________________
५२३
२२९८ ]
नवमभवि कण्हजम्म [२२९५]
खेत्त-वइरु व पत्त-वइरु व्व मई समगु चिठेइ तसु गोत्तिओ व दाइउ व सो मह । अवरद्धउं किं व मई अत्थि तस्सु हय-वणिय-जायह ॥ जाय जाय गिव्हिवि हणइ जं मह सुय सो एम्ब । हम्महि रनि नि-नायगहं पसुहु तणूरुह जेम्व ॥
[२२९६]
गरुय-विरिइ वि हय-विवक्खे वि परियाणिय-वइयरि वि नियय-दइय-सम-सुक्ख-दुक्खि वि। एगम्मि वि सुय-रयणि किं न करुण कय सामि नु मइ वि ॥ अहव किमनिण वित्थरिण एत्तिय करुण करेसु । एहु एगु सुय-रयणु मह गोउलि नेउ धरेसु ॥
[२२९७]
तयणु एरिमु जुत्तु जुत्तु त्ति परिचिंतिरु जंपिरु वि सुत्ति कंस-परियणि समग्गि वि । अरिहंत-सिद्धहं करिवि थुइ-विसेसु उम्मग्गि लग्गिवि ॥ पाणि-पुडय-कय-सुय-रयणु सु सउण-साहिय-लाहु । अद्ध-भरह-देवय-धरिय- छत्तु सउरि नर-नाहु ॥
[२२९८]
पुरउ जलिरिहि कणय-दीविहिं परिढलिरिहि चामरिहि कुसुम-पयरि मुच्चंति देविहि । गायंतिहि किन्नरिहि हरिस-वसिण पडिवन्न-सेविहि ॥ महुरह गोउरि जा गयउ ता चारय-रुद्धण । उग्गसेण-निवइण सउरि दिद्वउ विहिहि वसेण ॥ २२९८. १. क. ख. जलरिहि.
___Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org