________________
४७२
[२०७६]
इय विचितिरु तेसि हणणत्थु
पसरंत अमरिस - वसिण निय चट्टहं पुरउ पुणु लग्गाविउ लोग हि सयल विविह असुह-वावारि । सवसिण अज्जु वि भमइ चउ - गइ भव-संसारि ॥
नेमिनाहचरिउ
जओ भणिर्य
[२०७७] पिइमेह - माइमेहा पसुमेहा तुरयमेह - गयमेहा । सुमेह वंधुमेहा गोमेह - नरिंदमेहा य ॥
भरहह-भणिय सयलि वि तिरोहिय । कहिय वेय एरिस अणारिय ||
[२०७८] उट्ट - खर- विरहियाणं जीवाणियरेसिमवि-हु वह - हेऊ । resuारिय-वेया पत्ता पिप्पलाएण ॥
-
जह जन्नि हम्मंत जिय विणिवाइवि निय-जणणिइय पाविण तिण गिरि-गरुयपावु पयासिउ जं तमिह
Jain Education International 2010_05
[२०७९]
भणिवि पुणु जण - मज्झयारम्मि
[२०८०]
पिप्पलायह हुयउ पुणु सीसु
अभिहाणिण वायवलि सो उ इयर - लोगम्मि पयडिउ । पुव्वोय-वेय अह सत्तमम्मि नरयम्मि निवडिउ ॥ परिभमिऊण य सुरु भवि पंच-वार छगु होउ । निय - मंसिण जन्निहि हयउ पोसिवि जन्निय - लोउ ॥
निव्वियप्पु सग्गम्मि वच्चहिं । जणय हुणइ मज्झम्मि अग्गहि || अहिणिवेस- नडिएण । किज्जइ अजु-वि जणेण ॥
[ २०७६
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org