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नेमिनाहचरिउ
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अह सु पुच्छिउ सवह-विहि-पुव्बु किं दीसइ अच्छरिय- भूउ एहु ता सउरि जंपइ । जो ठविही निवइ-पइ पोहु संतु इह तई जि संपइ । सो वच्चइ इहु सुय-रयणु किंतु न एहु रहस्सु । साहेयव्वउं कसु वि तइं जिय-अंते वि अवस्सु ॥
[२३००
तयणु अइरिण पुरह नीहरिवि उत्तरिउण जउण-नइ गोउलम्मि गंतूण स-हरिसु । तह नंद-जसोययहं पासि मुयइ सुय-रयणु अ-सरिसु ॥ किंतु सउरि सुय-जम्म-खणि जाय जसोयह धृय । आणिवि वियरइ देवइहि अह स स-तोसीहूय ॥
[२३०१]
किं तु तक्खणि जाय-पडिवोह ते कंस-निउत्त-नर नंद-धूय उववेत्तु वेगिण । संपत्त कंसह पुरउ सो वि पावु वियलिउ विवेगिण । चिंतइ - वितहीहुउ वयणु अइमुत्तयह रिसिस्सु । जं किं हउं अवलह इमह हस्थिण हणिउ मरिस्सु ॥
[२३०२]
तह नहग्गिण दलिवि नास-उड्डु मेल्लाविवि देवइहि सविहि वाल निस्संकु चिट्ठइ । ता नंद-जसोययहिं हरिसियाहिं वसुदेवि तुइ ॥ दियहि दुवालसि गोउलि य उचिय-महिण अभिहाणु । तसु कण्हो त्ति विइन्नु जय- जंतु-पमोयह ठाणु ॥ २३०१. ८. क. हउं.
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