मणु कंसु दुट्ठ-दिट्ठीए तोरिवि । वियइज्जउ हरि-हणण- हेउ खिवइ मुट्ठियग-मल्लु वि ॥ ता उठेंतउ दटु रिउ हलहरो वि वेगेण । निय-मंचह उत्तरिवि हरि- सविहिहिं गयउ खणेण ॥ [२४९६] पक्खि एगहं कण्ह-वलएव स-परक्कम-विजिय-जय इयरि मल्ल चाणूर-मुट्ठिग । दछु वग्गिर धाविर वि परिफुरंत-गुरु-रोस-दिद्विग ॥ चारिण सह जुडिउ हरि हलहरु पुणु इयरेण । आकंपावहिं जगु वि पवि- गरुय-मुट्ठि-पहरेण ॥ [२४९७] दलहिं महियलु दढ-चवेडाहिं अप्फालहिं वक्करिय उरयलेसु पहरहिं विवक्खिहि । खोहेहिं रंग-जणु पिसुण-हियय सल्लवहिं दुक्खिहि ॥ अह चाणूरिण लहिवि लहु तह हरि हयउ उरम्मि । जह विहलंघलु परिखिवइ नयणई दिसि-विवरम्मि ॥ ___ 2010_05 Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६३ २५०१ ] नवमवि मुहिगचाणूरवहु [२४९८] तयणु किं-चि वि फुरिय-हरिसेण तिण कंस-निवाहमिण पुण-वि हरिहि घाय-कइ पेसिउ । ता मुसलिण धाविउण हणिवि उरसि चाणूरु धरिसिउ ॥ तह जह पसरिय-सासु महि- विलुलिर-केस-गुलंछु । सिय-पीयल-अरुणइं वमिरु निवडिउ आगय-मुच्छु । [२४९९] ___ अह तह च्चिय समगु मुट्ठिगिण वलभक्षु उज्झिय-करणु बहु-वियप्पु जुज्झेउ लग्गउ । ता पाविय-चेयणिण अरिण समगु रण-रसि अ-भग्गउ ॥ स-विसेसयरु परिप्फुरिय- अमरिस-वस-अरुणच्छु । पहरइ अहरिय-करुण तह कह-वि सु सउरिहि वच्छु ॥ [२५००] जेण नासिग-वयण-सवणाहं विवरेहिं परिगलिर- धाउ-निवहु चाणूरु जीविण । परिचत्तउ हरिहि कय- अविणओ त्ति नं गरुय-भीइण ॥ ता कुविउण भय-कंपिरु वि पभणइ कंस-हयासु । अरि अरि इहु मह मंडियउ नूण कयंतिण पासु ॥ [२५०१] अरिरि सुहडहु गहिवि बंधेह मारेह य गोव दु-वि हणह नंदु स-कलत्त-पुत्तु वि । जो एयहं कुणइ कु-वि पक्ख-चाउ मह रिउ मुणंतु वि । सो अम्हाहं वि सयणु धुवु मारेयव्वउ अज्जु । जह जीवंतु न कुणइ पुणु राय-विरुद्ध अ-कज्जु ॥ २४९८. ७. क. गुलंच्छ. २४९९. ३. क. वियप्प; ८. करण. ____ 2010_05 Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२५०२ ५६४ नेमिनाहचरिउ [२५०२] इय सुणेविणु भणइ हरि - पाव पुव्वं पि-हु बंधु मह निहय आसि जे तई अयाणुय । कय रक्ख अप्पह वहुय कुगइ-मग्ग-पयडणिण भाणु य ॥ पाव-तरुहं तहं सयलहं वि फलई स-हस्थिहि लेसु । कि न मह अक्खिय एह कह इय पुणु म-न जंपेसु ॥ [२५०३] इय भणंतु वि कण्हु उप्पइवि पडिऊण य सामरिमु कंस-मंचि तमु मउडु पाडिवि । भय-तरलिय-नयण-दलु दलिय-देह-भूसणु निहोडिवि ॥ तह कहमवि मुट्ठिण हणिउ उत्तिम अंगि हयासु । हुयउ कयंतह अतिहि जिह सो गय-जीविय-आसु ॥ [२५०४] एत्थ-अंतरि हलहरेणावि गुरु-कोव-वसुल्लसिय- सहस-गुणिय-वीरिय-विसेसिण । सो मुट्ठिग-मल्लु विणिवद्ध समगु निय-पष्टि-देसिण ॥ गल-कंदलु सु-नियंतिउण सुदढ-जोत्त-चट्टेण । तह भीडिउ कडियडिण सह जह समगु मरट्टेण ॥ [२५०५] दलिय-विग्गहु खुडिय-नयणिल्लु परिगलिय-रुहिर-प्पवहु रुद्ध-सासु संवरिय-चेयणु । सु कयंतह अतिहि हुउ तयणु दह्र पडिवक्ख-भेयणु ॥ हरि वलभदु वि दुल्ललिउ करयल-कय-करवाल । कंसह सुहड समुच्छरिय नं अप्पह खय-काल । २५०२. ५. कुमइ. २५०५. ३. क. मुणिय; ४. क. कडिकडिण. ____ 2010_05 Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५०९ ] नयमभवि कंसवहु [२५०६] तयणु कण्हह समुहु समुवेंत ते पेविखवि हलहरिण गहिवि थंभु सु-महल्लु मंचह । परिताडिय तह कह-वि जह ति सयल परिटलिय संचह ॥ कुविय-कयंत-समाणु वल पेक्खि दिसो-दिसि जंति । कि-वि कि-वि विवस-असेस-तणु-इंदिय तहिं जि मरंति ॥ [२५०७] एत्थ-अंतरि कंस-वयणेण जरसंघ-नगहिवह सेन्नु आसि जं तत्थ पत्तउं । तसु रक्खण-कइ तई जि मयई तम्मि अमरिसिय-चित्तउं ॥ लग्ग निय-सामिहि भइण जा सन्नाहु करेउ । ता ति समुदविजयाइ-नर- नायग तमणुसरेउ ॥ [२५०८] एहु अवसरु इय विभावंत सन्नाहिय-नियय-वल जुडिय तस्सु जरसंध-सेन्नह । खण-मित्तिण पवण-हय- घण व न? ते सुहड अन्नहं ॥ संरुद्धम्मि य सयलह वि महुरह पुरिहि पवेसि । जरसंधह हय-गय-सुहड नासिवि गया विएसि ॥ [२५०९] कंसु कण्हिण पुणु नियय-बंधुवह-वइयर-अमरिसिण निय-करहिं केसहिं गहेप्पिणु । परिखित्तउ कढिउण रंग-वहिहिं साडोवु नेप्पिणु ॥ तयणु अणाहिहिउ कुमरु जायव-निव-वयणेण । हरि-हलहर सउरिहि भवणि आणइ रह-रयणेण ॥ ____ 2010_05 Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६६ नेमिनाrafts [२५१०] ता स-मंदिर कह वलएव समुत निरिक्खिउण परिखलिर-गग्गर- गिरहिं एत्तिउ कालु स नर्दणहं तह अभिमुहु अब्भुट्टिउण सउरि हरिस - रोमंच - अंचिउ । भणिरु - अहह हउं किह णु वंचि ॥ 2010_05 मुह- दंसण- सुक्खेण । सह जायव-लक्खेण ॥ [२५११] करिवि केसवु नियय - उच्छंगि अद्धासणि पुणु मुसलि अह जायव - निव- निवह पुच्छहिं वसुदेवह पुरउ अह व रु सयलु वि सु तहं सन्निसन्तु वसुदेव आसणि । सयलि दूरु विम्हइय निय-मणि ॥ भणु को तंतु । कहइ साइ- पज्जंतु ॥ [२५१२] तयणु निवइण समुदविजएण उववृहिय वहु-विहिहिं इगनासिय धूय-जय तहिं आगंतु स-अंगरु ता जायव-जणु हरिस- हिउ विम्हिय-मुह अरविंदु ॥ तुट्ट-मणिण ते सउरि-नंदण | देवई व वियसंत - लोयण ॥ अवगूहइ साणंदु | [२५१३] एग - चित्तिण महुर-नयरीए धरणयह विमोइउण तेणावि महा-महिण दियह- मुहुत्तिण केसवह एत्थंतर निसु इयर जारिस कह संयुत्त ॥ - उग्गसेणु ठाव निवत्तिण । सच्चहाम स-दुहिय पवित्तिण ॥ दिन्न सु-लक्खण-जुत्त । [ २५१० Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५१७ ] तइयभवि नवमभवि कंसवहु तहा हि [२५१४] हुयइ कंसह कित्ति-सेसत्ति अंतेउरु पुर-जणु वि निहय-नाहु रुणुझुणइ निहुयउं । हा सामिय भड-तिलय सुहय-रयण किं एहु हृयउं ॥ कहिं गउ तुहुँ कहिं पेक्खिसहुँ आवि-न करि संभासु । जोइ-न तुज्झ विओई जह जणु चिढेइ निरासु ॥ [२५१५] इय निरंतर-गलिय-नयणंसुजल-धोइय-मुह-कमलु मुक्क-दीह-नीसास-मंसल । अंतेउरु स-पुरु तसु कंस-निवह पेक्खिवि अ-मंगलु ॥ सुमरेविणु अइमुत्तयह रिसिहि ताई वयणाई । अवलोएविणु कंसह वि विसमई मरण-दुहाई ॥ [२५१६] नियय-परियण-पुरउ साडोवु इहु पभणइ जीवजस मज्झ दइउ सिरि-कंसु निहणिवि । ते गोव-नंदह तणय वच्चिहिंति कहिं वसुह मिल्लिवि ॥ अह व किमन्निण पभणिइण हउँ निय-जणय-करेण । निहणाविवि जायव मुसलि कण्ह-नंद अइरेण ॥ [२५१७] समगामवय-सयल सत्तूहि निय-दइयह देसु हउं नूण सलिल-अंजलि पयत्तिण । इयरह उण हुणहुं धुवु जलिर-जलणु नियएण गत्तिण ॥ इय काऊण पइन्न गिरि- गरुय विमुक्कल-केस । सा जीवजस हयास गय जणयह पुरउ स-रोस । ____ 2010_05 Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२५१८ ५६८ नेमिनाहचरिउ [२५१८] ता कहं चि वि संठवेऊण सा पुच्छिय नरवरिण वच्छि कहसु को एहु वइयरु । अह तीए निवेइयइ पत्थुयत्थि साडोवु नरवरु ॥ जंपइ - वच्छि न सुट्ठ किउ ज न कहियउं तइयावि । न सहिज्जइ एगु वि दियहु एरिसु खलु कइयावि ॥ जओ - [२५१९] दुट्ठ महिलिय वाहि वइढंत आरंभिय-पसरु सिहि समुवलद्ध-अवयासु दुज्जणु । उग्गंतु अ-छिन्नु विस- तरु वि कुणइ भुवणह वि गंजणु ॥ इय न सुहावह हवहिं धुवु एहि उवेहिज्जत । तीसेसावि(?) हु भुवणह वि वत्थु-सत्थ पुव्वुत्त ॥ _[२५२०] तह-वि दृरिण चयसु तुहुं खेउ मह पासह वच्चिहइ कत्थ कसु वि दरिसिहइ स-वयणु । ते जायव गोव ति वि नंदु सो वि सु वि तेसि परियणु ॥ मई रुट्टइ तहं तारिसहं देइ कु संभासो वि । नहि मयरम्मि विरुद्धि जलि मच्छलियहं वासो वि ॥ [२५२१] इय कह-चि वि धूय संठविवि जरसंध-नराहिविण समुदविजय-पमुहाण निवइहिं । सिरि-सोमग-दृउ निउ सिक्खिवेउ बहु-विहिहिं वयणिहिं । पेसिउ सो-वि हु अइरिण वि जायव-सविहिहिं गंतु । जह जह जंपइ तह तह जि निसुणह साहिज्जंतु ॥ २५१७. १. क. सत्तहि, ख. सत्तुहि; ५. क. रयणु, ख. जलुणु. २५१९. ८. नीसेसावि. २५२०. ३. क. कत्थ सु व. ९. क. यह मच्छलियहं. २५२१. ६. क. पसिओ. ____ 2010_05 Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६९ २५२५ ] नवमभवि जायवजरसंधविरोहु तहा हि - [२५२२] तुम्ह सयलहं निवहं आइसइ जरसंधु नरिंदु जह जेहिं मज्झ जामाउ निहणिउ । ते दो-वि हु कण्ह-वल पेसवेसु विक्खेवु विहणिउ ॥ दुद्ध पियंतहं गोउलि वि ताहं क लग्ग अ-विज्ज । मत्थह मज्झि ण उग्गलहिं मंदालोचिय कज्ज । [२५२३] दोण्ह गोवहं कज्जि तुम्हहं वि जरसंघ-नराहिविण सह विरोहु नो जुत्ति-जुत्तउ । दोसारिह अप्पिउण सुहिण नियय-रज्जाइं चिंतउ ॥ अह सोमग-दूयह पुरउ समुदविजय-नरनाहु । भणइ - सम्मु परिभावि तुहुं एयहं को अवराहु ॥ __ [२५२४] विणु वि दोसहं हणिवि छ-व्वंधु वर-लक्खण-रूव-धर जाय-मेत्त कंसिण निवाइय । कण्हस्स वि हणण-कइ वाल उ[ण] वि परिमुक्क घाइय॥ पत्तावसरिण कण्हिण वि जइ निहणिउ निय-सत्तु । ता खत्तिय-कुल-संभविहि भन्नइ किह-णु अ-जुत्तु ॥ [२५२५] रुडु एयहं निवइ जरसंधु जामाउइ निहणियइ तम्मि रुटुइ हि वंधु-घाइण । सो निहणिउ एगु तह सावराहु निय-पुरिसयारिण ॥ एयह वंधव हय वहुय सिसु अविहिय-अवराह । जुत्तु अ-जुत्तु व कवणु इय तं पि कहसु दुय-नाह ॥ २५२५. ७. क. अवराहु. ____ 2010_05 Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ [२५२६ [२५२६] नूण निग्गह-अरिहु जरसंधरायस्सु वि कंसु परि पयड जस्सु दुविणय भुवणि वि । ता गरुयर-पूय-विहि मुसलि-सहिउ अरिहेइ कण्हु वि ॥ एत्वंतरि सोमगु भणइ अरिहाणरिह-वियारि । को हउं तुम्हाणं पि मइ का एरिसि अहिगारि ॥ [२५२७] कज्जु सामिहि किच्चु भिच्चेहिं अम्हेहिं तुब्भेहिमवि किं-पि जुत्तु जइ सु जि मुणिसइ । हउं पेसिउ सज्जणइ इयरहा उ हढिण वि सु लेसइ ॥ साम-भेय-डंडेहिं पहु कुणहिं कज्जि परिवाडि । जे उ ति लंघहिं ते खिवहिं अप्पणु खंधि कुहाडि ॥ [२५२८] वज्ज-दारुण वयण इय भणिरु सो सोमगु पेक्खिउण समुदविजय-नरनाह-पमुहिहिं । सयलेहिं वि जायविहिं असम-रोस-वस-फुरिय-अहरिहिं ॥ गरुयामरिमु समुल्लवइ तहिं आविवि गोविंदु । अरि अरि सोम अ-सोम तुहुं म-न मन्नहि सु नरिंदु ॥ [२५२९] पउर-परियणु एहि पुणु थोव सो गरुयउ एहि लहु सो पयंडु इहि मंद-सत्तय । जं एगु वि पंचमुहु हणइ करिहिं सय-सहस मत्तय ॥ लहुउ वि वज्जु दलइ गिरिहि सिहरइं गरुयाई पि । दोण्ह वि पक्खहं नज्जिसहि पुणु रणि सत्ताई पि ॥ २५२८. ५. क. असरोस ____ 2010_05 Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७१ २५३४] नवमभवि जायवजरसंधविरोह [२५३०] सामि-सेवग-भावु पुणु इत्थ कड्या-वि कस्सु-वि हवइ जं सु-नीइ परि कमिहि किज्जइ । नीई उ सु-बुद्धियहं सा उ तुम्ह गलिय त्ति नज्जइ ॥ जं दीसइ सव्वायरिण अ-विसयम्मि पारद्ध । उभयहं भवहं विणासयरु पत्थुयत्थि निव्वंधु ॥ [२५३१] कयलीणं वंसाणं य होइ विणासाय जह फलं लोए। तह पुरिसाण अ-कज्जे पडिवंधो कुल-विणासाय ॥ [२५३२] तयणु जल-निहि-सलिल-गंभीर सुर-सिहरि-थिरेग-मण गयण-मग्ग-विच्छिन्न-आसय । अवलोइवि कण्ह-वल गहिय-वयण-विनाण-अइसय ॥ सो सोमगु संकिय-हियउ जा चिट्ठइ खणु एगु । समुदविजय-निवु ताव इहु पभणइ विमल-विवेगु ॥ [२५३३] भणसु सोमग तुहुं जरासंधु जह - नंदण-मग्गणउं मुइवि अम्ह आइससु सयल वि। अह सोमगु भणइ - नर- नाह एहु हउं मुणहुं वालु वि ॥ जइ न समप्पह तुम्हि मुय ता अच्छउ पुहईए । पायालम्मि वि न हविहइ ठाणु एहु स-मईए ॥ [२५३४] सम्मु चिंतिवि देह पडिवयणु अरहटु म वट्टियहं विक्किणेह सव्वे वि मिलिउण । इय पुणु पुणु पभणिरह सोमगस्सु दुव्वयण मुणिउण ॥ कोव-पकंपिर-अहर-दलु अमरिस-अरुणिय-दिट्टि। हरिहि वंधु सविहि ट्ठियउ पभणेइ अणाहिहि ॥ ___ 2010_05 Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७२ [२५३५ नेमिनाहचरिउ [२५३५] अरिरि सोमग तुहुं जि जरसंध निव-भवणि असोम-करु हुयउ एम्ब साहंतु अम्हहं । अचिरेण वि पेक्खिहिसि तुहुं वि अम्हि जं करहुं तुम्हहं ॥ इय खर-जंपिय-मुग्गरिण निहणिय-मुहु आगंतु । सोमगु जरसंघह पुरउ कहइ पुव्व-वुत्तंतु ॥ [२५३६] समुदविजउ विकण्ह-वलभद्द मुहि-सज्जण मेलिउण वाहरेउ कोठुगि निमित्तिउ । कि एण्हि जुत्ति-खमउं सह रिऊहिं अम्हं ति पुच्छिउ ॥ सम्मु निहालिवि साहियउं नेमित्तिण वि स-तोसु । जह - हरि-मुसलि वि निय-बलिण निहणिवि सत्तु स-दोसु ॥ [२५३७] अद्ध-भरहह सामि-भावेण निस्संसउ होहिसई किं-तु एण्हि जायविहि सयलिहिं । सह वच्चह पच्छिमहं दिसिहि तुम्हि विंझ-गिरि-सविहिहिं ॥ जलहि-तीरि जहिं हरि-दइय सच्चहांव पसवेइ । तणय-जुयलु तहिं अच्छिजहु नयर-निवेसु करेइ ॥ [२५३८] इय विणिच्छिवि समुदविजयाइ सयलो वि जायव-निवहु उग्गसेण-निव-लोय-सहियउ । सिरि-सोरियपुर-जणिण सूरसेण-विसइण वि कलियउ ॥ पवर-मुहुत्ति पहाण-दिणि सु-सउण-सय-जोगम्मि । संचल्लिउ पच्छिम-समुहु हुयइ पवरि लग्गम्मि ॥ २५३५. ८. क. पुरओ. २५३६. ८. क. वलि. २५३७. ३. क ख. सयलि वि, ६. क. ख. जलिहि; ७. ख. सचुहाम्ब. ____ 2010_05 Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४२ ] नवमभवि जायचजरसंधविसेहु [२५३९] इओ य - पुव्व-वइयरि सयलि स-विसेसि अक्खायइ सोमगिण फुरिय-रोस-वस-अरुण-लोयणु । जरसंघ-नरिंदु हुउ दुसहु खयह कालि व विरोयणु ॥ भणइ य - अरिरि चउद्दसिहि जाउ अस्थि कु-वि वीरु । जो मह गोव निदंसिउण सियलावेइ सरीरु ॥ [२५४०] तयणु पसरिय-गरुय-विरिएण रिउ-दुद्धर-पोरिसिण पत्त-कित्ति-पसरिण अयालिण । जरसंध-नराहिवह पुरउ तमु जि नंदणिण कालिण ॥ पासि करेविणु जीवजस जंपिउ - अइराओ वि । हउं इह आणिसु रिउ-निवहु कइढिवि जलणाओ वि ॥ [२५४१] __ अह स-हत्थिण तुट्ट-हियएण जरसंध-नराहिविण तमु विइन्नु कप्पूर-बीडउं । सह पेसिय पंच सय नरवईण अमियंतु घोडउं ॥ कुंजर-सुहड-रहाहं पुणु कालिण सह चलियाहं । अंतु न मुणियउ तइयहं वि हउं किं वन्नउं ताई ॥ [२५४२] एत्थ-अंतरि पडिउ झय-कलसु जय-कुंजरु अत्थमिउ भग्गु दंडु पुणु पुंडरीयह । पडिकूलु स-सक्करउ फुरिउ अनिलु हुउ कंपु वमुहहं ॥ वामउं नयणु परिप्फुरिउ अवरि वि हुय उप्पाय । ता सयलि वि कालह सुहड सामल-मुह संजाय ॥ २५३९. ६. चउद्दिसिहि. २५४०. ७. क. ख. अइराउ. २५४१. ८. क. तइयंह. 2010_05 Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ४ नेमिनाहचरित [१५४३ [२५४३] मरण-कारण पेक्खमाणो वि अ-नियंतु व विहि-हयउ चलिउ कालु सुयणिहिं निसिद्ध वि । अ-वियाणिरु कज्ज-विहि- विसउ काल-पासेहिं वद्ध वि ॥ अहवा जं जं कारियइ पाविहिं पुव्व-कएहि । तं तं जीयु करेइ धुवु किं कीरइ इयरेहिं ॥ [२५४४] पुरउ वच्चहिं कण्ह-चलएव निय-जायव-परियरिय पच्छओ उ सो कालु स-बलु वि । अवगच्छिर दो-वि पुणु पक्ख एहु वुत्तंतु सयलु वि ॥ अइरेण य थोवंतरिण विंझ-गिरिहि सविहम्मि । आगय अह भरहद्ध-सुर-, अंगण खुहिय मणम्मि ॥ [२५४५] दिव्व-सत्तिण विहिय-इग-दारु सुर-पव्वय-तुंगु गिरि दुहं वि वलहं अंतरि विउव्वइ । एत्थंतरि सिविर-भर- डरिय-वइरि तहिं कालु आवइ ॥ किं पुणु पिक्खइ गिरिहिं निय- पह-पिंगलिय-दिसाइं । सिमिसिमिसिमिरहं डज्झिरहं मडयह चियहं सयाइं ॥ [२५४६] अरिरि किं इहु इय विचितंतु जा अग्गिम-मग्गु कु-वि अक्कमेइ ता कालु पिक्खइ । पढ मेल्लुय-जोव्वणिय पलवमाण-बहु-संख-दुक्खई ॥ भुवण-अहिय-निय-रूव-सिरि मउलिय-मुह-कंदुट्ट । जलिरह एगह चियह तडि वालिय एग दुहट्ट । २५४४. १. क. पुर; वलए. २५४५. ५. क. सविर corrected as सिविर; ख. सविर. ____ 2010_05 Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५५०] नवमभवि जायवजरसंधविरोहु [२५४७] तयणु सविहिहिं गंतु तरुणीए एसो कालु समुल्लवइ सुयणु किह-णु तुहुं एम्ब पलवसि । ता वालिय नीससिवि भणइ - हंत म-न किंपि पुच्छसि । धरि कंठ-ट्ठिय-दुक्खडा मा पयडिज्जहु लोइ । गरुयत्तणु परिहारियइ दुइ उद्धरइ न कोइ ॥ [२५४८] __मह वि जइ क-वि सुकय-सामग्गि पुवज्जिय होज्ज इह ता सहिज्ज दुह हउं कि एरिस । किं वहुइण एयहं जि चियहं पडिवि हउं मरिसु सु-पुरिस ॥ अह - नणु थवियहं मुत्तियहं किं कु-वि अग्घु करेइ । इय कालिण वुत्तइ तरुणि पडिउत्तरु वियरेइ ॥ [२५४९] सुणसु सुंदर तुज्झ निव्वंधु जइ इत्थ पत्थुय-कहहं ता कहेमि किं-चि वि समासिण । जह सोरियपुरि नयरि समुदविजय-निवु चत्तु दोसिण ॥ तसु वंधवु पुणु आसि लहु महुर-पुरिहिं वसुदेवु । तसु पुणु हुयउ सुय-प्पवरु कण्हु अवरु वलएवु ॥ [२५५०] तेहिं दोहिं वि कंसु निव-अहमु निय-बंधु-वइरिण हयउ ता कुवेउ जरसंध-निवइण । निय-नंदण-रयणु कु-वि काल-नामु सह पउर-सेन्निण ॥ सव्वेसि पि-हु जायवहं हरि-हलहर-सहियाहं । पेसेउ गुरु-निग्गहह कइ वेगिण नासंताई ॥ २५४७. ६. वरि. २५४९. ५. क. निव. ____ 2010_05 Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २५५१ नेमिनाहचरिउ _ [२५५१] अह सु सविहागयउ निसुणेवि पछन्न-चारहं मुहिहिं भीय-चित्त कंपंत जायव । मा मरियउ रिउ-करिहि इय मुणंत सुक्क व्च पायव ॥ तक्खण-जालिय-चिय-सहस- मज्झि अप्पु खिविऊण ।। छारुक्कुरुडीहूय लहु चियह जलणि जलिऊण ॥ [२५५२] भमहिं कुंजर दड्ढ-आरोह निन्नायग पडहिं चिह- चक्कि चवल धाविवि तुरंगम । परिडज्झहिं रह तुरिउ रिउ वि पत्त इह जिह पवंगम ॥ एहि ति चिट्ठहिं जायवहं सेन्न-निवेस अणाह । इय कसु कहउं कु फेडिसइ इहि मह हियडइ डाह ॥ [२५५३] इह अहं पि-हु भुंड-निल्लाड निभग्ग निलक्खणिय करिसु छेहु स-दुहहं मरेविणु । निय-वंधव-हरि-मुसलि- चियहं इमहं निच्छइं पडेविण ॥ इय भणिर वि तसु पेक्खिरह तहिं सा निवडिवि मुद्ध । डज्झिवि खण-मित्तिण वि हुय छारह रासि विसुद्ध ॥ [२५५४] __अहह स-जणय-भइणि-पच्चक्खु मई अच्छि पइन्न किय जह अवस्सु मज्झह वि जलणह । कड्ढेविणु नियय-रिउ नृण पुरउ आणिसु स-जणयह ॥ ते उण निय-दुक्कय-निहय पविसेविणु जलणम्मि । मया तहा जह न मुणियइ सुद्धि वि तेसि जयम्मि ॥ २५५१. ५. क. सुणत. २५५३. ३. क. सदुहवं. ____ 2010_05 Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमभवि जायवजरसंधविरोहु [२५५५] rea किं मह इयर - भणिएहिं पविसेविणु एयहं जि चियहं मज्झि ते गोव कङ्क्षिवि । - २५५८ ] हउं पियरहं मिलि इय कालिण खद्धउ कालु परिडज्झिर - अंगोवंगु । मयउ तयणु परिवारु तसु निहुराउं रुयइ समग्गु ॥ भणिव झत्ति तहि चियहं निवडिवि ॥ [२५५६ ] जवण - पमुह वि तेण सह पत्त गलिय- बुद्धि-वावार - पगरिस | सव्वे वि- निव-वसह अवलोइय-नियय-पहु कुमर-मरण - पसरंत - अमरिस ॥ किण सहुं जुज्झहिं कु व हणहिं कहिं पयडहिं आडोवु । मणि विरम्वावहिं कोवु ॥ अ- नियंता वइरियहं वलु सह काल - मणोरहिहिं अह जवण - प्पमुह निव ता विलवंत तह कह - वि उदियt दिण-इंदम्मि पुणु [२५५७] एत्थ-अंतरि तरणि अत्थमिउ 2010_05 फुरिउ तिमिरु सह तसु जि पाविहिं । fare - नाह तहिं चैव निवसहिं ॥ झीण रयणि नीसेस । हुय - पडिवोह - विसेस ॥ [२५५८] नियहिं न सु गिरि न त चियहं चक्कु न त सिविरु न तुरय न ति गइंद न वि सुहड़-सत्थय । न ति संण न ति विडवि किं-तु सुद्ध धरणियल अइगय || जा चिहहिं खणु एगु तर्हि ता पच्छन्न- नरेहिं । साहिउ जह – गच्छहिं सयल जायव परम-सुहेहिं || २५५५. ३. क. चियह; ख यहं ९. क. निहयंडं. २५५६. ६. क. हणई. २५५८. १. क. सुर गिरि. ७३ ५७७ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७८ नेमिनreafte [२५५९] अह ति चिंतहिं जवण - निव- पमुह अहह तेसि जायव - नरिंदह | जर संघ- नरिंद-भड लहं हं विहलहर - उर्विदहं ॥ निय भुय-वल- दलिय-रिउभुवणस्स वि अच्छरिय-कर- सुकयहं परिणइ का वि । जेसि विवक्खिय-चह - विहिर्हि उज्जमंति देवा वि ॥ [२५६०] जह वि गच्छहुं तेसि पट्ठीए कायव्वरं बुहिहिं पुणु सिरि- जर संघ- नरेसरह जं उदयंत - पयाव-भर कह-कहमवि तह विधुवु हवइ अम्ह सयलहं अणत्थु जि । कज्जु सयल परिणाम- सुत्थु जि ॥ विहल हियय - अवलेव । नज्जहिं हरि-वलएव ॥ [२५६१] किं व करिहईं तत्थ माणविय पर अमर - गण सुइर-चरिय-सुकयाणुरागिण । इय चितिविसर -ससि - कुंद - कलिय - निम्मल- विवेगिण || उत्तारिवि अवमाण- दुहु संधीरिवि अप्पाणु । गम्म सामिहि पुरउ निय- पुन्नई काउ पमाणु ॥ 2010_05 [२५६२] इय विणिच्छवि जवण - निव-पमुह सव्वे व ति निव-वसह पत्त पुरउ जरसंघ - निवइहिं । तणउ सुणिवि आगमिरु पट्टिहिं ॥ साहति य झ - गिरिं पंचतह संपत्त तुह २५५९. ५. क. विवि. २५६१. २. क. पहरहि. २५६२. ६. क. गरिंदह. GMA . देव तुह afe चियहं चक्किहि पडिवि असेस । रिउ जायव-वसुस ॥ [ २५५९ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७९ २५६६ ] नवमभवि जायवजरसंधविरोड [२५६३] कालु पुणु मइं किय पइन्न त्ति जलणाउ वि कड्ढिउण नेसु सत्तु पिउ-सविह-धरणिहिं । इय जंपिरु वारिउ वि परियणेण वहु-विहिहि वयणिहि ॥ हरि-रामह केरिय चियहं पडिउ तलप्फ दलेवि । पहु पहु किं किं एहु इय भणिर वि अम्हि मुएवि ॥ [२५६४] __ता किमेयहं चियहं अम्हे वि संतेउर स-परियण निवडिऊण पंचत्तु पाम्बहुं । अहवा किं नियय-पहुहु पुरउ गंतु वइयरु निवेयहुँ ॥ इय चिंतंतहं सयलहं वि वियलिय-मइ-विहवाहं । अत्थमियउ दिणयरु हुयउ उदउ सयल-ताराहं ॥ [२५६५] तयणु तत्थ वि दिन्न-आवास अइवाहिय निसि-समय जाव अम्हि वाहुल्ल-लोयण । अवलीयहं दिसि-मुहइं पत्त-उदय-पाविय-विरोयण ॥ तान सु गिरि न ति चिह-निवह न ति जायव-आवास । अवलोइय अम्हेहिं इय हुय अच्चंत-निरास ॥ [२५६६] कह-कह-चि वि पत्त पहु-पुरउ जह-मुणियउ वइयरु वि पहुहु सविहि विन्नत्तु सयलु वि । अह जायव-तिलय-हरि- मुसलि-मरण-सवणेण सुहिउ वि ॥ निय-कुल-मंदिर-जस-कलस- काल-मरण-कय-दुक्खु । सुद्ध-धरायलि निवडिउण हुयउ झडत्ति अ-लक्खु* ॥ * क. ग्रंथागं ६५००. ख. ग्रं० ६५००. 2010_05 Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२५६७ नेमिनाहचरिउ [२५६७] अहह सामिय किं किमेयं ति इय भणिरिण परियणिण कह-वि निवह चेयन्नु आणिउ । एयं पि-हु निव-वरहं मुहिहिं सयलु जायविहिं निसुणिउ ॥ ता गरुयर-हुय-पच्चइहिं *मुहि-महुयर-अरविंदु । सो नेमित्तिउ पूइयउ हरि-मुसलिहिं साणंदु ॥ [२५६८] कमिण अग्गिम-मग्गि गमिराह ससि-निम्मल-नाणु तहं मिलिउ एगु मुणि-रयणु चारणु । अह भाविण थुणिउ तमु चलण-जुयल दुग्गइ-निवारणु ॥ पत्थावंतरि तिण कहिउ समुदविजय-निवइस्सु । आसि निवेइउ नमि-जिणिण हरिसेणह चक्किस्सु ॥ जहा [२५६९] जंबु-दीविहिं भरह-वासम्मि सिरि-सोरियपुरि नयरि समुदविजय-वसुहाहिरायह । सिवदेविहि उयरि सुर- राय-नमिउ हिउ जंतु-जायहं ॥ जायव-वंस-सिरोरयणु वावीसइम-जिणिंदु । नेमि-नाहु हविहइ भुवण- पणमिय-पय-अरविंदु ॥ [२५७०] अद्ध-भरहह सामि-भावेण होहिंति पुणु कण्ह-वलएव तणय वसुदेव-रायह । इय निमुणिवि तुट्ट-मण थुइ करेवि मुणिवरहं पायहं ॥ अक्खंडेहि पयाणइहि जायव-निव वच्चंत । सोरट्टई रेवय-गिरिहिं अवरुत्तरहं पहुत्त ॥ * Lines २५६७. ७. to २५६८. ३. are dropped in ख. ___ 2010_05 Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५७४ ] नवमभवि वारवइनिम्माणु [२५७१] तयणु जायव - कुलहं कोडीण अट्ठारस-संखयहं अन्न व जहारिह समुदविजय नरवर पमुह जायव आवासंति । जाता तत्थ विठियहं तहं जायइ दियहि पवित्ति ॥ कमिण का विणिवेस सेन्नई | ठाण दाउ निव-पगइ - भूवहं || [२५७२] सयल - सज्जण - वणिय धम्मियण सुहि-सयण-मणोरहिहिं अ- किलेसिण सुय-जुयल अह तहं वियरिउ जायविहिं एगह भामरु इयरह उ संजय पवर-दिक-हाण - विलेववलि 2010_05 [२५७३] तयणु तत्थ विठियां जायवहं सच्चद्दाम भुवणह वि सारिय । असमु जिrs हरि-पवर - भारिय || संतोसिण अभिहाणु । अवितहत्थु गुण-भाणु ॥ fare पूय रयणायरह afer जलनिहि-पहु तियसु सुत्थिउ हियइ धरितु ॥ २५७१. ७. क. आवासंमि. २५७२. ९. क. अवितहत्थ लग्ग - विहिण नेमित्ति-कहिइण । कम्म-वत्थ-आहरण-भूसिण || तह किउ अट्टम - भत्तु । [२५७४ ] अह सु आसण-कंप - विन्नाय हरि- हलहर-आगमणु वे रयण-आहरण- कुसुमई । संखो वि-हु पंच-मुह पंचयन्न - अभिहाणु अ-समई ॥ अन्ना व नाना- विहई धरहं अ-संभविराई । हरिह दे वत्थूणि सुरु सुत्थिउ हियय-हराई ॥ ५८१ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५७५ नेमिनाहचरिउ [२५७५] तह सुघोसभिहाणु वरु संखु वीइज्जउ हलहरह देइ विविह-वत्थूहिं सहियउ । जंपेइ य-तुटु तुह किह णु कण्ह हउं तई सुमरियउ ॥ मग्गसु जं किं-चि वि मणह तुह पडिहासइ वत्थु । जह आणेविणु भुवणह वि मज्झह देमि समन्थु ॥ [२५७६] तयणु केसवु भणइ साणंदु संपज्जइ किं न तई तुट्ठ-मणिण सुर-रयण दुलहु वि । तह भरह-खित्ति जइ वासुदेवु नवमु म्हि अहमवि । एसो वि-हु मज्झ गुरु- बंधु मुसलि वलएवु कहमवि ॥ तुमइ वि जइ पुचिल्लयहं हरिहिं चउहुं किउ ठाणु । नयरि निवेसिवि मह वि इय तं चिय कुणसु पम्वाणु ॥ [२५७७] पुरउ अक्खिउ आसि किर अम्ह अइमुत्तय-महरिसिण पुचमवि-हु अइ-गरुय-चित्तय । सिरि-अयल-तिविटूटु हलि- विण्हु-नाम निम्मल-चरित्तय ॥ सिरि-पोयणपुर-पुरवरह सलिल-कील कुव्वंत । सिरि-पहास-अभिहाणयइ एयहं तिथि पहुत्त ॥ [२५७८] विहिय-अट्ठम-तवहं पुरि ठाणु मग्गंनहं तुह पुरउ तइं विइन्नु तहं इच्छ-माणिण । सक्कि दह-वयणु पुणु उवलभेवि वेसमण-तियसिण ॥ मणि-कंचण-वत्थाहरण- पूरिय-धवलघरोह । वारवई पुरि निम्मविय जिय-अमरावइ-सोह ॥ २५७५. १. अभिहाणु. ___ 2010_05 Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८३ ५८३ २५८८ ] नवमभवि वारवइनिम्माणु जओ भणियं - [२५७९] तियसवइ-पेसिएणं वेसमणेणं पुरी विणिम्मविया । वारस-जोयण-दीहा नव-जोयण-वित्थडा रम्मा ॥ [२५८०] वारवई-अभिहाणा सा भुत्ता तेण पढम-जुयलेण । वीयं जुयलं हलि-केसवाण देसे सुरहाए ॥ [२५८१] वारि-पुरे उप्पन्नं तेण वि भुत्ता इमा पुरी रम्मा । तइयं कुसट्ट-देसे महा-पुरे जुयलमुप्पन्नं ॥ [२५८२] परिभुत्ता तेणावि-हु सा नयरी तह चउत्थ-जुयलेण । आनट्ट-देस-सन्निउर-संभवेणावि सा भुत्ता ॥ [२५८३] जं पुण जम्म-ठाणं कहिया आवम्सयम्मि वारवई । तिण्ह दुविठु-प्पमुहाण तं पुणासन्न-भावेण ॥ [२५८४] मोत्तुं वलएव-हरी एए चउरो सुएण वि इमेसिं । अन्नेण नयरि भुत्ता सा वारवई महा-नयरी ॥ [२५८५] इय सोऊणं हरिणो वयणं अब्भत्थण च पुव्वुत्तं । अब्भुवगमिउ तयं मुत्थिय-तियसो खणद्धेण ॥ [२५८६] ओसारइ जलनिहिणो सलिलं नयरी-निवेस-ठाणम्मि । इत्तो य सुहम्म-सुराहिवस्स वयणेण वेसमणो ॥ [२५८७] कुणइ अहो-रत्तेणं नयरिं रयणेहिं निम्मियं रम्मं । वारस-जोयण-दीहं नव-जोयण-पत्त-वित्थारं ॥ [२५८८] नव-हत्थ-भूमि-मग्गो अट्ठारस-हत्थ-विहिय-उस्सेहो । वित्थरओ य दुवालस-हत्थो नयरीए सव्वत्तो ॥ २५८३. १. क. तं पुण, कहिगा. ___ 2010_05 Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८४ नेमिनाहचरिउ [२५८९ [२५८९] पंचविह-रयण-मइओ बहु-जंत-निवेस-कय-महादुग्गो । कविसीसय-सय-सुहओ पडाय-धय-चिंचइओ ॥ [२५९०] उवरि-निहित्त-सिलोहो भीसण-निम्मविय-सीह-पडिरूवो । रयणट्टालय-गोउर-गवक्ख-कलिओ को सालो ॥ [२५९१] पायारस्स य एयस्स पासओ खाइया रयण-पद्धा । दो-कंड-वायविक्खंभ-रेहिरा वेइया-कलिया ॥ [२५९२] विमल-जल-पूर-पुन्ना जलयर-भीमा अणिट्ठिय-तरंगा । कमल-वण-संकुला पर-वलाण मणसा वि दुल्लंघा ॥ [२५९३] वर-पउमराय-मरगय-वेरुलियंकाइ-विविह-रयणेहिं । मणि-कंचण-फलिहेहिं य विणिम्मिया तीए पासाया ॥ [२५९४] वट्टा चउरंसा आयया य गिरिकूड-सव्वओभदा । सोत्थिय-मंदर-अवतंस-वद्धमाणाइ-णामेहिं ॥ [२५९५] एग-भूमिय के-वि पासाय कि-वि दोहिं भूमिहिं कलिय तिहिं वि के-वि कि-वि चउहिं भूमिहि । पंचहि छहिं सत्तहिं वि भूमियाहिं वर-रयण-घडिइहि ॥ उववण-कीडा-सर-सिसिर- दीहिय-पुक्खरिणीहि । मणि-कंचण-सिल-संचइण घडिय-केलि-सिहरीहि ॥ [२५९६] ण्हाण-कीलण-कोस-सयणीयआयरिसय मंतणय- दृइकम्म-आहरण-भवणिहिं । अंतेउर-देवहर- अंगभोग-भोयणहं ठाणिहिं ॥ धय-मालाउल-सेहरिहि रयण-मइहिं सालेहिं । उवसोहिय तह पिहिय-रवि- किरण-तुंग-मालेहिं ॥ २५८९. १. क. वहुं. २५९१. १. खाइयाए. २५९६. ३. क. भवणिहि. ८. क. उवसाहिय. 2010_05 Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६०४ ] नवमभवि वारवइनिम्माणु अवि य - [२५९७] रयण-निम्मिय-विविह-देवउलसिहर-ट्ठिय-कणयमय- कलस-किरण-पिंजर-दियंतर । पुर-उववण-पउमसर- गमिर-विहय-रव-भरिय-अंवर ॥ अहव किमन्निण भुवण-मण- हरण असेस हाण । वेसमणिण किय वारवइ अमरावइहि समाण ॥ [२५९८] अह सु केसव-विहिय-सक्कारु संपत्तउ सुर-भवणि पुरउ सक्क-तियसाहिरायह । तयणंतरु सुत्थिइण सुरिण हरिहि वलभद्द-भायह ॥ कोत्थुभ-रयणालंकरणु वियरिउ कय-सक्कारु । तह धरणियलह अब्भहिउ एहु वत्थु-पब्भारु ॥ [२५९९] सत्तिं कोमुइय-गयं नंदग-करवाल रयण-वणमालं । अक्खय-तूणा-जुयलं आसीविस-वाण-संजुत्तं ॥ [२६००] सारंग-चावमसमं गरुड-ज्झय-संजुयं रहं दिव्वं । अन्नाइं वि वहुयाई दिव्व-वत्थाई वि दिन्नाई ॥ [२६०१] रामस्स पुणु पयच्छइ तूणा-जुयलेण सह महा-चावं । मुसलं हलं गयं तह ताल-ज्झय-सहिय-रह-रयणं ॥ [२६०२] तो पुन्नभद्द-पमुहा जक्खा वेसमण-वयणओ तेसिं । दंसंति समुचियाइं गिहाई अहं तेसु निवसति ॥ [२६०३] अद्ध-चउत्थ-दिणाणि य जक्खो वरिसंति तीए नयरीए । आहरण-कणय रयणेहिं वत्थ-धण-धन्नमाईहिं ॥ [२६०४] संपुन्न-सयल-कोसो महिड्ढिओ होइ तो जणो सयलो । किं वहुणा सा नयरी जाया अमरावइ-पुरि व्य ॥ ७४ 2010_05 Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ [२६०५] आवट्ट - कुसट्टा सूरसेण- पमुहाण सयल- विसयाणं । आगंतु जणो निवसइ तीए पुरीए निमुय - कित्ती ॥ ५८६ [२६०६] ave - हलहर - पमुह जायव वि अच्चंत - पहि-मण अवाहहिं कालु कु - वि इयरो विहु कंच - घडियस - विवि निज्जिय - वेसमणु वालो वि अ-वाल- मणु थुब्वंतु सुरासुरिहिं कइया - वि-हु छज्जइ सुरिहिं संझ - राय परिपिंजरिउ [२६०७] भुवण-बंधु विरि-वर - नेमि कीलमाण वहुविह विणोइहिं । दूर-पहिण उज्झिय-विसाइहिं ॥ घर - पंतिसु जह-जोग्गु । विलसइ जायव-वग्गु ॥ नं अंजणगिरि - सिलहं 2010_05 तोसमाणु सयलो वि जय-जणु । जयह सग्ग- अपवग्ग-पयडणु ॥ घुसिण - विलेविय - देहु | नाव सामल मेहु || [२६०८] सहइ उरयलि हारु निक्खित्तु परिघुलंतु सु-महल्ल निज्झरु । सोहु सहर पहु नं पुरंदरु ॥ बन्नहुं थोव - गुणेहिं । मणि - कुंडल-जुयल-कयअहवा जं जमणंत-गुणु तर्हि तर्हि अप्पु जि नडउं हउं कित्तिम कइ वयणेहिं ॥ [२६०९] भुवण-समहिय देह माहप्पु जय - उत्तिम कंति-धरु पणमंत चिंतारयणु rea कमन्नि निय-गुणिहिं तह भुवणोवरि थक्कु । नेम - कुमरु जह वन्नणिण तमु सक्को विअ सक्कु ॥ २६०६, ८. बिह [ २६०५ असम-सुकय-निहि नाण-दिणयरु । भव-समुद-वोत्थुि सुंदरु | Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६१३] नवमभवि नेमिवुत्तंतु [२६१०] तित्थ-सामिय हवहिं इयरे वि रूवेण अनन्न-सम भुवण-अहिय-सोहग्ग-सुंदर । भुवणोयर-वित्थरिय- छण-ससंक-सिय-कित्ति-मणहर ॥ किंतु जहा अज्ज-विजणइ जणह चमक्कउ नेमि । तह विप्फारिय-लोयणु वि अन्नयरह न निएमि ॥ [२६११] तयणु अणुकम-पत्त-तणु-वुइढि नीलुप्पल-ललिय-पहु सं ख-अंकु सिरि-नेमि-सामिउ । उद्ध-द्विउ निवसिउ वा गिह-गउ व्व पुर-पहि व गामिउ । अहवा जहिं जहिं ठिइहिं ठिउ तहि तहिं वहु-कामाहिं । चलिहि चलंतिहि लोयणिहि जोइज्जइ रामाहिं ॥ [२६१२] कहहं चित्तिहिं लेप्प-कम्मेसु गीएहिं सो ज्जि पहु तत्थ तम्मि समयम्मि नज्जइ । लब्भंतिहि गयवरिहिं रासहेहिं नणु काई किज्जइ ॥ मय-भिभल तियसंगण वि सग्गि विसु जि झायंति । किन्नर-तरुणि वि सुर-गिरिहि नेमि-कुमरु गायंति ॥ [२६१३] कह-वि न कुणहिं स-स-कम्माइं सुर-किन्नर-नर-तरुणि भुवण-नाह-गुण-गहण-तप्पर । सामी उण कामिणिहिं कह वि चयइ अणुराय-सुंदर ॥ नेमि-कुमारह सुणि वि ससि- निम्मलु कित्ति-कलावु । अवरु वि गुण-रयणज्जणइ जयइ समुज्जल-भावु ॥ २६१२. १. क. चित्तिहि; ४. क. गयवरिहि. ___ 2010_05 Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२६१४ ૧૮૮ नेमिनाहचरिउ [२६१४] __नेमि-कुमरह सील-सम्भावु अवलोइवि रत्त-मण जउ-कुमार अक्कूर-पमुह वि । तसु सन्निहि गुण-गहण- एग-हियय न मुयंति खणमवि ॥ जे वह-गुण जे पंडिया जे मुणि-किरियासत्त । ते विन नेमि-हियय-कमलु खणमवि मुयहिं निरुत्त ॥ [२६१५] अह निएविणु नेमि-कुमरस्सु सव्वंगिय-सुहय-गुण- रासि असम-संतोस-भरियउ । सयलेहिं वि जायवेहिं समुदविजय-नरनाहु सहियउ । पुहइ-पहाणहं नरवइहिं धूयउ सयलि वि देसि । अवलोयइ सव्वायरिण नेमि-कुमारह रेसि ॥ [२६१६] नेमि-कुमरु वि विजिय-कंदप्पमहाप्पु न परिणयण कह-वि कुणइ भव-भाव-विमुहउ । चिटइ य निवेसिउण नाण-नयणु सिव-गइहि समुहउ ॥ पेच्छंतउ संसारियहं विविह विडंवण लोइ । भन्नंतु वि विसइय-सुहहं कह-वि न समुहीहोइ ॥ [२६१७] एत्थ-अंतरि गयण-मग्गेण परिवायग-वेस-धरु दढहिमाणु नारउ पहुत्तउ । तहिं सच्चहामह सविहि तीए अ-कय-भत्तिउ कु-चित्तउ ॥ चिंतइ - अहह निलक्खणिय इह मह कुणइ न भत्ति । ता मेलिसु एयह अहिय- रूव-समिद्धि सवत्ति ॥ २६.१५.६. क. पुहई. ____ 2010_05 Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२१ ] नवमभत्रि रुप्पिणिहरणु [२६१८] तयणु रोसिण धमधमेमाणु उप्पइउण नहयलिण कुंडिणीए नयरीए पत्तउ । तहिं भीसम-नामु निवु आसि रज्ज-सुह-अमय-सित्तउ ॥ तसु सुउ रुप्पी-मामु निवु धूय वि रुप्पिणि-नाम । विमल-कलालय असम-गुण- गण-रयणावलि-धाम ॥ [२६१९] तीए ससहर-मुहिहि भवणम्मि जा नारउ आगयउ उवरि ताव दूरह वि उढिवि । कय-आयरु संभमिण एहि एहि भयवं ति पभणिवि ।। वियरइ सीहासणु पवरु तहिं उवविट्ठइ तम्मि । कय-सक्कारु समुल्लवइ रुप्पिणि जह - धरणिम्मि ॥ [२६२०] परिभमंतिण कह-वि सच्चविउ कोऊहलु किं-पि तई ता भणेइ नारउ - सुलोयणि । पणयागय-कप्पतरु खल-कुढारु नय-पहिय-दिनमणि ॥ सोहग्गिय-तरुणहं तिलउ निहणिय-माणिणि-माणु । वारवइहिं मई सच्चविउ कोउगु हरि-अभिहाणु ॥ [२६२१] ___ तयणु रुप्पिणि भणइ -दंसेसु मह कह-वि त नर-रयणु अह सु झत्ति वर-वन्न-दप्पिउ । सह आणिउ चित्त-पडु रूप्पिणीए नारइण अप्पिउ ॥ इयरी वि-हु अणिमिस-नयण पडउ सु जा पेक्खेइ । ता मयणिण डझंत-तणु अप्पु वि न-वि लक्खेइ ॥ 2010_05 Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९० नेमिनाहचरिउ [ २६२२ [२६२२] भणइ पुणु - तह कह-वि तुहुं कुणसु जह अइरिण संघडइ मज्झ भुवण-माणिक्कु इहु पिउ । तयणंतरु रुप्पिणिहि रूवु लिहिवि केसवह दंसिउ । तह कहमवि अक्खिय-गुण वि जह मुरारि संवु । तरुणीरयणह रुप्पिणिहि तणु-संगमि अणुरत्तु ॥ [२६२३] तयणु रुप्पिहि निवह पासम्मि तं मग्गइ स-पुरिसिहि किंतु भणिउ रुप्पिण स-कोविण । संवंधु कु हवइ नणु अम्ह-समगु तई हीण-जाइण ॥ कहिं सीहिणि वेसरु व कहिं कहिं वलाहु कहिं हंसि । निवइ-कुलुब्भव एह कहिं कहिं सु गुयालहं वंसि ॥ [२६२४] अवि य दिन्नी एह चिठेइ दमघोस-नराहिवइ- नंदणस्सु रिउ-कुल-विधायह । सोहग्गि-सिरोमणिहि पुहइ-तिलय-सिसुपाल-रायह ॥ इय जइ-वि-हु कहमवि सु इह मग्गइ नरु वाचालु । तह-वि न जायइ रुप्पिणिहि दइउ कण्हु गोवालु ॥ [२६२५] एहु रुप्पिहि वयणु निसुणेवि खण-मित्तिण गंतु रहि अंव-धाइ रुप्पिणिहि साहइ । तयणंतर तहि पुरउ भणइ वाल - मई मयणु वाहइ ॥ सउरि-सुयह विरहम्मि पुणु जइ मह लग्गइ अंगि। जलणु च्चिय इय चितवसु कु-वि उवाउ तमु संगि ॥ २६२३. ३. क. रुप्पिणि. ८. क. कुलब्भव. २६२४. ८. क. रुप्पिहि; ख. रुणिहिं. २६२५. ४. क. तहिं. ८. क. ख. चित्तवसु ____ 2010_05 Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२९ ] संचिल्लउ रुप्पिणिहि मा करिहसि असुहु तुहुं मई पुट्टिण अइमुत्तइण gg efaes rare हरि [२६२६] इय मुणेविणु चित्तु हरि-समुहु नवमभवि रुपिणिहरणु [२६२७] जइ-वि चूलिय चलइ सुर- गिरिहि 2010_05 पुरउ धाइ जंपर - सु-लोयणि । वाल- भावि जं तुझ कारणि ॥ साहि हु असि । रुप्पिणि-तरुणिहि रेसि ॥ जइ खीरोयहि सइ तु-वि तारिस - मुणि-रणइय चितेविणु निय-करिहिं लिहिवि लेहु वियरेसु । तयणंतरु तुह इच्छियउं सुयणु हउं वि पूरे ॥ धाई रुपिणि तणु कहो वि-हु वलिण सह asures सिय- पंचमिहि हत्थुत्तर - जुत्तई ससिहिं ज - वि तरणि पच्छिमह उगई । वयणु नेव उम्मग्गि लग्गइ || [२६२८] अह लिहेविणु लेहु वियरेs विउलि [२६२९] पुव्वागय-धाइ - जय मणहरि जक्ख - आययणि रुप्पिणिम्मि संपत्तु अइरिण । ता दढयरु तुट्ट-मण अंव-धाइ वलभद-वयणिण || लहु गंधव्व-विवाह - विहि अणुसरण note | arator रुपिण-तरुणि निरु पसरिय - हरिसेण ॥ अंव - धाइ पेसवर कहह । सम्मु मुणिवि भावत्थु लेहह || सोमवार मज्झन्नि । सर - पालिहिं आसन्न ॥ १६२८. ५. क. जा वत्थु. २६१९. ४. क. तुदट्ठमणु corrected as तुट्ठमण ५९१ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २६३० नेमिमाहचरिउ [२६३०] अह नियत्तते तेण निय-संखु आऊरिउ आयरिण तह ति नियय-माणवे पठाविउ । सिसुपाल-भेसय-निवइ- रुप्पि-निवहं सम्मुहु भणाविउ ॥ नणु गच्छइ हरि सयमवि-हु इह रुप्पिणि परिणेउ । जस्सु सुहाइ न एरिसउं . सो तुरंतु रणि एउ ॥ [२६३१] अहह किं इहु इय विचिंतंतु सिरि-भेसय-निवइ सिमुपाल-रुप्पि-सहियउ तुरंतउ । चउरंगिण अ-परिमिय- वलिण सविह-देसम्मि पत्तउ ॥ ता परिकंपिर-थोर-थण भय-चंचल-नयणिल्ल । रुप्पिणि जंपइ - तुम्हि दु जि रिउ वहु-अनुमाणिल्ल ॥ [२६३२] किं-पि हविहइ तं न याणामि तयणंतरु विहसिउण भणइ कण्हु - मा भाहि भामिणि । अवलोइसु एकु खणु किं-पि जमिह वट्टइ रणंगणि ॥ अम्हे थोडा रिउ वहुय एहु कायर जंपति । नियम नियंविणि गयणयलि रवि कित्तिय दिप्पंति ॥ [२६३३] तीए पच्चय-हेउ लीलाए निय-मुद्दा-रयणु दुर्हि अंगुलीहिं चूरेइ अइरिण । तह वहुयहं पायवहं पंति लुणइ खग्गेग-घाइण ।। ता वियसिय-मुह-अंबुरुह हुय रुप्पिणि संतुट्ट । हरि पुणु पभणइ वल-पुरउ नणु एहि आगय दुट्ठ॥ २६३०. १. क. नियत्तहं तेण. 2010_05 Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९३ २६४० ] नवमभषि रुप्पिणिहरण [२६३४] नियय-वहुयह सविहि खणु एगु चिट्ठिज्जसु भाय तुहुँ हउं दलेमि जिह दप्पु सत्तुहूं । ता पभणइ मुसलि - नणु वहुय-सविहि इह किह णु चिट्ठहुं॥ सत्तुहुँ एयहं पुणु हउं वि दप्पु दलेसु निरुत्तु । ता चिट्ठसु वीसत्थ-मणु तुहुं रूप्पिणि रक्खंतु ॥ [२६३५] ता रुप्पिणीए भणियं भेसय-निवई स-रुप्पियं पसिउं । रखिज्ज तुमे जइ वि-हु कुणंति ते तुम्ह अवराहो ॥ [२६३६] पडिवज्जिऊणमेयं रामो सत्तूण सम्मुहीहूओ । नंगल-मुसलत्थेहिं य खणेण ते तेण परिविजिया ॥ [२६३७] अह दो-वि सिद्ध-सज्झा आरुहिऊणं रहेसु अणुकमसो। वारवइ-सविह-देसे पत्ता जा ता पुरो हरिणो॥ [२६३८] जंपेइ रुप्पिणी - पिय किमिमं दीसइ पुरोरुणच्छायं । ता वियसिय-मुह-कमलो जणदणो जंपए - सुयणु ॥ [२६३९] नणु एसा कंचणमय-पायार-घरोह-विवणि-जिणभवणा । मज्झ कए सुरवइणा कारविया वारवइ नयरी ॥ [२६४०] __ तयणु रुप्पिणि भणइ - नणु नाह इह चिट्ठहिं तुह दइय अमर-तरुणि-सम-रूव-रिद्धिय । हउं आणिय वंदिणि व गहिवि वेस-सिंगार-वज्जिय ॥ इय आहरिय-विहूसियहिं तरुणिहिं अहरिय-चित्तु । मह समुह वि न निरिक्खिहिसि तत्थ पहुत्तु निरुत्तु ॥ ___ 2010_05 Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२६४१ ५९४ नेमिनाहचरिउ [२६४१] ईसि विहसिरु भणइ हरि - सुयणु सव्वं पि सुंदरु करिसु किंतु एत्थ मोणावलंविण । चिट्ठिज्जसु सिरि-घरह मज्झि जाव हउं एमि वेगिण ॥ ता रुप्पिणिहिं तहा कयइ हरि गउ निय-आवासि । अह पुच्छिउ सच्चई - सुहय मह निय-दइय पयासि ॥ [२६४२] ता पयंपइ कण्हु - नणु सुयणु पुरि-उववण-मज्झ-ठिय- लच्छि-देवि-देउलह सविहि । सा चिट्ठइ उत्तरिय इय निएह नियएहिं नयणिहि ॥ ता किं-चि वि कोऊहलिय किं-चि वि सामरिसाउ । गच्छहिं उववणि हरि-दइय सच्चहाम-पमुहाउ ॥ [२६४३] न उण पेक्खहिं कहिं वि सा वाल ता पविसहि सिरि-घरह मज्झि तयणु सच्चवहिं रुप्पिणि । नणु एस नमंत-जय सुहय सिरि ति चिंतिउण निय-मणि ॥ भत्तिहिं निय-कर-पल्लविहिं करिवि पूय-सक्कारु । तमु चलणिहि निवडिवि कुणहिं गहिर-सरिण नवकारु ॥ [२६४४] पाणि-संपुडु धरिवि सिर-उवरि जंपति सव्वायरिण देवि देवि पसिऊण पणयहं । सोहग्गिण रूविण वि हीण कुणसु रुप्पिणि स अम्हहं ॥ ओयाइय-पूरणिण पुणु घुसिण-पल-स्सउ एगु । देसउं तह सयलाहरण- सहिउ पूय-अइरेगु ॥ २६४२. ७. क. सामरिउ. ९. क. पमुहाओ. ____ 2010_05 Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४८ ] नवमभवि रुप्पिणिहरणु [२६४५] अह पहुत्त कण्डु विहसंतु जंपर य रुप्पिणि- पुरउ ता रुप्पिणि भणइ तयणु कण्ह-चयणिण कमिण सयलहं हरि- दइयाहं । रुप्पिणि पणमइ जह - विहिण सच्चहाम - पमुहाहं ॥ पहु पहुँ पढमु पासु कवणहि ॥ सुणु पडहि चलणिहि स भइणिहि । [२६४६] किंतु समगु वि ताल-रव-पुव्वु स- विलक्ख विहसिवि भणहिं ay or after afte सच्चहाम-पमुहाउ देविउ । सिरि-मईए पूइउ विलेविउ ॥ परिय-मण-संतो तयणु जणद्दणु वज्जरइ | aणु पणमिय निय भइणि जइ ता तुम्हहं को दोसु ॥ 2010_05 [२६४७] एत्थ - अंतरि मंति सामंत मंडलिय नराeिas ता गरुय - महसविण तयणु विणिज्जिय-जय - तरुणि अग्ग-महिसि रुप्पिणि विहिय नर - Free अंग दुज्जोहणु निवs हरिता जंपिउ सच्चहं - हवइ मह सुउता तसु देज्ज धुवु [२६४८] अवर-अवसर उग्गसेणस्सु पत्त दार- देसम्म अ-सरिस | जंति स-घरि वल - कण्ह स-हरिस || निय-गुण-निउरुवेण । कण्हिण साणंदेण ॥ सच्चहा-देविहि सहोयरु । भवणि पतु सव्वंग - सुंदरु ॥ जइ बंधव तुह पुत्ति । अन्न म करिसि कु- जुत्ति ॥ २६४६. ३. क. पमुहाहं देविओ; ४. क. अम्हिहि. २६४७. ६. क. ५१५ तय for जय ७. क. नियरुवेण; ८. क. महिसि रि. ख. वि कय. Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९६ गयणयलह अवयरिउ इहु पवन नेमिनाeafte [२६४९] अमुत्तय-नामु रिसि अह वंदेविणु पय-पउम मह हविहइ उ इय कहसु ति वि इत्तो य चाउनाणि सच्चविय - तिहुयणु । पवरु आसणु ॥ • मुणिंद | तयणु दिन्नु त रुप्पिणि भणइ जय-नय-पय- अरविंद ॥ 2010_05 [२६५० ] नूण ears tय मुर्णिदेण संलत्ति सच्च वि भणइ सा महरिसि पुणु गयउ साहिउ मह चेव य मुणिहिं कहहिं ताउ परुष्परिण [ २६५१] ता भणइ सच्चहामा अंगरुहो जीए हविहए पढमं । सा निय- नंदण - वीवाह - ऊसवे जायमाणम्मि ॥ मह विक हविइ नंदणु । तं जि भणिवि मंडिरु नहंगणु ॥ नंदणु इय भणिराउ । दो - वि-हु हरि दाउ ॥ [२६५२] करिह इयरी-केसेहिं डब्भ-कम्माई निरवसेसाई । इय पडिवज्जिय दुह वि कण्हं चिय लिंति सक्खिणयं ॥ स- मुहम्म पविसिरु बसहु ता केसवु भणइ - सुयसच्च वि अन्नयरम्मि दिणि मुर-रिउ त वि तयतरु [२६५३] अवर- अवसर निसिहिं सुह-सुत्त हविइ. २६४९. ४. क. अइमुत्त; ८. क. २६५०. ६. क. चेव य अ ७. क. भणिराओ. [ २६४९ नियवि कहइ कण्हस्सु रुपिणि । रयणु तुझ हविहे भामिणि ॥ अलिउ सिविणु साहेइ । सुय - उपपत्ति कइ ॥ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६५७ ] नवमभवि पज्जुम्नचरिउ [२६५४] कालजोगिण जाउ सुय-रयणु कय - उन्नह रुप्पिणिहि अवलोइय-तणय-मुहु जायव - नंदणु रुप्पिणिहि ता अवहरिउ त सुय-रयणु किण-वि पयासिय रो || तयणु मुणिय-वृत्तंतु मुर-रिउ । गहिवि करिहिं आगंतु सतुरिउ ॥ अप्पर कय-संतोसु । [२६५५ ] नयलि धरहं पायालि तयणु अवलोइय-सुय-रयणु अप्प - परिहिं नाणा - पयारिहि । नउ पांव तसु पगु वि ता गहीउ हरि गुरु-विसाइहिं ॥ रुपण पुणु तह कहमवि-हु विलवइ गलिय-विवेय । जह रोयावर पायव वि किं पुण जिय वहु-भेय ॥ [२६५६] अवर वासरि भवणि रुप्पिणिहि रिसि नारउ आगयउ ता करेवितसु भत्ति वहु-विह भणइ हरि रुप्पिणि-परिकलिउ भयवमम्हाण साहह ॥ केण हयासिण अवहरिउ मह पेक्खंतह पुत्त । अह मा तम्महु इहु सुयह सुद्धि कवि हुतु ॥ 2010_05 - [२६५७ ] इय पवज्जिवि नहिण उप्परवि अवलोइवि सयल घर सीमंधर- जिण पुरउ भइ - भदंत कहेसु मह भइ य जिणु दसण-पहहं दह-दिहि उज्जोयं ॥ २६५५. ३. क. परिहि. ८. क. तह. २६५७. ८. क. 'पहुह. हरिहि पुत्तु अ-नियंतु नारउ । गंतु करिवि नवकारू सारउ ॥ केण हरि हरि - पुत्तु । ५९७ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ । २६५८ [२६५८] नणु महारिसि जइ वि वुत्तंतु इहु गरुयउ तह-वि तुहुँ सुणसु जेण साहेमि लेसिण । भवि पच्छिमि आसि जियसत्त-निवह दइया स-रूविण ॥ रुप्पिणि अवरम्मि उ दियहि कोऊहलिण पउत्त । हरिवि मऊरह किंटडउं सोलस धरइ मुहुत्त ॥ [२६५९] तिण विवागिण हरिउ एयह वि सुय-रयणु मिलिस्सइ य सोलसण्ह वरिसाण अवहिहिं । सिमुणो वि-हु हरण-दुह- हेउ सुणसु साहेमि लेसिहिं ॥ उसह-पुरम्मि अहेसि मधु- निवइ दलिय-पडिवक्खु । तसु केटभ-अभिहाणु जुवराउ सुकय-कय-लक्खु ॥ [२६६०] अवर-अवसरि विजय-जत्ताए गच्छंतिण महु-निविण पुर-विसेसि एगम्मि* दिट्ठिय । सिरि-विस्ससेणह निवइ- दइय ललिय-अंगिहिं विसिट्ठिय ॥ अंतेउरि हरिउण खिविय मयण-कुमुय-चंदाभ । चंदाभ त्ति पसिद्ध अह मधु-केटभ हुय-लाभ ॥ [२६६१] ललिवि सयलहं धरहं कु-वि कालु समुवागउ उसहपुरि महु-निवोह गरुयाणुरागिण । चंदाभहं सह विसय- सुह-सयाई सेवइ पसंगिण ॥ इत्तो उण निय-पिय-विरहि विस्ससेण-नरनाहु । धाहावइ विहसइ रुयइ पसरिय-गुरु-आवाहु ॥ २६५८. ९. क धरहि. २६६०. ५. क. लअंगिहिं; क. विसट्ठिय, ख. सिसिट्रियं. * As the writing on folio 249 B and 250 A is mostly blurred, the text of the portion from गम्मि दिट्ठिय (2660.2) to कल्लाणकारउ (2675.5) is mostly illegible in ms. क ___ 2010_05 Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६९] नवमभवि पज्जुन्नचरिउ [२६६२] अइर-कालिण डिंभ-सय सहिउ परिउज्झिय-रज्ज-सिरि चत्त-लज्ज-मज्जाय-वइयरु । रय-पसरिण धूसरिय- अंगुवंगु परिगलिय-अंवरु ॥ महिहिं भमंतउ विहि-वसिण उसहपुरग्मि पहुत्तु । चंदाभे तुहूं कहिं गइय इय विलविरु पुणरुत्तु ॥ [२६६३] महु-नरिदिण दिख स-पिएण वायायण-संठिइण तयणु जाय-गुरु-पच्छुताविण । धिसि विसम-दसाए इहु खिविउ किमिह मई पावकारिण ॥ अहवा एयह चंदपह अप्पिसु कय-सक्कारु । जिह जायइ पिय-दंसणिण इहु गय-दुह-वावारु ॥ [२६६४] पडिवज्जिसमहं पुण पायच्छित्तं गुरूण पय-मूले । अन्नह भवंतरम्मि वि इमस्स पावस्स नो मोक्खो ॥ [२६६५] विसय-सुहासत्ता उण अवुहा न मुणंति कह-वि कज्ज-गई । नियइ विराली दुद्धं फिरंतयं उवरि नउ लउडं ॥ [२६६६] छिंदंति विवेय-धणा विवेय-सत्थेण विसय-विस-तरुणो । इय चिंतंतस्स वि से वज्जग्गी निवडिया उवरि ॥ [२६६७] अह सो तम्मि वि जम्मे अवलोइय-सुकय-दुक्कय-विवागो । भावण-विसेस-पाविय-सुकय-भरो झत्ति मरिऊणं ॥ [२६६८] आरण-कप्पे पुप्फावयंस-नामम्मि उत्तिम-विमाणे । __ इगवीस-सागराऊ महिड्ढि-तियसत्तणं पत्तो ॥ [२६६९] तत्तो चुओ समाणो रुप्पिणि-कण्हाण गंदणो जाओ । तह चेव य चिलुतो मरिऊणं विस्ससेणो वि ॥ २६६६. २, क. विज्जग्गी. ___ 2010_05 Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०० [ २६७० नेमिनाहचरिउ [२६७०] भमिवि चउ-गइ-भव-अरण्णम्मि सहिऊण अणेग-दुह सुकय-वसिण केण-वि सुरत्तिण । संजाउ विक्खाउ पुणु धूमकेउ इय पयड-नामिण ॥ तेण विनिय-नाणह वसिण सच्चविउ य निय-सत्तु । ता अवहरिउ सिसुत्तणि वि सो रुप्पिणि-हरि-पुत्तु ॥ [२६७१] अप्फालेमि सिलाए किमु किमु वंधेमि विडवि-साहाए । अहवा सयं-पि मरिहीइ सो विमुक्को सिहरि-सिहरे ॥ [२६७२] इय चिंतिरो सिसु ति य इयर-पयारेहिं निहणिउमसत्तो । वेयड्ढ-गिरि-सिलाए एगाए गंतु तं मुयइ ॥ [२६७३] अह एसो पंचत्तं पत्तो च्चिय काग-विग-वगेहिं पि । इय परिभाविय तियसाहमो गओ सो जहा-ठाणं ॥ [२६७४] ' एत्थ-अंतरि सिसुहु सुह-वसिण गयणयलिण आगयउ तम्मि ठाणि खयरिंदु संवरु । ता हरिसिण वालयह उवरि खिविवि नियइल्लु अंवरु ॥ संगहिउण निय-करयलिहि तणु-तेइण दिप्पंतु । कणयमाल-नामह पियह तिण रहि वियरिउ पुत्त ॥ [२६७५] भणिउ पुणु जण-मज्झयारम्मि जह - छन्न-गब्भह पियह कणयमाल-नामियह दारउ । संजायउ सयल-मुहि- सयण-वग्ग-कल्लाण-कारउ ॥ पत्तावसरु पयच्छियउं पुणु तसु तणयह नामु । पिउ-जणणीहिं महा-महिण पज्जुन्नु त्ति ललामु । २६७२. १. क, वंधेवि. स. वंधमि. सयणच ____ 2010_05 Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०१ २६८१ ] नवमभवि पज्जुन्नचरिउ [२६७६] अह चरम-सरीरो सो सयलाउ कलाउ गिहिही अइरा । पिउ-जणणी वि मिलिही सोलस-वरिसाण अवसाणे ॥ [२६७७] इय जिणिदह सविहि मुणिऊण नीसेसु वि तहं चरिउ गंतु गिरिहिं वेयइढि नारउ । अवलोइवि संवरह भवणि ललिरु पज्जुन्नु दारउ ॥ गुरु-हरिसिण गंतूण लहु घरि रुप्पिणि-कण्हाण । जिण-भासिउ सयलु वि कहइ सायरु पुच्छंताण ॥ [२६७८] कमिण निय-तणु-कंति-पब्भारलायणिहिं विजिय-जय- तरुण-रूवु पज्जुन्न-कुमरु वि । संपत्तउ सयलहं वि कलहं पारि अणहुंत-खेउ वि ॥ विहिहि वसेण य कुसुमसर- विहुर-कणयमालाए । आणेविणु पज्जुन्नु रहि भणिउ खलिर-चायाए ॥ [२६७९] __ भणसि तं महु समुहु जणणि त्ति नउ तं सि महंगरुहु · न-वि य तुज्झ हउं जणणि सुंदर । नहि महुरउं कुणइ मुहु पुणु वि पुणु वि भणिया वि सक्कर ॥ इय तुहुं सुहय सरीरु मह मयणानल-संतत्तु ।। निय-तणु-संग-सुहा-रसिण सिंचसु अज्ज निरुत्तु ॥ २६८०] तयणु चमक्किय-हियओ पज्जुन्नो चिंतए - अहह किह णु । नत्थि पियं अ-पियं वा महिलाणं मयण-विहुराण ॥ [२६८१] इत्थी कंथारि-समा नीएहव उत्तिमे वि लग्गेइ । तो जुत्तीए अप्पा छोडेयव्वो त्ति चिंतेउं ॥ २६७६. १ क. सयलाओ कलाओ. ७६ 2010_05 Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०२ नेमिनाहचरिउ [ २६८२ [२६८२] भणइ - तुहेरिस चित्तं जइ ता नित्तुलमिमं करिस्समहं । किं पुण विज्जा-गहणं करेमि जा ता विलंवेसु ॥ [२६८३] अह तीए च्चिय दिन्ना पन्नत्ती-नामिया महा-विज्जा । वहु-विज्जा-सहसेहिं सहिया पज्जुन्न-कुमरस्स ॥ [२६८४] तयणु कुमरिण अइर-कालेण उवसाहिय विज्ज जह- कहिय-विहिण साणंद-चित्तिण । ता पुणरवि तीए तह चेव भणिउ पज्जुन्नु अह तिण ॥ पण मिवि जंपिउ - मज्झ गुरु तुहुं विज्जा-दाणेण । थण-पाणेण य जणणि इय मई न भविण एएण ॥ [२६८५] कज्जु सिज्झइ एहु आ-कालवहु-भेयाणत्थयरु तयणु तित्थु सविलक्ख-माणस । परिवियलिय-चिहुर-भर नीहरंत-नीसास-पगरिस ॥ कररुह-दारिय-थोर-थण धाहाविर सा पाव । जंपइ - धावहु धावहु-न अह कय-करुण-पलाव ॥ [२६८६] तत्थ आगय विविह-चेडीउ संपिडिय खयर-भड मिलिय सयल नरनाह-भारिय । लह पत्तउ संवरु वि ता भणेइ सा कणयमालिय॥ नियम नियसु तुह वल्लहिण सुइण ज विहिय अवत्थ । कुणहिं न सुणय न रासह वि जणणिहि एरिसु एत्थ ॥ [२६८७] तयणु महेला-वेलविय-माणसा गहिय आउहा सुहडा । संवर-वयणेण रणं गेहंति समं कुमारेण ॥ २६८६. १. क. चेडीओ. ___ 2010_05 Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०३ २६९२ ] नवमभवि पज्जुघ्नचरिउ [२६८८] किं पुण खणेण हरि-नंदणेण सुहडा हया अ-पज्जंता । __ संवर-पुरो य भणियं - जणय तुमं दिहिमवमुयसु ॥ [२६८९] ता कुमर-चरियमिगिय-आगारेहिं मुणेउ विमलं ति । नाउं च मूल-सुद्धिं कुमारमुववूहए इयरो ॥ [२६९०] एत्थ-अंतरि कुमर-सविहम्मि आगंतु नारउ भणइ कुसलु तुज्झ हरिवंस-भूसण । ता संवरु विहिय-पडिवत्ति वयइ - मह कहि निरंजण ॥ को पच्छिमु वइयरु इमह अह पुव्वुत्तु कहेउ । जंपइ नारय-रिसि वयणु अग्गिमु वइयरु एउ ॥ जहा [२६९१] कुमरि तियसिण तेण हरियम्मि सच्चाए वि जाउ सुउ तस्सु नामु भाणु त्ति दिन्नउं । संपइ तमु परिणयण- विहि समत्थि पारद्धमन्नउं ॥ करिहइ रुप्पिणि-कुंतलिहि सच्च दब्भ-कम्माइं । जहुचिउ कुणउ कुमारु लहु इयरिण भणियई काई ॥ तो य [२६९२] अभउ दाविवि कणयमालाए अणुजाणाविवि जणउ खयर-वग्गु सयलु वि खमाविवि । आरुहिवि विउव्वियइ वर-विमाणि नहयलिण आविवि ॥ वारवइहि नयरिहि उवरि नारय-पुरउ भणेइ । नाणिण खणु पेक्खेज्ज तुडं किंचि ज डिंभु करेइ ॥ २६८९. २. क. कुमार. ____ 2010_05 Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०४ नेमिनाहचरिउ [ २६९३ [२६९३] तह पवन्नइ रिसिण कुमरो वि कय-वुड्ढ-दिय-रूवु लहु पत्तु सच्चहामाए सविहिहिं । ता खुज्ज-कुरूव-तणु चेडि एग तिण हणिय पट्टिहिं ॥ खण-मेत्तेण य सरल-तणु तविय-कणय-गोरंग । सच्चह पेक्खतिहि वि हुय चेडि चारु-सव्वंग ॥ [२६९४] सच्चविय तं च सच्चा पयंपए - विप्प मह वि पसिऊण । रूप्पिणि-रूवाओ अहिययरं रूव-स्सिरि कुणसु ॥ [२६९५] तो भणइ वंभणो - नणु साहाविय-रूव-संपया तं सि । रूवं हवइ विरूवे जह जायं तुज्झ दासीए॥ [२६९६] इय जइ विसेस-रूवं महसि तओ कुणमु सीस-मुंडणयं । जर-डंडि-खंड-वसणा वीभच्छ-तणू य हवसु लहु ॥ __"उरडू पुरडू ॐ नमः स्वाहा" [२६९७] एयं च महा-मंतं गेह-दुवार-ट्ठिया झियाएमु । पहर-पमाणं कालं तह दावसु भोयणं मज्झ ॥ [२६९८] अह भोइए भणेउं - इच्छियमेयस्स भोयणं देह । सयमवि जहुत्त-विहिणा लग्गा मंतं झियाएउं ॥ [२६९९] वियरंति सूययारा जं जं तं तं दिओ वि भुंजेइ । किं वहुणा भोज्ज-विहिं सयलं पि-हु तत्थ निट्ठविउं ॥ [२७००] हंत न तरह दाउ भोयणु वि एगस्स वि वंभणह इय भणेउ खुड्डलय-रूविण । सो पत्तउ रुप्पिणिहि भवणि थुणिउ तीए वि भत्तिण ॥ अह चेल्लणु भणइ-मई]किउ तवु सोलस-वरिसाइं । ता किं-चि वि वियरेसु लहु मह वंदेवई काई ॥ After २६९६. क. उरुडू. २७००. १. क. भोउ भोयणु. ____ 2010_05 Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमभवि पज्जुन्नचरिउ [२७०१] तयणु रुप्पिणि भणइ साणंद ar deer जिणवरिहिं तव पणीउ उक्किट्ठु वच्छरु । विहि एउ पुणु तई सु-दुक्करु ॥ अ-छ- मासाas fa न जइ देसि त देसु लहु हउं पुणु छुह-बिहुरंगु । तई सहुं तर न जंपिउ वि ता गमिरह मह चंगु ॥ २७०४ ] [२७०२] एत्थ - अंतरि वहिहि आगंतु नरनाह - निउत्तु इगु उत्तारवि चिहुर-भरु सच्च वि तारिस - वेस-धर तयतरु रुपिणी भणइ हरि वर-मोयग जइ जरहिं नणु सुइर - संचिय-तवह इह चिgs जं किं चि तुह तं भद्दे वियरेसु जह रुपिणी अइ दीण वयणिहि । पेसवे सच्चाए देवहि ॥ कह-वि पडिच्छ केस । पसरिय- असुह - विसेस | [२७०३] संतिय संति सु-सिद्धि 2010_05 ता पडिच्छ चेल्लणय पसिउण । मह समग्गु जरइत्ति मुणिउण || मंदिर विगयावाहु | मह नासर छुह-दाहु ॥ [२७०४] तयणु रुपिणि देइ जिजि के वि ते मोयग तक्खणि वि तत्थ ठिउ वि विज्जाणुहाविण । आहारइ खुड्डलउ अह स हि विम्हइणाइरिण || इत्थंतरि पयडीहविवि नारय - रिसि जंपेइ । नणु सुंदरि पज्जुन्नु इहु तुह अग्गइ लड्डेइ ॥ २७०१. ९. ताव. २७०४. ३. क. ठिओ. ५. क. विम्हइण only; ख. विम्हणोरुण. ६०५ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ [ २७०५ [२७०५] विज्ज-सत्तिण करिवि एरिसउं रूवंतरु ता खणिण चलिर-कणय-कुंडल-विहूसणु । साहाविय-रूव-धरु नमइ चलण रुप्पिणिहि नंदणु ॥ तम्माहप्पिण रुप्पिणि वि हुय गुरु-केस-कलाव । अह स-विमाणि चडाविउण स-जणणि महुरालाव ॥ [२७०६] वेउन्वि पंचयन्नं संखं आऊरिऊण कुमरेण । भणिओ पडिहारो जह - साहसु गंतूण कण्हस्स ॥ [२७०७] नणु रुप्पिणी हरिज्जइ जइ सामत्थं समत्थि तुह किं-पि । ता तोलसु अप्पाणं अन्नह रक्खेज्ज तं चेव ॥ [२७०८] अह से कुढीए कण्हो स-बलो स-बहु-परियणो समुच्चलिओ। लग्गं च चिरं जुझं असज्झ-सत्ताण तेसि तओ ॥ [२७०९] एगेण वि अणेगं पज्जुन्नेणं वलं हयं हरिणो । रामो वि-हु विच्छाओ कओ हरि वि-हु य हय-मरट्टो ॥ [२७१०] एत्थंतरम्मि नारय-रिसिणा दोण्हं पि अंतरे होउं । हरिणो पुरो पयंपियमिमो सुओ तुज्झ पज्जुन्नो ॥ [२७११] अहह मह सुय-विरहि कसु हवइ सामत्थु एरिसु जगि वि इय भणंतु गोविंदु हरिसिण । आलिंगइ अंगरुहु नियइ रूवु तमु वियसियच्छिण ॥ पज्जुन्नु वि अवराह निय खामिवि पडइ पएसु । हरि-हलहरहं नमंत-रिउ- गलिय-मउलि-कुसुमेसु ॥ २७०५. ६. क. तम्माह. २७०६. १. विउन्वि. 2010_05 Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०७ २७१६ ] नवमभवि पज्जुन्नचरिउ [२७१२] तयणु पसरिय-गरुय-आणंदु जल-आविल-लोयणिण हरि कुमरु धरिऊण अंसिहि । निय-करयल-पल्लविहिं उद्ध विहिउ अह अ-सम-हरिसिहि ॥ समुहमुवेंतिहि वहु-निविहि वारवईए पविट्छ । सो पज्जुन्न-कुमार-वरु माणिय-सयल-विसिट्ठ ॥ तओ य[२७१३] मल्हंत-विलासिणि-सोहणयं नच्चंत-स-खुज्जय-वामणयं । दिज्जत-पत्त-फल-चंदणयं इय विहिउ हरिण वद्धावणयं ॥ [२७१४] नयरी-जणो य सयलो आसीसा-दाण-तप्परो जाओ। पज्जुन्नकुमर-मिलणे मोत्तूणं सच्चमेगंति ॥ [२७१५] जाया य सच्चहामा हसणिज्जा सयण-परियणाणं पि अब्भवसिएण तेणं वेसेण य तारिसेणं ति ॥ [२७१६] अवर-अवसरि पुण-वि आगंतु सो नारउ केसवह कहइ - अत्थि वेयड्ढ-सिहरिहिं । निय सोहा-उवहसिय- अमरपुरिहिं सिरि-जंवुनयरिहिं ॥ सिरि-जंवव-नामिण पयडु विज्जाहर-चक्किदु । तसु सिवचंदा-नाम पिय जिइ जिउ वयणिण चंदु ॥ २७१४. २. क. मिहणे changed to मिलणे. 2010_05 Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०८ [२६३० नेमिनाहचरिउ [२७१७] तेसि जायउ काल-जोगेण सिरि-विस्सगुसेण-इय- नाम-पयडु सुय-रयणु नहयरु । जंववई नाम पुणु धृय-रयणु जय-तरुण-मणहरु ॥ तीसे उण रूवाइ-गुण भणिउन सक्कइ कोइ । आ-जम्मंति वि विहि-वसिण सहस-मुहु वि जइ होइ ॥ [२७१८] एम्ब नारय-चयण-संजणियअणुरायाउर-मणिण हरिण जंववइ-तरुणि मग्गिय । खयरिंदह तसु पुरउ तिण वि गरिम अ-मुइवि निसग्गिय ॥ भणिउ - अरिरि गोवाल तुहुं मग्गंतउ मह कन्न । नूण हसावसि धरणियलि गयणयले वि स-कन्न ॥ [२७१९] जइ वि गरुउ खरउ खरु होइ भुवि जुग्गु न सीहिणिहि इय मुणेवि मा करि असग्गह । इय खयराहिव-वयणु निमुणिऊण मुहि-सवण-दुस्सहु ॥ कण्हु अणाहिट्टिण सहुं रणि विजिउण खयरिंदु । परिणइ जंववई-तरुणि वियसिय-मुह-अरविंदु ॥ [२७२०] कमिण पत्तउ गरुय-रिद्धीए सिरि-वारवइहिं पुरिहिं तयणु जंववइ-तरुणि-रयणह । आवास वियरेइ हरि संनिहाणि रुप्पिणिहि भवणह ॥ जंववई वि-हु रुप्पिणिहिं सह वइ नेहेण । अवर-दियहि सच्चहं भणिउ हरिहि सविहि विणएण ॥ २७१७. २. क. विस्सगुणसेण; ८. क. आजमि वि. २७१९. ८. क. जंबुवई; ख. missing. ____ 2010_05 Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०९ २७२४ ] नवमभवि पज्जुन्नबरिउ [२७२१] तह कह-चि वि नाह उज्जमसु जह मज्झ वि अंगरुहु हवइ सरिसु पज्जुन्न-कुमरह । पडिवज्जिवि कण्हु इहु रहि हवेउ सुमरेइ एगह ॥ तियस-विसेसह अह तिण वि सुरिण भणिउ - अइरेण । हविहइ कण्ह तुहंगरुहु सोहिउ गुण-नियरेण ॥ [२७२२] तयणु वियरिवि हरिहि अइ-म्मु एक्कावलि-हारु सुरु गयउ नियय-ठाणम्मि गयणिण । पज्जुन्निण वइयरु वि एहु मुणिउ पन्नत्ति-जोगिण ॥ जंपिउ रुप्पिणि-सविहि जह जइ तुहुं अंब भणेसि । ता उप्पायावेमि सुउ अप्प-सरिसु तुह रेसि ॥ [२७२३] भणइ रुप्पिणि - वच्छ मह मुणिहिं वालत्तणि कहिउ सुउ तुहुँ जि एक्कु इय किमु किलेसिण । सामत्थु इहु अत्थि जइ जंववइहि ता पसिय पुत्तिण ॥ अह आमं ति पवजिउण पज्जुन्निण सा देवि । पेसिय सविहिहि केसवह सच्चह रूवु करेवि ॥ [२७२४]] अह पहट्ठिण हरिण स-करेहिं एक्कावलि-हारु तहि दिण्णु तयणु सह तीए कीलिउ । सुह-सुत्तिहि पुणु पवर- सिविण-कहिउ सो पुव्व-साहिउ ॥ महु-लहु-वंधवु आरणह सुर-भवणह चविऊण । सो केटभ-सुरु जंववइ- - उयर-कमलि वसिऊण ॥ २७२४. ८. क. सुर. 2010_05 Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२७२५ नेमिनाहचरिउ [२७२५] विमल-लक्खण-चित्त-कतिल्लु जय-असरिस-रूव-धरु हुयउ तणउ तसु काल-जोगिण । संवु त्ति पयडियउं नामु भुवण-असमाण-रिद्धिण ॥ सच्चाए वि-हु निय-समइ गयह कण्ह-सविहम्मि । सेविय-विसयह हुयउ सुउ भीरु नामु सु-दिणम्मि ॥ [२७२६] अह ति वुढिहि जति सव्वंगु सह जणय-मणोरहिहिं किंतु संवु पज्जुन्न-विरहिण । रइ न लहइ खणु वि इय संति दो-वि ते गरुय-नेहिण ॥ अवरम्मि उ अवसरि हरिहि वयणिण रुप्पिणि देवि । कुडिणि-नयरिहिं गंतु अइवाहइ वासर के-वि ॥ [२७२७] पत्ति अवसरि भणइ पुणु रुप्पिनरनाहह सोयरह पुरउ - भाय महु सुयह वियरसु । वेयब्भी नाम निय धूय तयणु पसरंत-अमरिसु ॥ रुप्पि पयंपइ - तइयहं वि अम्हहं तुह अवहारि । तं तारिसु अवमाणु हुउ ता इह कह-वि निवारि ॥ [२७२८] जइ वि वियरहुं धृय वेयब्भि मायंगहं तु-वि न तुह सुयह तस्सु पज्जुन्न-नामह । ता रुप्पिणि निय-पुरिहिं गंतु मुत्त मज्झम्मि धामह ॥ चिठेइ य निरु नीससिर भोयणं पि अ-कुणंत । ता सुय-पच्छिम-वइयरिण पज्जुन्निण संलत्त ॥ २७२७. ५. क. अमरिस. २७२८. १. क. वियरहं. ____ 2010_05 Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१५ २७३२ ] नवमभवि पज्जुन्नचरिउ [२७२९] अव एत्तिय-मेत्ति कज्जम्मि परितम्महि किह णु तुहुँ तह करेसु हउं जेण अइरिण । तुह वंछिउ सिज्झिहइ इय भणेवि सह संव-कुमरिण ॥ मायंगहं रूविण गयउ कुंडिणीए पज्जुन्नु । गायइ गेउ तिरिक्ख-नर- सुर-मोहणु अ-सवन्नु । [२७३०] तयणु रंजिउ तेण पुर-लोउ नीसेसु वि तह कह-वि जह गहेइ तमु चेव गुण-गणु । आवज्जिउ नरवइ वि संगहीउ वेयब्भियह मणु ॥ ता पन्नत्ति[३] घेरिइण रुप्पि-नरिंदिण तस्सु । वियरिय वेयब्भिय-तरुणि रंजिय-जय-हिययस्सु ॥ [२७३१] अह पयासिवि नियय-आयारु वेयब्भि विवाहिउण मलिवि माणु रुप्पिहि नरिंदह । उप्पाइवि नायरहं चोज्जु तेउ पोसिवि उविंदह ॥ सो हरि-रुप्पिणि-अंगरुहु वारवइहिं संपत्तु । संवो वि-हु नाणा-विहिहिं चिट्टइ परिकीलंतु ॥ [२७३२] अवर-वासरि कण्हु एगति सच्चाए विण्णत्तु - पिय भीरु नामु मह तणउ संविण । वाहिज्जइ चंदु जिह निच्च-कालु इच्छाणुरूविण ॥ इय तमु दुस्सीलह वसिण मह तणउ वि फिट्टेइ । ता निद्धाडहि संवु जिह मह नंदण छुट्टेइ ॥ २७३१. ५. क. पेसिवि. ____ 2010_05 Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१२ नेमिनाहचरिउ [ २७३३ [२७३३] ___ हरि वि पभणइ जंववइ-सविहि नणु सुयणु तुहंगरुहु न मुह-सीलु ता सिक्खविज्जसु । इयरी वि भणेइ - मह तणउ अहिउ मुणिहिं वि मुणिज्जसु ॥ तयणु परिक्खह हेउ तसु हरि आहीरत्तेण । आहीरी-रूवेण पुणु जंववइ वि सह तेण ॥ [२७३४] गोस-अवसरि तक्क-दहि-दुद्धभंडाई गहेउ सिरि- वारवइहि मज्झम्मि पविसई । जा ताव संवेण - नणु एहि एहि किर णेमि एयई ॥ इय जंपतिण करि धरिवि देवउलह मज्झम्मि । हढिण पवेसिय मयहरिय ता गय-संक मणम्मि ॥ [२७३५] ईसि विहसिवि जंववइ-रूवु अवलंवइ मयहरु वि धरइ रूवु केसवह अइरिण । संवो वि लज्जिरु गयउ पिहिय-वयणु वत्थेग-देसिण ॥ लज्जावसिण य हरिहि निय- मुहु दंसेउमसत्तु । अत्थाणम्मि न पविसरइ जंववइहि सो पुत्तु ॥ [२७३६] अवर-वासरि कह-वि पज्जुन्नउवरोहिण आगयउ खयर-कीलु घडमाणु छुरियहं । ता पुच्छिउ हरिण - नणु किं करेसि खायर-सलायहं ॥ अह लहु संवु समुल्लवइ जो वासिउ भणिहेइ । तहि मुहि जंववईए सुउ इहु कीलउ खिविहेइ ॥ 2010_05 Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४४] नवमभधि पज्जुन्नधरिउ [२७३७] ता मोणं अवलंविय थक्को कण्होऽवरम्मि दिणम्मि । सच्चाए निव्वंधे जंववई पभणिया हरिणा ॥ [२७३८] अज्जेव गहेउ सुयं आवासे लेसु नयरि वहियाए । सच्चाए वा गहिओ पुरीए पविसेइ जइ संवो ॥ [२७३९] अह सा संवेण समं गंतूण ठिया पुरीए उज्जाणे । पज्जुन्नेण य दिन्ना पन्नत्ती संव-कुमरस्स ॥ [२७४०] एत्तो उण सच्चाए पारद्धो भीरु-कुमर-वीवाहो । सयमेगूणं मिलियं विलयाणमिओ य संवेण ॥ [२७४१] पन्नत्ति-पहावेणं विउविउं तरुणि-रूवमप्पाणं । निवई-निव-परिवारो कडय-निवेसो य विहिओ ॥ [२७४२] दासि-चयणिण एहु सुणिऊण आगंतु सयमेव तहिं तरुणि-रयणु निव-पुरउ मग्गइ । निवई वि-हु भणइ – जइ इमह हत्थि तुह तणउ लग्गइ ॥ इयरीओ उ इमीए करि लग्गहिं ता गिण्हेसु । सच्च वि वियसिय-मुह-कमल जंपइ - इहु वि करेसु ॥ [२७४३] __ अह सयं पि-हु गहिवि वाहाए । सच्चाए आणिय तरुणि तम्मि विउलि वीवाह-मंडवि । सन्निहियइ लग्गि निव- भणिय-विहिण सुय-पाणि-पल्लवि ॥ लग्गाविय अह सा भणइ सच्चा-बक्खिउ लोउ । नियउ तरुणि मई संवु पुणु अवलोयउ इयरो उ ॥ [२७४४] अह वित्तम्मि विवाहे वियरिजंते चउत्थ-मंडलए । ___ संवो सहाव-रूवो भेसिय निद्धाडए भीरु ॥ ____ 2010_05 Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केमिचरिउ [ २७४५] भणइ य सयमेगूणं तरुणिणं परिणियं मए चेव । परिणाविओ अहं पुण सच्चाए गहेउ वाहाए ॥ [२७४६] तत्तो सच्चा न हसइ नेय रुयइ चिट्ठए य सु-विसन्ना । विम्हओ हरि-मुहो जायव वग्गो समग्गो वि ॥ [२७४७] जंववई वि-हु सहिय रुप्पिणिहिं हरिसेण न महियलि वि वो विन्ह विस्सुयउ इय जायंतिण जायवहं कहो वि-हु स-कय-वसिण [२७४८] लक्खण- नामं धूयं सिंहल - दीवाहिवस्स परिणे । अज्जवखुरीए नयरीए रट्ठवद्दण - निवस्सावि ॥ माइ तुटु पज्जुन्नु चित्तिण । जाउ जगि विनिय- विमल - कित्तिण ॥ संविहाण - सहसेण । थोवेण वि काले ॥ [२७४९] धूयं सुसीम- नामं परिणइ तह वीरभय-पुर-पहुणो । सिरि-मेरु-महीवइणो पियाए चंदमइ- नामाए ॥ [ २७५०] गउरी-नामा धूया परिणेइ महा-महेण सउरी-सुओ । पउमावई च परिणइ हिरण्णनाभस्स वर-धूयं ॥ 2010_05 [२७५१] गंधार - विसय पहुणो गंधारिं दुहियरं विवाes | अहं विमाहिं समं भुंजेइ निरंतरं विसए || [२७५२] तासिं अवराणं पि-हु देवीणं जाया सुया अणेगे महा-वला विमल - लक्खण - महग्घा । उत्तिम - पगई ॥ [ २७४५ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ नवमभवि कण्हजरसंधविग्गहु [२७५३] अवर-अवरि जउण-दीवाउ पोएहिं अणेग-विह वणिय विविह-कंवलिय-रयणई अवराई वि तस्विसय- संभवाई वहु-धण-कयाण ॥ गहिउण वह-लाहम्मणिय वारवइहि संपत्त । विवणिहिं पयडिय-निय-नियय- वत्थु अछहिं वणि-उत्त ॥ [२७५४] तयणु जायव-कुमर-तरुणीउ निय-नियय-कुऊहलिण निइवि ताई वणियहं कियाणइं । ओनिण्हहिं इच्छियई तेसि दाउ मणि-कणय-दविणई ॥ अह ति भणहिं अप्पत्त-धुर अंत-लाह वणि-उत्त । नणु ता पूरिय-माण-पसर- हूय इह वि संपत्त ॥ [२७५५] जइ कह-वि वि पुणु जरासंधपुरि गंतु इहि दंसियई वत्थु-सत्थ एरिसय ता लहु । संजायइ सय-सहस- गुणिउ लाहु अम्हाण इय बहु॥ चिंतिर गय जरसंध-पुरि तहिं पुणु ते अलहंत । लाहु कवड्डिय-मित्तिउ वि चिट्ठहिं परितम्मंत ॥ [२७५६] तयणु सयलि वि रायगिह-नयरि गई अन्न अलहिर वणिय पत्त वि सइ गरुयर-विसायह । घेत्तण कयाणयइं जाहिं भवणि जरसंघ-रायह ॥ तयणंतर कंवल-रयण मग्गिय जीवजसाए । थोवयरिण मुल्लेण अह विहलिय-सयलासाए । २७५४. १. क. तरुणीओ. २७५६. २. क. अलेहिर. ६. क. रयणु. ___ 2010_05 Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१६ नेमिनाहचरिउ [२०५७] भहिं वणियग - अहह संसारि निभग्गिय अम्हि पर जं समिद्ध-जायव - विहूसिय । वित्त इह स-कय-दूसिय ॥ aras महा-नयरि को उज्झिवि जायव - कुमर अम्हई इच्छिउ दे । संखु वि विणु रयणायरह सदुहउं किं न रुएइ ॥ [२७५८ ] अछहिं बहु व महिहिं नर-राय निय - रज्ज-गव्वब्भहिय नउ जायव - निव- सरिस कुहिं समीहिय सिद्धि तहं सिर- विरइय-कर-कोस । सेवेहिं अणु-दिणु पय-पउम पसरिय-गुरु-संतोस ॥ स-घरि परहं अवमाण पयडिर । जेसि पहिं सुर-असुर निवडिर || 2010_05 [२७५९] इय सुविणु जाय- आसंक आउच्छर जीवजस इयरे विपुलवि तयणतरु संभंत - मुह ल्हसिय- चिहुर-वंधण स- दुह- पसरिय- गरुय - पलाव ॥ कह कह कहिं अछहिं जायव । सयल कहहिं निय- हत्थ - गयमिव ॥ वियलिय - कंति-कलाव । [२७६०] गंतु वेगिण पडिर अक्खुडिर जरसंघ- नराविह साहेइ विसेसयरु अमरिस-वस-कंपिर-अहरु रोसारुण - नयणिल्लु । सूरसेण- सेणावि agrat नियइल्लु ॥ कण्ह-मुसलि - वारवइ - वइयरु | तह कह - वि जह सो वि नरवरु ॥ २७५७. क. भणइ. २७५८. क. महिंठि; ६. क. समीहिंय [ २७५७ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमभनि कण्हजरसंधविग्गहु [२७६१] जह - लहुं पि-हु दूय पेसवसु भरहद्ध-निवासियहं निवहं कह-वि तह जेण सयलि वि । आगच्छहिं मह सविहि अइरिणावि विक्खेवु मेल्लिवि ॥ तह जि कयइ सेणाहिविण आगउ निवइ-समूहु । किं पुण तक्खणि हुयउ जरसंधु निवइ गय-सोहु ॥ [२७६२] __तयणु सचिविहि निरु निसिद्धो वि भवियव्व-वसेण निवु उक्खिवेइ जा चलणु दाहिणु । सहस च्चिय ताव तसु छीय हृय गुरु-असुह-कारणु ॥ कसिण-विरालिहि पुणु कह-वि आगंतुण पहु-छिन्नु । राव-हत्थु पुणु रत्त-वडु समुहीहुयउ विवन्नु ॥ [२७६३] तह वि कुंजरि आरुहंतस्सु आयास-विवज्जिउ वि हार-रयणु परितुटु कंठह । धरणीयलि निवडियउ मउडु विरसु हुउ स? तूरह ॥ पवणु स-सक्करु खर-फरिसु वाइउ उब्धियणिज्जु । भग्गु दंड झय-छत्तहं वि साहिय-विवरिय-कज्जु ॥ [२७६४] ___ चलिरि कुंजर-तुरय-रह-सुहडसंकिन्नइ निवइ-वलि खुहिय-लवण-जलरासि-सलिलि व । करि-तुरय निरंतर वि मुयहिं विठ्ठ-मुत्तई स-रोगि व ॥ भज्जहि अक्ख सु-संदणहं सुहड गलिय-उच्छाह । वरिसइ रुहिरिण नीर-धरु संजाया दिसि-दाह ॥ २७६२. ५. क. सहसच्छिय. ___ 2010_05 Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१८ एम्व मरणंत-उवद्दवु वि जरसंघ - नरा हिव पासायचेइय-हरहं उद्धीकय-मुह-कुहर नयरब्भंतरि वासरि वि fare विदीसहिं गयण-पह तारायण - संछन्न ॥ इओ य मिनाहचरिउ [२७६५] घरि सरोवर विवणि दीहीसु - सहर are faraहिं अरिद्वय । यहि मिलिवि ओरालि सुणह य ॥ पविसहि पसु आरन । arrass समुह पाविउ ॥ अणुदिण- मिलमाणिण वलिण पूरिय-वसुहाभोगु । पिक्खंत सर-सरि - सिहरि - नयरई किं-चि स- सोगु ॥ [२७६७] 2010_05 [२७६६ ] बहुविह-असिव - उवइड कंस-काल-मरणिण दुहाविउ । कहिउ नारय- रिसिण जरसंघ - वसुहाहिव-संचलनआगंतु नहयल - परिण साहिउ अह सो हरि-मुसलि - पमुह-सवग्ग - समेउ । कुठुगि नेमित्तिउ नियय- पुरिसिहिं सदावे ॥ अंतु सयल yog वइयरु | समुदविजय - निवइहि स - वित्थरु || [२७६८] afra पसरिय - हरिस-रोमंच पुलयंचिय- विग्गहिण को केरि अम्ह जउ जंपिउ जह - जरसंघ - निवु हरि पुणु निहणिय-रिउ-निवहु भरह-अजु मुंजे || २७६५. २. क. चेइ marginally corrected as चेइय; ख. चेइ; ७. क. पविसहि. समर - रसिण जावहं वग्गण । तेण समगु रणि तयणु इयरिण ॥ नित्तुलु समरि मरे । [ २७६५ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७७२ ] नवमभवि कण्हजरसंधविग्गहु [२७६९] aणु चारिहिं कहिउ जरसंघ - निव-आगमु सन्निहिउ अहिसित्तउ कण्हु रणपत्थाणt ठिउ कंस - रिउ for-for-aor हरिहि मिलिय वियसिय-मुह-अरविंद ॥ [२७७०] सीयल - सुरहि- अणुकूल तय पवणाइइ-अणेगविहनिग्गच्छइ वारवइगंतु दिसिहं yogत्तरहं हरि जोयण पन्नास । सियल्लीए पसि परिगिण्हइ खणु आवास ॥ तास-तो जायवहं वग्गण । विजय- हेउ सुपसत्थ-लग्गिण || इयर व विवि-नरिंद | 2010_05 अणुकमिण पलोइउण पवर - सउण - सूइय- सुहोदउ । पुरिहि समुदविजयाइ - सहियउ ॥ [२७७१] तयणु पिहु-पि नियय- नरनाह कुrs तेसि सक्करु सयलहं । अह भणिउ अहिणि सन्निहाणि हरि-चलण - कमलहं || जह - चउ-जोयण - अंतरिण तुम्ह उवरि कोवंधु । चिgs वहु-चल-परिकलिउ नरवइ सु जरासंधु ॥ उades मित्तयणु परिओ व मुणिदेव- गुरूण अवन्नयरु दुम्मुहु दुम्मण दुस्सुइउ २७७०. ५. क. समुदविजयइ. [२७७२] किंतु अ-पर वि बंधु अवगणइ कुवइ पगइ - लोग अ-कारणु । जणि वि तवइ अ- निमित्त सज्जणु ॥ अवसु सचिव- तिलयाहं । उव्वियणिज्जु भडाहं ॥ ६१९ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरित [ २७७३ [२७७३] तस्सु वंधव-जणु वि निम्विन्नु पयईउ विरत्त-मण सचिव-निवहं न करेइ आयरु । जायंति उप्पाय-सय सउण-सिविण-विसउ वि न सुंदरु॥ निवइ वि अणुवित्तीए तसु जइ परिसेव कुणंति । भत्ति-भएहिं उ तुह जि पर अणुरत्ता चिट्ठति ॥ [२७७४] एहु ठाणु वि तुम्ह निय-देससीमाए कण्ह इय इह जि ठिइहि जिप्पइ अ-संसउ । इय निसुणिवि केसविण नियय-वलह चउ-दिसि कराविउ ॥ जंत-निवेस-महा-फरिह- पमुहु अणेगु पयत्तु । समुदविजय-वसुहाहिवह वयणु गहेवि सु-जुत्तु ॥ [२७७५] तयणु अच्चुय-नाम-विक्खाउ दंडाहिवु स-भुय-वल- दलिय-सयल-रिउ-कुल-मडप्फरु । निय-कडय-निवेस-चउ- दिसिहि मुक्कु बहु-सेन्न-वित्थरु ॥ एत्थंतरि जायवहं वलु तहिं आगयउं सुणेउ । तम्मज्झम्मि उ हरि-वल वि परिचिट्ठति मुणेउ ॥ २७७६] कोव-कंपिर-अहरु जरसंधु जंपेइ निय-परियणह पुरउ - अह[ह] पारद्ध-निहणिउ । वारवइहिं गंतु जि ति इह वि पत्त चिटॅति मह रिउ ।' जं तइयह मह नंदणह जामाउयह वि तेहि । निहणु कुणंतिहि पाव-तरु रोविउ तमु स-करेहि ॥ २७७३. २. क. पयईओ. २७७४. ३. क. असंसओ. २७७६. १. क. अहर; ३.निहिणिउ. ____ 2010_05 Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८२ ] समुदविजय पमुहं विनिवहिं । वसुदेव-नंदाइयहं कमन्नह मह वि अविणीय गोव ते धरहिं सविहिहिं || अहवा जइ गोवाल मई न मुणहिं ता म मुणंतु । सो उण सम्म कह - णु जायव - जणु आवंतु ॥ अवि य नवमभवि कण्हजरसंधविग्गहु - [२७७७] फलई वियरिसु तेसि गोवाहं जायंति पिवीलियहं अह हंसग - नागिण जह जायव - निवहिं वि वलु जेसि सुरासुर - नायग वि [२७७८] अव गुरुहुं वि गलिहिं बुद्धीउ पक्ख अंति हय - विहि- निओइण । विउल-मइण संलत्तु * सचिविण ॥ तुच्छउं मुणिसु म देव । कुणईं निरंतरु सेव ॥ [२७७९] किर इयर - नरेहिंतो वलं वलाण वि अ-परिमियं भणियं । जं पुण कण्हस्स वलं तं मह - रिसिणो कहंतेवं ॥ [२७८०] सोलस-राय-सहस्सा सव्व-वलेणं पि संकल- निवद्धं । अछति वसुदेवं अगड - तडम्मि ठियं संतं ॥ 2010_05 [ २७८१] तूण संकलं सो वामगहत्थेण अंछमाणेण । भजिज्ज व लुपिज्ज व महुमहणं ते न चायंति ॥ [२७८२] कोडि-सिलं एक्को वि-हु करेण गहिऊण उक्खिव बिहू | दु-गुणं तु वलं चक्किस्स केसवाओ विणिद्दि ॥ ६२३ २७७७. १. क. वियरसु; ७. क. नाम; क. मुणंत. * The portion from 'लतु ( 2778 5.) to वलं (2779 1 ) is dropped in ख. २७७८. १. क. बुद्धीओ. २७८०, २. क. तमिं. Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२२ नेमिनाहचरिउ [ २७८३ [२७८३] तत्तो वि-हु तित्थयरा अणंत-चल-परिगया मुणेयव्वा । छत्तं पुहई दंडं तु सुर-गिरिं ते पकुव्वंति ॥ [२७८४] अहवा किं किर वहुणा लोयमलोए वि तेसि परिखिविउं । सामत्थं वन्निज्जइ समप्पए तेसु विरिय-कहा ॥ [२७८५] इय धुवमरिहनेमी एगो वि-हु जिणइ तिहुयणमसेसं । जस्स य सव्वे सक्का वि किंकरा के वयं तस्स ॥ [२७८६] अन्नं चिय अइ-रहिणो महा-रहा सम-रहा य अद्ध-रहा । रहिणो य निवा लोए पहाणया होंति उक्कमओ ॥ [२७८७] भयवं अरिहनेमी विण्हु मुसली तुमं पि-हु इयाणि । एए चउरो मोत्तुं अइ-रहिओ नत्थि संसारे ॥ [२७८८] तत्तो अम्हाण वले एगो च्चिय अइ-रही तुमं देव । _तिन्नि उ सत्तूण वले सेसाउ महारह-प्पमुहा ॥ [२७८९] एत्थ वि कि-वि-हु चिटुंति के-वि पुणु तहिं वि जं च सेस-वलं । तं कइवय-अक्खोहणि-मेत्तं ताणं पि संभवइ ॥ [२७९०] नव-सहसेहिं गयाणं लक्खेहिं नवहिं रहवराण पुणो । नव-कोडीहिं हयाणं नराण नव-कोडि-कोडीहि ॥ [२७९१] अक्खोहणि त्ति भणिया तत्तो जइ वि-हु तयं अरीण वलं । सयलं पि नरवरस्स उ वलं न एक्कस्स वि-हु अम्हं ॥ [२७९२] तह वि-हु अरिद्व-नेमी जिणेइ एक्को वि तिहयणमसेसं । हरि-मुसलि-प्पमुहा वि-हु तुम्ह समग्गाण वि न जोग्गा ॥ २७८३. २. क. ख. पुहई. २७८८. १. क. वलो. २७८९. १. क. किवि ख. जं त. ____ 2010_05 Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२५ २७९९ ] मवमभवि कण्हजरसंघविग्गहु ६३ [२७९३] वसुदेवेणं विहियं सयंवरे रोहिणीए जे तइया । एक्कंग-मेत्तएण वि तं तुम्भे किं न संभरह ॥ [२७९४] तम्हा नेमि-जिणिंदो नमंसणिज्जो सुरासुराणं पि । __मोत्तूण पणामं तम्मि विक्कमो कस्स वि न जुत्तो ॥ [२७९५] इय हंसगेण भणिए मगहवई भणइ - हंत जइ एवं । तो नेमि-जिणाइ-जुयं पि तं वलं मज्झ तणयस्स ॥ [२७९६] कालस्स भएण पलाइऊण पच्छिम-दिसाए किं लुक्कं । किं वा सोरिय-महुराइ-मंडलो तेहिं परिचत्तो ॥ [२७९७] तयणु हंसगु भणइ - नणु देव नय-मग्गु इहु एरिसउ सु-पुरिसाहं न य कायरत्तणु । जं न फलइ विक्कमु वि दव्व-खेत्त-कालाइयहं विणु ॥ तदिण-जायउ केसरि वि करिहिं कुंभ न दलेइ । न य अइ-वालउ विसहरु वि कं-पि कह वि डंकेइ ॥ [२७९८] __अवि य केसरि करइ संकोवु मेसो वि अवक्कमइ हणिउ-कामु गुरुयर-पहाविण । इय गरुय-विचिट्ठियहं एरिसाहं किं पहु वियारिण ॥ कालस्स वि तहं सम्मुहहं धावंतहं किं वित्तु । इय परिभावउ नाहु इग- ठाणि धरेविणु चित्तु ॥ [२७९९] एम्व हंसग-सचिव पडिवक्खु उववन्निरि पुणु पुणु वि जाव कुविवि निवु किं-पि पभणइ । ता डिभग-नामु निव- पुरउ सचिवु एरिसु पयंपइ ॥ पहु न पसिद्धिण हवइ जउ किंतु सुकय-जोगेण । इय मुणिऊण महा-यसहं किमियर-भणियव्वेण ॥ २७९९. १. एंव. २. क. उवववनिरि. ___ 2010_05 Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२८०० नेमिनाहचरिउ [२८००] किंतु पुरिसिण जउ महंतेण गहियव्वउ नीइ-पहु सो उ हवइ दुग्गावलंविण । दुग्गं पि-हु ति-विहु इह जाणियव्वु नय-समय-विउसिण ॥ तम्मज्झम्मि य पढमु जल- दुग्गु वीउ गिरि-दुग्गु । तइउ निजूह-दुग्गु इय मणि धरिऊण समग्गु ॥ [२८०१] सम-महीयलि निवइ-वसहेहिं कायव्वु निजूह-मउ दुग्गु अजिउ पडिवक्ख-लक्खिहि । तमसेस-निजूह-वरु कहिउ अस्थि रण-रंग-दक्खिहि ॥ पन्नासहिं नेमिहिं सहिउ सहसारय-संजुत्तु । कीरउ वहु-गण-निव-मइउ चक्कव्वूह निरुत्तु ॥ [२८०२] जुत्ति-जुत्तउं एहु इय मुणिवि जरसंध-नराहिवइ चक्कवूह-रयणाए निय-वलु । परिसंचइ एहु पुणु मुणिवि सयल जायविहिं अ-विचलु ॥ एरिसि चक्क-निजूहि कइ आ-भवु सत्तु-समूहु । दुस्सज्झउ इय चिंतिउण कारिउ गरुड-व्वूहु ॥ [२८०३] एत्थ-अंतरि खयर-नरनाह वसुदेव-पक्खाणुगय मिलिय खणिण वलि वासुदेवहं । सउरिस्स उ के-वि रिउ समुहिहय जरसंध-सेवह ॥ अह हविहइ दुह-सज्झु रिउ सहियउ खयर-गणेण । ता वसिकिज्जहुं ते खयर इय निच्छिउण मणेण ॥ २८०१. ३. क. पडिक्वखु. ८. निवइमउ. 2010_05 Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८०७ ] सविहम्मि पर्यपिउण म दिन्नु तेवड्डु परि इय चिंतिवि रण - रंग - भरि जह अप्पsिहय-तेय भरु [ २८०४] नेमि - कुमरह मुसलि सहियस्सु susजर संधविग्गहु वसुदेविण खयर - रिउ परिविणु वि विविह तहं अह नहयर-वल-आउलियहरिआरयणिहिं आगयउ वच्छ कण्डु तुम्हाण नासउ । हु जेवss करिसउ ॥ [ २८०५] एगंतिण गहिउ पुणु तयiतरु नहयल - पहिण गयउ सउरि वेयट्ठि निय एहु सामिण नेमि - कुमरेण उवरोहिण किं-चि पडिवन्नु किं-चि निय-वंधु - नेहिण | मुसलि - पमुह-जायव- समूहिण ॥ सिरि-जायव-कुल- केउ । भुय-वल- वलिण समेउ ॥ 2010_05 हो तह कहमवि-हु जइज्ज । हरि रिउ - लच्छि लहेज्ज || [२८०६] [ तयणु अइरिण सुकय-जोगेण रणि जिउ किय- अप्प-वस-गय । धूय गरुय अणुराय -रत्तय ॥ नहयल-पहु वसुदेवु । महि - नहयर-कय-सेबु ॥ ] [ २८०७] नेमि - कुमरिण वद्ध पुणु वाह सुर-सिहरिहिं सुर-गणिण अह असत्थवहग त्ति तूलिय । तियसेहिं विइन्न जयवंधु - सिणि सामि- मणु सक्किण मायलि सारहिउ पहुहु एत्थ - अंतरि वियाणिय || रण- विहाणि सुक्कंठु । पेसिउ समर-वरि ॥ २८०६. This stanza is erased in क ७९ ६२५ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ [२८०४ [२८०८] तयणु हरिसिण दिव्व-संठाणु दिव्वाउह-पूरियउं मज्झि दिव्व-कय-सीह-आसणु । मण-इच्छिय-पह गमिरु पत्त-पसरु पडिवक्ख-नासणु ॥ दिव्व-तुरंगमु रह-रयणु वेउविउण खगेण । सुरवइ-सारहि पहु-पुरउ पत्तु पवण-वेगेण ॥ [२८०९] भणइ पुणु जह - नाह आरुहिवि रह-रयणि इमम्मि लहु दलसु सयल-रिउ-कुल-मडप्फरु । ता नेमि-कुमारु चिर- विहिय-सुकय-अहरिय-पुरंदरु ॥ तहिं रह-रयणि समारुहइ निरुवम-कय-सिंगारु । तयणंतरु हरि हलहरु वि जायव-नरवइ-सारु ॥ [२८१०] चक्क-वृहिण समुहु इंतस्सु जरसंघ-निवइ-वलह ते-वि गरुड-चूहेण जायव । परिसज्जिय-विउल-बल मिलिय समरि नय-कप्प-पायव ॥ ता दोण्ह-वि निव-पुंगवहं जुडिय सुहड सुहडे हिं । कुंजर करिहिं तुरय हइहिं रहिय पुणो रहिएहि ॥ [२८११] अह खणद्धिण किं-चि जरसंधनिव-सेन्निण कण्ह-वल दलिय-दप्पु दिसि-मुहु जुयाविउ । एत्थंतरि हरि-पुरउ भणइ मुसलि नय-मग्ग-भाविउ ॥ रिउ-चक्क-व्वूहेण इहु वास-सए वि अ-जेउ । ता कीरउ केण वि विहिण एय-निजूहह भेउ ॥ २८१०. ९. क. रहिएहि, ख. रहिएंहिं ____ 2010_05 Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८१५] कण्हजरसंधविग्गहु ६२७ [२८१२] तयणु कण्हिण एहु जुत्तु त्ति परिचिंतिवि दाहिणहं नेमि कुमरु विण्णविवि मुक्कउ । उत्तरय-दिसीए पुणु पत्थु मज्झ-देसे उ थक्कउ ॥ हय-गय-संदण-सुहड-भर- खोहिय-अरि-कुल-दिहि । कय-सन्नाहु महा-सुहड सहियउ सु अनाहिहि ॥ [२८१३] तयणु कण्हिण विविह-वयणेहिं ते तिन्नि-वि तह कह-वि भणिय जेण रण-रंग-पुलइय । रिउ-चक्क-निजूहयहं तुंवि अरय-नेमिहिं वि संठिय ॥ पविसिवि समर-वसुंधरहं आलोडहिं पर-चक्कु । तह कहमवि जह अइरिण वि निरु सरणेण विमुक्कु ॥ [२८१४] तत्थ को-वि-हु मयउ ठाणे वि कु-वि नछ दिसो-दिसिहि को-वि सरणि पविसेइ नेमिहि । कु-वि गिण्हइ मुहिण तिण को-वि सविहि गउ नियय सामिहि ॥ नेमि-कुमारिण रुप्पि-निवु निव-सय-सहस-समेउ । मुक्कउ लीलाइ वि जिणिवि हय-विप्पहउ करेउ ॥ [२८१५] __ इय खणद्धिण तेहिं भिन्नम्मि तिहि ठाणिहिं सत्तु-चलि जल-निहिम्मि इव सरिय-सलिलई । पविसंति कयाउहई अणुपहेण जायवहं सेन्नई ॥ सह पंडव-निवइहिं समरु कउरव-निवर्ह पयट्टु । ता कउरव-निव-गणु मयउ गरुय-पहार-दुह१ ॥ २८१३. ५. निमिहिं. २८१५. २. क. ठाणिहि. ___ 2010_05 Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२८ नेमिनाeafte [ २८१६] नेम - कुमरिण वावरतेण पुणु पुणु व महारहिहिं नच्चावि तह कह - वि जह जस - पडह - पडिरविण भग्ग-मडप्फरु रिउ-गणु वि स -पहुहु पुरउ भणेइ ॥ सह निवेहिं भगदत्त - पमुहिहिं । कित्ति-रमणि संगाम- धरणिहिं ॥ सह नज्ज-वि विरमेइ । [ २८१७] अह सामि रक्खि रक्खेहि 2010_05 निक्कारण - कोवियउ विच्छाय रिउहु पह वियर गुरुहु - वंधवह ता न इमिण रुट्टिण हवइ जीविउ कसु-वि अवस्सु ॥ नेमि - कुमरु छड्डइ न किं-चिवि । दलइ दप्पु जय - सिरि वि संचिवि ॥ वासुदेव-नामस्तु | [२८१८] तयणु सेणाहिव - हिरण्णाभ अणुवलद्ध-संखहं रणंगणि । मुहाण नराविहं निसुविणु मरणु जरसंधु निवइ झूरेइ निय-मणि ॥ सिसुपालह सविहम्मि पुणु भणइ - किह णु भवियव्वु । दीस रिउ - कुलु गरुय - वलु इय धुवु मई मरियव्वु ॥ [२८१९] तणु धीरिम करिव सिसुपाल साडोवु समुल्लवइ जइ भग्गउं तुम्ह वलु ता किं कीरउ ज न जगि वि कु-वि वलियउ देवस्तु । तह - वि हु नूण न सप्पुरि कमवि हवइ निरासु ॥ देव किमिह तुम्ह विसाइण । एम्व तेण सिरि-नेमिना हिण ॥ २८१६. २. क. महारहिं. २८१९. ४. क. भग्गउ. ५. क. एवं ८. क. नूण सप्पुरिसु. [ २८१६ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२३ ] कण्हजरसंधविग्गहु [२८२०] इय विणिच्छिवि मह वि आएम पसिऊणं देह जह हउं वि किं-पि तोसेमि अप्पउं । तयणंतर उव्वरिय- निव-सहस्स-दसगउं स-दप्पडं ॥ वियरिउ सिसुपालह वि जरसंधिण खुहिय-मणेण । कंस-काल-मरणाइं पुणु सुमरिवि विहिहि वसेण ॥ [२८२१] समर-धरणिहिं हणिय निय-रायगय-संख पलोइउण गरुय-खेय-वाउलिय-माणसु । जरसंधु नरिंदु सयमेव चलिउ संगहिय-साहसु ॥ एत्थंतरि रण-रंग-वस- पुलइय-अंगोवंगु । संचल्लिउ सत्तुहु समुहु हरि हरि-वंसह चंगु ॥ [२८२२] किंतु मगहाहिवइ कु-निमित्तकु-स्सिमिण-कुसउण-सय- पडिनिसिज्झमाणु वि रणंगणि । पविसेइ मुरारि पुणु गरुय-हरिसु उव्वहिरु निय-मणि ॥ सउण-निमित्त-उवस्सुइहिं साहिय-जय-सिरि-लाहु । मिलियउ जरसंघह रिउहु निव-वंधविहिं सणाहु ॥ [२८२३] तयणु दुण्ह-वि वलहं संजाउ रणु जायव-भड बहुय निहय खणिण मागहिय-मुहडिहिं । अह सारण-नामगिण सउरि-सुइण असमाण-सत्तिहि ॥ निहणिउ मगहेसरह मुउ निवइ जवण-अभिहाणु । तह जह तसु जीविउ खणिण दूरयरेण पलाणु ॥ २८२०. ६. क. वियरिय; ७. क. ख. जरसंघेण. 2010_05 Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाearts [२८२४] अह सुजवणह मरणु निमुणेवि दीणा [] अमरिसिउ मगह नाहु सयमवि समुट्ठिउ । तसु घाइहि जज्जरियअंगुवंगु अइरिण वि विहुरिउ || चुण्णिय-रहरु निय-करि महि- निवडंत-तुरंगु । करुणु-रुयंत-मरंत-भडु हुउ हरिवल चउरंग ॥ ६३० अवि य [ २८२५] विमुक्क-पवर जाणयं गलंत - खग्ग- हत्थयं pdate [ २८२६] विमुक्क- धीर-धीरयं लुलंत - छत्त-चिंधयं [ २८२७] स सामिणो विरत्तयं मत्तेभ - संपणुल्लियं [ २८२८] भयालु उज्झियत्थयं अन्नोन्न - पेल्लज्जयं [ २८२९] मगहेस- वाण ताडियं संजाय - सावसेसयं समुज्झियाभिमाणयं । निवडत - सुहड- सत्यं ॥ विमग्गमाण- नीरयं । नच्चंत भड - कवंधयं ॥ पलायणेक्क- चित्तयं । तुरंग थट्ट- पेल्लियं ॥ रहोह - रुद्ध-पंथयं । पलाण भीरु वग्गयं ॥ 2010_05 संगाम - भूमि- पाडियं । विमुक्क- जीवियासयं ॥ [ २८३०] इय विहुरियम्मि सेन्ने एक्को च्चिय भुवण - लग्गण- क्खंभो । दिव्व रहेणं चि अ-गंजिओ नेमि - कुमर भडो ॥ [२८३१] अह खर्णाद्विण सेन्तु सयले पि जर संघ- नराहिविण ता दाहिण -करिण हरि जंपर जरसंघह पुरउ सुरु निवाह तुह जणिण २८२४. २. क. ख. दीणाणु. २८३१. ६. क. पुरउ omitted. स-य-वणि दिसि मुहु जुवाविउ । नियय-धणुहु लीलई चडाविउ ॥ फुरिय- दप्प-दछु । जय-जय-खु उग्घुट्टु ॥ [ २८२४ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८३५ ] कण्हजरसंधविग्गहु [२८३२] किंतु संपइ होसु खणमेगमुववेत्तु कोयंडु करि मज्झ समुहु जह तुह खणद्धिण । जय-जय-रवु संहरहुं चिर-परूहु सह रज्ज-रिद्धिण ॥ अन्नह ढंकिवि कन्न तुहुँ नाससु तुरिउ हयास । किं न निरिक्खसि मंडिया तणा कयंतह पास ॥ [२८३३] इय सुणेविणु निवइ जरसंधु रोसारुण-नयण-दलु गहिवि धणुहु साडोवु जंपइ । अरि वालय मरिसि तुहुँ मज्झ-समरि हुक्कंतु संपइ ॥ सुत्तउ सीहु म जग्गवहि करिहि म गेहहि सप्पु । सरणु न होसइ तिहुयणु वि हउं तुह भंजिसु दप्पु ॥ [२८३४] एहु निमुणिवि कण्हु सामरिसु धणु-टंकारविण तह पंचयन्न-संखह निनाइण । विक्खोहइ सत्तु-वलु तह कहं-चेि जह दुसह-मुच्छिण ॥ विहलंधलु धरणिहिं पडिवि हुउ मुयणहं सोयव्यु । सिरि-जरसंधु नराहिवु वि न मुणइ जं कायव्वु ॥ [२८३५] नेमि-कुमरु वि तिसु वि भुवणेसु दढ-सावाणुग्गहहं जो समत्थु तसु गणण केरिस । जरसंध-नराहिवह विसइ किंतु मन्नंतु एरिस ॥ पाव-पवित्ति महा-नरय- कारणु तह य हरीहिं । हम्म हिं पडिकण्ह त्ति परिचिंतिरु ठियउ तडीहिं ॥ २८३३. ७. क. गेण्हइ. २८३४. १. क. कण्ह. ____ 2010_05 Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३२ नेमिनाहचरिउ [२८३६ [२८३६] अह जुहिहिर-भीम-अज्जुणयनउलाइ अणेग-विह समुदविजय-पमुहा य नरवर । संवाहिय-नियय-वल मिलिय रिउहुं रण-विहिहिं वंधुर ॥ ता पर-वलु वण-कुंजर व मिग-जूहई लोलंतु । समुदविजय-पमुहा य निव-निवह सव्वि खोहंतु ॥ [२८३७] असम-विक्कम दलिरु पर-चक्कु अ-क्खोहिउ पर-भडिहिं गहिय-खग्गु सिमुपालु नरवइ । अरि कण्हु गोवाल कहिं कहिं सु मुसलि इय भणिरु आवइ ॥ हरि-संदण-सविहम्मि अह पसरिय-रोस-भरेण । जय-विम्हय-करु रणु करिवि सु वि निहणिउ कण्हेण ॥ [२८३८] तयणु दसहिं वि निवइ-सहसेहि परिकलियउ अमरिसिण दट्ठ-उठु मागह-नरेसरु । आरोविवि धणु-रयणु गहिवि वाणु पायडिय-डंवरु ॥ पहरंतह स-वलह हरिहि तह पहरेउ पयट्टु । जइ स-नरामरवइ-गणु वि भणइ जाय-संघटु ॥ [२८३९] न हरि न मुसलि न सु जरासंधु नो नेमि न इयर भड जमिह एत्थ संगर-सरोवरि । आरंभिण एरिसिण दुहं-वि वलहं एरिसि मडप्फरि ॥ निम्मज्जिहई कहं-चि तह जह पच्छिम-लोयस्सु । मुद्धि वि दुल्लह होइसइ निय-निय-भडहं अवस्सु ॥ २८३६. क. संठाहिय. ____ 2010_05 Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कण्हजरसंधविग्गहु [२८४०] एहु निसुणिवि तह पलोएउ रण-महिहिं अणेग-भड दुसह-घाय-निवडंत-कंधर । सच्चविवि कयंत-सम उभय-वलिहिं संकड वसुंधर ॥ करुणा-रस-परिसित्त-तणु निक्कारण-वच्छल्लु । नेमि-कुमारु समाणवइ सुर-सारहि नियइल्लु ॥ [२८४१] ___ अहह सुंदर दिव्वु रह-रयणु पिल्लेसु विवक्खियह पहरमाण-निवईण मज्झिण । मा अ-सरण मरहुं इहि करुण-रहिय-केसवह हस्थिण ।। हउं पुणु साहिसु तह कह-वि जह वियलंत-मरट्ट । सेव पवज्जहिं अइरिण वि पयडिय-सज्जण-वट्ट । [२८४२] तयणु जो किर तियस-नाहेण कंपंत-सीहासणिण अवहि-मुणिय-तत्तिण रणंगणि । पेसवियउ दिव्यु रहु आसि नेमि-कुमरस्सु तक्खणि ॥ सो तमु वयणिण मायलिण चोइउ रिउ-मज्झेण । अह आऊरिउ घण-गहिरु संखु नेमि-कुमरेण ॥ [२८४३] तह करेविणु करणु वइसाहु अप्फालिउ दिव्यु धणु- रयणु तयणु टंकार-सदिण । संखस्सय-पडिरविण तह य नेमि-कय-सीहनाइण ॥ आकंपाविउ महि-वलउ ढलिय सिहरि-सिहराई । सयलि वि जल-निहि झलझलहिं निवडहिं धरणि घराइं ॥ २८४१. ९. क. सद्द. - २८४३. ७. क. टलिय; ख. पलिय. ९. धरणियराइं. ८० ____ 2010_05 Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३४ नेमिनाहचरिउ [२८४४] सयल पर-वलि खुहिय खोणिंद भड निवडहिं धरणियलि तसिय तुरय मय-मुक्क कुंजर । संचुण्णिय रहस्यण मणुय-हणिर नासंति वेसर ॥ अहव किमियरिण जंपिइण सयलु वि मागह-सिन्नु । नेमि-कुमारिण एगिण वि लीलई विहिउ विवन्नु ॥ [२८४५] अवि य छिंदइ भडहं धणु-जीव विणिवाडइ छत्त-झय- चिंध दलइ संदण-सहस्सई । आलोडइ सत्तु-वलु लहु करेइ रिउ-मण स-वस्सइं ॥ एगु जि नेमि-कुमार-रहु नह-मंडलिण भमंतु । दिछु अलाय-च्चक्कु जिह दुहि-वि वलिहिं दिप्पंतु ॥ [२८४६] जलहि खोहइ जिम्व महा-मच्छु पायालह नीहरिवि तेम्व नेमि-कुमरस्सु रह-वरु । एगो वि अणेग-विहु नडइ मगह-सामिस्सु वल-भरु ॥ इय अ-क्खलिय-पयावु पहु तहिं रह-वरि आरूदु । सिरि-हरिवंस-सिरो-रयणु नेमि-कुमरु अ-विमूहु ॥ [२८४७] निरु पुरंदर-चाव-परिमुक्कदिव्वाउह-धोरणिहिं हणइ मगह-निव-बलु असेसु वि । तह कहमवि जह पडिय- चमरु गलिय-झउ दलिय-कलसु वि ॥ फाडिय-गुड-पक्खर-कवउ गय-छत्त-सिरत्ताणु । उज्झिय-आउहु चइय-रणु दूरिण गलिय-पराणु ॥ २८४६. ३. क. तेव. 2010_05 Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८५१ ] कजर संधवि [ २८४८] तुरय-कुंजर - सुहड-रह- रयण परिचुक्कडं गय-सरणु भय-वेविर-संकुइय स- करुणु दीणु दुहावणउं दुम्मणु सुन्न सरीरु । वियलिय-दप्पु विमुक्क-भड- वाउ निवाडिय-वीरू || मिग-कुलु व्व लुद्धइण रुद्धउं । अंगुवंगु निय- दुकय-वद्धउं ॥ 2010_05 [ २८४९] विरल - माणुस - मे - संचारु न य निमिसु वि चलवल नेमि कुमारिण मोहियउं fast पेक्खिरु पहु- समुह हु महाविइ-वलु निस्सिरीउ गिण्हम्मि छित्तु व । वयइ नेय कट्ठम्मि चित्त व ॥ मोह - विज्ज-सत्थे । एगग्गिण हियएण ॥ [ २८५० ] तयणु निहणिय - दोस- माहप्पु मुसुमूरिय-तम- पडल अप्पड - उ पहु अह हुं वलि कि-वि भणहिं जो सुम्मंतर आसि किल [ २८५१] अवर पहि जं तस्सु न एरिसय तत्ते सुरिंदु इहु जपहिं - नणु सो कणय पहु किं न वियाह तुम्हि सिरि २८४९. ५. कंटुंमि. रिउहुं गमिर जय - सिरि निसेes | वाल-रवि व रण-गिरिहिं रेहइ || एहु सु हरि-गोवाल | काल-कंस - खय-कालु ॥ नणुन सो हु सत्ति पुण्य-पुरिसिहिं विवन्निय । हरिहि सेन्नि पत्तो ति अन्नि य ॥ इहु वेरुलिय-च्छाउ । नेमि हरिहि लहु भाउ ॥ ६३५ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ [२८५२ [२८५२] नमहिं एयह तियस-असुरिंदविज्जाहर-किन्नर वि इमिण भुवणु सयलु वि विहूसिउ । एयस्सु जि दुविणउ कुणहिं तेहिं धुवु अप्पु दूसिउ ॥ समुदविजय-वसुहाहिवह कुल-गयणंगण-चंदु । वावीसइमु जिणाहिवइ एहु सु नेमि-जिणिंदु ॥ [२८५३] नियय-बंधुहु हरिहि नेहेण उवरोहेण य सउरि- धरणि-पहुहु निय-जणय-वंधुहु । साहिज्जह हेउ इह पत्तु एहु समुहु जरसंधुहु ॥ एत्थंतरि केण-वि भणिउ नणु जइ एम्ब त मूहु । किह जरसंधु इमेहि सह दीसइ रणि आरूहु ॥ २८५४] कवणु तेहिं वि समगु रण-रंगु जह पणमहिं सुरवर वि लहहिं विजउ तेसि जि पसाइण । ता इयरिण भणिउ-नणु मुयसु मुयसु किमिमिण वियारिण ॥ अद्वि-मित्त-निम्मिय-सिरिण जो गिरि-भेइ जएइ । सो भंगह विणु अन्नयरु किमु केरिसडे लहेइ ॥ [२८५५] तरिवि गिरि-नइ अप्पु कय-किच्चु मन्नंतउ जलनिहि वि जो तरेउ वाहाहिं इच्छइ । सो कुविय-कयंत-घरि निव्वियप्पु किं किं न गच्छइ ॥ जहिं न मुणिज्जइ अप्प-पर- अंतरु गरुएहिं पि । मरियव्वउं तहिं दंगडइ नित्तुलु इयरेहिं पि ॥ २८५४. ६. क. अट्ठ. 2010_05 Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हजर संघविग्ग [२८५६] अह गुरुर्हि वि चलहिं बुद्धीउ वियलंति य नीइ - पह पडिकूल विहिहिं इय सण-निसिद्धु वि हरिय-पर- भारिउ दस-वयणो वि । मयउ जूय-वसणेक्क-मणु निहणिउ किं न नलो वि ॥ २८५९ ] गलहिं सत्त नासंति विज्जउ । इयर - जणिण तहिं किं तु किज्जउ ॥ [२८५७] जं जया जहिं जेम्व भवियन्वु तं तइयहं तहिं तिम्व जि इय सुणिरु वि परियणह कित्तिय - मेहिं वि सुइहिं गंतु स को भणेइ जरसंधु रिउहूं सविहम्मि ॥ हवइ नत्थि वत्तच्वु किंचि-वि । वयण कह विरोहह विछुट्टिवि ॥ सहिउ स वलि विहुरम्मि । ईसीसि हसंतु हरि गच्छंतु अग्भिट्टिउण अंधाओ व समभहिउ निय - सुहि-सयणहं 2010_05 [ २८५८] अरिरि अज्ज-वि किं न ते गोव मह विरहु जायवहु किं न दिठु तुब्भेहिं मह वलु । किह मूढउ सुवि समुदविजय - निवइ दुब्विणय-पच्चलु ॥ जइ-वि भग्गु मह वलु सयलु तु-वि हउं वाहु- साहु | निहणि नीसेसु वि खणिण जायव-वग्गु अणाहु ॥ [२८५९] इय सनिठुर वयण निसृणंतु भणइ अरिरि जरसंघ अंधु वि । कुड्डि वलइ तुहुं पुणु अणंधुवि ।। जु नियंतो वि अणत्थ । अजु-वि न मिल्लाहि सत्थ ॥ - वंधुहिं वि २८५६. १. क. वुद्धीओ. ९. क. क किन्न. ख. कन्न २८५७. २. क. तिव. २८५८. ३. क. किन्न. २८५९. ६. क. ख. अंधाउ ८. क. बंधुहि. ६३७ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३८ नेमिनाहचरिउ [२८६० [२८६०] लहहि पइ पइ किं न अवमाण कि न पेक्खहि मुहि-सयण रणि पडंत तुटूंत-कंधर । कि न सुमरहि कंस-बहु काल-कंस-पमुह वि स-दुद्धर ॥ मज्झ पयाव-हुयासणिण परिडज्झंत-सरीर । हूय कयंतह पाहुणय अणुगच्छिर निय-चीर ॥ [२८६१] नेमि-कुमरिण मज्झ वंधविण एगेण विरह-वरिण किं न नियहि तुह वलु असेसु वि । परिविहिउ अज्जु वि उवलमउ व चत्त-चेट्टा-विसेसु ॥ अहवा सेमुहि-कंचुगिण सप्पु व तुहुं चत्तो सि । कहमन्नह अप्पह हणण- कइ मह रणि दुक्को सि ॥ [२८६२] एम्ब वहु-विह हरिहि दुव्वयण निसुणंतु दुहावियउ मगह-नाहु अमरिस-विसंठुलु । सह एगुणसत्तरिहिं सुयहं जुडइ मरणग्ग-पच्चलु॥ समुहागमिरह मुर-रिउहु रह-रयणारूढस्सु । मगहाहिव-अढवीस-सुय पुणु मिलिया रामस्सु ॥ [२८६३] इयरु वलु तमु समुदविजयाइनरनाहहं रणि मिलिउ अह महंति संगरि पयट्टइ । नीलंवरु निय-हलिण गलइ धरिवि एक्केक्कु कड्ढइ ॥ मुसलेण उ चूरेइ सिरु तह जह गरुय-दुहत्त । अढवीस वि जरसंध-सुय जीविएण परिचत्त ॥ २८६२. ५. क. मरणमग्ग 2010_05 Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३९ २८६७ ] कण्हजरसंधविग्गहु [२८६४] अह विसेसिण कुविउ जरसंधु अग्भिट्टइ हलहरह जुज्झिउं च चिर-कालु सत्तिण । तह पहरइ जिह मुसलि मम्म-घाय-विहुरिइण गत्तिण ॥ सोणिउ मुह-कुहरिण वमइ मुयइ दीह नीसास । तयणंतरु मगहाहिवह किं-चि वि पूरिय आस ॥ [२८६५] किंतु मुसलिण पत्त-चेयणिण निसिअग्ग-सर-धोरणिहिं सव्व-अंगु जरसंधु सल्लिउ । एत्तो य जणद्दणिण गरुड-वाणु नियइल्लु मिल्लिउ ॥ एगुणहत्तरि वि.हु मगहवइ-सुय खणमित्तेण । गमिय कयंतह पाहुणय जज्जरिइण गत्तेण ॥ [२८६६] तेसि मरणिण जाय-विच्छाउ परिवियलिय-रायसिरि दलिय-दप्पु जरसंधु नरवइ । अरि गोव मरेहि धुवु इय भणंतु हरि-सविहि आवइ ॥ तयणु पयंपइ कण्हु - अरि मूढ निलक्खण वंग । पेक्खंतो वि अणत्थ-सय दुच्चिट्ठिय सव्वंग ॥ [२८६७] किं न अज्ज-वि मुणहि अप्पाणु कि न गच्छहि निय-नयरि किं न पियहि सीयलई पाणिय । कि न वासहि नियय-घरु किं न रमहि नियइल्ल रमणिय ॥ अहव कु दोसु हयास तुह मह रणि हुक्कंतस्सु । दुकय-परव्वसु पाहुणउ न हवइ कु कयंतस्सु॥ २८६५ २ क. ख निसिउग्ग; क. सिर'. २८६६. ४. क. मरेहिं.७. क. चंग. २८६७ ३. ५. क. ख. किन्न. ____ 2010_05 Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४० नेमिनाहचरिउ [ २८६८ [२८६८] राहु-परिहवु जलहि-विच्छोहु देसंतर-परियडणु कि न पतु चंदिण कु-बुद्धिण । कि न निसियर-सेहरिण कालकूडु कवलियउं ईसिण ॥ सक्कु विडं विउ तावसिहि लहइ दसाणणु मच्चु । हुयइ कुवुद्धिहि कुप्पहुई काई करेइ सु-भिच्चु ॥ [२८६९] __ तुहुं सु खत्तिउ हउं सु गोवालु तुडं वुड्ढउ डिंभु हउं विहिय-समरु तुहं हउँ निवारणु । तुहं मेइणि-वल्लहउ हउं सु नंद-वसुदेव-नंदणु ॥ तुहुं पयडिय-गुरु-कोव-भरु हउं गुरुयणहं नमंतु । इय पेक्खेज्जसु मगह-पहु तुहुँ मइं रणि पहरंतु ॥ [२८७० एम्ब गहिरई थिरई सामरिसहरि-वयणई सुणिरु जरसंधु निवइ पसरंत-मच्छरु । अइ-निसिय-सर-धोरणिहिं दुसह-रोस-कंपंत-कंधरु ॥ ताडइ कण्ह-सरीरु निरु कण्हु वि निय-वाणेहिं । फोडिवि गद्दि स-पक्खर वि निहणइ रिउ-अंगेहिं ॥ [२८७१] खग्ग-खणखण-राव--सरेण फर-फडफड-सद्रिण वि कुंभि-मुक्क-चिक्कार-घोसिण । रह-घणघण-आरविण तुरय-रयण-परिविहिय-हेसिण ।। वज्जिर-रण-तूर-ज्झुणिण सुहड-सीहनाएण । वहिरिउ नहयलु खुहिउ रिउ पुणु कण्हह घाएण ॥ २८६८.३ क. ख. किन्न; ९. करे. ____ 2010_05 Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४१ २८७५ ] कण्हजरसंधविग्गहु [२८७२] इय ति सबल-सेल्ल-वावल्ल असिधेणु-कराल-करवाल-कुंत-मुग्गर-मुसुंढिहिं । अवरेहिं वि आउहिहिं दुहिं-वि वलिहिं कय-सत्त-वेढिहिं ॥ जुझंतिहिं छाइउ गयणु भरिय धरणि नीसेस । करयल-कय-असि पडिय-सिर नच्चहिं सुहड-विसेस ॥ [२८७३] वहहिं रुहिरिण महिहिं सरियाउ भड-वयण-सरोय-धर फुरहिं भूय-वेयाल-साइणि । पसरंति य घूय-सिव- सद्द दिणि वि विप्फुरहिं डाइणि ॥ एक्केण वि मगहाहिविण धंधोलिउ हरि-सेन्नु । तह कहमवि जह कंचि खणु हुयउ अईव विवन्नु ॥ [२८७४] तयणु किं-चि वि फुरिय-संतोसु पडिवक्ख-विक्खोह-कइ उज्जमंतु कय-सत्तु-आवइ । आऊरइ गहिर-सरु संख-रयणु जरसंधु नरवइ ॥ तमु पडिसद्दिण विहुर-मणु सयल वि जायव-वग्गु । रक्खि रक्खि पहु इय भणिरु हरिहि पएमु विलग्गु ॥ [२८७५] ता खुरुप्पिण छिन्न झय-चिंध जरसंधह केसविण अह सु हुयउ सविलक्ख-माणसु । सीसं पिव महि-वडिउ दद्ध छत्तु झउ चिंधु स-कलसु ॥ तयणु पयंपिउ केसविण ईसि ईसि हसिरेण । नणु हउं तरुणउ वूहु तुहुँ इय किं तुह समरेण ॥ २८७२. ५. क. वलिहि. ६. क. जुझंतिहि. २८७३. १. क. सरियाओ. ९. क. अइंव. २८७५. २. क. ह only for जरसंधह; ख. जरसंध. ४. क. चडिउ. ____ 2010_05 Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४२ रिउ गहिय-असेस - सिरिलक्कडियहं लग्गिउण खंड-हत्थिण माणविण ता महावि मुक्कु मई [ २८७६] समर - निवडिय -सयल - सुहि-सयणु परिजंपिरु मरिसि धुवु दिव्वाउह मुक्क वहुता निट्ठिय- आउहु मगह - कालव निय धणु-रयणु नेमिनाहचरिउ [२८७७] अरिरि वालिस तुर्ह अ-संवद्ध 2010_05 रह-रह मज्झ लहु रि-वग्ग-विणासयरु दूरिण अहरिय - तिमिर भरु चक्क रयणु संपत्तु अह लज्जमाणु परिहरिवि अज्ज-वि । सुहिण अच्छि तुंग तुहुं स घरि वि ॥ किं वोल्लाविण । गच्छहि रहिउ भएण ॥ [२८७८] भणइ पुणु - धिसि मज्झ सामत्थु किमु रज्जेण वि इमिण जं नाणाविह- समरगोपय-मिति इमम्मि रणि अEE निवोलिङ तेम्व जिम्व २८७६. ५. तुहुं तुहु. २८७९. ५. क. सुंदर. इय भणेवि जरसंघ - निविण वि । भेय ताईं पsिहणिय हरिण वि ।। सामि विसायावन्तु । चयइ पयट्ट - अवन्नु || [२८७९] इ स - खेयह मगह - नाहस्सु हा धिरत्थु मह सुहड - वाह | जलनिहिस्सु हउं गउ वि पारह ॥ गोवाणि एएण । उज्झिस्सामि जिण ॥ पत्त - उदय-रवि- विंव भासुरु | सुर - विइन्न- माहप्प- सुंदरु ॥ चिर-कय-मुह-सय-लब्भु । महाविर पगब्भु ॥ [ २८७६ Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८३] कण्हजरसंधविग्गहु ६४३ [२८८०] ___अरिरि वालय मरसि निस्संकु सुमरेसु य इटु कु-वि न-उण अज्ज तुहुं मह विछुट्टसि । पविसंतउ मई वि सह समर-धरहं लज्जहं न फुट्टसि ॥ किह तुहुं मई सहु रणि विसहि जइ-वि हु खरउ पयंडु । अइमत्तो-वि हु हत्थि निउ रक्खइ मुंडा-दंडु ॥ [२८८१] इय भणंतिण मगह-नाहेण पडिसद्द-खोहिय-भुवणु फुरिय-जाल-माला-विहीसणु । सुर-नियराहिट्ठियउं चक्क-रयणु रिउ-तरु-निकंदणु ॥ खोहिय-सनरामर-नियरु हरिहि समुहु परिमुक्कु । तयणंतरु लोगिण विहिउ पुक्कारवु लल्लक्कु ॥ [२८८२] __भीय सुर-गण जक्ख संतत्थ सिद्धा वि पलाण गय दिसिहि खयर-गंधव-किन्नर । जोइसिय वि टलटलिय तियस-तरुणि सिवु सिवु ति जंपिर ॥ कठि विलग्गहि निय-नियय- पियहं करुणु विलवंत । एंतु तं पेक्खहिं जायव वि अंसु-पवाहु मुयंत ॥ [२८८३] कण्हु पुणु तहिं चक्क-रयणस्सु समुर्वितह सम्मुहई मुयइ दिव्य-आउहई विविहई । नीलंवरु परिखिवइ सावलेवु हल-मुसल-सत्थई ॥ पत्थु सवत्थ-विमुक्खणउं धम्मह नंदणु सत्ति । सेणाणी वि महा-फरिह भीम महा-गय झत्ति ॥ २८८१. ९. क. फुक्कारवु ललक्कु. २८८२. ३. क. खय; ख. यखर; १. जोइसिर. २८८३. १. तहि. ६. सवत्थु. ____ 2010_05 Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४४ [ २८८४ नेमिनाहचरिउ [२८८४] नउलु कुंतिण असिण सहएवु नाराय-सएहिं सिरि- समुदविजय-नरनाहु निहणइ । अवरो वि जायव-निवड निय-निएहिं सत्थेहिं पहरइ ॥ किंतु अणक्किमिरिहि सरिहि जायव-वग्गि विसन्नि । पलविरि स-नरामर-तरुणि- नियरि अईव-विवन्नि ॥ [२८८५] हरिहि उरयलि अररि-वियडम्मि तुंवेणागंतु लहु लग्गु वज्ज-दारुण-निहाइण । अहियासेऊण पुणु चक्क-घाउ स-हरिस मुरारिण ॥ गहियउं निय-कर-पल्लविण चक्क-रयणु तूरंतु । अह तं हुयउं विसेसयर- तेय-सिरिण दिप्पंतु ॥ [२८८६] तयणु जायव-वग्गु परितुटु आणंदिय सुर-असुर मुयहिं उवरि तमु कुसुम-बुट्ठिय । गायति य कित्ति-भरु हरिहि गयणि किन्नरिय तुट्ठिय ॥ भणहिं य नहयर सुर-गण वि जह - इहु सउरिहि पुत्त । वासुदेवु नवमउ जयउ आसि जि जिणिहिं पुवुत्तु ॥ जओ भणियं - [२८८७] तिविठू दुविठू य सयंभु पुरिसुत्तिमे पुरिससीहे । तह पुरिसपुंडरीए दत्ते नारायणे कण्हे ॥ [२८८८] आसग्गीवे तारए मेरए महु-केढवे निसुंभे य । बलि-पहराए तह रामणे य नवमे जरासंधू ॥ २८८५. ३. क. ज्जु. ख. वज्जु, ७. क. रयण. २८८६. ९. जणिहि. 2010_05 Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८९३ ] कण्हजरसंधविग्गहु [२८८९] एए खलु पडि-सत्तू कित्ती-पुरिसाण वासुदेवाण । सव्वे वि चक्क-जोही सव्वे वि हया स-चक्केहिं ॥ [२८९०] इय सुणेविणु खुहिउ जरसंधु परितुट्ठउ सउरि-सुउ भणइ - अरिरि अप्पाणु मुणिउण । तुहूं अज्ज-वि अवसरसु मा मरेसु समरम्मि पडिउण ॥ अह मगहाहिवु सामरिसु भणइ - अरिरि गोवाल । मह सत्येण वि गव्वियउ जंपहि आलम्माल ॥ [२८९१] किंतु नूण न हउं जरासंधु जइ चक्केण वि सहिउ मुग्गरेण तुह तणु न चूरउं । इय भणिरस्स वि रिउहु समुहु तेउ-पसरेण जलिरउं ।। फेरेउण धरणी-धरिण चक्करयणु परिमुक्कु । तं पि हु तसु सिरु छिंदिउण हरि-करि आविवि थक्कु ॥ [२८९२] अह विसेसिण खयर-सुर-सिद्धगंधव-किन्नर-नियर हरिहि उवरि कुसुमेहिं वरिसहिं । वाएंति य दुंदुहिउ गहिर-सरिण जय-सदु घोसहिं ॥ मुणिउण मगहाहिवह वहु रोह-रुद्ध निव-विंदु । मुयइ नेमि करुणा-रसिण सिंचिय-मुह-अरविंदु* ॥ [२८९३] __ अह ति नरवर नेमि-पय-पउम पणमिप्पिण भत्ति-भरु भणर्हि - नाह तुह जत्थ नयण वि । सु-पसन्नई वीसमहिं तत्थ होइ धुवु विजउ भुवणि वि ॥ जहिं पुणु सक्खं चिय तुहुँ जि साहज्जिण बट्टेसि । किं किं न हवइ वंछियउं इह-पर-जम्मि वि तेसि ॥ २८९० २. क. परितुट्ट. ९. क. जपहि, ख. जहि. *२८९२, क. ख. ग्रंथाग्रं ॥७०००॥ २८९३. २. रत्तेभरु. __ 2010_05 Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४६ [२८९४] इय जहा कि कण्हु कय- किच्चु तई स-जयावहिण नाह व अम्हे व पसिउण । हत्थु अम्ह पट्टी दाउण ॥ जीवावहि मुर-रिउहु नेमकुमारु वि ते सयल नरवर संभूसेवि । रण-धरणीयल- समुचियउ आडंवरु उज्झेवि ॥ नेमिनाहचरिउ ता कण्डु सरह - रयणु आलिंगइ नेमि अह तह मगहाहिव - अंगरु उज्झण सम्मुहु पहाविवि । हत्थु सि दिवाविवि ॥ सहदेव त्ति पसिद्ध । रज्जि ठवाविउ रायगिहि नयरि सु-गुणिहिं समिद्धु ॥ इओ य - [२८९५] तेहिं सहिउ वि चलिउ हरि-समुहु सो मायलि सारहिउ तं गहिउण रह-रयणु साहेइ य नेमिहि पहुहु तह जह सयलह सुर-गणह 2010_05 [ २८९६ ] एत्थ - अंतरि नेमि - कुमरेण कय-पणामु अणुनविउ संतउ । तियसनाह - सविहम्मि पत्तउ II पुव्वत्तई चरियाई | वियसियाई वयणाई ॥ [२८९७] निरु पट्टिय-वण-चिगिच्छाहं संजाय - निरुयहं भडहं अत्थाणुवविद सिरि-वच्छ अंकु खयरिंद-रमणिहिं ॥ आणंदण विन्नत्तु जह वद्धाविज्जसि देव || जं सउरिण साहिय खयर तुज्झ पवज्जहिं सेव ॥ सयलहं पि जायवहं सविहिहिं । [ २८९४ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९०१] कण्हजरसंधविग्गहु [२८९८] कह कहं ति य पुहि कण्हेण साहंति नहयर-विलय के-वि गहिय वंधेहि खेयर। कि-वि पाडिय रण-महिहिं के-वि मुक्क नासिर अ-सुंदर । किं पुणु पच्छिम-दिणि मिलिवि सत्तु अ-णाइय-अंत । दुक्का वसुदेवह समरि विज्ज-वलिण दिप्पंत ॥ [२८९९] __ तयणु गंजिवि किंचि वसुदेवु जोयाविउ दिसि-मुहई जाव ताव दिव्वाणुहाविण । गयणंगणि सुर-गणिण भणिउ - जयउ मु जि एक्कु पर जिण ॥ सिरि-वसुदेव-तणुभविण वासुदेव-नामेण । स-वलु स-नंदणु मगहवइ हउ जरसंधु खणेण ॥ [२९००] ता समग्गि वि खयर-रिउ-राय भय-कंपिर-देह-लय सरणि पत्त वसुदेव-रायह । संपइ पुणु आगमिर अछहिं पुरउ तुह चेव पायह ॥ अम्हे उण आइय पढमु तुह वद्धावण-हेउ । एत्यंतरि छाइय-तरणि- नहयर-निवह-समेउ ॥ [२९०१] कण्ह-सविहिहिं पत्तु वसुदेवु तयणंतरु नहयरिहिं हरिहि विहिय-पय-पूय वहु-विह । पडिवज्जिवि सेव तमु गहिय आण सीसेण दुस्सह ॥ अह केसवु हय-गय-रहिहिं सुहड-सिरिहिं वड्ढंतु । कसु कसु न जणइ हरिसु मणि तेय-सिरिण दिप्पंतु ॥ २९... ६, क. अ for अम्हे. ___ 2010_05 Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪૮ नेमिनाहचरिउ [२९०२] तयणु तम्मि वि ठाणि हरिसेण सयलेहिं वि जाय विहि आनंदिण. नच्चियउं सिरि-आणंदपुरुत्ति वर तं जि महा-तित्थु ति इहु घोसिज्ज आ-चंदु ॥ पुरउ जिणह सिरि- नेमिनाee | अह जणेण तसु वसुह-भागह ॥ ना दिन्नु साणंदु । [२९०३] तेसि पुणु जरसंघ - पमुहाहं सव्वेस व रिउ - निवहं कारावइ जीवजस हरि पुणु धरहं ति - खंडहं वि सोलस-नरवइ- सहस- जुउ [२९०४] तेण उ निय-वल- महिमा - उवहसियासेस- सुहड - महिमेण । उच्चत्त-पित्तेहिं जा पिहू पिहू जोयण- पमाणा ॥ मयहं अंत-कायव्वु सयलुवि । तयणु खिवइ चिय चक्कि अप्पुवि ॥ रिउ कुल परिसातु । कोडि - सिलहं संपत्तु ॥ [२९०५] घण-मसिण-विसाल - सिला - कलिया भरहद्ध - देवय- गणेण । जत्थ परिक्खति वलं भरहद्धे साहिए हरिणो ॥ 2010_05 [२९०६ ] वाम भुयग्गे पढमेण धारिया सा सिरम्मि वीरण । तइएण कंठ-देसे नीय चउत्थेण वच्छयले | [२९०७] पंचमगेण उ नाही- सविहे छट्ठेण कडिय - पसे । सत्तमगो उण ऊरू जाणू जो नेइ अट्टमगो ॥ [२९०८] सउरि-तणरण हरिणा चत्तारिउ अंगुलाई उक्खित्ता । ओसप्पिणीए पायं वलाई झिज्जंति जं कमसो ॥ [२९०९] ता गयणयले सुर- गण - विज्जाहर - सिद्ध-जक्ख-निवहेहिं । उग्घुट्टो जय-सदो मुक्काओ कुसुम-बुट्टीओ ॥ २९०४. १. क. ओवहसिय. [ २९०२ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४९ २९१४] कण्हचरिउ [२९१०] इय साहिय-भरहद्धो कण्हो छम्मास-मित्त-कालेण । पुवज्जिय-सुकरहिं जय-प्पयावेहि य समिद्धो ॥ [२९११] तयणु केसवु फुरिय-माहप्पु ति-क्खंडहं वसुमइहिं नियय-आण स-हरिसु पयासिवि । रण-विजिय-अणेग-निव उचिय-उचिय-ठाणिहि निवेसिवि ॥ अज्जिवि अइरिण पउर-सिरि साहिवि वमुह ति-खंड । अद्ध-चक्कि हुउ महुमहणु तोलिवि निय-भुय-दंड ॥ [२९१२] अह अणग्घिण विहव-जोगेण नीसेस-जायव-कुमर स-बल गंतु वारवइ-नयरिहि । निय-जोव्वण-रूव-सिरि- विजिय-महिम रइ-रंभ-लच्छिहि ॥ सह ससि-वयणिहि कामिणिहि विसय-सुहई सेवंत । चिट्ठर्हि दोगुंदुग-सुर व गउ वि कालु अ-मुणंत ॥ [२९१३] तह ति विलसिर-चहल-लायन्न संपुन्न-जोव्वण-भरिण फुरिय गरुय-पडिवक्ख-खंडण । संतोसिय-सुहि-सयण दढ-पइन्न दुन्नय-विहंडण ॥ पोढ-नियंविणि-माण-गुरु- तरुवर-दलण-कुढार । विलसहिं महिहिं महा-महिण मुररिउ-नेमिकुमार ॥ [२९१४] पत्त-अवसरु समुदविजएण नीसेस-जायव-जुइण लग्ग-दियहि गरुयर-समिद्धिण । कुठुगिण वि साहियइ सुह-मुहुत्ति ससि-सुद्ध-बुद्धिण ॥ ठाविउ जायव-तिलउ हरि अद्ध-भरह-रज्जम्मि । वलएवो उ महा-महिण ठवियउ जुव-रज्जम्मि ॥ २९१२.७. क. सेवंतु. २९१४. २. क. जाइव. ____ 2010_05 Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ० [२९१५ नेमिनाहचरिउ [२९१५] तयणु नहयर-निवइ-निवहेहिं मणि-कंचण-मुत्तिइहि तुरय-हत्थि-रहवर-सुवत्थिहि । भरहद्धिय-तियसिहिं वि पाय-पूय कय वहु-पयत्थिहि ॥ सोलस-सहस-पमाणगिहिं मउडवद्ध-निवई हिं । पिहु पिहु सक्कारियउ हरि दुहिं दुहि निय-दुहियाहि ॥ [२९१६] सहस सोलस हरिण परिणीय अटेव य हलहरिण सहस अट्ठ जायविहिं इयरिहिं । ता सामित्तणिण हरि गहिवि नमिउ सयलिहिं वि खयरिहिं ॥ अह जहरिहु सक्कारिउण कहिण ते सव्वे-वि । निय-निय-ठाणि विसज्जिया सुर-नहयर-निवई वि ॥ [२९१७] तयणु जायव-कुमर साणंद विलसंति सव्वे-वि वहु- विहिहिं पवर-कीला-विणोइहि । माणति उज्जाण-सिरि रमहिं समगु नर-खयर-तरुणिहि ॥ नेमिकुमारो उण मुणिय- चउगइ-भव-भावत्थु । अ-कुणंतउ विसयहं कह-वि चिहइ मुणि व कयत्थु ।। [२९१८] ता नरिंदिण समुदविजएण सिवदेवी-परिगइण नेमि-कुमरु एगति सायरु । भणियउ जह - वच्छ तुहुं भुवण-अहिय-गुण-रयण-आयरु ॥ दार-परिग्गहु जइ कुणहि ता अम्हहं संतोसु । जायइ अह जय-वंधवु वि भणइ पणासिय-दोसु ॥ ____ 2010_05 Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९२४ ] surafts [२९१९] दार - परिग्गहु करि हउं ताय इह पागय-रूविणिहि जर किज्जइ पारडी जइ लहि अणुरूव कवि इयरहा उ जायइ विडवण । महिलियाहि किं कीरए पुण ॥ मिच्छहं केरा कम्मु | तो वरि चित्तउ मारियइ जासु महग्घा चम्मु ॥ [२९२०] इयर महिला न रुच्चइ सुंदर महिलाण नत्थि संपत्ती । एमेव विरइ - परिवज्जिएहिं दियहा गमिज्जति ॥ [२९२१] इय परिभाविय - नीसेस - भव- सरूवो पिऊण वयणाइ । गंभीर - भासिएहिं पडिसेहइ स - विणयं नेमी || [२९२२] इत्तो य अवराजिय- सुरघरह सिरि-उग्गसेणह निवह अवयरिउण धूयत्तणिण जायउ पवर- दिणम्मि । ता सुय - जम्मम्मि व निविण किइ वद्धावणयम्मि | [२९२३] दिन्नु राइमइति अभिहाणु परिचवेविणु ठिइहि अंतम्मि 2010_05 जसमईए जिउ वर मुहुत्तिहिं । धारिणीए देवीए कुच्छिहिं ॥ अह वुढिहिं जाइ इह एत्तो य गयउरि नयरि सह-गुणेहिं यदि धवलिहिं । पंडवाण भवणम्मि कालिहिं ॥ कड्ढउ आयउ केलि पिउ नारउ विप्प - पहाणु । तसु पुणु कमवि दोवइहिं न तहा किउ सम्मा || [२९२४] तयणु कोविण धाइ - संडम्मि भरहस् य दाहिणहं थी-लोलह नरवहि पत्तउ नारउ अह निविण भणियउ दिट्ठ कहिं पि तिय एरिस अह हसिऊण || २९२४. ९. क. हसिउण, ख. हसिऊणं. दिसिर्हि अवरकंकाए नयरिहिं । पउमनाह - नामस्सु सविहिहिं ॥ अंतेउरि नेऊण | ६५१ Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ [ २९२५ [२९२५] __ चित्त-लिहियउं रूवु दोवइहि वियरेइ नराहिवह अह सु असम-कंदप्प-भाविउ । परिजंपइ - मणुय-भवि तरुणि-रयणु इहु किह णु आविउ ॥ अहवा चिट्ठइ कत्थ इय मह साहसु पसिऊण । अह नारउ निव-वियरियइ आसणि उवविसिऊण ॥ [२९२६] भणइ - नणु इह जवुदीवम्मि सिरि-हत्थिणउरि-नयरि दइय पंच पंडवहं वालिय । इह दोवइ-नाम छण- रयणिरमण-सिय गुण-विसालिय ॥ तहि पुणु सेसु वि सहस-मुहु रूवु कहेउ अ-सत्तु । किं पुणु हउं साहे मि तुह नरवर माणुस-मेत्तु ॥ [२९२७] अह विसेसिण मयण-विहुरंगु आराहिवि सुर-रयणु एगु भणइ तमु पुरउ नरवरु । जह - दोवइ कह-वि मह आणिऊण मेलेसु अह सुरु ॥ सुह-सुत्तिय पंडवहं पिय अवहरिउण अइरेण । वियरइ तमु निवइहि तिण वि कय-बहु-सक्कारेण ॥ [२९२८] चाडु-चयणिहिं वहुहिं सा भणिय तीए वि समुल्लविउ मज्झु संति हरि-मुसलि वंधव । जइ तत्ति ति न करिसई मज्झि दियहं मह कित्तियाण व ॥ ता हउं उचिउ समायरिसु इम भणेवि रोयंत । चिट्ठइ दोवइ भोयणु वि भन्नंत वि अ-कुणंत ॥ २९२५. १. क. रूव. २९२६. ८. क. पुण; ९. क. माणस. २९२८. ४. क. तत्ति न. 2010_05 Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५३ २९३२ ] कण्हचरिउ [२९२९] इत्तो य - गोसि पंडव दइय अ-नियंत अच्चताउलिय-मण धरणि-बलइ सव्वत्थ जोइ वि । परिसाहहिं हरि-पुरउ सो वि स-वलु दढयरु विसरिवि ॥ नणु भरहद्धि न अस्थि कु-वि माणवु वप्पिण जाउ । जो मई सहुँ खवलिवि हरिवि दोवइ कह-वि पलाउ ॥ [२९३०] इय विचिंतिरु कण्हु चिठेइ जा ताव नहंगणिण तत्थ विप्पु नारउ पहुत्तउ । ता कण्हिण पुच्छियउ कहइ सयल वइयरु जहुत्तउ ॥ अह सुत्थिय-सुर सुमरियउ कण्हिण तत्थ पहुत्तु । तयणंतर तसु साहियउ सयल्लु पुव्व-वुत्तंतु ॥ [२९३१] तयणु सुत्थिय-विहिय-साहज्जु खण-मेत्तिण छहिं रहिहिं पंडवेहि पंचहिं वि जुत्तउ । दो-लक्ख-जोयणु उयहि तरिवि अवरकंकहं पहुत्तउ ॥ पउमनाभ-निवइहि पुरउ दूयउ दारुग-नामु । पेसइ सो-वि हु गंतु तहिं भणइ - महाबल-धामु ॥ [२९३२] जलहि तरिउण पत्तु इह कण्हु चिठेइ पुरीए वहि सहिउ पंच-पंडव-नरिंदिहिं । ता दोवइ तसु भइणि सुण्ह पंडु-अभिहाण-निवइहि ॥ भारिय पंचहं पंडवह निम्मल-सील-विसाल । सामिण भणिउ नरिंद तुहुँ अप्पहि कण्णह वाल ॥ २९२९. ४. क. पुरओ. ७. क. माणुवि, ख. ण्णाणवु. ___ 2010_05 Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५४ [ २९३३ नेमिनाहचरिउ [२९३३] पउमनाभु वि भणइ - नणु हंत सो चंदु दिवायरु व वासवु ब्व चक्कि व कयंतु व । जो मग्गइ मह दइय स-चल-पत्त अ-मुणंत-तत्तु व ॥ अहवा अज्ज-वि वलिवि इहु निय-ठाणह गच्छेउ । मा मह कोवानलि पडिवि स-बलु वि हरि डज्झेउ ॥ [२९३४] एहु वइयरु हरिहि साहेइ लहु दारुगु आविउण तयणु हरिण आणत्त पंडव । पविसंति संगर-महिहिं असम-महिम-भुय-दंड-मंडव ॥ पउमनाभ-नरवरिण सह स-चलिण किंतु खणेण । नासिवि पविसिवि निय-पुरिहिं मज्झि निउत्त-जणेण ॥ [२९३५] पिहिय सयलि वि पुरिहि दाराई तयणतरु केसविण फुरिय-गरुय-अमरिसिण तक्खणि । मिल्लेविणु रह-रयणु पय-भरेण अक्कमिय मेइणि ॥ आगच्छंतिण पुरि-समुहु तह जह पडिय गिहाई । अद्यालय खडहडिय जलनिहि-जल झलहलियाई ॥ [२९३६] इय निरिक्खिवि धरणि कंपंत पय-दद्दर-पडिरविण खुहिय-चित्तु पुर-लोउ सयलु वि । पडिवज्जइ दोवइहि सरणु एत्थ-अंतरि नरिंदु वि ॥ नियवि अयंडि वि उठियउ सयल-पुरिहिं संहारु । तसु दोवइहि महा-सइहि पइहि करिवि नवकारु ॥ ____ 2010_05 Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९४० ] कण्हचरित ६५५ [२९३७] भणइ - सुंदरि माय तुहुँ मज्झ सरणु च्चिय तुहुँ जि मह इय पसीय जीवियह रक्खहं । तयणंतर दोवइहिं भणिउ एहु भणियव्व-दक्खहं ॥ जह - नरवर मुक्काउहउ गंतु हरिहि सविहम्मि । मई मुंचसु ता तूसिसइ मुर-रिउ तुह उवरिम्मि ॥ [२९३८] अह सु दोवइ-पुरउ काऊण गहिऊण अणेगविह- वत्थ-रयण-आहरण मणहर । पय-पूय करेवि तसु भणइ - मज्झ अ-विणय अ-सुंदर ॥ सव्वे-वि हु तुहं महु खमसु तयणंतरु कण्हेण ।। वियरिउ तहिं पट्टीए करु पगइहिं पणय-पिएण ॥ _ [२९३९] तयणु जलनिहि-सविह-पत्तेण गच्छंतिण निय-धरहं पंचयन्नु निय-संखु पूरिउ । संख-स्सय-पडिरविण धरणि-विवरु अवरु वि वहिरिउ ॥ अह चंपा-पुरि-वासिइण अद्ध-भरह-नाहेण । हरिण कविल-नामिण सुणिउ जिण-सविहम्मि ठिएण ॥ [२९४०] तयणु - नणु मह संखु केणेस आऊरिउ इय मुणिवि पुट्ठ पुरउ तहाण-वासिहिं । जिण-इंदह सामिण वि कहिउ पुव्व-वइयरु विसेसिहि ॥ अह - पहु नेमि-सहोयरह तसु कण्हह मिलिहेसु । इय भणिउण उहिरु कविलु भणिउ जिणिण स-विसेसु ॥ २९३९. ८. क. हरि कविल. २९४०. २. आऊरियउ ३. क. पुरओ, 2010_05 Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२९४१ नेमिनाहचरिउ [२९४१] कण्ह न हुयउं एहु न हवेइ न य हविहइ कहमवि हु जं मिलंति जिणवर जिणिंदहं । चक्काहिव चक्कियहं सवा वि भरहद्ध-चंदहं ।। अह स-विसेसुक्कंठ-मणु कविल-कण्हु उठेवि । मण-पवण-व्वेगिण लवण- जलहि-तीरि गच्छेवि ॥ [२९४२] दछु कण्हह छत्त-झय-चिंधरह-रयणइं गच्छिरई कविल-विण्हु निय-संखु पूरइ । इयरो वि-हु तस्सवण- तुटु गमिरु सायरि सु-पूरइ ॥ इय अन्नोन्निण दटु हरि- चिंधई दु-वि ति विसिट्ठ । निय-निय-ठाणह सम्मुहय संचल्लिय संतुट्ठ ॥ [२९४३] पउमनाहु वि विहिय-गुरु-पावु निद्धाडिउ निय-महिहि कविल-हरिण अच्चंत-रुट्ठिण । अभिवंदिय जिणह पय- पउम जाय-पच्चइण तुहिण ॥ हरि पुणु लवणोयहि तरिवि मागह-तिथि पहुत्तु । अह पंडव गय अग्गयरि सुर-सरि-सलिलु तरित्तु ॥ [२९४४] किंतु भीमिण केलि-नडिएण नीसेस वि पवहणई अवर-तिथि मुक्काइं नेउण । ता कहिण पुट्ट - किह तुब्भि पत्त इह सरिय तरिउण ॥ अह भीमिण संलत्तु - नइ तरियम्हिहिं वाहाहिं । ता करि करिउण रह-तुरय हरि वि तरइ जंघाहिं ॥ २९४१. १. कण्हु; ३. क. मिलंति जिण वरिंदहं. २९४५. २. क. पवहणइ. ४. क. पुह. ____ 2010_05 Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५७ २९४८] नेमिवुत्तंतु [२९४५] तयणु अक्खिउ हरिहि सब्भावु संथुणियउं हरिहि वलु तह स-तोसु भीमेण पभणिउ । पहु तुम्ह परिक्ख-कइ ताव कडगु मई सयलु अवणिउ ॥ अह - अरि सत्त परिक्खि सह मह अज्ज-वि एहि ति । भणिवि स-कोविण केसविण ते निद्धाडिय झत्ति ॥ [२९४६] अह ति पंच वि भइण कंपंत नीहरिउण तक्खणि वि पंडु-विसय-मज्झम्मि आविवि । अमरावइ-सरिस-सिरि पंडु-महुर-पुरि पवर ठाविवि ॥ चिट्टहिं पंच वि स-परियण- नियय-कुडुंव-समेय । इह-परलोइय-कज्ज-विहि- पयडण-विमल-विवेय ॥ [२९४७] तम्मि पुणु सिरि-हत्थिणउरम्मि सिरि-अज्जुण-निव-तणय- पुत्तु रज्ज-वावारि संठिउ । हरि वहुविह-निव-गणिण सुप्पसत्थ-वत्थूहिं अंचिउ ॥ कम-जोगिण सिरि-वारवइ- नयरिहिं आगंतूण । चिट्ठइ विसयासत्तु निय- कित्ति जगि विखिविऊण ॥ [२९४८] अवर-वासरि कुमर-नियरेण परियरियउ नेमि-पहु कीलमाणु आउहहं सालहं । संपत्तउ अह नियइ चक्कु संखु गय चावु लीलहं ॥ अवरु वि हरि-पहरण-निवहु सच्चवेइ दिप्पंतु । तयणतरु कोउग-वसिण सामिउ ईसि हसंतु ॥ ____ 2010_05 Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५८ [ २९४९ नेमिनाहचरिउ [२९४९] सरय-ससहर-विव-संकास जय-मणहर-पंच-मुह- पंचयन्न-अभिहाण-संखह । संचल्लिउ अभिमुहउ जाव ताव तमु कमल-अक्खह ॥ नाहह समुहु समुल्लविउ सीस-निसिय-हत्थेहि । आउह-साला-संठिइहिं ह रेहि पुरिस-सत्थेहिं ॥ [२९५०] सच्चु सामिय अतुल-बलु तं सि परमज्ज-वि अप्प-वउ इय न तरसि तुहुँ संखु घेत्तु वि । आऊरणु दूरि पुणु इमह मुयसु ता गहण-चित्तु वि ॥ एक्कु जि आऊरेइ इहु संख-रयणु जुय-वाहु । कंस-काल-जरसंध-हरु हरि भरहद्धह नाहु ॥ [२९५१] ता विसेसिण ईसि विहसंतु अक्कमिउण अग्ग-पहु नेमि-कुमरु वामेग-पाणिण । उक्खिविउण लीलहं वि कय-चमक्कु भुवणह वि स-वलिण ॥ अ-किलेसिण वियसिय-नयणु आऊरिवि हरि-संखु । विविह-विअप्पुवहरिय-मणु कुणइ जगु वि गय-लक्खु ॥ अवि य - [२९५२] संख-सहेण स-गिरि स-समुद स-ग्गामायर स-पुर स-घर धरणि सयला वि कंपिय । तह कहमवि जह सरहिं विंझ-गिरिहिं सिंधुर सु-दप्पिय ॥ निवडहिं कुल-सेलहं सिहर खुहियउ लवण-समुहु । सुर-सरिय वि विवरिउ वहइ फुडइ व गयणु सु-रुंदु । ____ 2010_05 Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९५९ ] नेमिवृत्तंतु [२९५३] भवणुज्जाण समेया गोउर- पायार- तोरणोवेया । सयहा पुरी न फुट्टा सा देव - विणिम्मिया जेण ॥ [ २९५४ ] तह वि महाभवणंतर - विर्यभिणा तेण संख - सण | महु-मत्त कामिणी इव सा चलिया सव्व-ठाणेसु ॥ [ २९५५] उद्दामा वर तुरया भमंति तुट्टंत-संकला करिणो । भीओ जायव-वग्गो मुच्छा-वियलो जणो जाओ ।। [२९५६ ] भीओ हरी वि सहसा विगय-मओ लंगली वि संजाओ । संतस्थासेस-भडा गोविंदमुत्राया सरणं ॥ [२९५७] किं अयंडि वि फुट्ट भंड परिखुहिउ रयण - निहि अह कयंतु कुद्ध भयंकरु | जं दीसइ सयल जगु कंपमाण-तणु खोह - दुद्धरु ॥ अहवा किं कु-वि चक्कवर वारवइहिं उप्पन्नु । जं सुम्मइ इहु संख-खु तइ - लोयह अ-सवन्नु ॥ [२९५८] इय विर्चितिरु गरुय-भय- विहुरु जा चिह्न कण्हु खगु तसु आउह- सालयह आगंतूण हरिहि पुरउ नेम - कुमारिण संखु इहु 2010_05 ताव विणय-पणमंत अंगिण | पालगेण माणविग एगिग ॥ कहिउ जहा - कीलाए । आऊरिउ लीलाए || [२९५९] तयणु - अरि अरि रूव- रिद्धीए सोहरिगण लक्खणिहिं वणि भुवणु सयलु वि विसेस | मज्झ रज्जु सयलु विगसइ ॥ आउह - सालहं गंतु । अ-समु चोज्जु जयस्सु कुणंतु ॥ सिरि-नेमिकुमारु इय इय चिंतंत महुमहणु dras जय - सामि २९५७. १. क. फुडु. ६५९ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६० नेमिनाrafts [२९६०] अe tius hor सासंकु न बंधव नियय- वलु दक्खवेसु मह वाहु- जुज्झिण । ता विहसिवि नेमि पहु भणइ वयण जुज्झिण वज्जिण ॥ जुज्जइ जुज्झिर उत्तिमहं अह जइ तुह निव्बंधु । तानामिव मह वाम-भुय भमहि स-उद्धर - खंधु ॥ [२९६१] तयणु नेमिण वाम-भुय-लयह तडवियह महुमहणु अ- तरंतर तरु- सिहरि गणि सुरासुर - खयर-गणचिहिं नेम कुमार वलु स-हरिस अवलोयंत ॥ करिहिं दोहिं चालणह लग्गउ । पवगु जेम्व अच्छs विलग्गउ ॥ तरुणिउ मिलिवि हसंत । 2010_05 [२९६२] तयणु कण्हण नियय-भुय-दंडु asaण धरि अ लीलाइ विनामिउण अह तियसासुर - किन्नरिहिं कुसुमहिं पहुवरि वरिसियउं वाम -पाणि- पल्लविण नेमिण | वलय- रूव किउ असम - तेइण ॥ जक्खिहि गंधव्वेहिं । जय-जय-झुणि-पुव्वेहिं ॥ [२९६३] अह सरेविणु रहिण एगेण धंधोलिउ सयलु वलु मगह - निवह सिरि-नेमि - कुमरिण । वाले विभग्गु हउं जणिउ चुज्जु भुवणह विस-वलिण || इय अ-वियपिण स-भुय-वल- परिणिज्जिय तेलोक्कु । नेमि अद्ध-भरहाहिव विहल महारउं चक्कु ॥ २९६३. ५. क. भुवहण. [ २९६० Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९६७ ] नेमिवुत्तंतु [२९६४] इय मुणेविणु हरिहि कु-वियप्पु वलभहु जंपइ – अहह कण्ह कण्ह मा इत्थ दप्पहि। जं तिहुयण-सिरिहि निहि अद्ध-चक्कि इहु इय वियप्पहि ॥ नेमि-कुमरु वउ गिहिसइ तुहुं पुणु पालिसि रज्जु । इय परिभाविवि सिरि-दइय हवसु स-कज्जह सज्जु ॥ [२९६५] बद्ध-लक्खु जु असम-सुहयम्मि सिव-संगि सु किह रमइ गरुय-दुहइ संसार-सायरि । जो गहिहइ चरण सिरि रज्ज-मुहि न सु रमइ दुहायरि ॥ पउणीकय-धणसार-सिरिखंड-हरिणनाहिल्लु । कह-वि विलिंपइ अप्पु नहि असुइ-रसेण छइल्लु ॥ [२९६६] जं पडिच्छइ गहिय-वरमाल जय-दुलह-तिलोय-सिरि विहुर-हियय भावाणुरागिण । सोहिलसइ किह कुहिय- काण-डुवि सहियउ विवेगिण ॥ जं च चउद्दह-वर-सिविण- सूइउ इहु संजाउ । तं हविहइ वावीसइमु जिणु नमि-जिण-अक्खाउ ॥ [२९६७] तह वि न मुयइ कह-वि कुवियप्पु चिठेइ य भय-विहुरु जाव ताव कुल-देवयाइ वि । तह-रूवु निएवि हरि भणिउ सविह-देसम्मि आविवि ॥ नणु म-न वीहिसि कण्ह तुहूं जं सिरि-नेमिकुमारु । पढम-वयम्मि वि गिहिसइ चरणु तिलोयह सारु ॥ २९६६. ९. क. अक्खाओ. ____ 2010_05 Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६२ [२९६८ नेमिनाहचरिउ [२९६८] तयणु केसवु मुणिय-परमत्थु दूरुज्झिय-पाव-मणु भणइ पुरउ सिरि-नेमिकुमरह । जह – वंधव जइ-वि तुहं पगइ-विमुह विसय-सुह-पसरह ॥ तह-वि हु मह सुहि-सयणहं वि उवरोहिण कु-वि कालु । विसय-सुहई रज्जिण सहिय नेमि कुमर परिवालु ॥ . [२९६९] एम्ब पुणु पुणु हरिहि भणिरस्सु पहु हरिहि पियाहिं सह निश्चियारु बहुविह-विणोयहि । परिकीलइ अवर-दिणि भणिउ कण्हु जायविहि सयलिहि ।। समुदविजय-नरनाहिण वि तह सिरि-सिवदेवीए । करिसु तहा जह उज्जमइ नेमि-विवाह-विहीए ॥ [२९७०] ता विसेसिण भणिय कण्हेण सिरि-रुप्पिणि-जंववइ- सच्चहाम-पमुह य स-भारिय । नणु कहमवि उज्जमह तह हवेह जह कज्ज-कारिय ॥ ताउ वि केलि कुणंतियउ भणहि वयण स-वियार । सामि वि गहिर-पयंपिइहिं ताहं करेइ निवार ॥ [२९७१] अवर-अवसरि मुसलि-सुय निसढनरनाह-अंगुब्भविउ विमल-सयल-लक्खणिहि जुत्तउ । सिरि-सायरचंद-अभिहाणु कमलमेलाए रत्तउ ॥ वंचेविणु महसेण-निवु परिणाविउ संवेण । इय जायंतिण तम्मि कुलि वहु-वुत्तंत-सएण ॥ २९६९. ५. क. सयलि वि. २९७०. ८. भामिवि. ____ 2010_05 Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९७५] नेमिवृत्तंतु [२९७२] काल-जोगिणसेस-रिउ-पवरु संपत्तु वसंत-महु जहिं स-तोसु सहयार-सिहरिहिं । निरु विहुरिय-विरहिइहिं मंजरीउ अवयंसिकीरहिं ॥ मलयानिल-संगिण भमर पसरिय-गुरु-झंकार । देसंतर-गमणुम्मणहं पहियहं कुणहिं निवार ॥ [२९७३] मयण-नरवइ-रज्ज-अहिसेउ साहंति व तिहुयणह महुर-रविहि तरु-सिहर-संठिय । कलयंठिय चूय-तरु- मंजरीण कवलणिण तुहिय ॥ सिसिरु हयासु सु उहु गयउ कवलिउ महु-दियहेहिं । इय कुमुइणि-तरुणिउ हसहि वियसिय-कुमुय-मुहेहिं ॥ [२९७४] वउल-पायव-नियर घुम्मंति वहु-पीय-सीयासव व अंव-तंव-पह पुणु विरायहि । मज्झम्मि अ-माइयउ वहि फुरंतु नं राउ दावहिं ॥ मिउ-पवणाहय-उल्लसिय- किसलय-करहि गएण । लासु पयासहिं तरु-लइय भमरावलि-गीएण ॥ [२९७५] जहिं सियाइं वि कुंद-कुसुमाई संजायहिं धूसरई पिय-विओइ कामिणि-मुहाई व । वियलंति य माणिणिहिं माण सविह दइयतुं दुहाई व ॥ लुद्ध-पियंगुहिं कुसुम-सिरि चत्त चवल असइ व्य । सावि-हु अंकुल्लय विहिय- सिरि नव-गहिय-पइ व्य ॥ २९७२.५.क. अवयंतिसि. ६. क. संगिर ८.क. देसंतरु. २२७३.६. क.ओहु. २९७४, ४. क. अमाइयओ. ____ 2010_05 Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६४ [ २९७६ नेमिनाहचरिउ [२९७६] नलिणि-कामिणि सिसिर-काउरिसविच्छाइय-तणु-लय वि पत्त-लच्छि किय महु-नरिदिण । कणियार-महहुम वि विहिय-सोह कय कुसुम-रिद्धिण ॥ कुरुवय-तरुवर घण-थणिउ तरुणित आलिंगंति । कामिणि-गंडूसइहिं पुणु केसर कुसुमिजंति ॥ [२९७७] विरह-पायव पंचमुग्गारु निसुणेविण कुसुम-भरु लिंति वउल विसएहिं पंचहि । इय विसयासत्त जहिं तरु वि तत्थ किं कहउं अन्नहि ॥ इय एरिसइ वसंत-महि पसरिय तरु-नियरम्मि । हरिसु जणंतइ भुवणह वि जायव-नर-नियरम्मि । [२९७८] रइय-असरिस-अंग-सिंगार निय-चारु-परियण-सहिय विहिय-सयल-मुहि-सयण-मण-सुह । हरि-नेमिकुमार परिचलिय नयर-उज्जाण-सम्मुह ॥ तयणंतर सिंधुर-तुरय- संदण-रयण-निलीण । संचल्लिय जायव-कुमर पेमवई-साहीण ॥ [२९७९] कमिण झल्लरि-भेरि-सारंगिकंसाल-तालय-तिरिरि- करडि-ढक्क-तंवक्क-वुकहि । पडु-पडह-सुसंख-वर- वंस-वेणु-काहल-हुडुक्कहिं ॥ वज्जतिहिं तूरिहिं वहुहिं वहिरिय-मज्झ-दसास । गायंतिहिं गंधव्विइहिं पूरिय-तरुण-जणास ॥ २९७६. ६. क. तरुवय तरुवर. २९७७. ६. वसंतमहिं. २९७९. ६. बजरिहिं. ९. क. जणासु. ____ 2010_05 Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६५ २९८३ ] नेमिवुत्तंतु [२९८०] पत्त उववणि नाय-पुन्नायनालियरि-लवली-लयहं नायवल्लि-मुदिय-लवंगहं । खजूरि-सहयार गुरु- ताल-साल-पुप्फलि-असोगहं ॥ मालइ-मल्लिय-केयइहिं करुणि-कयलि-एलाहं । कप्पूरागुरु-चंदणहं सातलि-वियइल्लाहं ॥ [२९८१] खणु नियंतय कुसुम-फल-रिद्धि खणु वार-विलासिणिहिं ललिय-गीय-सुह-अमय-सित्तय । खणु हरिसिण मग्गणहं कुसुम-कणय-रयणाणि देंतय ॥ खणु कारितय भारहिय- नट्टारंभ-विसेसु। खणु चिट्ठहिं पेक्खंत कलहंसय-मिहुण सरेसु ॥ [२९८२] __ असम-विलसिर-वहल-लायन्न संपुन्न-जोव्वण-भरिण फुरिय गरुय-पडिवक्ख-खंडण । संतोसिय-सुहि-सयण दढ-पइन्न दुन्नय-विहंडण ॥ पोढ-नियंविणि-माण-गुरु- तरुयर-दलण-कुढार । कीलहिं वहु-भेएहिं तहिं मुररिउ-नेमिकुमार ॥ [२९८३] पत्त-अवसरु हरिहि वयणेण निय-भाउज्जाय-सय- सहिउ जाय-अंदोलण-स्समु । सव्वंगु वि करिवि लहु समय-उचिउ सिंगारु निरुवम् ॥ समुदविजय-निव-अंगरुहु दिणयर-कर-संतत्तु । नेमि-कुमरु तिहुयण-तिलउ जल-कीलण-कय-चित्तु ॥ ___ 2010_05 Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६६ नेमिनाrafts [२९८४] पउम - परिमल - सुहय-लहरिम्मि चक्कवाय - कलहंस-सुंदरि । भमिर-मर - झंकार - मणहरि || विलसंत-सारस - सहसि परिविलसिर-कमल-वणि तीर - द्विय-तरु-नियर-प परिकीलिर- हरि करि खयर- सुर- गण - कहिय-अमेरि ॥ -फल कुसुम -भार-सुंदेरि । [२९८५ ] खीर - जल- निहि-पत्त - वित्थारि कीला-सरि पविसिउण हरि-अंतेउरिहिं सहुं अवगूढउ गोरंगिय अंजण - सिहरि व तियस - गिरि- मेहल-कय-लायन्तु ॥ समुदविजय- अंगरुडु स-हरिमु । मज्जमाणु सुहु लहइ अ-सरिस || तरुणिहिं सामल - वन्तु । 2010_05 [२९८६] सुहय जोइन जोइ इहु मीणु इय जंपिर का वि तसु कवि कुमर किमेउ इय नेमि व निद्ध-निरिक्खणिहिं इग संभावइ जाव । वहुहिं तवज्जइ ताव ॥ ईसा- उदुंदुर-मणिहिं वह घर उरयल भीडिवि । भणिर लग्ग तसु अंगि धाविव ॥ [२९८७] सलिल - कीलहिं एहि पज्जत्तु अरि भाउ चलहु जिह सिरि- नेमकुमार वरु दाहिण -कर- अवलंवणिण जाता सुजि गंभीर-जलि खिवर्हि पोढ - रमणीउ ॥ नियय ठाणि गम्मइय जंपिरु | पच्छहुत्त चलणिहिं विसप्पिरु || कड्ढइ कवि तरुणीउ । २९८४. क. लहरिमि. २९८७. ५. क. चलणिहिं ९. क. रमणीओ. [ २९८४ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६७ २९९१ ] नेमिवृत्तंतु [२९८८] _तहिं सरोवरि ललिवि इय सुइरु हरि-सुंदरि-सइण सहुं लग्गु ललिउ जल-जंत-कीलहं । तयणंतरु कुमर-वरु विजिय-अमर-नहयरु स-लीलहं॥ ताडिउ अ-करुणु कामिणिहिं सुरहि-सिसिर-सलिले हिं । सुर-सिहरिम्मि व अमरवइ- गणिण विमल-कलसेहिं ॥ [२९८९] नेमि-कुमरु वि काउ सिंचेइ गंधोदय-सिंगियहं काउ हणइ वच्छयलि कमलिहिं । कासि पि कुसुमाहरण देइ का-वि भूसेइ स-करिहिं ॥ किं वहुएण व छंटणय- केलि कुणंतिण तेण । तह आवज्जिय सुर-खयर हरि-वल जेण खणेण ।। [२९९०] परिमुएविणु इयर-छंटणय कीला-रसु तहिं मिलिय नियहिं नेमि-कुमरस्सु चरियई । सिवदेवि वि स-परियण- सहिय नियइ निय-वच्छ-ललियई ॥ कीलइ एक्कहं पक्खि ठिउ एक्कु जि नेमि-कुमारु । अवरहं सोलस्स वि सहस हरि-अंतेउरु सारु ॥ [२९९१] किंतु मयणु व वसइ हियएसु सव्वासि वि रमइ सवि सव्वि हणइ निय-नयण-वाणिहिं । रंजेइ सव्वासि मण हरइ हियय सव्वासि वयणिहि ॥ पाडलि-मालइ-मालियहिं पणइण क-वि वंधेइ । समुहागच्छिर पोढ क-वि कामिणि आलिंगेइ ॥ ____ 2010_05 Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६८ नेमिनाहचरिउ [ २९९२ [२९९२] ___ एम्ब नेमिण ति-जय-तिलएण एगेण वि सोलस वि तरुणि-सहस तह कह-वि रंजिय । जह गायहिं तसु जि पर सु-चरियाइं गुरु-भत्ति-भाविय ॥ तह उब्भिय-भुय-लय-जुयल- मज्झि कुमारु करेवि । नच्चहिं मइरा-पाडलिय- लोयण करणु धरेवि ॥ [२९९३] ___एत्थ-अंतरि हरिहि मणु मुणिवि आलिंगिउ ताहिं पहु सामिणा वि विगयाणुरागिण । आलिंगिय ताउ अह भणिउ किण वि वर-तरुणि-रणिण ॥ भुय उक्खिविउण जय-पहुहु सविहि जहा - किमणेण । पर-रमणी-आलिंगणिण अपय-किलेसयरेण ॥ [२९९४] कज्जु जय तुह काम-कीलाए ता परिणहि किं-पि वर- तरुणि-रयणु जिम्ब हवहि सुहियउ । जं दइयहं विणु जगु वि गेह-धम्मि धुवु हवइ दुहियउ॥ गेहासमु पालंतयह उसह-जिणह हुय सिद्धि । भरहह अंतेउर-ठियह हुय वर-नाण-समिद्धि ॥ [२९९५] संति-कुंथुहि अर-जिणेणावि चउसहि-अंतेउरिय- सहस-संग-सुहु लहिवि अणुदिणु । कम-जोगिण सरय-ससि- किरण-विमल चरणु वि चरेविणु॥ किं न संपाविउ सिद्धि-सुह- आहिवच्चु निरवज्जु । जो उ कलत्त-परिग्गहु वि न कुणइ धुवु सु अणज्जु ॥ २९९४. ६. क. गेहसमु. २९९५. ६. कि नं. ८. क. जो कलत्त 2010_05 Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिवृत्तंतु [२९९६] एहु कायर-वाल-पव्वइयसमणेहिं भणिउ जह- वालओ वि चइयव्व महिलिय । जइ महिलहं विणु हवइ किं-पि केण ता जणिय धरणिय ॥ चक्कि-जिणाउ लइय विउस नो उत्तसहिं तियाहं । नहि देउल-पारेवडा वीहहिं तालुट्टाहं ॥ [२९९७] तयणु रुप्पिणि-सच्चहामाइहरि-दइयहिं सयलिहिं वि सम-विहिय-करताल-हसिरिहिं । संलत्तु - देयर किह णु अम्ह वयणु सहलसि न हरिसिहि ॥ समुदविजय-नरनाहिण वि सिवदेविहिं सहिएण । कण्हेण वि पत्थुय-विहिहिं भणिउ सु स-कुडुंवेण ॥ अवि य - [२९९८] तणय सामिय वंधु मुहि सुहय पडिवज्जम परिणयणु किण-वि समगु वर-तरुणि-रयणिण । इय जणणी-जणय-भड- वंधु-मित्त-तरुणियण-चयणिण ॥ नेमि-कुमरु वर-नाण-धणु मणिण अनिच्छंतो वि । पडिवज्जइ परिणयण-विहि सिव-बहु-अणुरत्तो वि ॥ [२९९९] तयणु तुट्ठउ कण्हु सिवदेवि नो माइ सरीरगि वि हरिस-पुलय-अंकुरिय जायव । कह कह न सहति महि- वलइ फलिय नं कप्प-पायव ॥ रुप्पिणि-जंवुवई-पमुह हरि-अंतेउरियाउ । धावहिं वग्गहिं विलसहि य हरिस-भरिय-हिययाउ ॥ २९९७. ३. विगहिय. २९९९. ५. क. चलइ. ७. क. अंतेउरिआओ. ९. क. हिययाओ. ____ 2010_05 Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७० [३००० नेमिनाहचरिउ [३०००] एत्थ-अंतरि सच्चहामाए विन्नत्तउ हरि-पुरउ नाह अत्थि मह लहुय भइणिय । राईमइ नाम निय- रूव-विजिय-तइलोय-तरुणिय ॥ धुवु तहि अरिहइ नेमि पर नेमिहि स जि अरिहेइ । जइ पुणु न कुणइ एहु विहि ता अप्पउं विनडेइ ॥ [३००१] तयणु कण्हिण निय-महामच्चु सिरि-उग्गसेणह निवह सन्निहाणि पेसविउ तेण-वि । अवलोइउ राइमइजा न सक्क वन्निउ सुरेण वि ॥ उग्गसेण-निवइहि पुरउ भणियउ पुणु - तई दिन्न । नेमि-कुमारु विवाहिसइ इह राईमइ कन्न ॥ [३००२] अहह रोरह गिहि कणय-ट्रि कट मरुहुं माणस-सलिलु वपु दरिद्द-गिहि काम-धेणुय । जइ हविहइ तुह वयणु सच्चु एहु भवियव्य-जाणुय ॥ ता अमच्च सव्वायरिण तुहूं तह कह-वि जएसु । जह जायइ इहु अ-वितहु जि तुज्झ वयणु नीसेमु ॥ [३००३] एहु सयलु वि कहइ वुत्तंतु सचिवाहिवु केसवह तिण वि कहिउ सिरि-समुदविजयह । तेणावि-हु तक्खणिण गयण(?) तणउ वाहरिउ स-घरह ॥ तेण वि साहिउ सन्निहिउ लग्ग-दियहु निवइस्सु । नरवइणावि हु कहिउ सिवादेविहि निय-दइयस्सु ॥ ३००३. ३. ख drops the portion from समुद (३००३. ३) to परिगयह (३००४.५). ५. The letter next to गय is blurred in क. 2010_05 Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३००७ राईम - परिगयह आरंभ परिणयण उसे निवइ वि कह - वि arcas a वीवाह - विrि नेमिवुत्तंतु [३००४] अह पयासिवि उग्गसेणस्सु समुदविजय - निवु लग्ग- वासरु । विहि सुस्सु संपत्त-अवसरु ॥ हरिसिण माइ न ठाइ । राईम - कन्नाइ ॥ [३००५] तयणु कइयहं दइउ पेक्खे सु fores मज्झ करु मणि धरिes कइ मई अव सु तारि नर - रयणु इय चिंतिर राइमइ ठिय 2010_05 कइ कय ह नाहु माणि । हउं विकइय तसु हिय वासि ॥ कह कह हउं निब्भग्ग । चिंता - जलहि-निमग्ग ॥ [३००६] अह सहीयण - वयणमासज्ज उवलडु जणणी-जणय पमुह-सयण उवएसु तरसिय । ससि वयणिय कुणइ लहु ताउ ताउ किरियाउ हरिसिय ॥ नेमि कुमर - दंसण-अमय वरिसुक्कंठिय वाल | वहु- विच्छित्तिर्हि राइमइ कारावर वर-माल || [३००७] तयणु विरइय- चारु- सिंगार उग्गसेण नरनाह - कन्नय । कारावि पुंखणय साहाविय-नियय-तणु- कंति - विजिय-सोवन्न-वन्नय ॥ अच्छ पेच्छिर आयरिण नेमि - कुमारह वट्ट | तरुणि-दिन्न - मंगल- सुहल पढिर- फुडक्खर भट्ट ॥ ३००५. ३. क; कइयह, ख. कइयहउं नाहु. ३००६. ५. क. ताओ ते किरियाओ. ८. क. राइमई. ६७१ Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७२ नेमिनाहचरिउ [३००८] एत्थ-अंतरि विहिय-सिंगारु कय-कोउय-मंगलिउ देवदूस-पावरण-मणहरु । कय-पुंखणयाइ-विहि नियय-सोह-अहरिय-पुरंदरु ॥ जाणंतउ तइलोयह वि भूय-भावि वुत्तु । तस्समयागय-सुर-असुर- हरि-मुसलिहिं सोहंतु ॥ [३००९] तुरय-करिवर-रहवरारुढनीसेस-जायव-सहिउ नेमि-कुमरु रहवरि चडेविणु । अणुगच्छिर-भुवण-जणु वत्थु-तत्तु निय-मणि धरेविण ॥ चलिउ चमक्किय-सयल-जगु समुदविजय-भवणाउ । गंध-गउ व निय-जूह-जुउ विंझ-गिरिंद-वणाउ ॥ [३०१०] तयणु चच्चरि तिगि चउक्कम्मि पुर-रच्छहिं कूव-सर- सरिय-तीर-धरणियल-सिहरिहिं । उद्धीकय-कडचिर (?) कय-निवेस वहु-भेय-मंचिहि ॥ घर-अवलोयण-जिण-भवण पायारुवरि निबिट्ट । नयण-पहागइ कुमरि क-वि कामिणि भणइ पहिह ॥ [३०११] भइणि अग्गल मुयसु जिह हउं वि अवलोइवि मुह-कमलु अकय-तवहं दुलहह कुमारह । उवगेण्हहुं किं-पि फलु नूण भवह एयह अ-सारह ॥ आवइ आइउ जाइ इहु इहु इहु इहु एहु त्ति । तरुणीयण-मण-वल्लहउ नेमिनाह-कुमरु त्ति ॥ ३००९. ५. क, भवणाओ; ९. क. वणाभो. 2010_05 Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७३ ३०१५] नेमियुत्तंतु [३०१२] इयर पभणइ - तुह पसाएण मई दिट्ठउ भइणि इहु विजिय-कुसुमकम्मुय-मडप्फरु । हउं वन्नउं तसु जि पर सुंदरीए सोहग्ग-वित्थरु ॥ जा एरिस-वच्छयलि गुरु- नयर-पओलि-विसालि । सहलिय-जोव्वण-रूव-सिरि रमिहइ अज्जु वियालि ॥ [३०१३] ईसि विहसिवि भणइ अह अन्न जइ पिय-सहि एहु तुह मेलवेमि ता किं पयच्छहि । अह करयल-ताल-रव- पुव्वु भणइ - सवि तुहुँ ज मग्गहि ॥ इय सहि कहमवि एहु मह सोहग्गिउ संपाडि । परि अम्हहं किह एरिसई सहि लक्खणइं निलाडि ॥ [३०१४] ___ इय समुज्झिय-निय-नियासेसवावारहं सयलहं वि तिव्व-राय-विहुरिय-सरीरहं । पुर-तरुणीहिं विविह-मण- वयण-काय-गय-किरिय-पसरहं ॥ पेक्खंतउ परिचिट्ठियइं विम्हिय-मण-वावारु । उग्गसेण-निव-गिह-सविहि पत्तउ नेमि-कुमारु ॥ [३०१५] अह तुरंतिण विविह-सहियणिण राइमइ भणिय - सहि एहि एहि निय-नयण-पुडइहिं । लायन्नामउ पियसु नेमि-पहुहु आगयह सविहिहिं ॥ अह लहु हरिसुय-हियय जाल-गवक्खिहि कन्न । अवलोयंति वि पहुहु मुहु हृय सु-झामल-वन ॥ ____ 2010_05 Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७४ [३०१६ नेमिनाहचरिउ [३०१६] ता धवक्किय-हियय इयरीउ जति - किं एउ सहि गरुय-हरिस-ठाणि वि विवनय । जं दीसहि अह भणइ राइमइ वि अच्चंत-सुन्नय ॥ किं-पि न-याणहुं हलि सहिउ किं पुण फुडइ व सिसु । तोडु पवट्टइ कुच्छिहिं वि डाह-जरिणं मीसु ॥ [३०१७] मणु खुडुक्कइ फुरहिं नीसासु रणरणउ समुल्लसइ दाहिणंग-नयणाई फंदहिं । पेक्खंतिहि पुणु भुवण- नाहु नयण आणंदु संदहि ॥ ता न-वि याणहुँ होइसइ ज मह विहिहि वसेण । तयणु स-संकिण सहियणिण भणिउ - सुयणु किमणेण ॥ [३०१८] तुह अणिहिण चिंतियव्वेण जं आइउ एहु पिउ दिछु तइं वि निय-नयण-कमलिहिं । परिणेसइ अज्ज तई रंजवेज्ज तुहुँ पिउ सु-चरिइहि ॥ कंकणि करयलि संठियइ सहि आरीसइं काई । इय अज्ज-वि किं न तुहुं चयसि इहि संका-वयणाई ॥ [३०१९] इय भणंतहं ताहं स-सहीण वयणाई राइमइ सुणिर हियउं संधीरमाण वि । परिसंकिर भावि दस रुयइ चेव वारिज्जमाण वि ॥ नेमि-कुमारु वि परिणयण- विमुह-मणु वि गच्छेइ । जा अग्गिम-पहु कित्तिउ वि ताव झत्ति पेच्छेइ ॥ ३०१६. १. क. हिय इयरीओ; न. इइयरीउ. ४. क. दीसइ. ९. जरेण मीसु corrected as संमीसु. ३०१७. ५. क. आणंद. ३०१८. १. क. अणटिण, ____ 2010_05 Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७५ ३०२३] नेमि वुत्ततु [३०२०] ससग-संवर-हरिण-भल्लुंकिछग-सूयर-वणमहिस चास-चडय-तेत्तिरिय-लावय । अवरे-वि हु विविह जिय वाड-खित्त करुण-प्पलावय ॥ अह जाणंतु वि भुवण-गुरु सारहि-पुरउ भणेइ । कहसु किह णु बहुविह-जियहं करुणु सदु सुम्मेइ ॥ [३०२१] तयणु सारहि विहिय-कर-कोसु पहु-सविहिहिं विन्नवइ नाह तुज्झ वीवाह-वासरि । सस-सूयर-हरिण-हुड- महिस-पमुहु संपत्ति अवसरि ॥ जीवक्खाडउ करुण-रव- पसर-भरिय-जगु एहु । नणु हणियव्बउ जायवहं भोयण-कज्जि गहेउ ॥ [३०२२] तयणु - धिसि घिसि निविवेयाहं परिचिट्ठिउ जं कुणहिं एम्ब जीव-वह-पमुह-पावइं। न गणंति उभय-भव- संभवंत-बहु-भेय-आवई ॥ इय चिंतिरु निरुवम-करुण- परम-अमय-रस-सित्तु । नेमि भणइ - नणु सारहिय रहु लहु वालि निरुत्तु ॥ [३०२३] अह मुयाविवि जीव-संघाउ वालाविवि रहु कुमरु भणइ पुरउ निय-जणणि-जणयहं । गमियव्वु मइं सिव-पुरिहिं दाउ सलिल-अंजलिउ विसयहं ॥ ता नीलंवर-महुमहण- पमुहु सु जायव-वग्गु । भणइ - कुणसु तुहुं नर-रयण सु-पुरिस-सेविउ मग्गु ॥ ३०२१. २. क. सविहिहि. ____ 2010_05 Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७६ नेमिनाहचरिउ [३०२४ [३०२४] किंतु संपइ उग्गसेणस्सु नरनाहह कन्नयह कुणसु तोसु निय-पाणि-गहणिण । जिह तूसहि सुहि-सयण तुज्झ दिट्ठ-परिणीय-वयणिण ॥ ता करयल-पिहिय-स्सवणु नेमि-कुमारु भणेइ । नणु जाणिय-भव-भावि-दुहु को परिणयणु कुणेइ ॥ [३०२५] नियहु एगह जियह परिणयणआरंभि वि कित्तियहं जियह एहु संहारु मंडिउ । इय अ-सुहइ विसय-सुहि को-णु रमइ सु-विवेय-चड्डिउ ॥ जणणी-जणउ वि सोयरु वि परमत्थेण न कोइ । पडिरि कयंतह दडवडइ जो इह अंतरि होइ ॥ [३०२६] तुम्ह पयडु वि कंसु सु नरिंदु सो कालु नराहिवइ गुरु-मरटु सिसुपालु निवइ सु । अवहेडिय-सत्तु-कुलु . दढ-मडप्पु जरसंधु राउ सु ॥ ता तहं तारिस रज्ज-सिरि सो तहं सयण-समूहु । किह-णु न दीसइ संपइ वि मु वि हय-रह-करिजूहु ॥ [३०२७] भवि अणाइय-निहणि पत्ताई नाणाविह-सुह-दुहई न-उण तुहि विरइ वि पयट्टिय । तहिं रज्जि उ विक्किणिवि को रहटु वुहु लेइ वट्टिय ॥ नृण न सेय-क्कज्जि खमु काल-विलंबु वुहाहं । अवगय-चउगइ-भव-दुहहं णिगणिय-मरण-दिणाहं ॥ ३०२६. २. ५. क. दढ is written over something previously written. ख. गुरु; क. राय, ख. जरसंध. 2010_05 Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०३३] नेमिवुत्तंतु [३०२८] इय विचित्तहिं वयण-रयणेहिं सु-विणिच्छिवि पहुहु मणु मोह-पवण-तरलियउ केसवु । तह समुदविजय-निवइ- पमुहु सयलु स-कलत्तु जायवु ॥ निठुर-नेमिकुमार-मुह- निग्गय-वयण-दुहटु । गलिय-आसु विच्छाय-मुहु अक्कंदेउ पयट्टु ॥ [३०२९] भुवण-नाहु वि मुणिय-भव-भावु अवगणिउण सुहि-सयण वलिवि पत्तु निययम्मि मंदिरि । सारस्सय-पमुह सुर अह पहुत्त निययम्मि अवसरि ।। विहिय-पणामय विन्नवहिं जह – पहु तिहुयण-सार । तित्थु पयट्टहि जय-सुहय सामिय नेमि-कुमार ॥ . [३०३०] तयणु नेमिहि मणु मुणेऊण इंदेण चलियासणिण वाहरेवि वेसमणु भणियउ। जह - सामिउ नेमि-जिणु वरिस-दाण-कारणिण मणियउ ॥ इय तुहं अभिओयिय-सुरहिं वारवईए पुरीए । धण-कंचण-रयणाइं परिखिवहि सयल-धरणीए ॥ [३०३१] तत्तो सिंघाडग-तिग-पमुह-ट्ठाणेसु तीए नयरीए । देवा य जायवा वि-य कुणंति मणि-कणय-रासीउ ॥ [३०३२] वर-चरिया घोसिज्जइ किमिच्छियं दिज्जए वहु-विहीयं । । रयणाणि य वत्थाणि य करि-तुरए वि हु जहिच्छाए ॥ [३०३३] तत्तो राइमई वि-हु विणियत्ततं स-मंदिराभिमुहं । अवलोइऊण नेमिं सोऊण य दिक्ख-परिणामं ॥ ३०२८. १. क. रयणाई. ३०२९. ८. क. पयट्टइ. ३०३०. ४. Added marginally in क. ६. सुरिहिं ____ 2010_05 Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७८ [३०३४ नेमिनाहचरिउ [३०३४] कप्प-पायव-लय व परिछिन्न वल्ली इव उक्खणिय खलिय-सील वर-तवसिणी इव । अच्चंत-विवन्न-तणु- छाय गलिय-वय कामिणी इव ॥ अइ-दुक्खिय-सहियण-विहिय-भीसण-गुरु-पुक्कार । गेह-गवक्खह राइमइ निवडिय नीसाहार ॥ अह कहं-चि वि भियग-वग्गेण तह विलविर-सहियणिण तेहिं तेहिं सिसिरोवयारिहिं । अवहेडिय-मुच्छ-दुह पीणियंग विविह-प्पयारिहिं ॥ उग्गसेण-नरवइ-दुहिय संपाविय-चेयन्न । कह-कहमवि चेट्टइ पुरउ जणहं सु-दुह-संछन्न ॥ [३०३६] पडइ उहइ सुयइ नच्चेइ अक्कंदइ विहसइ य हणइ उयरु सिरि केस तोडइ । संचुन्नइ आहरण करयले हिं वलयाई मोडइ ॥ डसणिहिं डसइ स-उह-उडु वयणिण मेल्लइ धाह । अक्कोसइ पइ पइ सहिय अ-प्पयडिय-अवराह ॥ अवि य [३०३७] अरिरि सहियण सरिस सुह-दुक्खहं ताय दुह-उद्धरण अहह भाय निय-भइणि-बच्छल । धिसि सज्जण हा जणणि मज्झ होह दुह-हरण-पच्चल ॥ विन्नाणिण दाणिण विणय- वयणिण सम्माणेवि । अज्जउत्तु करयलि धरिवि वालिवि इह आणेवि ॥ ३०३५. ८. क. पुरओ. ३०३७. २. First few letters are illegible in क. ____ 2010_05 Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४१ ] [३०३८] - दियर दाण-करिराय नेमित्तंतु संसार- सरि-सरह मई मेल्लिव कहिं गयउ विलवंती राइमइ तुट्ट-सलिल सरि सफरि जिम्व तल्लोवेल्लि करेइ ॥ कुमरि वृतंतिण तेण सिरिआगंतुण राइमइ विरहाउरु मणु थिरु करिवि होस तुह अवरो विवरू 2010_05 सुगर-नयर-संपत्ति-संदण । समुद विजय - सिवदेवि-नंदण ॥ धरणीयfल निवडे । [३०३९] परियण - वयण - विन्नाय - ईसीसि विहसिवि भणिउ अ - विड्ढिr गय-रसिण जो पडिवज्जिव निय-मुहिण रहु वालाविव धावण उग्गसेण नरवरिण तक्खणि । भणिय वच्छि जय-पवर-लक्खणि ॥ दुरिण चयसु विसाउ । पयडिय - गरुय पसाउ ॥ [३०४०] एत्थ - अंतरि सहिय वग्गेण किं करेसि सहि नेमि - कुमरिण । परिविमुक्क पुरिसाहिमाणिण ॥ आगंतु वि इह एम्व । वलिउ पवंगमु जेम्व ॥ [३०४१] तु विस्स दइउ सो को- वि जो सयल-भ्रुवणब्भहिउ समुवह सिय-तियस - गुरु तिहुयण - कामिणि-मण-हरणु विविह-रणंगण-निज्जिणिय- नरवइ-कय- सम्माणु ॥ ३०३९. ४. क. राइमई. असम - रूव-लायन्न- रिद्धिण । भुवण-षयड-ससि-विमल - बुद्धिण || निम्मल - गुणहं निहाणु । १७९ Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५० नेमिनाहचरिउ [३०४२] अह थुकिय-वयण राइमइ परिमुक्क- नीसास-भर सो मेल्लिवि नेमि वरु हलि सहियहु तुभे व इहु जंपहु किमसंवद्ध | तुम्हाण व किं किं-पि मई इह चिst अवरद्ध || भणइ ताय किं वय-वोल्लिण । मह न कज्जु इयरेण भल्लिण ॥ [३०४३] कहह को इह तेम्व महुमहण भुय-दंड- वलु निद्दलइ को व निवइ दस अजु-य साहइ । को व कोव - मय-माणु वाहइ || नंदणु तिहुयण सारु । सो च्चिय नेमि - कुमारु ॥ ससुरासुर-पहुहुं पहु मेल्लिव समुदविजय - निवइता मह पर जम्मि वि सरणु 2010_05 [३०४४] ती वइयरु एहु मुणिऊण सविसेस फरिय-गिरि- गरुय - दुक्ख - परभार- विहुरिउ । हरि-लहर - सिरि-समुदविजय - निवइ-सिवदेवि- सउरिउ ॥ अवरो वि-हु जायव-निवहु वाह जलाविल-नेत्तु । कह-वि अ-पाविरु रइ-लघु वि पहु-विरहाउर - चित्तु ॥ [३०४५] स दुहु च अइ-दीहरु frees जहिं रमिहर नेमि - जिणु थोडइ पाणिइ मच्छु जिम्व म मुहिम मुयहि नाह इहु ३०४२. ३. क. वहुयवोल्लिण. ३०४३. ४. क. पहुं. करुणु पलवेइ भमर पहुहु पासेसु पुणु पुणु । तं जि थुणइ झूरेइ अपणु ॥ तल्लोविल्लि कुणंतु । नियय-लोउ विलवंतु ॥ [ ३०४२ Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८१ ३०५६ ] नेमिवुर्ततु [३०४६] एहु सयलु वि मोह-ललियं ति मन्नंतउ अणवसरु मुणिरु तेसि पडिवोह-समयह । वियरंतउ इच्छियउं वरिस-दाणु सयलह वि लोयह ॥ ससहर-विमल-विवेय-गिरि- सिहरि सामि आरूढु । दाणु पयच्छइ वच्छरिण पुणु इहु जिण-पह-रूहु ॥ [३०४७] एगा हिरण्ण-कोडी अटेव अणूणगा सय-सहस्सा । सरोदय-माईयं दिज्जइ जा पायरासाओ ॥ [३०४८] तिन्नेव य कोडि-सया अट्ठासीइं च होंति कोडीओ। असियं च सय-सहस्सा एवं संवच्छरे दिन्नं ॥ [३०४९] तत्तो दिक्खा-समयं आसण-कंपेण नाउ देविंदा । सव्वे वि पुरो पहुणो समागया सयल-रिद्धीए ॥ [३०५०] भवणवइ-वाणमंतर-जोइसियाणं असंख-कोडीओ। देवाणं देवीण य तेहिं समं एंति तुट्ठाओ ॥ [३०५१] ता वारवई नयरिं आरम्भ सुरंगणा-सहस्सेहिं । पूरिज्जइ देवेहिं स-विमाणेहिं नहमसेसं ॥ [३०५२] वुढेि च गंध-जल-कुसुम-रयण-निवहेहिं जिणहरे काउं । पणमंति जिण-वरं ते थुणहिं य थोत्तेहिं पवरेहिं ॥ [३०५३] कण्ह-प्पमुहो य तहिं जायव-वग्गो मिलेइ सयलो वि । किमिमं ति विम्हिओ अह समुद्दविजयं स-सिवदेविं ॥ [३०५४] सव्वे वि तियस-पहुणो थुणंति पीऊस-वरिस-वयणेहिं । जह - तुब्भे च्चिय धन्ना हरिवंसो चेव सलहिज्जो ॥ [३०५५] जत्थुप्पन्नो एसो तइलोय-दिवायरो कुमारो वि । निज्जिय-भुवण-त्तय-कुसुमचाव-उवहणिय-माहप्पो ॥ [३०५६] वावीसम-तित्थयरो असेस-सुरराय-पणय-पय-पउमो । भारह-वासे भुवणयल-भूसणो जिण-वरो नेमी ॥ 2010_05 Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाeafte [ ३०५ [ ३०५७ ] इय थुणिय जणणि जणया कलस- सहस्सेहिं बहु वियप्पेहिं । निय मंदिर-मंदर गयममरिंदा थुणहिं नेमि जिणं ॥ [ ३०५८ ] न्हाओ कय वलि कम्मो दिव्वालंकार-भूसिय- सरीरो । जय - जणिय-महच्छरिओ सिरि-नेमि - जिणेसरो भयवं ॥ [३०५९] उत्तर - कुरु-नामाए सिवियाए रयण - कणय - मइयाए । जायव - देव-याए आरुह पहु जहा - विहिणा | [ ३०६०] दिव्वे य रयण- सीहासणम्मि उवविसइ उभयओ तं च । वीयंति चामरेहिं सोहम्मीसाण - देविंदा || [३०६१] छत्तं सणं- कुमारो माहिंद-सुरेसरो पवर-खगं । भाहिवो सुरीसो गिण्हइ वर दप्पणं पयओ ॥ [ ३०६२] कलसं लंतग - नाहो मह - सुक्को सोत्थियं सहस्सारो । गिoes सरासण- वरं सिरिवच्छं पाणय- सुरिंदो | [३०६३] नंदावतं पवरं तु अच्चुओ सेस-मंगले सेसा । नच्चंति अमर-वर-सुंदरीओ पुरओ जिदिस्स || [ ३०६४ ] नंदी - तूरेसु तओ समंतओ सुर-वरेहिं पहए । उक्खिता सा सिविया सहसेणं जायव-निवाणं ॥ [ ३०६५ ] तत्तो वर्हति एयं सुर-निवहा तुट्ट माणसा पुरओ । वज्र्ज्जति दुंदुहीओ पेच्छणयाई कुणंति सुरा || [३०६६] नच्चति अच्छराओ पहसिय हिययाओ विरह - विहुराओ । रोयंति जायवीओ रुप्पिणि- सिवएवि - पमुहाओ || [ ३०६७ ] कण्हो समुद्रविजयाइणो य वर - सिंधुरे आरूढा | तह तुरयारूढाओ जायव - कोडीओ वच्चति ॥ [ ३०६८ ] परिवारिऊण नेमि चउद्दिसि सुरवरा विमाणेहिं । छायंति अंवर-तलं निरंतरं कय-समुज्जोयं ॥ 2010_05 Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०७५] नेभिबुत्तंतु [ ३०६९ ] गंधोदएण सिंचंति महियलं नहयलाउ मुंचति । वर - सुरहि-कुसुम - वुद्धिं पए पर तह य वंदि व्व ॥ [३०७०] सिरि-नेमि - जिण-गुणोहं निरंतरं ते पढेति तु मणा । विविहाभिपायाहिं देवीहि जायवीहिं च ॥ [३०७१] कय- विविह-संकहाहिं दीसंतो अहिलसिज्जमाणो य । सोइज्जत-गुणोहो सलहिज्जतो य संपत्तो ॥ [३०७२] सहसंव-वणुज्जाणे छट्टूववासेण वट्टमाणेहिं । सुद्धझवसाणेहिं लेसाहिं विमुज्झमाणीहिं || [३०७३] उत्तर- कुरु-विसयाओ सिरि-नेमि - जिणेसरो समुत्तरइ । उब्भिय-भुय-दंडेहिं थुव्वंतो सुर-नरिंदेहिं || [३०७४] मुइ सयलि वि कुसुमलंकार सुरवइहि वयणेण पुणु तयतरु नेमि - जिणु कण्हु लेइ वत्थेग - देसिण । वड्ढमाणु ससि सुद्ध-लेसिण || पंचहि मुट्ठिर्हि चिर भरु निरु दाहिण आवत्तु । रयण-सह-संजु ॥ उप्पाडइ नरवइ - तणय 2010_05 [३०७५] पहुहु कुंतल गहिवि पुणु सक्कु खिविऊण खीरोयहिहिं पत्तु तहिं जिवणि तियस-सत्तिण । वारे य सयल झुणि a सिद्धहं नीसेस करिव न विहेयव्वर कह - वि मई far- यत्तिण ॥ भाव सारु नवकारु । सयलु पाव-वावारु ॥ ३०६९. १. क. महलाउ. ६८३ Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३०७६ नेमिनाहचरिउ [३०७६] इय भणेविणु सिद्ध-पच्चक्खु मण-नाण-रयणेण सह चित्त-रिक्ख-जुत्तम्मि ससहरि । सु-पसत्थि मुहुत्ति रय- रेणु-नियर-रहियम्मि अंवरि ॥ जायव-चंसुज्जोयकरु पहु तिण-मणि-सम-चित्तु । सावण-सिय-छट्टिहिं तिहिहिं पडिवज्जेइ चरित्तु ॥ [३०७७] अह सुरासुर-कण्ह-वलएवपामुक्खु असेसु जणु निय-निएसु ठाणेसु पत्तउ । भयवं पि-हु वीय-दिणि विहरमाणु मम-भाव-चत्तउ ॥ वारवइहिं नयरिहिं ठिइण पाराविउ धन्नेण । वरदिन्निण माहणिण गुरु- भत्तिहिं परमन्नेण ॥ [३०७८] तयणु तमु घरि कणय-वसुहार उक्कोसिय पडिय तह कुसुम-बुट्टि गंधोय-बुट्टि य । मणि-वुट्टि वि दुंदुहिउ पहय चेल-अंचल वि खेविय ॥ जायउ हरिसु ति-लोयह वि मु पसंसिउ वरदिन्नु । विहरिउ अन्नयरहं महिहिं पहु वि असम-सोजन्नु ॥ [३०७९] इओ य - पहुहु उज्झिय-विहुर राइमइ रह-नेमिण नेमि-जिण- वंधवेण साणुणउ पभणिय । पडिवज्जसु पसिय मई मयण-विहुर-तणु तयणु तरुणिय ॥ घिसि घिसि इग-उयरुब्भवहं अंतरु इमहं महंतु । उज्झइ संतु वि विसय-सुहु इगु इगु महइ अ-संतु ॥ ३०७७. ६. क. omits नयरिहिं. ३०७८. ९. क. पह. ३०७९. १. क. पहुहुं. ____ 2010_05 Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८५ ३०८३] 'नेमिवुत्तंतु [३०८०] अहव वीयह महिहिं एक्कह वि परिवड्ढइ मूल अहि अंकुरो उ उड्ढम्मि वच्चइ । ता वत्थु-सहावु इह विसम-रूवु भुवणम्मि वट्टइ ॥ इय चिंतंती राइमइ रहनेमिहि वह-भेउ । वियरइ धम्मुवएसु सिव- सुह-सय-साहण-हेउ ॥ [३०८१] भणइ पुणु - नणु सुहय छुहियम्हि वियरेसु य किं-पि मह भोयणु त्ति ता मोह-मूढिण ।। परमन्नु कराविउण दिन्नु तीए इयरी वि बमिउण ॥ घेत्तुण य कच्चोलइण तं जि पाउमारद्ध । अह - किह वमियउं पियसि इय इयरिण स उवालद्ध ॥ [३०८२] भणइ - नणु जइ एम्ब ता हउं वि वमियम्हि नेमि-प्पहुहूं किह णु तं पि मई रमिउमिच्छसि । उज्झेविणु इत्थियणु चरसु चरणु जइ मुहई वंछसि ॥ इय जुत्तिहि नाणा-विहिहि भयवइ-राइमईए । सो रहनेमि विवोहिउण लाइउ चरण-रईए ॥ [३०८३] एत्थ-अंतरि कण्हु विन्नत्तु उज्जाण-वालग-नरिण पहु तिलोय-पहु-नेमिनाहह । चउपन्न-वासर-अणुक्कमिण गमिय छउमत्थ-भावह ॥ विहरिय-नाणाविह-महिहिं सु-प्पवित्त-चित्तस्सु । रेवय-गिरि-सहसंव-वणि वर-काणणि पत्तस्सु ॥ ३०८२. ९. क. चरणईए. ____ 2010_05 Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८६ aftereafte [३०८४] कमिण अम-तवह पज्जेति झानंतर रिह आ-जम्मु अ-लद्धयरु आसोयह अम्मासहं गरुर - ते हिंससिरविहि जायइ सुमुहुत्तम्मि ॥ घाइ कम्म संघाइ झीणइ । चाउरंग-भव - भमणि खीणइ ॥ चित्ता - नक्खत्तम्मि । 2010_05 [३०८५] अज्जु केवल-नाणु उप्पन्नु तयणंतरु सुर-गणिण नियय-नियय-अहिगार - जोगिण । अइरेण विजय सरणु समवसरणु as fafवह - भंगिण || ता वणयर-कय-1 प-तिदिसि पडिविंधु नेमि - जिण- इंदु | तहिं निवसिवि पुव्वाभिमुहु वियसिय-मुह-अरविंदु || [३०८६] चलिय- आसण - पत्त-सुर-असुर नर-नायग-सय- सहहं इय उज्जाणिय-नरिण तसु तोसिग उक्कोसियउं कणय- दाणु वियरेवि । गमिरागमिरिण सुर-गणिण पूरिउ गयणु निवि || सुग-मग्गु साहंतु चि । पहु-पणिहि विसयम्मिसि || [३०८७] समुदविजइण सहिउ सिवदेवि परियरिउ महुमहणु सयले हिं विजयविहि चलियउ सिरि- रहनेमि सिरिहरिस - वियासिय-मुह-कमल ३०८५. १. क. उप्पन्नुं फुरिय- गरुय - आणंद - वित्थरु | समगु असम-सिंगारसुंदरु || राइमईहिं समेउ । सामिहि वंदण - हेउ | [ ३०८४ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमियुतंतु ६८७ [३०८८] कमिण मनिरु अप्पु कय-किच्चु पेक्खंतउ पुहुहु सिरि सुणिरु पुहुहु घण-गहिर-देसण । सुहि-सयणहं पुरउ पुणु भणिरु नियह भव-भाव-नासण ॥ रिद्धि-विसेस जिणेसरह भुवण-सिरो-रयणस्सु । पंच-विहाहिगमिण सविह- देसि पहुत्तु पहुस्सु ॥ [३०८९] अह नमंसिवि सामि-पय-पउम नीसेस-जायव-सहिउ उचिय-उचिय-आसणिहि निवसइ । तियसासुर-नहयरहं गणु वि नियय-ठाणेसु निवसइ ॥. तयणंतरु जिण-नायगिण भव-विराय-संवद्ध । जलहर-गंभीर-ज्झुणिण धम्म-क्कह पारद्ध ॥ जहा - [३०९०] जलिर-मंदिर-सरिसु संसारु निरुवदवु मुक्ख-पुरु दुहय विसय सुह-हेउ सिव-पहु । तणु चंचल धम्मु थिरु सुहउ सु-गुरु खलयणु दुहावहु ॥ अप्पु वि अ-नियंतिउ पिसुणु सु-नियंतिउ सु जि मित्तु । ता जइयन्वउं भवियणिण राय-दोस चइत्तु ॥ [३०९१] इय निसामिवि धम्म-कह विविह वरदत्तु महा-निवइ गलिय-चरण-आवरणु तक्खणि । दुहिं सहसिहिं निव-सुयहं समगमेव परितुछ निय-मणि ॥ पडिवज्जइ सामिहि पुरउ चाउज्जामु चरित्तु । उप्पाय-व्वय-धुव्व इय वयणई तिनि गहित्तु ॥ ३०८८. ९. क. omits पहुत; ख. स्सु for पहुस्सु. ३०९०. ४. क. तय(?), ख. तयणु. ____ 2010_05 Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८८ [३०९२ नेमिनाहचरिउ [३०९२] कुणइ वारस-अंगु सुय-जलहि पुबज्जिय-असम-गणहारि- नामु ता नेमि-नाहिण । पढमिल्लु गणहरु ठविउ तियस-नाह-कय-गरुय-रिद्धिण ॥ जक्खिणि-नामिय निव-दुहिय गहिय-चरित्त पवित्त । विहिय पवत्तिणि सुस्समणि- सयहं मज्झि गुण-जुत्त ॥ [३०९३] एत्थ-अंतरि पत्त-पत्थावु सिर-विरइय-पाणि-पुडु भणइ कण्हु जह – नाह पसिउण । मह साहसु किह णु इहु भुवण-सयल तिण-लवु व कलिउण ॥ इयरु नहिलसइ राइमइ सामिय तुज्झ विओइ । तयणंतर सिरि-नेमि-जिणु भणइ - कण्ह जिय-लोइ ॥ [३०९४] हवइ नेरिसु कसु वि पाएण परिसंचिय-नेह-भर पुव्व-जम्म-संबंध-विरहिण । एसा-वि हु राइमइ अट्ट जम्म मई सह स-कम्मिण ॥ हिंडिय दढयर-नेह-भर- सम-सुह-दुह-भावेण । ता किह इह भणिय विरमइ सह पुरिसिण इयरेण ॥ [३०९५] __ इय सुहा-रस-पेसलालाव पहु-देसण निसुणिउण ईहपोह-मग्गण पविट्ठिय । सुमरेइ असेस-निय- जाइ राइमइ मणिण तुट्ठिय ॥ उज्झिवि धणु कणु परियणु वि तोडिवि मोहह पास । चरणु पवज्जइ पहु-पुरउ सिव-संगम-कय-आस ॥ ____ 2010_05 Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०९९ ] ६८९ नेमिवृत्तंतु [३०९६] तीए सह बहु-भेय-निव-दुहिय इयराउ वि पव्वइय जे य आसि किर धण-भवाउ वि । धणदत्त-धणदेव-इय- नाम-पयड सोयरय पहुणु वि ॥ ते वि-हु निय-निय-पुव्व-भव- सुमरण-कय-पडिवोह । उज्झिय-रज्ज विमुक्क-गिह चरणु लिंति हय-मोह ॥ [३०९७] सु वि मइप्पह-सचिवु चारित्तु गेण्हेइ अह तिन्नि वि ति गणहरिद हुय पहु-पसाइहिं । हरि मुसलि दसार दस सावयत्तु गेहंति सु-विहिहिं ॥ सिरि-सिवदेवि वि रोहिणिहिं देवइ-जंववईहि । सहिय गहेइ अणुव्वयई सह जायविहिं वहहिं ॥ [३०९८] एम्ब पढमि वि समवसरणम्मि उप्पन्नि चउव्विहइ संघि तियस गय नियय-ठाणह । वहु-गुण-गण-रत्त-मण जायवा वि गय नयरि-सम्मुह ॥ सामि वि सरइ अइक्कमिरि धरणीयलि विहरंतु । मलय-विसय-चूडारयणि भदिल-पुरि संपत्तु ॥ [३०९९] नागदत्तह वणिहि गिहिणीए सुलसाए वेसमण- मुरिण सउरि-सुय आसि वियरिय । जे ते-वि विवोहिउण नेमि-जिणिण चारित्तुं गाहिय ॥ तयणंतर दसविह-समण- किरिय-विहाणासत्त । भाविण सेवहिं जिण-कहिय- चाउज्जाम-चरित्त ॥ ३०९६. ३. क. भवाओ. ख. भवउ. ३०९७. ३. क. पह for पहु. ____ 2010_05 Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३१०० नेमिनाहचरिउ [३१००] एत्थ-अंतरि नेमि-जिण-इंदु नीसेसाइसय-निहि विहरमाणु उज्जाणि पत्तउ । अह आइउ हरि पुहुहु वंदणत्थु जायविहिं जुत्तउ ॥ नमिवि मुणि वि वंदणय-फलु हरि भव-भमण-विरत्तु । पास-टिइण कुविंदइण वीरएण संजुत्तु ॥ [३१०१] देइ भत्तिहिं वारसावत्तु वंदणउं महा-मुणिहिं गरुय-गुणहं अट्ठार-सहसहं । तयणंतर विण्णवइ कण्हु सविहि जय-नाह-पायहं ॥ जह - पहु मई एइण भविण किय संगाम अणेग । न-उण किलेसिय एरिसिण समिण कह-वि मह अंग ॥ [३१०२] तयणु पभणइ भुवण-दिण-इंदु नणु कण्ह फलं पि तई पत्तु अ-समु वंदणय-दाणिण । जं तइया तारिसिण समगु रिउहि संगाम-करणिण ॥ सत्तम-पुहइहि हेउ परिसंचिउ कम्मु अहेसि । संपइ सेसु खवेवि किउ महिहि तइज्जह रेसि ॥ [३१०३] तित्थयर-नामगोयं कम्मं च निवद्धमेण्हि हविहसि य । भावि-चउव्वीसाए तुमं दुवालसम-तित्थयरो ॥ [३१०४] वंदण-विरयणेण हि साहूण सुयस्स हवइ उवयारो । भिज्जइ माण-ग्गंठी पूइज्जइ गुरुयणो विहिणा ॥ [३१०५] सिढिलिज्जंति असेसाओ-वि हु असुहाओ कम्म-पयडीओ। सिंचिज्जति नरामर-सिव-सुह-फलया सुकय-तरुणो ।। ३१०२. ८. क. खवेमि. 2010_05 Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५१ ३१११ नेमिषुत्तंतु [३१०६] इय भुवण-कप्प-तरुणो सिरि-नेमि-जिणाहिवस्स पासम्मि। सोऊण पत्थुयत्थं विसाय-हरिसागओ कण्हो ॥ [३१०७] वज्जरइ जह - भयवं मुणीण वियरेमि पुण-वि वंदणयं । जह वञ्चामि न तइयं अच्चंत-दुहावहं पुहई ॥ [३१०८] अह भणइ जिणो - सुंदर इओ न तुह तारिसो हवइ मावो । तह वच्चंति अवस्सं उद्धं रामा अहो हरिणो ॥ [३१०९] इय सुणेविणु पहुहु उवएसु कह-कहमवि नियय-मणु संठवेउ एगग्ग-चित्तिण। जिण-पवयण गुरुयणहं कुणइ पूय-सकारु भत्तिण ॥ चरणाचरणोदय-वसिण गहिउमसत्तु चरित्तु । गेण्हइ नियम-विसेस इहि सो ससि-निम्मल-चित्तु ॥ [३११०] वउ गहंतहं कुणहुं न निवार वासासु न परियडई गिहह वहिहिं धम्मत्थु मेल्लिवि । तयणंतरु भव-विरय- हियय स-उरि हरि मुक्कलाविवि ॥ नाणाविह जायव-कुमर दिक्खिय नेमि-जिणेण । हरि-भारिय विअणेग-विह चरहिं चरणु भावेण ॥ [३१११] भव-विरत्तउ सो-वि रहनेमि अणुजाणाविवि कह-वि जणय-जणणि मुहि-सयण-बंधव । पडिवज्जइ दिक्ख पहु- पुरउ तयणु इयरे-वि माणव ॥ सव्व-विरइ गेहंति कि-वि के-वि हु देस-चरित्तु । पंचाणुव्वय के-वि कि-वि ससि-निम्मलु सम्मत्तु ॥ ३११०. ६. क. नाणाविहु; ख. अवरे वि हु. ____ 2010_05 Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ [३११२ [३११२] धम्म-कहा-अवसाणे निय-ठाण-ठियम्मि सावय-जणम्मि । पत्तावसरं मुणिणो पुरीए पविसति भिक्खाए ॥ [३११३] ते-वि हु सुलसा-नागा-नंदणा जुयलगेहिं तिहिं मुणिणो । देवइ-गिहम्मि कमसो भिक्खायरियाए संपत्ता ॥ [३११५] ता पण्हुइय-थणीए देवइ-देवीए वियसिय-मुहीए । पडिलाहिया स-तोस सव्वे-वि हु ते महा-मुणिणो ॥ [३११५] चरम-पोरिसि-समइ पुणु सामिपायारविंदहं पुरउ गंतु भणइ देवइ – निवेयह । किं वारवइहि पुरिहिं लहहि भिक्ख न मुणि त्ति ज मह ॥ मंदिरि एक्कु जि मुणि-जुयलु तिण्णि वार संपत्तु । तयणु भणइ जिणु दसण-पह- पूरिय-सयल-दियंतु ॥ [३११६] तुह चेव सुया भदे छप्पेएन्नोन-सरिसया दूरं । नणु कह-कह-त्ति तीए भणियम्मि पयंपए सामी॥ [३११७] भदिलपुरम्म नयरे वणिणो नागस्स मुलस-दइयाए । निंदुए मय-सुया वेसमणेणं तुह पुरो मुक्का ॥ [३११८] तुह तणया उण चरम-सरीरा सिरि-वच्छ-लंछिओरयला । कंस-भएण विमुक्का नेउं सविहम्मि सुलसाए ॥ [३११९] ता जाय-भव-विराया भद्दे मह संनिहिम्मि पव्वइया । सोऊणमिणं वाहुल्ल-लोयणा देवई भणइ ॥ ३११४. १. क. देम्वइ. ३११५. ४. क. लहिहिं ८. क. पहु. ____ 2010_05 Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२४ ] किं पुव्व जम्मम्मि मह ता पभणइ भुवण-गुरु भवि पुव्विल्लि वसंत - पुरि सोमस्सिरि - नामियए तई [३१२०] कहसु जय-पहु विहिउ मई पावु [३१२१] निय सवत्तिहिं सत्त-रयणाई हरियई अह कह - वि नणु कयवर - मज्झ मई एक्कु रयणु वियरिय न उ कम्मण तु छ-स्य - विरहु मेलावर एगेण ॥ नेमिवृत्तंतु [ ३१२२] मा उण एहि विवरसु जमिमे कय-लक्खणा महाभागा । निविय - पाव - कम्मा सिव-सम्मं पाउणिस्संति ॥ पसरत - सिणेह तह 2010_05 हुउ जमिह सुय- विरहु एरिस | भदि एहु लेसेण निसुणसु ॥ सोम - नाम - निवइस्सु । चंदलेह - नामस्तु ॥ [३१२३] तयणु किंचि-वि विगय- संताव मुणिहिं पाय-पउम नमसइ । अणुभासिवि जिण वयणु पुणु-वि पुणु-वि तहं गुण पसंसइ || ता भवियंभोरुह - तरणि गउ अन्नहिं भयवंतु । तयणतरु देव धरिवि मणि निय-सुय बुतंतु ॥ उच्छंगि चडावियउ इय जंपिर अंसु - जल पण मेऊण य भणिउ ता निय-दुइ-चइयरु कहइ ३१२३. ३. क. नमसई. ३१२४. ८. क. कहई. दुहिय मह तर्हि वलवलंतिहि । लद्ध एहु इय तई भणतिहिं ॥ इयराई इय तेण । [३१२४] अहह एक्कु विमईं न निय- पुत्त - - वय खणु वि लालिउ पमोइण । पुन्न - नयण सच्चविय कण्हिण ॥ हि तं सु-विसन्निय माय । देवइ गरुय विसाय ॥ ६९३ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ [३१२५] अह पयंपइ कण्हु मा अंव तं कुणसु विसाउ कु-वि उज्जमेसु हउं कह-वि तह जह । तुह हविहइ तणउ अह भणइ देवि - निय-वाय अ-वितह ॥ कुणसु लहुं चिय कण्ह अह उववासियउ हवेवि । उस्सग्गिण ठिउ कण्हु मणि तियस-विसेसु धरेवि ॥ तयणु तियसिण भणिउ - नणु कण्ह तुह जणणिहि अंगरुहु नियय-महिम-निज्जिणिय-सुरवइ । लहु हविहइ किंतु वउ नूण अ-कय-वीवाहु गहिहइ ॥ अह जायउ एवं पि इय सिरि-देवइहि पउत्तु । अह वरु वियरिवि सो तियसु नियय-हाणि पहुत्तु ॥ [३१२७] तयणु नंदणु जाउ देवइहि सु-स्सिविणुवसाइयउ दिण्णु णामु तसु गरुय-रिद्धिण । वसुदेविण मेलिउण स-घरि सयल जायव सु-लग्गिण ॥ सिरि-गयसुकुमालो त्ति अह कम-पाविय-तारुण्णु । सोमसम्म-वंभण-दुहिय-रयणु वरेइ स-उण्णु ॥ [३१२८] कण्हो उण वासासुं गंतुं अंतेउरस्स मज्झम्मि । अइगमइ वासराई जिय-संघायस्स रक्ख-कए । [३१२९] लोगम्मि पुणु पवाओ जाओ जह सुयइ वासुदेवो ति ॥ नीहरिए तम्मि वर्हि वासंते उढइ हरि त्ति ॥ [३१३०] अह कत्तिय-एक्कारसि-तिहीए सीहासणम्मि उवविसिउं । पत्तेयं पत्तेयं संभालइ निय-जणं कण्हो ॥ ३१२६. ७. पउत्थु. ३१२७. २. सुस्सिमिणु. क. जयसुकुमालो. ____ 2010_05 Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१३६ ] नेमियुतंतु [३१३१] दट्टण वीरयं पुण भणइ - कहं हंत दुव्वलो सि तुमं । पडिहार-दारओ अह सिर-कय-कर-संपुडो भणइ ॥ [३१३२] सामि अणुदिणु एहु आगंतु वियरेविणु गुंहलिय पंच-वन-कुसुमोवयारु वि । घर-दार-पएसि खणु एगु ठाउ पहु-मुहु अ-पेक्खिवि ॥ चिहइ गंतु नियम्मि घरि दिणि भोयणु अ-कुणंतु । संपइ चउमासहं स-पहु दिउ इमिण निरुत्तु ॥ __ [३१३३] इय स-मंदिरि गंतु इच्छाए मुंजिस्सइ एहु जइ एण्हि चेव ता कण्हु तुहउ । अणुमन्नइ तयणु इयरो वि जाइ निय-धरि पहिढउ ॥ ता परिणयणावसरि हरि- सविहि धृय इग पत्त । अह तुहुँ दासि व सामिणि व हवसि हरिण इय वुत्त ॥ [३१३४]] जणणि-सिक्खहं भणइ सा वाल हउं दासि हवेसु अह मुणिय-पुव्व-वइयरिण कण्हिण । अत्थाण-मंडवि नियय- सहहं भणिउ अविहिय-वियारिण ॥ निवसंतउ वयरीण वणि जिण रत्त-प्फडु नागु । निहउ पुहइ-सस्थिण सु इहु वीरउ खत्तिय-चंगु ॥ [३१३५] इय सम्व-मुसा-वयणेहिं संविहाणय-सएहि स-सहाए । खत्तिय-तिलओ एसो ति साहिउं तस्स सा दिण्णा ॥ [३१३६] इयरेण वि पढमं कय-स-सत्ति-अणुरुव-गठरव-सएण । __हरि-वयणेण उ तह कहमवि सा उन्वेड्या जेण ॥ ___ 2010_05 Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९६ [३१३७] गंतु कण्हह पुरउ रुयमाण --- Paras जहा • जणय हउं हवेसु सामिणि न दासिय । ता कहिण नियय-घरि घरिय विविहलंकरण -भूसिय ॥ इत्तो उण सिरि-मि-जिणु धरणीयलि विहरंतु । रेवय- गिरि- उज्जाण-वणि कम जोगिण संपत्तु ॥ सा वाल आणीय अह भव-भाव - विरत हरिअणुजाण मई जणय जिह अप्पाण साहउं हउं वि ― नेमिनाrafts [३१३८] तयणु कण्हण सामि- सविहम्मि निक्aमण - महा-महिम जह वहु-निव सचिव सुयअवरम्मि उ अवसर जिगह जह पहु संपइ उग्गयरु 2010_05 [३१३९] ता विसेसिण फुरिय-संतोसु अइदुक्करु तवु चरइ ता वियसिय-मुह - कमलु केण निमित्तिण केरि व ढंढण - कुमरु सुपरमु मुणि ३१३९ १.क. पुरिय. सुणिवि पहुहु सद्धम्म - देसण | पुरउ भणइ चरणाणुरागिण || संजम भारु धरेवि । जय-पहु- सेव करेवि ॥ कुण ती हरि तह कह-चिवि । धूय चरणु गेहति अवरिवि ॥ सविहि कण्हु पुच्छे | को तव चरणु चरेs || [३१४०] तयणु जिणवरु भणइ - तुह पुत्तु एहि ताव ढंढण-कुमारु जि । भइ कण्हु - पहु कहसु एहु जि ॥ तबु उग्गयरु करेइ । अह जिण वरु जंपेइ ॥ [ ३१३७ Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९७ ३१४७] नेमिवुत्तंतु [३१४१] कण्ह गरुयर एह कह जइ-वि निसुणेसु तहावि तुहुँ भण्णमाण संपइ समासिण । पारासर-नामु दिउ आसि गामि एगम्मि अह तिण ॥ राउल-वाय-वसेण जणु सयलु वि पीडंतेण । वासारत्ति पहुत्ति निव- चरि खेडावंतेण ॥ [३१४२] एगम्मि दिणे छोडिज्जंतेसु हलाण पंचसु सएसु । पत्तेयं भत्तम्मि य पत्ते मज्झण्ह-समयम्मि ॥ [३१४३] तण्हा-छुहा-परिस्सम-दिणयर-परिताव-विहुरिय-तणं । हलिय-सयाण पंचण्हं पुरो जंपियमरेरे ॥ [३१४४] मह छेत्तं सिंचंतं एगेगं दाउ भोयणं कुणह । अह तेहि मुक्क-दीहर-सासेहिं गलिय-छाएहिं ॥ [३१४५] कहकहमवि एक्केक्का पयच्छिया तेहिं हलिय-वसहेहिं । कय-गरुय-असुह-लंभा वंभा विप्पस्स छेत्तम्मि । [३१४६] तप्पच्चयं च बहुं विप्पेणं अंतराइयं गरुयं । भमिउं भवे चिरं सो एसो तुह नंदणो जाओ ॥ [३१४७] सुणिवि स-चरिउ एहु निय-जाइमणुसरिउण जाय-भव- विरइ चरण-माणिक्कु गिण्हइ । परियडइ य पडि-भवणु भिक्ख-हेउ न-उ लवु वि पाम्बइ। अह नणु खेइज्जइ भमिरु मई सहुं इयरु वि साहु । न-उण दुवेण्हहं एक्कह वि जायइ भिक्खा-लाहु ॥ ३१४४. २. अह नेहि corrected as तत्तो in क. ३१४५. १. क. पयाच्छिया. ३१४६. २. क. नंदण, ख. नदणो. 2010_05 Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिनाहचरिउ [३१४८] इय विचितिवि नियय-लद्धीए अवस्सु मई भो इय गवि दुक्करु अभिग्गहु । s - दियहु वि पडि भवणु भमइ दूर - उज्झिय- असग्गहु ॥ न उ भिक्खा मे वि लहइ सकय-वसिण भमिरो वि । तो सु-समाहित गमइ दिण तण्हा-छुह-बिहुरो वि ॥ [ ३१४९ ] इय एस कह दुक्कर-तव-कारी संपयं विसेसेण । ढंढण - महारिसी जं कुणइ तवं एवमेवं ति ॥ [३१५० ] तह तुट्ट-मणो पणमिय भयवंतं चलइ वारवइ समुहं । जा ताव ढंढण-रिसिं नियs पहे जह - कहिय- रूवं ॥ [३१५१] उत्तरिय गयवराओ पयाहिणा-तय-पुरस्सरं कण्डो । वंदे भाव -सारं पयारविंदाई से मुणिणो ॥ [३१५२] भाइ य - भयवं धन्नो कय- उण्णो तं सि जं जय-पहुणो । दुक्कर-तव-चारीणं मज्झम्मि पसंसिओ वहुहा ॥ [३१५३] अण लिय-गुण-संथवमिममुविंद - विहियं सुणेउ इन्भ-सुआ । एगो वियरेt महा- मुणिणो से सीह - केसरए ॥ [३१५४] सो उण अ-रत्त - दुट्ठो आलोयइ सामिणो पुरो गंतुं । कण्हस्ल इमा लद्धी इय भणियं भुवण - गुरुणा वि ॥ [३१५५] अह से अ- दीण मणसस्स भयवओ मोयगे चयंतस्स । जायं केवल - नाणं निग्धाइय घाइ-कम्मस्स ॥ [३१५६ ] अह भयवं भव-महणो तिलोय-तरणी य विहरन्नत्थ । ausो उण परिवालइ रज्जं सज्जण कयाणंदो ॥ ३१५१. १. क. तव. 2010_05 [ ३३५ Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६० नेमिवुत्तंतु [३१५७] अवर-अवसरि समवसरणम्मि वंदेउण सामि-पय चलिय समणि-जुय वसहि-अभिमुह राईमइ समणि जा ताव वुढि संजाय दुस्सह । अह क-वि कत्थ वि गय समणि राइमइ वि निय-वत्थ । उविल्लिर चिट्ठइ गुहह हुय जह-जाय-अवत्थ ॥ [३१५८] एत्थ-अंतरि विहि-निओएण रहनेमि वि तहिं गुहह मज्झि पुव्व-संठिउ जलुल्लिउ । पेक्खेविणु राइमइ तह-सरूव मयणेण सल्लिउ ॥ भणइ - अहह मयणानलिण चिरु मह दझंतस्सु । उवसमु तुह संगामइण हविहइ एण्हि अवस्सु* ॥ [३१५९] _ता पयंपइ राइमइ - हंत तुहं अंधगवण्हि-नरनाह- वंस-गयणयल-ससहरु । हउं भोजवण्हिहि निवह वंसि जाय इय सीलु मणहरु ॥ खंडिउ न खमु खणं पि सिव- संगम-कय-लक्खाहं । सुरगिरि-तुंग-कुलुब्भवहं दोण्डिं वि हु पक्खाहं ॥ [३१६०] अवि य जोव्वणु अ-थिरु जल-लवु वि पिय-संगु विओग-फलु विसय-सुक्ख परिणाम-दारुण । हिय-इच्छिय दुल्लहई जुवइ-संग दुग्गइहि कारण ॥ जं देहह अंतरि अछइ तं जइ वाहिरि होइ । ता तं काग-सिगालहं वि रक्खिउ तरइ न कोइ ॥ ३१५७. ३. वसइ. ४. क. राइम ६. क. उच्चिल्लर. ३१५९. ५. क. मणहर.. *At the end क. ख. ॥ ग्रंथाग्रं ॥ ७७०० ॥ ____ 2010_05 Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०० नेमिनाहचरिउ [ ३१६१ [३१६१] ज ज निरिक्खसि नारि तुडं मुद्ध जइ रज्जसि तहिं तहिं जि ता लवं पि तुहुं हवसि अच्छिरु । सोइज्जसि सज्जणिहिं गय-सरन्नु दुग्गइहिं गच्छिरु ॥ पुणरवि दुल्लह एरिसिय धम्म-कम्म-सामग्गि । इय आलोइवि दुच्चरिय जिण-देसिय-पहि लग्गि ॥ [३१६२] एम्ब वहुविह राइमइ-समणिवयणंकुस-ताडियउ तह कहं-चि रहनेमि-कुंजरु । जह पच्छायाव-दव- तविय-अंगु सम्मग्ग-सुंदरु ॥ आलोइवि दुच्चरिय पडिवज्जिवि पायच्छित्तु । आराहिवि जिणवर-किरिय निय-मणु करिवि पवित्त ॥ [३१६३] कमिण अइगय-वरिस-परियाउ उप्पाडइ नाण-धणु एम्ब-कारि पुणु गारिहत्थिण । चउ-वरिस-सयाई अह वरिसु एगु छउमत्थ-भाविण ॥ पंच जि वरिस-सयाई पुणु केवलि-परियारण । विहरिवि सिरि-रहनेमि-मुणि सिद्धउ कम्म-खएण ॥ [३१६४] सु वि महा-यसु गहिय-चारित्तु सम-सत्तु-मित्तत्तणिण केसवस्सु वंधवु कणिट्ठउ । उस्सग्गिण संठियउ सोमसम्म-भणिण दिहउ ॥ ता कोवारुण-लोयणिण तिण पाविण संलत्तु । अरि कत्तो सि हयास तुहुँ गयसुकुमाल पहुत्तु ॥ ३१६३.१. क. परियाओ. 2010_05 Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६८] नेमिवुत्तंतु [३१६५] मज्झ धूयहं तुज्झ अवरधु किं केरिसु जेण तई तेम्व वरिवि तइयह वि उज्झिय । न य घरह न वारह वि कीय एहि ता तुहु कु-वुद्धिय ॥ निय-दुन्विलसिय-तरु-फलई गेण्हमु मह हत्थेण । इय अवराहिउ मुणि-वसहु वयणिण अ-पसत्थेण ॥ सविह-देसह गहिवि मिउ-पिंडु आहारउ करिवि तमु सीसि खिविवि खायर-हुयासणु । वंधेविणु निय-करिहि मुट्ठि नठु सो पाव-भणु ॥ तयणु सिरोवरि पज्जलिर जलणिण ताविज्जंतु । अणु-खणु डज्झिर-मोह-मलु कणगु व परिसुझंतु ॥ [३१६७] मणिण सुमरइ पंच-नवकारु आलोयइ दुक्कयई सम्मु दुसह वेयणहियासइ । चिंतेइ य - मुहु दुहु वि न कु-वि कसु-वि किंचि-वि पयासइ ॥ उज्झिवि पुव्व-समज्जियई निय-सुह-असुहाई पि । अरि जिय उवरि म कसु-वि तुहुं परिकुप्पहि ईसि पि ॥ [३१६८] इय विसुज्झिर-मुक्क-लेसस्सु निग्याइय-घाइयह निहय-राय-दोसावयासह । उज्जालिय-निय-कुलह झत्ति तुट्ट-संसार-पासह ॥ पव्वण-सारय-रयणियर- किरणावलि-संकासु।। गयसुकुमाल-महारिसिहि हुउ वर-नाण-पयासु ॥ ___ 2010_05 Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाहचरिउ [३१६९] तयणु दलिउण कम्म-नियलाई भव-संभवि तणु चइवि तियस-विसर-पयडिय-महा-महु । निय-कित्ति-सुहा-रसिण धवलिऊण तइलोय-गुरु-गिहु ॥ सुगहिय-नामु मुलद्ध-जसु विर्यालय-सयलावाहु । गयसुकुमालु सिवह गयउ केवल-नाण-सणाहु ॥ [३१७०] भुवण-बंधु वि भविय वोहंतु चिरु विहरिवि धर-वलइ पुण वि पत्त उज्जाणि तम्मि वि । ता सयलिण निय-वलिण सहिउ कण्हु आगंतु पणमिवि ।। पय-पउमई नेमिहि पुरउ उचियासणि उवविठु । सुणइ स-वित्थर धम्म-कह स-परियणो वि पहि? ॥ [३१७१] तयणु कण्हिण नियय-माहप्पअणुरंजिय-माणसिण भणिउ पुरउ सिरि-नेमिनाहह । भुवण-प्पहु कहमु मह दलिय-सयल-रिउ-विडवि-साहह ॥ किं कत्तु वि हविहइ मरणु पुरिहि वि वारवईए । अंतु हविस्सइ किमु कह-वि कंचण-रयण-मईए ॥ [३१७२] ता पयंपइ नेमि-जिण-इंदु किं केसव भव-गहणि अत्थि जं न सु-घडिउ वि विहडिउ । वहु-बइयर-कारिणिहिं पुव्व-कम्म-परिणइहिं विनडि उ ॥ इय तुज्झ वि निय-वंधवहं करिण जराकुमरस्सु । हविहइ मरणु दुवालसहं वरिसहं अंति अवस्सु ॥ ३१७०. ३. क. तंनि वि. ____ 2010_05 Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०३ नेमियुतंतु [३१७३] एत्थ-अंतरि मुक्क-नीसासु सयलो वि जायव-निवडु नियइ समुहु तसु जरकुमारह । इयरो वि पहु-वयणु सुणिवि गयउ गुरु-खेय-भारह । निय-चयणु वि सुहि-सज्जणहं दंसेउं पि अ-सक्कु । धरणि-समुह-विणिहित्त-मुहु लज्जिर मोणिण थक्कु ॥ [३१७४] अह पुणो-वि-हु भणिउ जिणवरिण जह - आसि इहेव पुरि नियय-किरिय-आसत्तु तावसु । पारासर-नामु कय- . निंदु-रमणि-संगहिण अवजसु ॥ जउण-दीवि जं तसु गयह जायउं नंदणु तेण । दीवायण इय नामु किउ सुयह जणणि-जणएण ॥ [३१७५] पत्त-अवसरु तेण तावसिय पडिवज्जिय दिक्ख तह गहिउ वंभु अच्चंत-दुद्धरु । भोयव्वु जहनिण वि - छट्ट-तवह इय नियम सुंदरु ॥ अब्भुवगमिउण अणुकमिण वालिस-जण-कय-तोसु । संपइ अछइ सु वाग्वइ- पुरि-उज्जाणि स-दोसु ॥ [३१७६] दाहु कारिहइ वारवइए वि दीवायणु सु ज्जि रिसि मइर-मत्त-जर-कुमर-दोसिण । तयणंतरु खुहिय-मण- पसरु कण्हु परिहरिउ हरिसिण ॥ वंदिवि नेमि-जिणाहिवइ वारवइहिं गंतूण । सयमवि वलभद्दिण सहिउ तुरय-रयणि चड़िऊण ॥ 2010_05 Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०४ नेमिनाहचरिउ [ ३१७७ [३१७७] सयल-नयरिहिं परियडेऊण पडि-मंदिरु भणइ - नणु नेमि-जिणिण उवसग्गु अक्खिउ । परिचिट्ठइ सयलह वि पुरिहि इय स-गुरु-देव-सक्खिउ ॥ अणु-गुण-वय-सिक्खा-वयई परिवालह जत्तेण । गुरु-जिणवर-पय-पंकयई थुणह एग-चित्तेण ॥ [३१७८] __ तयणु वयणिण हरिहि वारवइजणु सयलु वि आयरिण कुणइ धम्म-कम्माई निच्चु वि । फोडेवि सुर-भायणइं चयइ सयलु मइराए किच्चु वि ॥ कण्हाएसिण पुणु सयल किण्ण-पिट्ठ-मज्जाइं । सह भंडिहिं सगडिहिं करिवि पुरिहि वहिहिं नीयाई॥ [३१७९] अह कयंवय-नाम-वण-गहणि कायंविर-अडइयह पव्वयम्मि कार्यविराभिहि । कायंवरि-नामियह गुहह सविह-देसम्मि अभिमुहि ॥ फोडिय लोगिण गिरि-सिहरि भायण नीसेसाई । किन्न-मइर-पिट्टई वि तहिं परिउज्झिय सयलाई ॥ इओ य [३१८०] सुणिवि नेमिहि वयणु वलभद्दलहु-बंधु सिद्धत्थ-इय- नाम-पयड सारहि तमु च्चिय । भव-भावुव्विग्ग-मणु निसिय-हियउ सिव-संगमि च्चिय ॥ भणइ -भाय पसिऊण मइं अणुमनसु हउं जेम्व । आराहिवि नेमिहि चलण न सहउं दुक्खइं एम्व ॥ ३१८०. ३. सरिहि corrected as सारहि. ___ 2010_05 Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोवायणअवमाणु [३१८१] तयणु स- करुणु भणइ वलएवु नणु भाय इह किमु भणहुं किंतु चरिम चारित - रयणिण । होयव्वु अवस्सु तई कहिं चि ठाणि देवय-विसेसिण || ता कत्थ-वि विसमहं दसहं तई हउं रक्खेयव्वु । safa पडिवज्जेवि इहु तुरिउ कुणइ काय ॥ ३१८४ ] [३१८२] ते - वि पिट्ठय- मइर - किन्नाई छहि मासिहि विविण-तरु- कुसुम-फलिहि मीसिय-सुगंधय । कार्यविरि-गुहं गय हूय मइर अच्चंत महुरय ॥ अवरम्मि उ अवसरि विहिहि वसिण पहुत्ति वसंति । रेवय- गिरि- उज्जाणि जदु- कुमर वग्ग संपत्ति ॥ [३१८३] विज्ज- जोगिण नरिण एगेण हिंडंतिण कह-कह - वि पुव्वुझिय असम-रस तयणतरु तिण पीय सुर आगय संवाइ णु वि तहिं [३१८४] aणु तेहिं विपीय-मइरेहिं हिंडतिर्हि विहि-वसिण गिरि-गुहाए सो चेव तावसु । जिण-पणीय- संभावि -अवजसु ॥ दाह-जणिय-पावस्सु । दीवाणु तव सुसिउ वीत वारवर -पुरि दिउ उस्सग्गेण वि उ पेक्खिरु समुह महिस्सु ॥ ३१८१. ५. क. देव्वयं. ३१८३. २. क. हिंडंतिण, ८९ 2010_05 ror-aur- परिसुसिय-वयणिण । मइर दिट्ठ सुक्कंठ - हियइण ॥ आ-कडि - कंठ - पमाण | जायव - कुमर - पहाण ॥ ७०५ Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०६ नेमिनाहचरिउ [३१८५] अह समं पि-हु किलकिलंतेहिं पसरंत-तालारविहिं मइर-मइण वियलंत-चित्तिहिं । अक्खुडिरिहिं पडिरिहिं वि सेल-सयल-भज्जत-गत्तिहिं ॥ मुट्ठि-लेठुक-पयंपिइहिं कह-कहमवि अवरद्ध । जह वारवइहि दाह-कइ कुणइ नियाणय-बंधु ॥ [३१८६] एहु वइयरु मुणिवि महुमहणु पलभदिण परियरिउ गहिय-सार-परिवारु तक्खणि । चडिऊण तुरंगमिहि तम्मि चेव संपत्तु काणणि ॥ अणुणय-चयणिहिं वहु-विहिहि उवसामेउ पय? । दीवायण-तावस-अहमु भणइ य रोस-वसटु ॥ [३१८७] हंत पाविहिं तुज्झ तणएहिं मिलिऊण सव्वेहिं हउं नियय-झाण-अज्झयण-लोणउ । निक्कारणि ताडियउ लट्ठि-मुटि पाएहिं दीणउ ॥ सु-विसेसिण दुव्वयण-सय- खग्गिण हणियउ तेम्व । तइं मुसलि वि मिल्लेवि पुरि इह डहेसु हउं जेम्व ॥ ततश्च [३१८८] अहह मुर-रिउ करिसि म खेउ इयरस्सु कस्सु वि उवरि विहिहि वसिण कु व कु व न पावइ । भव-विवणि दुहावणइ मण-अगोयर वि विविह-आवइ ॥ निय-सुह-असुहई पुव्व-भव- समुवज्जियई चएवि । को गेण्हइ जसु अवजसु व भद्द अ-भह व देवि ॥ ३१८५ ६. क. ख. लेठुकु. ____ 2010_05 Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ ] [३१८९] पाव- तावसु इमु विपडि पिउहु जं रोयइ तं कुणडु वारवइहिं गंतु दिण नेमि - जिणेसर - पय- पुरउ पडिवन्नउं चारितु । दीवायण - अहमाहमुवि पुरि-वह-अविरय-चित्तु ॥ वारवदहणु एम्ब कण्डु अणुसिटु मुसलिण । गमइ के वि ता जणिण पउरिण || [३१९० ] मरिवि पत्त 2010_05 अग्ग- कुमरेसु मुणिय - पुच्व-भव-भाषि वइयरु । नयर - जणहं संहरण - अवसरु ॥ ता निययन्नाण-वल अलहंतउं धम्म-पर अप्पु पयासिवि गउ पुरिहि अह वारस - वरिसाणि । अइवाहर कुव्वंतु पुर- लोउ धम्म-कम्माणि ॥ [३१९१] कण्ह-हलहर-कहिय-विहि-पुव्वु तयiतरु अइगयउ इयं चिंतिरु पुण-वि तह अ-वियानंतर कित्तिय वि अम्ह एहु उवसग्गु खेमिण । चेव विसय सेवइ पमाइण ॥ बुड्ढ दियह थक्कंत । अह उपाय सुरामिण तिण दंसिय पसरंत ॥ [३१९२] लेप्पमइय विहसहिं पुत्तलय उप्पाडिय-भमुह - जुय कंपति मंदिर - सिहर आरन्नय- सावय भमहिं दियहि विगह- गणु पयडिहुर हुयउ कंपु धरणीए ॥ ३१९०. ५. क. जणह. नियहिं चित्त-आलिहिय देवय । तरुवरा वि दीसंति दीवय ॥ सयल - पहिहि नयरीए । ॐॐ Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०८ [ ३१९३ नेमिनाहचरिउ [३१९३] धूमु मुंचहिं मुहिहि गह-चक्क निवडंति उक्का-सहस हुयउ तरणि-मंडलु स-छिड्डउ । अंगारिहि परिसियउ जलउ हुयउ निग्घाउ वडउ ॥ ससि-सूरहं वि अ-पव्वि हुउ राहु-गह-आयासु । भमइ रुवंतु सु पाव-सुरु नयरिहिं जम-संकासु ॥ __ [३१९४] नियइ नायर-जणु वि सिविणेसु रत्तवर-कुसुम-कय- सोहु रत्त-चंदण-विले विउ । दाहिण-दिसि-सम्मुहउं अप्पु पंक-मज्झेण कड्ढिउ ॥ तयणतरु कि-वि भविय-जण जाय-चरण-परिणाम । तियस-विसेसिहि नीय पहु- पुरउ हूय मुह-धाम ॥ [३१९५] एत्थ-अंतरि पाव-तियसेण संवत्तग-पवणु जुग- अंत-काल-सन्निहु विउविवि । तिणु कयवरु कटु फलु कुसुमु दु-पउ चउ-पउ वि आणिवि ॥ पक्खंतरहं वि वारसय- जोयण-पहह गहेवि । वारवइहि नयरीए तहि मज्झ-पएसि खिवेवि ॥ [३१९६] स हि नयरिहि वहिहिं कुल-कोडिवाहत्तरि मज्झि पुणु पिंडिऊण एगत्थ अइरिण । सव्वासु वि दिसिहि पडि- भवणु खिविय वज्जग्गि अहमिण ॥ तयणंतरु सय-सहस-गुण जालोलिहि दिपंत । सा पुरि दीवायण-खिविय- वज्जग्गिण अक्कंत ॥ ३१९३. २. क. सयस. ५. वहुउं. ____ 2010_05 Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२०० ] परिकुट्टिर - वच्छयलु परितायह कण्ह निय [३१९७] तयणु नायर मुक्क पुक्कार वारवद्ददहणु इय विलवंत मरंत निय- नायर-जण पेक्खंतु | धाविरु हरि एगत्थ अवलोयइ बहुउ जलंतु ॥ संत-तुरंग-सयपरिपुरि-वस-सय भहिं भुवण - एक्कल्ल मल्लय । लोउ सयल - जय-पिसुण-सल्लय | [३१९८ ] पडिर-कुंजर - मुक्क-चिक्कारु 2010_05 हा बंधव हा जणय हा जायव - कुल-तिलय इय स-करुण निय- नायरयपडिउवयारु विहेउ तहं हा नारायण हा मुसलि हा सिरि-नेमि - जिणिंद । रक्खहि रक्खहि नियय-जणु जय-नय-पय- अरविंद ॥ सिमिसिमि-ति-रव - विहिय - निस्सणु । तडतड-ति-पडिसद्द-भीसणु ॥ [३१९९] अरि तणुब्भव अहह मह मित्त हा समुहविजयावणिप्पहु । सउरि पणय जणु किन रक्खहु ॥ जण - उल्लाव सुणंतु । वयणेण वि अ-तरंतु ॥ [३२०० ] afaa एगहं नियय-रह-रयणि सह देवs - रोहिण परिचोइय रह-तुरय पय- मित्तु विन समुक्खिवहिं ता उत्तरिवि सयं पि । धुरि लग्गिवि कड्डियउ रहु नीलंबर- हरिहिं पि ॥ सउरि-राउ ता कह-मुसलिहिं । किंतु ते वि डज्यंत जलणिहिं ॥ ७०९ Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३२०१ ७१० नेमिनाहचरित [३२०१] अह ति निमुणिर करुण उल्लाव नीसेस-नायर-जणहं पुरि-दुवारि कहमवि पहत्तय । ता तियसाहमिण तिण पुरि-कवाड दु-वि परिजलंतय ॥ झत्ति पिहेवि नियंतियई गाढ इंदकीलेण । तयणंतरु हलहर-हरिहिं हणिउण चलण-तलेण ॥ [३२०२] चुन्न-पेसिण दु-वि कवाडाइं लीलाइ वि पीसियइं किंतु रहु न ते तरहिं कढिउ । सोयंति य वाहु-जल- भरिय-नयण - नणु कह सु चड्डिउ ॥ अम्ह मडप्फरु जेण लहु कोडि-सिला उक्खित्त । संपइ पुणु इहि अम्हि रह- आयड्ढणि वि अ-सत्त ॥ [३२०३] _ इय स-खेयहं कण्ह-हलहरहं सविहम्मि समुल्लविउ गयण-ठिइण तिण असुर-अहमिण । नणु भणिउ अहेसि मई धुवु नियाणु तइयहं कुणंतिण ॥ द-चि जि तुम्हि रक्खेसु हउं अणु-मेत्तं पि न सेसु । ता मिल्लहु निय-पिउ-जणणि-रक्खणि माण-विसेसु ॥ [३२०४] तयणु सउरिण पियहिं सहिएण संलत्तउं - नंदणहु जाहु तुम्हि अप्पाणु रक्खहु । मा अम्हहं कारणिण तुमि वि सुयहु जम-गेहु पेक्खहु ॥ तुब्भिहिं जीवंतेहिं धुवु जीवइ जायव-चंसु । इहरह जायव-नामह वि नित्तुलु हविहइ भंसु ॥ ३२.३. १. क. संखेयह. ____ 2010_05 Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२०९] कण्हवलपववणगमणु ७११ [३२०५] __ इय कहंचि-वि जणणि-जणयाई उवरोहिण हरि-मुसलि नीहरेउ जिन्नम्मि काणणि । परिसंठिय खणु नियहिं वाहु-जलिण धोइयइ आणणि ॥ डज्झिर नयरि रुयंत सिसु कंदिर पुर-नर-नारि । जंपिर पगइ वि - रक्खि हरि रक्खि तुहूं वि हलहारि ॥ [३२०६] एम्व वहु-विह नियय-नयरीए अ-समंजस नियवि हरि मुक्क-धाहु अइ-दीणु पलवइ । हा देव मह वाहु-वलु कत्थ कत्थ सा सुकय-संपइ ॥ कहिं ति महारा जक्ख गय कहिं त महारउं चक्कु । काल-कंस-जरसंध-हरु कहिं त मज्झ वलु थक्कु ॥ [३२०७] सटि-समहिय-समर-ति-सयस्सु जय-पावणु सुकय-भर गयउ कत्थ सो मज्झ संपइ । इय करुणउं विलविरह हरिहि पुरउ वलभद्द जंपइ ॥ नणु वंधव किह तुहुं वि इम्ब पागउ व्व विलवेसि । तमु सिरि-नेमिहि वयणु इहु कि न तुहुं हरि सुमरेसि ॥ [३२०८] जं उस्सया सिरीए पडणंता चेव इत्थ सव्वे-वि । रण-तण-तरुवराणं जा पज्जंतम्मि सक्काणं ॥ [३२०९] पुनोदयम्मि उदओ रिद्धीणं तम्मि झिज्जमाणम्मि । झिज्जइ इयरो वि कमेण दो-वि भंसति पज्जंते ॥ ३२०६. ८. क. ख. जरसंधु. ३२०७. ८. तसु is added marginally in क., ख. omits it. ९. तुहं नरवर सुमरेसि in क. is marginally corrected as तुहुं हरि सुमरेसि. ___ 2010_05 Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३२१० ७१२ नेमिनाहचरिउ [३२१०] नहि इंदजाल-भव-विलसियाणं विज्जइ इहंतरं किं-पि। किंतु निविडा स गंठी का-विहु मोहस्स जीवाणं ॥ [३२११] जेण अ-थिरं पि वत्थु मुणंति सव्वायरेण सु-थिरं ति । जमिहारंभ-सयाई सासय-वुद्धीए चालंति ॥ [३२१२] ता जिणवरिंद-भणियाई ताइं निवसंति माणसे जस्स । सो किह पलवइ वालु ब्व गरुय-चसणे वि संपत्तो ॥ [३२१३] इय सुमरसु जिण-वयणं अवलंबसु धीरिमं थिरो होसु । साहस-धणाण पुणरवि संपत्तीओ न दुलहाओ ॥ [३२१४] इय विवोहिउ विविह-वयणेहिं हरि मुसलिण संचलिउ समुहु पंडु-महुराए कहमवि । एत्थंतरि वारवइ- पुरिहिं डज्झमाणिहिं सवत्तु वि ॥ हलहर-नंदणु दीण-मुहु दीह-मुक्क-पुक्कारु । आरुहिउण घरुवरि भणइ कुज्जयवार-कुमारु ॥ [३२१५] सीसु जइ हउं नेमि-सामिस्सु जइ चरम-सरीरु हउं सच्चु वयणु जइ नेमि-नाहह । ता डझहुं किह णु इह मज्झि पडिउ वारवइ-दाहह ॥ इय विलविरु जंभग-सुरिहिं हरिउण पल्लव-देसि । नियउ सु नेमि-प्पहु-पुरउ चरण-ग्गहणह रेसि ॥ [३२१६] वत्तीस-सहस्सेहिं हरि-महिलाहिं स-राम-भज्जाहिं । ___ जायव-नर-नारी हिं य कुमरेहिं तत्थ वि ठिएहि ॥ [३२१७] सिरि-नेमि-जिणं चित्ते काऊणं अणसणाई विहियाई । छम्मासेणं दड्ढा पुरी वि बूढा य जल-निहिणा ॥ ३२१३. १. विरो for थिरो. ___ 2010_05 Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२२१ ] उवजीविर सरिय-सरअम्नाय सरूव- सिरि कण्हवलपववणगमणु [३२१८] कण्ह-मुसलि वि कंद -फल-मूल अह तण्हा - छुह-पीडियउ भाय न सक्कहुँ उक्खिविउ धुवु हउं पय- मेत्तं पि ॥ वावि कूव - पाणियपियंतय । हस्थिकप-नयरम्मि पत्तय ॥ कण्डु भइ - कह-पि । [३२१९] तयणु केस 2010_05 मज्झम्मि उतसु पुरह कंदो य-घरि पवरु अह अवयवइयरिण धयरद्वय - निवइ- सुरण । निविण महावल - नामगिण रोहिउ मुसलि खणेण ॥ मुवि उज्जाणि पविसिऊण अंगुलिय- रयणिण । भोपकारविउ मुसलिण || [३२२०] तागविणु करिण करि - खंभु विक्खो हिय पर - वलिण अह विग्गहु हु कु - वि उज्जाणह आविवि गहिवि मुसलि सहि हरि रिउ - कुलह कुणइ दिसासु भम्वाडु || ३२२०. २. क. विखोहिय. ३२२१. ९. क. सरीरं. ९० सीह नाउ परिमुवकु मुसलिण । धुति चिंतेवि कहिण || एगु पओलि-कवाडु । [३२२१] अत्थ-दसहं वि गयउ दिण- इंदु किं कह - विखज्जोयगिहि अइ-वहुय तहा-वि हरि - तणु दुवे-विति पत्त- जस भुंजिfa fafe frefव जल जिप्पइ त्ति जइ वि हु विवक्खिय । वलिहिं जमह अतिहित्ति दक्खिय ॥ गंतु सरोवर - तीरि । कु-वि दुहु समहिं सरीरि ॥ ७१३ Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३२२२ नेमिनाहचरिउ [३२२२] किं तु पुणरवि सरिय-पुग्विल्लवारवइ-दाह-दुह वाहु-सलिल-संपुन्न-लोयण । कोमुम्भ-महा-गहणि पत्त कमिय-बहु-संख-जोयण ॥ अह मउलिय-वयणंदुरुहु पूरिय-गल-सरणिल्लु । भणइ कण्हु तण्हा-सुसिउ तुहुं वंधवु नियइल्लु ॥ [३२२३] भाय पाइवि सिसिरु पाणीउ जीवावहि मई कह-वि इहरहा उ तण्हाइ-दोसिण । परिफुट्ट-नयणेहि मई अज्ज नूण मरियव्वु अ-वसिण ॥ तयणु-अहह मा भणसु इम्व जइ मरिसहि तुह सत्तु । हउं लहु अमय-विवागु जलु तई पाएसु निरुत्तु ॥ [३२२४] इय भणेविण करिवि कोमलिहि वड-पत्तिहि सत्थरउ तत्थ ठविवि कण्हड्ड स-हत्थिर्हि । इयरो-वि हु फ्य-उवरि ठविवि पाउ कोसुम्भ-वत्थिहि ॥ संपच्छाइय-सयल-तणु उल्लरिउण झुरंतु । चिट्टइ जाता हलहरु वि जल-कइ चलिउ तुरंतु ॥ [३२२५] इत्थ-अंतरि विहि-निओएण तहिं पत्तिण कर-कलिय- धणुह-वाण-अइभीम-रूविण । इहु चिट्टइ सुत्तु मिगु इय मुणेउ जर-कुमर-पाविण ॥ आयन्नंतिण मग्गणिण हउ हरि चलण-तलम्मि । अह - अरि अरि वियरइ कवणु पय-पहारु पडियम्मि ॥ ३२२२. ४. क. कोसुंव । ३२२५. ७. क. तरंमि ख. ललमि. 2010_05 Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२२९ ] कण्हमरणु [३२२६] अहव अज्ज-वि होउ मह समुहु अप्पाणु पयासिउण जेण दप्पु हउ दलउं तस्सु वि । अह - नूण न हरिणु इहु किंतु सदु माणुसह कस्मु-वि ॥ इय चिंतंतु जरा-कुमरु हरि-सविहिहिं संपत्तु । ता जंपिउ कण्हेण - इहु वंधव को वुत्तंतु ॥ [३२२७] तयणु दीहरु नीससेऊण जर-कुमरु समुल्लवइ भाय तम्मि समयम्मि नेमिण । जं कहिउ दुवालसहं समहं अंति तुहं जर-कुमारिण ॥ हम्मसि इय निसुणेवि हउं वंधव-रक्ख-निमित्तु । वसिम-देसु सयलु वि चइवि इह थक्कउ आगंतु ॥ [३२२८] किंतु मह समु हुयउ अ-कयत्यु तहं तं-पि-हु भाय मह कहसु केम्व हउँ पावु सुज्झिसु । तह पच्छिम-वइयरु वि को-वि उचिय-वयणेहिं साहसु ॥ अह निय-वइयरु साहिउण भणइ कण्हु - वेगेण । गच्छसु पंडव-सविहि तुहं सह कुत्थुम-रयणेण ॥ [३२२९] तयणु कुत्थुभ-रयणु वियरेवि साहेवि स-वइयरु वि कहिज मज्झ मिच्छामि-दुक्कडु । जइ पुणु तई पेक्खिसइ एण्हि मुसलि ता जेम्व मक्कडु ॥ तिम्व आरुहिउण सिर-उवरि तई मारिसइ अवस्सु । जं मह विप्पिय-गारयह एहु घणाइ न कस्सु ॥ ३२२६. ५. क. म्माणुसह. ३२२७. ७. क. रक्खहि मित्त. ३२२८. १. क. अकयत्थ. ६. क. साहियउण. ७. क. कण्ह. 2010_05 Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२३० ७१६ नेमिनाहचरिउ [३२३० इय मुणेविणु झत्ति जर-कुमरु तह चेव करेइ अह निसुय-सयल-पुव्वुत्त-वइयर । अक्कंदर्हि तह कह-वि जह रुयंति विहय वि स-तरुवर ॥ फोडहिं मत्थय पाहणिहिं तोडहिं केस-कलाव । मुच्छ-विवस निवडहिं महिहिं पयडहिं करुण-पलाव ॥ . [३२३१] इओ य फुरिय-वेयण-भरिण विहुरंगु परिचिंतइ कण्हु जह धन ते ज्जि अक्कूर-पमुहय । मह वंधव नेमि-पहु- सविह-गहिय-चारित्त-धम्मय ॥ तह कय-किच्च य राइमइ- पमुह-राय-कन्नाउ । जाहि इमेरिस-भव-दुहहं सलिलंजलि दिन्नाउ ॥ [३२३२] काम-मोहिउ कूड-अहिमाणु समरंगण-निहय-बहु- जंतु-जाउ कारुण्ण-वज्जिउ । अ-कयत्थउ हउं जि पर मोह-राय-सेन्नेण तज्जिउ ॥ जइ तइयहं नेमिहि पुरउ निय-बंधविहिं समेउ । चरणु पवज्जहुँ ता न मह जायइ दुह-भरु एउ॥ [३२३३] अजु-वि पणमहं सिद्ध गय-बंध अरिहंत भाविण थुणहुँ जाहुं सरणि आयरिय-पवरहं । उवझायहं पय सरहुं नमहं पाय तहं साहु-वसहहं ॥ खामहं चउ-विहु संघु हउं निंदहुँ निय-अइयार । कुणहुँ सेव नेमिहि पहुहु चयहं पाव-वावार ॥ ३२३०. १. क. भणइ corrected as झत्ति. ख. भणइ. ३२३१. ७. क. कन्नाओ. ९. क. दिन्नाओ ____ 2010_05 Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१७ ३२३७ ] कण्हमरणु [३२३४] इय विसुज्झिर-चित्त-भावह वि आराहिय-नेमिहि वि तियस-सिहरि-थिर-पगइ-मणह वि । पसरंत-बहु-वेयमह फुरिउ हियइ तसु असुर-अहमु वि ॥ तयणंतर चिंतिउ हरिण अहह तेण पावेण । हउं असुहाविउ तवसिण वि सयल-नयरि-डाहेण ॥ [३२३५] किं न सु हविहइ समउ मह जेण तसु उयरह कइढिउण जणय-जणणि-सुहि-सयण-बंधव । वारवइ वि तारिसय कणय-रयण-मय स-घर-जायव । हउं अप्पणु इच्छिउ करिसु निग्गहिउण सु हयासु । इय चिंतिरु हरि नियडि-हुय- दुक्कय-काल-प्पासु ॥ [३२३६] मरिवि पत्तउ तइय-पुहईए पावेइ य स-कय-फल अच्छि-निमिसु अंतरु अ-पेच्छिरु । एत्थंतरि मुसलि जलु गहिवि पत्तु वेगेण पलविरु॥ अह परिचिट्ठइ मुत्तु हरि इय चिंतिरु मोणेण । चिहइ उवविसिउण सविहि किं पुण हरिहि खणेण ॥ __ [३२३७] कसिण मच्छिय वयणि लग्गंत अवलोइय हलहरिण तयणु जाव अवणीउ अंवरु । ता अ-गहिय-नाम दस पत्तु कण्हु दिउ अहंतरु॥ असरिस-नेह-ग्गह-वसिण जाय-हियय-संघटु । मुच्छ-विलंघलु पडिउ वलु मउलिय-मुह-कंदुटु ॥ ३२३६. ६. क. सत्तु. ८. क. उववेसिउण. ____ 2010_05 Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३२३८ नेमिनाहचरिउ [३२३८] कह-वि कंचि-वि पत्त-चेयन्नु उद्देविणु मिल्लिउण सीह-नाउ वहिरिय-नहंतरु । साडोवु समुल्लवइ अहह अत्थि जइ इत्थ कु-वि नरु ॥ सो मह पयडीहवउ इह जिह तमु मंजहुं दप्पु । सुत्तह मह वंधुहु हणणि केरिसु रिउहु मडप्पु ॥ [३२३९] रोहिणि-सुयं अ-हंतुं निहयं जो मन्नए य गोविंदं । थोवं चिय नंदिस्सइ सो पावो को-वि मूढप्पा ॥ [३२४०] मुक्काउहं पसुत्तं मत्तं वालं मुणिं च थेरं च । जुवइं च निसुंभइ जो दुन्नि-वि लोगा हया तस्स ॥ [३२४१] महया सद्देणेवं भणमाणो तं वणं भमइ रामो । आगच्छइ य अभिक्खणमुविंद-पासम्मि दुह-तविओ ॥ [३२४२] तत्तो सो अलहंतो वि सुद्धिमत्तं पि कण्ह-मरणस्स । __ आसा-मुक्को कण्डं अवगृहेऊण पलवेइ ॥ [३२४३] हा कण्ह महा-वल हा मह वंधव कणिट्ट गुण-जेट । मोत्तूण में अणाहं हा कत्थ गओसि अ-कहेउं ।। [३१४४] कि होही को-वि जए सो पुरिसो जेण दिट्ठ-मित्तेण । कण्ह पुणो वि लहिस्सं तं तुह संगम-पमोयमहं ॥ ३२४५] उहि वंधव चयहि परिहासु मा हविहइ किं-पि छलु तुज्झ इत्थ वण-गहणि वसिरह । इहु संझा-कालु इय को णु समउ तुह पणय-कुविरह ॥ कुल-देविउ वण-देविउ वि तह दिसि-वाल तुमे वि । कि न वुल्लावहु वंधु मह कहमवि अणुसासेवि ॥ ३२३८. ८. क. सत्तह. ३२४२. १. क. ततो. ____ 2010_05 Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४९ ] वलएवसोगु ७१९ [३२४६] भाय करिहि-न संझ-कायव्वु किं कोविण मझुवरि करिसु तुज्झ विप्पिउ न कहमवि । मई सविह-ट्ठियइ तुह समुहु विसमु जोयइ न अन्नु वि ॥ मुत्तउ सीहु कु जग्गवइ करिहि कु गेण्हइ सप्पु । तुह अवराहु करेवि कु व भाय विगोयइ अप्पु ॥ [३२४७] घूय विरसहिं फुरहिं सिव-सद्द वेयाल समुल्लसहिं ललहिं भूय नच्चंति साइणि । कीलंति पिसाय-सय पिउ-वणेसु पसरंति डाइणि ॥ ता सोवद्दवु ठाणु इहु. वंधव परिहरिऊण । चल्लि-न गम्मइ बसिमि पुरि हरि विलंबु चइउण ॥ [३२४८] इय पयंपिरु पडिरु धरणीए उटुंतउ पुणु खणिण खणिण गीउ गायतु मणहरु । नच्चंतउ पुणु खणिण खणिण मुक्क-पुक्कारु दुहयरु ॥ खंधि करेविणु हरि-मयगु महिहिं भमिउमारद्ध। अह सिद्धत्थिण पत्त-मुर- भविण सु तह उवलद्ध ॥ [३२४९] तयणु घिसि घिसि कम्म-परिणामु सो एण्हि नासिवि गयउ कत्थ हरिहि तारिसु मडप्फरु । वलए० वि हुयउ किह गलिय-बुद्धि-माहप्प-वित्थरु ॥ खंधि करेविण मयउ किह हिंडइ देसि देसु । अहव सु-पुरिसु वि किं कुणइ विवरिय-कम्म-विसेसु ॥ ३२४७. ६. क. ठाण. ३२४८. ७. क. महिंहिं; ख. महिं. ३२४९. ६. क. ख. गयउ for मयउ, 2010_05 Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२० नेमिनाहचरिउ [३२५० ] इय विचितिरु गिरि विउब्वेवि तहिं अखइ उafsरु पडिरो वि किंतु सम-भाग- धरणिहिं | सय-खंडिण भग्गु रहु पयडिऊण ता कट्ट-खंडिहिं ॥ तर्हि चिजा लग्गउ घडिउ ता रहु सयहा भग्गु । अह वलएवु समुल्लवइ जह - धुवु तुहुं अ-विवेगु ॥ [३२५१] सिहरि सिहरिहि अ-खउ चडिऊण उत्तरिऊण य अ खउ सो हविes सज्जु किह इरु भइ - जीविहर इहु तुह बंधवु जइयाहं । सज्जउ हविहइ रह-रयणु एहु वि मह तइयाहं ॥ 2010_05 रहु जु भग्गु सम-भाग- वसुहहं । संधिओ वितई मुद्ध एम्वहं ॥ [३२५२] अह सिलायल - कमल-वण-संड आरोवण-गो-मयंगनीवरु वोहिण चंचल-कुंडल-आहरणु तह जर कुमरिण निहणियउ मउ हरि त्ति कहिऊण ॥ [३२५३] भणइ हलहर तुज्झ पडिवोह कज्जेण मई चेव इहु fairs you asrरु असेसु वि । ता हि णु वहेसि हरि करिव संधि हुय - कित्ति - सेसु वि ॥ तयणतरु सुर- हलहरिहिं सक्कारिउ हरि-काउ । आसि जु छम्मासावहिण वूहउं विहिय-विसाउ || - चारणाइ बहु-संविहाणिहिं । बहु-विहेहिं भव- विरइ-वयणिहिं ॥ अपु पयासेऊण | ३२५१. ४. क. सो विहइ; ५. क. ख. संधिउ. ३२५३. ५. क. वि for करिवि. ५. ६. हुयकित्तिसेसु वि तयणंतरु सुर व ८. क. ज. [ ३२५० Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२१ ३२५७] बलभद्दवुतंतु [३२५४] एत्थ-अंतरि नेमिनाहेण मुणि-जुयलउं पेसियउं मुसलि-सविहि संपत्त-अवसरु । साहुहिं वि धम्म-कह कहिय सिठ्ठ कम्मारि-वइयरु ॥ निदिय जणणी-जणय-मुहि- सयण-विहव-आवंध । सलहिय असम-सुहावहय सिव-कामिणि-संबंध ॥ [३२५५] तयणु मुसलिण चरण-परिणामपसरंत-महोदइण दुर-चइय-निय-मोह-ललिइण । भव-भाव-विरत्तइण निसिय-सिद्धि-संबंध-हियइण ॥ साहुहुं तहं पायहं पुरउ पडिवनउं चारित्तु । तयणतरु वलहद्द-मुणि कुंदिदुज्जल-चित्तु ॥ [३२५६] विहिय-कोसलु दुविह-सिक्खाए संपाविय-कित्ति-भरु साहु-धम्मि दस-भेय-भिन्नि वि । चउ-जामिहि पत्त-जसु गय-ममत्तु निययम्मि अंगि वि ॥ मास-क्खमणह पारणइ पविसिरु पुरि एगम्मि । खुहिउ नियइ नारी-नियरु सरवर-कूव-तडम्मि ॥ [३२५७] अह धिसि घिसि कम्म-परिणामु हा मोहह विलसियई हइउ हइउ विसयहं विवागु वि। जं जायहुं मोहयरु हउं वि विविह-तव-सुसिय-अंगु वि ॥ अहव किमन्निण जहिं हवइ रमणिहिं संचारो वि । तहिं न कुणहुं पारण-कइ वि पविसण-वावारो वि ॥ ३२५६. ९. क. ख. सरघर', ९१ 2010_05 Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२२ नेमिनाहचरिउ [३२५८ [३२५८] इय विचिंतिरु मंगितुंगि त्ति अभिहाणहं पव्वयह मज्झ-देसि तव-कम्मु सेविरु। अइवाहइ दियह वहु- विह अरन्न-जिय-गण-विवोहिरु ॥ पुव्व-जम्म-संगय-मिगिण एगिण कय-पय-सेवु । अवरावसरि सु संठियउ उस्सग्गिण गय-लेवु ॥ [३२५९] अरिरि हणि हणि वंधि बंधेहिं इहु अम्हहं रज्ज-कइ कुणइ उग्ग-तव-कम्म एरिस । इय जंपिर वहु-वलिण सत्तु-राय पसरंत-अमरिस ॥ आरोविय-कोदंड-गुण संधिय-निसिय-सरिल्ल । वेढहिं चाउद्दिसिहिं मुणि परिकंपिर-अहरिल्ल ॥ [३२६० इत्थ-अंतरि तेण सिद्धत्थअभिहाणिण गुज्झगिण तहिं पएसि आगंतु वेगिण । परिमुक्क विउव्विउण रिउहुं समुह सुर-सत्ति-जोगिण ॥ पुच्छच्छोड-प्पडिरविण वहिरिय-मज्झ-दसास । खर-कर-नहर-दारणिण पयडिय-पिसुण-त्तास ॥ [३२६१] कणय-पिंगल-कंति-केसरिहिं रेहंत-अंसत्थलय वियड-चलण-भर-खुहिय-धरयल । स-सरूविण डरिय-रिउ सीह-नाय-वहिरिय-नह-त्थल ॥ पुरिस-वयण सीहंग-लय नारसीह-आयार । भुवण-भयंकर चलिय रिउ- समुह कुणंत-पहार ॥ ३२५८. ९. क. "सु. ३२५९. ८. क. दिसिहि. ख. दिसिंहिं. 2010_05 Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२३ ३२६५ ] बलभदवुत्तंतु [३२६२] अहह मुहडिहिं नारसिंहेहिं सय-सहस-कोडी-गुणिहि हणइ एहु कय-साहु-वेसु वि । एहिं पि न काउ खमु इय इमम्सु अवराह-लेसु वि ॥ इय चिंतिर पडिवक्ख-निव पसरिय-तेय-सिरिस्सु । भय-भत्तिहि चलणिहिं नमहिं सयलि वि राय-रिसिस्सु ॥ [३२६३] अह ति तियसिण राय-रिसिणा वि अणुसासिय संत निय- निय-पुरेसु गय अइर-कालिण । भयवंतु वि परिविहिय- मास-खवणु दिव्वाणुहाविण ॥ रहयारहं सविहिहिं गयउ मिग-दंसिइण पहेण । तयणतरु परिवड्ढिरिण ससि-निम्मल-भावेण ॥ [३२६४]] मुणिण लिंतिण मुठ्ठ आहारु रहकारिण देतइण हरिणगेण अणुमोयमाणिण । तं कं-पि समज्जिणिउं जं न कहिउ तीरेइ वयणिण ॥ किं पुण अद्ध-च्छिन्नइण निवडंतइण दुमेण । ते तिन्नि वि विणिवाइया अह निय-सुकय-वसेण ॥ [३२६५] असम-सुहयरि कप्पि पंचमइ तियसिंद-समाण-सिरि हूय साहु-रहयार-हरिणय । ता पेक्खिवि वल-सुरिण नरइ हरिहि वहु-दुहई परिणय ॥ सुमरेविणु सो तारिसउ निय-वंधव-पडिवंधु । अवगणिउण सुरयणु सयलु अहिणव-हुय-संबंधु ।। ३२६२. ४. क. खगु. ____ 2010_05 Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२१ नेमिनाहचरिउ [ ३२६६ [३२६६] तइय-पुहइहिं गंतु हरि-पुरउ निय-वइयरु साहिउण अमुहु सयलु हरिउण स-सत्तिण । चलि वंधव सुर-पुरिहिं इय भणंतु सह नियय-गत्तिण ॥ उप्पाडिवि जा संचलिउ मुसलि-तियसु वेगेण । ताव विल(?)ज्जिवि पडिउ हरि धरणियलम्मि खणेण ॥ [३२६७] भणइ पुणु जह - नेमिनाहस्सु अ-गणिउण वयणु मई न किउ धम्मु तइयहं विसुद्धउ । आवडिउ विवागु इहु तमु जि मज्झ गुरु-पाव-वद्धउ ॥ नासंतिर्हि वि न छुट्टियइ पावहं रिउहं रिणाहं । ता किं इह असुहिण कइण सुरगिरि-धीर-मणाई ॥ [३२६८] किंतु एक्कु जि मज्झ असुहेइ जं तइयहं तारिसु वि दलिय-असम-माहप्प-सत्तु वि । वेलवियउ तवसिइण तेण गणिउ न य निमिस-मेत्तु वि ॥ इय निय-सत्तिण तह कह-वि कुणसु सहोयर एण्हि । जह मह तसु अवभावणह गलइ हवइ धुवु पण्हि ॥ [३२६९] तयणु मुसलिण वंधु-नेहेण विहि-वसिण य अ-करिउण कु-वि वियारु आयइ-सुहावहु । आगंतु सुरट्टयह उवरि तियस-सत्तीए तहिं लहु ॥ सिरि-वारवई-दाहि कि-वि जे आणदिय सत्तु । जे उण दूमिय सुहि-सयण तह पडिविहिहि निमित्तु ॥ ___३२६६. १. क. पुहइहि; पुरभो. ३२६९. ९ क. पविहिहि 2010_05 Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२५ ३२७५] पलभहवुत्तंतु [३२७०] पाणि-संठिय-संख-गय-चक्कु पीयंवरु कण्हु कय- उर-पएस-सिरि-वच्छ-भूसणु । रामो उण हल-मुसल- पाणि नील-अंवरु अ-दूसणु । वेउव्विउण विमाण-ठिउ गाम-नयर-देसेसु । गयणिण पुरि सुहि-सयण-जुउ भमइ सु तियस-विसेसु ।। [३२७१] भणइ पुणु - इउं कण्हु सिजिऊण संहरहुं असेस भुय कुणहुं पुण-वि इच्छाणुरूविण । वारवइ वि सिट्ठ मई हरिवि मई वि इह नीय गयणिण ॥ ता कत्ता भोत्ता य हउं इयरु सयलु वामोहु । इच्छहं जाइवि सिवि पुण-वि आवडं निम्मल-वोहु ॥ [३२७२] मच्छो कुम्म वराहो नरसीहो वामणो य रामो य । रामो रामो य तहा वुद्धो कक्की वि-हु भवामि ॥ [३२७३] सव्व-गओ हं तस-थावरेसु भूएसु नूण चिट्ठामि भूयाई मम्मयाइं वइरित्तेहिं न भूएहिं ॥ [३२७४] ता परमप्पा अहमेव इत्थ पूएह तो ममं चेव । आराहह निरचं पि-हु जइ इच्छह अप्पणो रिद्धि ॥ । [३२७५] इय परूविवि सयल-वसुहाए काराविवि देव-उल- वावि-कूव-पव पमुह-ठाणिसु । ठावाविवि तेसु हरि पायडेउ तसु पूय-पगरिसु ॥ पूय कुणंतहं माणवहं वियरिवि विविह-समिद्धि । तेण पयट्टिय अजु-वि इह दीसइ जणहं कु-बुद्धि । 2010_05 Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२६ नाण-तय-दिrयरु वि सविहागय-सिद्धि बहुजत्थ पयास एरिसउं तहिं पागय- मणुयाभिमुहु इओ य - नेमिनाहचरिउ [३२७६] तुंग-पगइ वि विमल - दिट्ठी वि गलियपाय - संसार-बंधु वि । हु विवद्ध - तित्थयर - नामुवि ॥ मोह-वसिण मिच्छत्तु । किं तीरइ जंपित्तु ॥ [३२७७] पंडुमहुरहं जरकुमारेण परिकहिय वारasविनाय जण - मुहिण कोथुभ रणु विकर-चडिउ अवलोइवि पुणरुत्तु । पलवइ पंडब- जणु सयलु सुरगिरि- गरुय - दुहत् ॥ 2010_05 वइयरम्मि तह कण्ह - वइयरि । सयल-लोय-अच्चंत-दुहयरि ॥ [३२७८] अवर - अवसरि तेसि पंडव संसार- विहरिय- महं चरण - समउ मुणिऊण नेमिण । सिरि-धम्मघोसु तिमुणि सहिउ पंचसय साहु-विंदिण || पेसिउ तह पडिवोह कइ आगउ सुवि अइरेण । काणणिता पंडव सयल सह निय-परिवारेण ॥ [३२७९] किं-चि वियलिय -सोय- संताव आगंतु सूरिहि पुरउ जर- कुमरु ठafa नियपडिवज्जहिं पंचवि कमिण भाविण परिणय- जिण-वयण- विर्यालय-सयलावाह || ३२७९. २. क. सूरिहिं; ८. क. परिण. सुणिवि धम्म कह समय-सारिय । रज्जि दिक्ख कल्लाणगारिय || वियडिय-निय - अवराह । [ ३२७६ Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८३ ] नेमबिहारु [३२८० ] सव्वि सेवहिं गुरुहुं पय- पउम सवि कम्म क्खय-निरय सवि पालहिं जिण-वयणु अरम्मि उ अवसर नियमु भुंजिता जइ भिक्ख मह सव्वि सिद्धि-संगम - सुहासय । सव्वि तुट्ट-संसार वासय ॥ भीमु मणिण गिण्हेई । कु-वि कुंत ग्गिण देइ ॥ [३२८१] तयणु निरसणु ठियउ छम्मास कंपाविय- धरणियल क- पारण वहु-तविहि अह अन्नय सिरि-नेमि - जिण चलणहं वंदण - रेसि | सुह- परिणाम - विसेसि ॥ वहंत कुंदिदु-सम - 2010_05 अह कहें चि पुन्नइ अभिग्गहि | परिसुसंति सयलम्मि विग्गहि || [३२८२] चलिय पंच वि ते महा-सत्त भुवण-बंधु साहिय- विहाणिण । विहरंत अणुक्कमिण भयवंतु वि भविय-मण- कमल-तरणि तित्थयर - कप्पिण || मझ देसि नाणा - विहिहि ठाणिहि विहरेऊण । रायपुराइ - महापुरिहि उत्तरहं वि गंतूण ॥ [३२८३] अह चडेविणु गिरिहिं हिरिमंति विरेवणुवहु - विि अह दाहिण - दिसिहिं गय- पव्वयस्सु तसु उत्तरेविणु ॥ इय आरियहि अणारियहि वहु-ठाणिहिं विहरेउ । अह केवल - नाणेण निय- आउहु अंतु मुणेउ || मिच्छ - पुरिहि वोवि भवि यणु । ३२८०. ४. क. जिण.. ३२८१. १. क. तियस-छम्मासः ३. क. पुन्न. ७२७ Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२८ एक्कारस- गणहरिहिं समणीणं असम-गुणगुण-सत्तर- सहस-जयछत्तीस सहस वुहिय [३२८४ ] असम-भत्तिण विहिय-पय-सेवु अभिहाणिण महिय-पउ तियसासुर-नर-निवहनव-कंचण-कमलहं उवरि अणुस संत अणुगमिर नेमिनाहचरिउ तह मुणीण अद्वार - सहसिहि । निहिहिं सहस-चालीस - संखिहिं ॥ इग-सावय-लक्खेण । साविय लक्ख - तिगेण ॥ [३२८५] विउत्तिण सुरिण गोमेह 2010_05 विहिय-भत्ति कुसुमंडि - देविहिं । नहयरेहिं पडिवन्न - सेविहिं ॥ विणिवेसंतु पयाई । बहुविह भविय सयाई ॥ [३२८६ ] कमिण पत्तउ धरणि-तिलयम्मि सोरge मंडण हरियंदण - अगुरु- सिरिखंड - नाय - पुन्नाय - मणहरि ॥ पसरिय-धर - संताव- हर वहु-निज्झर झंकारि । अंक- पुलय-वेरुलिय-पह - अहरिय-तम- पभारि ॥ वउल-तिलय सहयार - सुंदरि । अह आसण - कंप-वससविहिम्मि पहुत्त सुरअह जह-अहिगारिण कयइ frees सीहासणि खविय - [३२८७] पतु रेवय- सिहरि - सिहरम्मि मुणिय- चरम - कल्लाण सामिहि । असुर - नाह सिव- अग्गगामिहि ॥ समवरसणि जय नाहु | अंतर- रिउ - वावाहु ॥ ३२८४. ४. समणीण वि ८. क. इ added marginally after छत्तीस; ख. छत्तीस सहसजुय; ख. लक्ख तिग सावियणिणदक्खेण ३२४७ ९. After this line क. reads ओं, [ ३२८४ Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२९१ ] [३२८८ ] तयणु सुरवर थुणहिं जिण- इंद जह - जु विविह- दुह - जलण-जलहरु | जो य सिद्धि- सुह- कुमुय - ससहरू ॥ पय-पउमई भत्ति-भरु जो वंछिय - कप्पतरु समुद विजय- निव-अंगरुहु सिरि-सिवदेवि पुत्तु । ताति-कालु विपय नमहु जिम्व सिवु लहहु निरुत्तु ॥ जो सयल - संसय - हरणु जो धवलय-ति-जय-जसु जो भव-जलहि- पडत-जणसो भवियहु जिणवरु सरहु [३२८९] जो पयासिय-भुवण - परमत्थु नेमिनिव्वाणु तं जि बंधवु 2010_05 [३२९०] तं चैव मह माय - पिय तुह सामिय नियडतणु इय पहु तुहं निय-पय- पुरउ जह मह जायइ मूलह वि चलि जीविइ छाहि-समि इय चिंतिवि किं-पि पउ जं निय-भिच्च परम्मुहा इय भावेविणु कुणसु तह जो समग्ग- रिउ वग्ग - वारणु । जो य भुवण - अहिल सिय-कारणु ॥ तारण- पवर-तरंडु | गुरु-गुण- रयण-करंडु ॥ तं जि सुहि पुत तुझ विरहि हउं रइ न पांवहुँ । पुणु कयत्थु अप्परं विभावरं ॥ तह वियरहि संवासु । दुह-दालिद - विणा ॥ [३२९१] चलिरि जोव्वणि धणि अ-साहीणि मह न सामि पडिवंधु कत्थ-वि । देहि नाह तं वससि जत्थ-वि ॥ होंति न सामिय लोइ । जह पहु जुत्तउं होइ ॥ ३२८८. ९. जेम्व. ३२९०. ३. पाम्बहु; ५. कयत्थु अत्थु अप्पउं; ६. क. पुरओ. ९२ ७२९ Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३० नेमिनाहचरित [३२९२ [३२९२] एम्व गग्गर-गिरिहिं पुणरुत्तु सिरि-नेमि-जिणेसरह पाय-पउम थुणिऊण सुर-वर । अणुमच्छिर-तिरिय-नर- खयर-सिद्ध-गंधव्व-किन्नर ॥ उचिओचिय-ठाणेसु ठिय सिर-विरइय-कर-कोस । निसुणहिं सामिहिं धम्म-कह घण-गहीर-निग्घोस । [३२९३] अह कहेविणु उभय-भव-भाविसुह-कारण धम्म-कह दाउ विविह-अणुसहि संघह । पव्वाविय पउर-नर देस-विरइ वियरेवि अन्नह ॥ के वि करिवि संमत्त-धर के-सि वि नियम-विसेस । किं बहुइण सिव-नयर-पहि लाइवि जीव असेस ॥ [३३९४] एम्व-कारिण सिवि गिह-वासि कुमरत्तिण वरिस-सय तिन्नि तयणु चारितु घेप्पिणु । चउपन्न-दिणाई छउमत्थ- भाव-जोगिण गमिप्पिणु ॥ चउपन्नूणय-वास-सय सत्त धरहं विहरेवि । केवलि-परियारण पहु भविय-कमल वोहेवि ॥ [३२९५] अंति मासिय-तविण जय-बंधु वग्धारिय-कर-जुयलु खविय-सयल-भव-भावि-कलि-मलु । पडिवोहिय-भविउ वर- नाण-चरण-दंसणिहि पेसलु ॥ छत्तीसाहिय-पंच-सय- समण-गणिण संजुत्तु । आसाढह सिय-अहमिहिं सेलेसीए गमित्तु ॥ ____ 2010_05 Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३१ ३३०१ ] नेमिनिब्वाणु [३२९६] दियह-पंचम-भाग-समयम्मि चइऊण सरीरु इहु सिद्धि-रमणि-मुक्कंठ-माणसु । जह-रूव-सरूव-धरु उड्ढगइहि गमणम्मि अणलसु ॥ सामिउ मरगय-सामलउ तियसासुर-कय-सेवु । सिव-नयरिहि नायगु हुयउ नेमि-जिणेसरु देवु ॥ [३२९७] तयणु समण संव-पज्जुनरहनेमि-प्पमुह बहु- भेय साहु संपत्त सिद्धिहिं । सिरि-राइमइ-पमुह साहुणी वि वर-नाण-सुद्धिहि ॥ पक्खालिय-निय-पाव-मल पत्त भवन्नव-तीर । सासय-ठाणि पहुत्त वर- नाण-चरित्त-सरीर ॥ [३२९८] राया समुद्दविजओ सिरि-सिवदेवी य जाइ माहिदे । वर-भज्जाउ कण्हस्स अट्ट सिझंति ज भणियं ॥ [३२९९] नागेखें उसभ-पिया सेसाणं सत्त जंति ईसाणे । अट्ठ य सणकुमारे माहिदे अट्ठ अणुकमसो ॥ [३३००] आइ-जिणाणटण्डं गयाओ मोक्खम्मि अट्ठ जणणीओ । अ य सणकुमारे माहिदे अट्ट वच्चंति ॥ [३३०१] सच्च-लक्खण-गोरि-गंधारीपउमावइ-जंववइ- रुप्पिणीउ तह सिरि-सुसोमय । उवलद्ध-केवल-गइय सिव-पुरीए हरि-दइय अद्वय ॥ इयरु वि नर-नारिहिं नियरु नेमि-सामि-तित्थम्मि । तहि अवसरि वर-नाण-धणु गउ वहुयरु सिद्धिम्मि ॥ ____ 2010_05 Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३२ [३३०२ नेमिनाहचरिउ [३३०२] अवि य कंचण-रयण-निम्मवियनिव्वाणिय-सिविय कय तियस-राय-वयणेण वेगिण । वेसमणिण तयणु जिण- अंगु तीए परिखिविउ इंदिण ॥ अह वाहाविल-नयण-दल निय-निय-पह-वयणेण । अभिओगिय सुर चिह कुणहिं देवदारु-कढेण ॥ [३३०३] अहह सामिय परम-कारुणिय जर-मरण-दुहोह-करि राय-दोस-विसहर-भयावणि । अइ-दुद्धर-मोह-वल- पंचवयणि संसार-काणणि ॥ नाह-विहीणउ गय-सरणु अइ-करुणउं कंदतु । इहु उज्झेविणु भविय-जणु कहिं तुहुँ सामि पहुत्तु ॥ [३३०४] एम्ब स-करुणु तियस-नाहिं पलवंतिहिं कह-कह-वि उक्खिवेउ सिय नेमिनाहह । अक्कंदिरि तिहुयणि वि भरिय-विवरि तह सिहरि-रायह ॥ देवदारु-गोसीस-सिरिखंड- अगुरु-रइयाए । सामि-सरीरु ठवंति सुर- नायग मज्झि चियाए ॥ अग्गि-कुमर वि तियस निय-मुहह वज्जग्गि तहिं क्खिवहिं अह पहीण-सिय-मंस-सोणिय । पहु-अंगोवंग हुय तयणु गंध-उदएण झामिय ॥ अह तियसासुर-पहु पहुहु हणुय-पमुह-अट्ठीणि । जहरिहु गेण्हहिं अ-सिव-पह- कमण-पाणि-लट्ठीणि ॥ ३३०३. ६. क. गयसणु. ३३०४. ५. क. ख. नह. 2010_05 Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३३ ३३०९] नेमिनिव्वाणु [३३०६] कत्थ वच्चहुं को णु अणुसरहुं पुक्कारहुं कसु पुरउ को व अम्ह रिउ-रक्ख करिहइ । अंधारिउ तिहुयणु वि तुह विओइ जय-नाह पडिहइ ॥ भव-कूवम्मि अ-याणिरउं मग्गामग्ग-वियारु । इय विलवंतु चउबिहु वि संघ भणइ सुस्सारु ॥ [३३०७] एम्ब तुम्हहं किमिह सोगेण कय-किच्चउ भुवण-पहु पत्तु जेण निव्वाण-मंदिरु । तुब्भे वि-हु पाविहह पहुहु पहिण वच्चंत सिव-पुरु ॥ इय अणुसहि पयच्छिउण सयलस्स वि संघस्सु । तह वज्जिण निव्वाण-सिल- उवरि नेमि-सामिस्सु ॥ [३३०८] नाम-अक्खर-पंति तह सम्म पहु-लक्खण-सय-सहस उक्किरेवि सोहम्म-सुग्वइ । नीसेस-सुर-यण-सहिउ साम-वयणु निय-ठाणि आवइ ॥ नेमि-जिणिदह गुणहं गणु सरिवि सरिवि झूरंत । सावय साविय मुणि समणि नियय-ठाणि संपत्त ॥ [३३०९] ते-वि पंडव सामि-पय-पउमअभिवायण-एक्क-मण विहरिऊण धरणिहिं स-संभम । आगच्छिर अक्खलिर हियय-निसिय-सिव-रमणि-संगम ॥ वारस-जोयण-अंतरिण रेवय-गिरिहिं पहुत्त । पहु वंदिवि मासिय-तवह मुंजेसु त्ति मुणंत ॥ ३३०६. २. क. पुक्कारहु. ३३०९. १. क. समियपयपठम, ख. सामिपयउम. ____ 2010_05 Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३३१० ७३४ नेमिनाहचरिउ [३३१०] किंतु निमुणिवि पहुहु सिव-गमण गयणंगण-गमिर-सुर- नियर-करुण-वयणाणुहाविण । ता पंच पंडव समण गहिय-हियय-गुरु-पच्छुताविण ॥ कय-अणसण पुंडरिय-गिरि- सिहरि समारुहिऊण । सिव-नयरिहिं गय अइरिण वि कम्म-नियल दलिऊण ॥ 2010_05 Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [प्रशस्तिः । [३३११] पहु-अणंतरु हुयउ जिणु पासु पासाउ वि वीर-जिणु इंदभूइ अह तह सुहम्मु वि । ता जंवु-सामि अह पहवु तयणु गुरु-गणु अ-संखु वि ।। अह कोडिय-गणि चंद-कुलि विउल-वइर-साहाए । अइगच्छंतिहि अणुकमिण वहु-गणहर-मालाए ॥ [३३१२] हुयउ ससहर-हार-नीहारकुंदुज्जल-जस-पसर- भरिय-भुवण-वडगच्छ-मंडणु। जिणचंद-मुर्णिदु धर- वलय-भविय-जण-हियय-रंजणु ॥ तमु पुणु पट्टह जस-कलसु आसि जगुत्तिमु सीसु । अवितहत्थ-नामिण पयडु सिरि-सिरिचंद-मुणीसु॥ _[३३१३] एहु पयड वि हुयउ हरिभदसूरि त्ति विणेय-लवु असम-विविह-गुण-रयण-भूरिहि । सारय-ससि-विमल-जस- भरिय-धरह सिरिचंद-भूरिहि ॥ तह सिरिमाल-पुरुब्भविउ पोरुयाड-अभिहाणु । चिटइ वसु असंख-गुण- नर-माणिक्क-निहाणु ॥ [३२१४] जो य संठिउ नयरि सिरिमालि लच्छीए पयडीहविवि विहिय-असम-सव्वंग-रिदिउ। गंभूय-पूरीए गउ वढमाण-मुहि-सयण-वुद्धिउ । हत्थि-तुरंगम-सटि-सय- तय-किरियाणय-धामु। तम्मि वंसि सु-पसिद्ध हुय ठक्कुरु निन्नय-नामु ॥ ३३१२. ३. क. भुषण. ३३१५. The last line of the stanza in क. is lost due to the damaged corner of क. ६. क. ख. सहा ७. भय 2010_05 Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३६ नेमिनाहचरिउ [ ३३१५ [३३१५] अवर-अवसरि जणय-बुद्धीए वणराय-नराहिविण नीउ संतु अणहिल्लवाडइ । विज्जाहर-गच्छि कय- उसह-भवण-झय-छलि भम्वाडइ ॥ नियय-कित्ति-कामिणि दिसिहिं नीसेसिहि वि ललंत । जइ अज्ज-वि कोउगु कसु-वि ता सु नियउ पसरंत ॥ [३३१६] तयणु सारय-समय-रयणियरकिरणावलि-निम्मलिहिं गुणिहि पत्त असरिस-मडप्फरु । हुउ निन्नय-अंगरुहु लहर-नामु दंडवइ मणहरु ॥ तेण य विंझ-गिरिहिं गइण गहिय अणेग करिंद । निज्जिय पुणु करि-हरण-मण वहु-विह समरि नरिंद ॥ [३३१७] धणुहि विहियइ जीए अवयारि लीलाइ वि रिउ जिणिय अजु वि देवि सा विंझवासिणि । तिण कारिय संडथल- गामि अन्थि दुरिओह-नासिणि ॥ किंतु लहर-नामिण स तहिं धणुहावि त्ति पसिद्ध । हुय सयल-धरणियल-कय- पूय-विसेस-ममिद्ध ॥ [३३१८] तत्थ पत्तिण हत्थि-दंसणिण वणराय-नराहिविण सु-प्पसन्न-चित्तेण लहरह । तं चेव य संडथल- गामु दिण्णु कज्जे थईयह ॥ तसु पुणु लच्छि-सरस्सइहि देविहि विहिय-पसाउ । महियल-विलसिर-जस-पसरु असम-गुणिहि विक्खाउ । ३३ १५. ७ क. नीसेसिहि. ३३१७. १. वियहियइ; ३. क, विज्झवासिणि. ४. क. संडवल. Lines 6 to 9 of 3317 and lines 1 to 5 of 3318 are added marginally in क. ____ 2010_05 Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३७ ३३२२] प्रशस्तिः [३३१९] टंक सालई सिरि-वरुवलद्ध जिण ठवियउ चित्त-पडु लच्छि-निसिय-मुद्दासु जेण य । जसु संचिण वहइ इह मूलराय-मज्जाय तेम्व य ।। मूलराय-चामुंडनिव- वल्लहरायहं कालि। दुल्लहरायह चुलग-कुल- तिलयह रज्जि विसालि ॥ [३३२०] दसहं एगह सचिव-पय-भारउद्धरणि सु धुर-धवल वीर-नामु हुउ सचिव-पुंगवु । अंतम्मि य सुगुरु-पय- मूलि चरणु सेविवि अणासवु ॥ जणिवि पुन्न सव्वायरिण नियं-जीविय-फलु लेइ। सर-वसु-दिसि-वरिसम्मि जस-सैसत्तणु पावेइ ।। [३३२१] तमु वि नंदणु विउसु सु-कुलीणु सु-समत्थउ खति-परु सीलवंतु सोहग्ग-सुंदरु । नेदु त्ति अमच्चु हुउ जसु पसन्नु सिरि-भीम-नरवरु ॥ वीउ वि दंडाहिवइ-पय- पाविय-असम-पइछ । विमल-नामु नंदणु हुयउ असरिस-गुणहिं गरिट्छ । [३३२२] अवर-अवसरि भीम-नररायवयणेण विवक्खि-जय- हेउ विमलु चउरंग-सेन्निण । सिरि-चड्डावल्लि-वर- विसइ पत्तु निय-सत्ति-जोगिण ॥ अह संगहिय-विवक्ख-सिरि कय-निय-पहु-आएमु । तत्थ वसंतु सु सच्चवइ अव्वुउ सिहरि-विसेसु ॥ ३३२१ ६. क. वीओ. ८. क. वंदणु. 2010_05 Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३८ नेमिनाहचरिउ [ ३३२३ _[३३२३] तयणु पसरिय-गरुय-उच्छाहु सिरि-अंवाएवि-वर- वसिण दिट्ठ-असरिस-वसुंधरु । तक्कालु वि लटु सिरि- भीम-नेढ-आएसु सुंदरु ॥ अव्वुय-गिरि-रायह सिहरि निम्मल-फालिह-वन्नु । उसह-जिणेसर-चेइहरु कारावेइ रवन्नु । [३३२४] तयणु हरि-करियण-संगयह सव्वंगिय-लक्खणहं निलउ संड-नामिण य तियसिण । निच्चं पि-हु विहिय-वहु- सन्निहाणु गुरु-भत्ति-तरसिण ॥ नच्चाविय निय-कित्ति-बहु भुवण-रंग-मज्मम्मि । उवजुजिय-मणि-कणय-धणु सयण-सुयण-कज्जम्मि ॥ [३३२५] हुयउ नेढह तणउ धवलु त्ति सिरि-भीमएवंगरुह- कन्नएव-निवइहि महा-मइ । तस्सु वि जयसिंह-निव- रज्ज-समइ पसरंत-संपइ ॥ धणुहाविहिं पविइन्न-वरु कय-रेवंत-पसाउ । आणंदु त्ति जहत्थ-अभिहाणु सचिवु संजाउ ॥ [३३२६] चंद-निम्मल-सील-कय-सोह निक्कारण-कारुणिय सु-गुणवंत पणमंत-वच्छल । पउमावइ-नाम तमु हुय दइय सद्धम्म-पच्चल ॥ अह सिद्धाहिव-कुमरनिव- सुकय-भरिण भज्जत । नं अवलोइवि सयल धर अमुहिय-जण-संजुत्त ॥ Verse ३३२४. is added marginally in क.; ३३२१. १. क. निरु is added marginally before alfa and fe after it is omitted, ३३२५, २, क. पसामओ. 2010_05 Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३९ प्रशस्तिः [३३२७] विहिण करुणा रसिण सित्तेण सिद्धाहिव-कुमरनिव- रज्जकालि नय-मग्ग-निहिउ । वयगरण-स्सिरिगरण- भार-धवलु ससि-सम्म-दिटिउ ॥ सचिवाहिवइ विणिम्मविउ सिरि-आणंदह पुत्तु । सरसइ-वर-उवलटु सिरि- पुहइप्पाल निरुत्तु ॥ [३३२८] तेण अव्वुय-गिरिहि सिरि-विमलनिम्माविय-जिण-भवणि असम-रूयु मंडवु कराविवि । तसु पुरउ करेणु-गय सत्त मुत्ति पुव्वयई ठाविवि ॥ निय-जणयह पुणु सेव-कइ जालिहरइ गच्छम्मि । जणणीए वि पंचासरइ पास-जिणिंद-गिहम्मि ॥ [३३२९] माय-मायह सीलि-नामाए पुणु चड्डावल्लयह वीरनाह-जिणहरह पंगणि । इहि मंडव कारविय असम-रूव अणहिल्ल-पट्टणि ॥ तह रोहाइ य वारहइ सावणवाडइ गामि । स-जणणि-जणयहं दोण्हयह सेय-कज्जि अभिरामि ॥ [३३३०] तिजय-तिलयह संति-नाहस्सु काराविउ जिण-भवणु सयल-नीइ-सस्थत्य-निट्टिण । नर-नारि-तुरंग-करि- रयण-विसय-लक्खण-विसिद्विण ॥ तयणु लिहाविवि पुत्थयहं सइहि सयल सिद्धंत । आराहिवि तित्थाहिवहं चलण जणिय-जम्मंत ॥ ३३२७. ८. क. उवलद्ध. ३३२८. ६. Lines 6 to 9 of verse 3328 and lines 1 to 5 of v. 3829 are added marginally in क. ३३२८. क. ४. मज्झि for पुरव. In 4.°ze of gas is illegible due to an ink-blot, ३३२९. १. क. इह. ८. क. अणयह. ____ 2010_05 Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४० पडिलाहिवि अपु कयनिय जणणी - जणयहं वि पुहइप्पाल- महामइहिं इहु हरिभद्द - मुणीसरिण [३३३१] समण - संघु विविवि-वत्थूहिं नेमिनाहचरि न य मंत-तंत-फुरणु इहु नेमि - जिणेसरह इय इहु भुवण - सुहावणउं अहव सयं पि-हु लेंति बुह किच्चु करिवि सद्धम्म - कम्मिण । धम्म- हेउ जिण-नाह-भत्तिण || अब्भत्थणह वसेण । चरिउ लइउ लेसेण ॥ [३३३२] मह न तारिसु वयण - विन्नाणु 2010_05 जइ वि तह वि पहु-भत्ति- जोगिण । चरिउ रइउ मई गुरु-पसाइण ॥ सुषणहु सुणहु चरितु | चिंतामणि सु-पवित्तु ॥ [३३३३] कुमरवालह निवह रज्जम्मि अणहिल्लवाडs नयरि सोलुत्तर-वार-सइ अस्सिणि-रिक्खिण सोम-दिणि सुप्पवित्ति लग्गमि । समत्थि कह-विनिय- परियण-साहज्जम्मि ॥ अणु-सुयण - वुहयणह संगमि । कत्तियम्मि तेरसि-समागमि ॥ [३३३४] पच्चक्खर - गणणाए सिलोग- माणेण इह पर्वधम् । अट्ठेव य सहस्सा वेत्तीस - सिलोगया होति ॥ [३३३५] जं किंचि मए अणुचियमुवइटुं तुच्छ - मइ - विसेसाओ । तं पसिउं मह सुयणा सोहंतु कय-प्यसाय ति ॥ [३३३६] यस्यांहि-द्वय-नख-मणि - मयूख- संक्रांत-सुरपति-श्रेणी | निज - लघुतामिव कथयति वपुषा विजयत्वसों नेमिः ॥ [३३३७] यावच्चन्द्रो यावद्दिवाकरो यावदमर - गिरिरत्र । राजति तावज्जीयात् श्री नेमि - जिनेन्द्र- चरितमदः ॥ [ ३३३१ Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३३८ ] ७४१ प्रशस्तिः [३३३८] उघल्लक्षणशास्त्रसंचयनिधीन् सद्धर्म-मुद्रावधीन् सिद्धांतैकसहस्रपत्रतरणीन् शब्दादिचूडामणीन् । तर्काध्वन्यतरून् मनोभव-वधू-वैधव्य-दीक्षा-गुरुन् साहित्यामृत-सागरान् मुनि-वरान् श्रीचन्द्र-सूरीन् स्तुवे ॥ इति श्री-श्रीचन्द्र सूरिक्रम-कमल-भसल श्री-हरिभद्रसूरि-विरचितं नवभवोपनिबद्ध श्री-नेमिनाथ-चरितं समाप्तम् ॥ After ३३३८. ख. प्रथानं० ८०१००० (३२ superscribed over १०.०.) 2010_05 Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धिपत्रम् पद्याचरणारी शुचिः पद्याचरणाऔ शुद्धिः १९३४. १ धवलहर- २४१२. . जग-जंतु१९४०.१ तियस-सत्तिण २४१७.१ समुद्दविजयाइणो निय तणु-उबरि स-हल-महिहि १९७६. ३ चितिवि २४६८. ६ भुवणन्भहिय. १९९७. १ -उवरिम्मि २४७८.. वल-हरिणुट्टिवि दळु हु २००४. ९ भ-गुरुहु सबिहि २४८..२ -कुंभयड २०१७. २५०५. ८ समुत्थरिय २०२९. . -सम्मादिष्टि २५१०.६ स-नंदणहं २०३७. ९ २५२१. ५ बाल उ (2) वि २०४२. ५ मारिण २५७६.. भरह-क्खित्ति २०५८. ८ हरण-असेम-छाण २०५९. ५ २६१६. २ माहप्प २१०४. तेसु तग्मि २६२२. . संवुस्तु २१३२. ८ पुंड २६३१. ९ वहु अनु माणिल २१३७. ७ पुस्तु २१४१.१ -मिडलंबु २७१९. ६ भणाहिट्ठिाण २१५१.६ वि पविय २७२६. ८ कुंडिणि२१७९.३ मियय- २७२९. २ किह-णु २१८९. ७ परिबासुदेषु २०५३. ८ -मण-पसर २२०२. ७ गंधसमिद्धि पुरम्मि २७५६.३ २२५३. २ पय-भग्गि य २०५८.८ सेवहिं विभाविय चित्ति वासुदेव २२७२. ९ परितोसिय पुर गाम २८...८ निजूह-दुग्गु २२७३. ५ समुहिहूय भव- २८५७. ५ कह-वि रोहह २२८९.६ वहुय- २८७६. ३ रिउ-,-सिरि २३०६. ५ मिसुंभण अच्छि तहुं गंतु २३०७. ५ बाल-हाव २८९४. २ २३२८. १ २९.८.१ चत्तारि उ २३३२. ६ पुव्वुप्पन्नय २९३२. ९ -रयण गणय-तणउ २३१६. २ -विलेवण- ३०१०. ६ -भवण२३५१.२ सक-स्थवं ३०१६.९ -अरेणं २३५८. ३ करहकरिवि सेल्लं तभी ३०३०.६ अभियोगियबंधुर . ३०६१. १ सणकुमारो विसइ 2010_05 Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ tuigचरणाङ्कौ ३०७९. २ ३०८७. ६ ३०८८. ८ ३०९७.७ ३११०. ५ ३१४१ २ ३१७५. ८ ३१७६. ३ ३१८३. ८ ३१९०. २ ३१९६. १ ३२१५. ४ ३२२०. ३ ३२२९.९ ३२३७. ५ ३२५३. ४ 2010_05 शुद्धिः रहनेमिण - रहनेमि पंच -जंववईहि सरि-हरि तहा दि बारबइ -जदु कुमर संवाइणु नियय-न्माण तहि नयरिहि किह - णु परिमुक्क चणाइ तहंतरु किह-णु ४३ पद्याचरणाङ्का ३२५५. ३ ३२७७.८ ३२८३. ३ ३२८४. ८ ३२८६. ६ ३२८७.७ ३२९३. ६ در ७ ३३९४ ३२९४.६ ३३०६. ६ ९ "" ३३०८. ३ ३३१७. ९ ३३२६. ५ शुद्धिः दूर पंडव भवियणु बुहिय -दर समवसरण के-वि केसि - वि ३२९४ चउपन्नूर्णय वास सयअयाणिरड सं -सुरवर -समिद य Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ LALBHAI DALPATBHAI BHARATIYA SANSKRITI VIDYA MANDIR L. D. SERIES S. NO. Title Price Rs. 1. Śivaditya's Saptapadārthi, with a Commentary by Jinavardhana 4/ Suri. Editor : Dr. J. S. Jetly. (Publication year 1963) 2. Catalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts : Muniraja 50 Shri Punyavijayaji's Collection Pt. 1 Compiler : Munirāja Shri Punyavijayaji Editor : Pt. Ambalal P. Shah. (1963) 3. Vinayacandra's Kāvyaśikṣā, Editor : Dr. H. G. Shastri (1964) 10/4. Haribhadrasari's Yogaśataka, with auto-commentary, along 5/ with his Brahmasidhāntasamuccaya. Editor : Munira ja Shri Punyavijayaji. (1965) 5. Catalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts, Munirāja Shri 40/ Punyavijayaji's Collection, pt. II. Compiler: Muniraja Shri Punyavi jayaji. Editor : Pt. A. P. Shah. (1965) 6. Ratnaprabhasüri's Ratnakarāvatārika, part 1. Editor : Pt. Dalsukh Malvania. (1965) 7. Jayadeva's Gitagovinda, with King Mānānka's Commentry. Editor : Dr. V. M. Kulkarini. (1965) 8. Kavi Lāvanyasamaya's Nemirangaratnakarachanda. Editor : 67 Dr. S. Jesalpura. (1965) 9. The Nāļyadarpaņa of Rāmacandra and Guņacandra : A Cri. tical study : By Dr. K. H. Trivedi, (1966) 30/10. Acārya Jinabhadra's Viseşāvaśyakabhāşya, with Auto-commen- 15/ tical, pt. I. Editor : Dalsukh Malvania (1966) 11, Akalanka's Criticism of Dharmakirti's Philosophy : A study 30/ By Dr. Nagin J. Shah. 12. Jinamāņikyagani's Ratnakarāvatārikādyaślokaśatarthi. Editor : 81 Pt. Bechardas J, Doshi (1967) 13. Ācārya Malayagiri's Sabdānuśāsana. Editor : Pt. Bechardas (1967) 30/14. Ācārya Jinabhadra's Višeşāvaśyakabhāşya, with Auto-commeu. 20! tary. pt. II, Editor Pt. Dalsukh Malvania. (1968) 15. Catalouge of Sanskrit and Prakrit Manuscripts : Muniraja 30/ Punyavijayaji's Collection. Pt. III. Compiler : Munirāja Shri Punyavijayaji. Editor : Pt. A. P. Shah. (1968) 16. Ratnaprabhasūri's Ratnākarāvatārikā, pt. II, Editor : Pt. 10/ Dalsukh Malvania. (1968) 17. Kalpalatāviveka (by an anonymous writer). Editor : Dr. Murari 32/ Lal Nagar and Pt. Harishankar Shastry. (1968) 2010_05 Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18. Āc. Hemacandra's Nighaṇtušesa, with a commentary of Sri vallabhagani, Editor : Muniraja Shri Punyavijayaji. (1968) 19. The Yogabindu of Ācārya Haribhadrasüri with an English. 10, Translation, Notes and Introduction by Dr. K. K. Dixit. (1968) 20. Catalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts : Shri. Ac. 40/ Devasūri's Collection and Ac, Kșāntisūri's Collection : part. IV. Compiler : Munirāja Shri Punyavijayaji. Editor : Pt A. P. Shah. (1968) 21. Ācārya Jinabhadra's Viseşāvašyakabhāșya, with Auto-Commen- 21/ tary, pt. III. Editor : Pt. Dalsukh Malvania and Pt.: Bechardas Doshi. (1969) 22. The Šāstravārtāsamuccya of Ācārya Haribhadrasūri with Hindi 20/ Translation, Notcs and Introduction by Dr. K. K. Dixit. (1969) 23. Pallipala Dhanapala's Tilakamañjarisāra, Editor : Prof. N. M. 12/ Kansara. (1969) 24. Ratnaprabhasūri's Ratnakarāvatārikā pt. III. Editor : Pt. Dalsukh Maluania. (1969) 25. Āc. Haribhadra's Neminahacariya (Val. 1) : Editors H. C. Bhayani 40/ and M, C. Modi (1970) 26. A Critical Study of Mabāpurāņa of Puşpadanta. (A Critical 30/ study of the Deśya and Rare words from Puşpadanta's Mahapurana and his other Apabhraṁsa works). By Dr. Smt. Ratna Shriyan. (1970) 27. Haribhadra's Yogadrstisamuccaya with English translation, Notes Introduction by Dr. K. K. Dixit. (1970) 28. Dictionary of Prakrit Proper Names, Part I by Dr. M. L. Mehta and Dr. K. R. Chandra. (1970) 29. Pramāņavārtikabhāşya Kārikārdhapadasūci. Compiled by Pt. Rupendrakumar. (1970) 30. Prakrit Jaina Katha Sahitya by Dr. J. C. Jain. (1971) 31. Jaina Ontology, By Dr. K. K. Dixit (1971) 30/32. Philosophy of Sri Svāminārāyana by Dr. J.A. Yajnik. 33. Ac. Haribhadra's Neminahacariya (Volume II) Edited by Dr. H.C. 40/ Bhayani and M.C. Modi 32/ 81 10/ 30/ The following works are in the press : (1) Nyāyamañjarigranthibhanga, (2) Madanarekha Akhyāyikā. (3) Adhyātmabindu. (4) Dictionary of Prakrit Proper Names. Part II. (5) Sanatkumāracarita. 2010_05 Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2010_05 Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education na Beate Use Only