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२५५०]
नवमभवि जायवजरसंधविरोहु
[२५४७]
तयणु सविहिहिं गंतु तरुणीए एसो कालु समुल्लवइ सुयणु किह-णु तुहुं एम्ब पलवसि । ता वालिय नीससिवि भणइ - हंत म-न किंपि पुच्छसि । धरि कंठ-ट्ठिय-दुक्खडा मा पयडिज्जहु लोइ । गरुयत्तणु परिहारियइ दुइ उद्धरइ न कोइ ॥
[२५४८] __मह वि जइ क-वि सुकय-सामग्गि पुवज्जिय होज्ज इह ता सहिज्ज दुह हउं कि एरिस । किं वहुइण एयहं जि चियहं पडिवि हउं मरिसु सु-पुरिस ॥ अह - नणु थवियहं मुत्तियहं किं कु-वि अग्घु करेइ । इय कालिण वुत्तइ तरुणि पडिउत्तरु वियरेइ ॥
[२५४९]
सुणसु सुंदर तुज्झ निव्वंधु जइ इत्थ पत्थुय-कहहं ता कहेमि किं-चि वि समासिण । जह सोरियपुरि नयरि समुदविजय-निवु चत्तु दोसिण ॥ तसु वंधवु पुणु आसि लहु महुर-पुरिहिं वसुदेवु । तसु पुणु हुयउ सुय-प्पवरु कण्हु अवरु वलएवु ॥
[२५५०]
तेहिं दोहिं वि कंसु निव-अहमु निय-बंधु-वइरिण हयउ ता कुवेउ जरसंध-निवइण । निय-नंदण-रयणु कु-वि काल-नामु सह पउर-सेन्निण ॥ सव्वेसि पि-हु जायवहं हरि-हलहर-सहियाहं । पेसेउ गुरु-निग्गहह कइ वेगिण नासंताई ॥ २५४७. ६. वरि. २५४९. ५. क. निव.
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