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________________ [२२३४ नेमिनाहचरिउ [२२३४] रुहिर-नरवइ-विहिय-साहज्जु समरंगणि पविसिउण दलइ दप्पु वहु-लक्ख-संखहं । कर-कलिय-महाउहहं समरि समुहु एंतहं विवक्खहं ॥ किं पुण रुहिर-नराहिवइ गंजिउ किं-चि परेहिं । अह एगागि वि सउरि पर- वलि वरिसेइ सरेहिं ॥ [२२३५] ता खणेण वि घण व पवणेण वसुदेविण एगिण वि विमुह विहिय रिउ-राय सयलि वि । अह गरुय-मडप्फरिण स-वलु सत्तुजय-निवइ वालिवि ॥ जंपइ वसुदेवह पुरउ अरि अरि रणि म मरेसु । मह वयणेण वि गंतु घरि जणणिहिं हरिसु करेसु ॥ _ [२२३६] तयणु जोइवि समुहु स-विलासु ईसीसि विहसिवि सउरि भणइ अहह एरिसिहि वयणिहि । तुहं मेइणि नाह धुवु रंजवेसि मणु नियय-परिणिहि ॥ रंजिज्जति भडाहं मण पुणु पुरिसक्कारेण । वाइण मग्गण विवुह पुणु अणह-वयण-पसरेण ॥ _[२२३७] इय पयंपिर दो-वि रणवीर जुझंति उज्झिय-करुण वहु-वियप्पु किं पुण खणद्धिण । वसुदेविण हणिउ रिउ पत्त-कित्ति गुरु-गुण-समिद्धिण ॥ अह पयडिय-अमरिस-पसरु दंतवक्क-नरनाहु । पविसइ सह सउरिण समरि पउरिण वलिण सणाहु ॥ २२३५. ५. सवल; रालिवि २२३६. ४. क. तुंहु. ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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