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२२४१ ]
नवमभवि वसुदेववृत्तंतु
[२२३८] किंतु तिण सु विगलिय-संरंभु मुसुमरिय-समर-रसु तसिय-चित्तु संपत्त-अवजसु । संगहिउण निय-करिहिं खिविउ महिहिं उत्तसिय-माणसु ॥ तयणंतरु उहिउ सयल- दुज्जण-माणस-सल्लु । तसु वसुदेवह सम्मुहउ कुविउण नरवइ सल्लु ॥
[२२३९] तयणु सउरिण सो वि विद्दविउ अच्चंत-महल्लउ वि वण-करि व्व केसरि-किसोरिण । अह मगहाहिविण जरसंध-निविण गुरु-खोह-पसरिण ॥ आइहउ तिण सहुं समरि समुदविजय-धरणिंदु । अह रवि-उदयम्मि व सउरि वियसिय-मुह-अरविंदु ।
[२२४०] करि धरिप्पिणु दिव्वु कोदंडु संधिप्पिणु दिव्वु सरु दलिवि दप्पु तसु वलह सयलह । साणंदु समुल्लवइ सविहि समुदविजयह भुवालह ॥ जह – वसुहाहिव किं इमिहिं कीडय-सम-सत्तेहिं । चल्लि-न अभिडहुं दुवि वि निय-निएहिं गत्तेहिं ॥
[२२४१] अह रणंगणि दो वि वग्गंति पहरंति दो-वि-हु सुइरु पुरिसयारु दो-वि-हु पयंसहि । रंजंति सुहडहं मणइं दो-वि दो-वि निठुरउं भासहि ॥ किं पुण पहरइ निक्करुणु समुदविजय-नरनाहु । वसुदेवो उण तमु जि सर छिदइ अकयावाहु ॥
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