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बलभदवुत्तंतु [३२६२]
अहह मुहडिहिं नारसिंहेहिं सय-सहस-कोडी-गुणिहि हणइ एहु कय-साहु-वेसु वि । एहिं पि न काउ खमु इय इमम्सु अवराह-लेसु वि ॥ इय चिंतिर पडिवक्ख-निव पसरिय-तेय-सिरिस्सु । भय-भत्तिहि चलणिहिं नमहिं सयलि वि राय-रिसिस्सु ॥
[३२६३]
अह ति तियसिण राय-रिसिणा वि अणुसासिय संत निय- निय-पुरेसु गय अइर-कालिण । भयवंतु वि परिविहिय- मास-खवणु दिव्वाणुहाविण ॥ रहयारहं सविहिहिं गयउ मिग-दंसिइण पहेण । तयणतरु परिवड्ढिरिण ससि-निम्मल-भावेण ॥
[३२६४]]
मुणिण लिंतिण मुठ्ठ आहारु रहकारिण देतइण हरिणगेण अणुमोयमाणिण । तं कं-पि समज्जिणिउं जं न कहिउ तीरेइ वयणिण ॥ किं पुण अद्ध-च्छिन्नइण निवडंतइण दुमेण । ते तिन्नि वि विणिवाइया अह निय-सुकय-वसेण ॥
[३२६५]
असम-सुहयरि कप्पि पंचमइ तियसिंद-समाण-सिरि हूय साहु-रहयार-हरिणय । ता पेक्खिवि वल-सुरिण नरइ हरिहि वहु-दुहई परिणय ॥ सुमरेविणु सो तारिसउ निय-वंधव-पडिवंधु । अवगणिउण सुरयणु सयलु अहिणव-हुय-संबंधु ।।
३२६२. ४. क. खगु.
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