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नवमभवि वसुदेववुत्तंतु
[२२२२]
कमिण जायउं तीए सुय-रयणु नामं च विइन्नु तसु जरकुमार इय जगि पसिद्धउं । वसुदेविण पुणु भुवण- भरण-दक्खु जसु पउरु लद्धउं ॥ अह अवंतिसुंदरि तयणु सूरसेण हरिणच्छि । ता निव-कन्नय जीवजस वीवाहेइ मयच्छि ॥
[२२२३]
एम्व वहुविह-सेटि-सत्थाहसामंत-नराहिवइ- खयरराय-कन्नय-सहस्सई । परिणंतु अरिहपुरि पत्तु दिसिहि भामिरु स-जस्सई ॥ तत्थ य तइयहं आसि सिरि- रुहिर-नामु नर-राउ । तस्स उ मित्ता नाम पिय तेसिं पुणु संजाउ ।
[२२२४]
सुकय-जोगिण सुउ हिरण्णाभअभिहाणिण विस्सुयउ तह अणेग-गुण-रयण-धरणिय ।। नीसेस-कला-कुसल रोहिणि त्ति अभिहाण कुमरिय ॥ कयइ सयंवर-मंडवइ •तसु कुमरिहि पाउग्गि । मिलियइ सिरि-जरसंध-निव- पमुहि नराहिव-वग्गि ॥
[२२२५]
गुरु-कुऊहल-वसिण कय-रूव परिचत्तु आउज्जियहं मज्झि होउ करि पणवु घेप्पिणु । जा वायइ सउरि वहु- विहिहिं सुरहमवि मणु गहेप्पिणु ॥ ता तत्थागय रंभ-रइ- लच्छिहिं सोह हरंत । सा रोहिणि कन्नय वि दिह- सहि-विदिण सोहंत ॥ २२२५. ७. ख सियह.
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