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२२६३]
नवममधि वसुदेववृत्तंतु
[२२३०] ___ इय भणंत वि के-वि निंदंति तं तरुणी-रयणु कि-वि अवगणंति जायव-विहूसणु । कि-वि हीलहिं रुहिर-निवु देंति के-वि सयलहं वि दूसणु ॥ एत्थंतरि सउरिण भणिउ किं इह रंडा-राडि । हवइ परिक्ख भडाहं नणु पविसंतह रण-वाडि ॥
[२२३१] _इय मुणेविणु कसु-वि जइ अल्थि सामत्यु किं-चि वि भडह ता गहेवि करवालु हल्थिण । सु जि पयडीहवउ मह सविहि किं नु सुत्थयहं सत्थिण ॥ भुय-दंडेसु जि वहइ वलु भडहं न-उण वायाए । इय सउरिहिं वयणई सुणिवि तुइ तहि विलयाए ।
[२२३२]
कोव-कंपिर-काय नर-राय सव्वे-वि-हु सन्नहिवि दुक्क दप्प-दछुट्ट-पल्लव । वसुदेव-रुहिरा वि तहं समुहिहूय तड्डविय-सेल्ल व ॥ एत्थंतरि दहिमुह-खयरु निय-रहवरु गिण्हेवि । वेगवइ वि अंगारवइ- सहिय विलंबु चएवि ॥
[२२३३]
पत्त सउरिहि सविहि अह देव्य कोदंड तूणीर सर वियरिऊण जपंति अइरिण । रह-रयणि समारूहिवि दलसु दप्पु सयलहं वि वइरिण ॥ तयणु करेविणु सारहिउ दहिमुहु खयर-कुमारु । सयमारुहिउण रह-रयणि सो जायव-कुल-सारु ॥ २२३१. ९. क. तुहह. २२३२. ८. क. वेगवइहि.
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