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२३०६ ]
नवमभवि कण्हवालत्तणु
[२३०३]
गिरिहि कंदरि कप्प-विड वि व्व सिय-पक्खि रयणीयरु व विगय-विग्घु सो जाइ वुड्ढहिं । ववएसु करेवि कु-वि देवई वि सु-सिणिद्ध-वुद्धिहि ॥ वच्चइ अंतर-अंतरिण तसु सुय-रयणह पासि । पेक्खिवि पुणु तसु रूव-सिरि भणइ स-पियह सयासि ॥
[२३०४]
पावु किं मई अवर-जम्मम्मि परिसंचिउ जेण हउं पुहइ-तिलय-निय-सुय-विउत्तय । परिचिट्ठहुं पुत्तवइ नामु विहलु निय-मणि वहंतय ॥ अह वियरिय-थणु सुउ धरिवि खणु अप्पुणुहु सयासि । देवइ करुणु समुल्लविर मुयइ जसोयह पासि ॥
[२३०५]
सउरि-देवइ-पमुहि पुणु लोइ निय-नियय-ठाणिहि गयइ भरह-अद्ध-वासिणि सुरंगण । परिवालहिं कण्हु कय- भत्ति-भाव अणु-दिणु वि इग-मण ॥ अह सुप्पणहिहि धूय दु-वि पूयणि-सउणी-नाम । सुमरिय-वसुदेवोवहय- जणय-जणिय-संगाम ॥
विस-विलिंपिय-नियय-थण-चीढ समुवागय हरि-सविहि ता खिवेइ थणु वयणि पूयण । सउणी उ विउव्विउण मुयइ सगडु कण्हह निसुभण ॥ ता हरि-रक्खग-देवयहं तेणं चिय सगडेण । निहय रडं तिय करुण-सरु गय पंचत्ति खणेण ॥ २३०६. ६. रक्खय.
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