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२३१४]
नवमभवि कण्हवालत्तणु
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[२३११]
तयणु चुन्निउ सगडु कण्हेण खयरंगण दु-वि हणिय दलिय विडवि सुप्पगु निवाइउ । इय पसरिउ धरणियलि सुणिवि सउरि हरि-गरुय-भाइउ ॥ रोहिणि-देविहि अंगरुहु वलभदु त्ति पसिद्ध । कंसोवद्दव-रक्ख-कइ पेसइ गुणि हि समिद्धु ॥
[२३१२]
अह सु पत्तउ हरिहि सविहम्मि जायम्मि य पढमयरि दसणम्मि सो को-वि पसरिउ । पडिवंधु दुवेण्हमवि जो न सक्कु सुरिण वि वियारिउ ॥ ता गेण्हइ वलि-सविहि हरि सदाइय-गणियंत । सयल-कलावलि अइरिण वि निय-नामु व दिप्पंत ॥
[२३१३]
नील-उप्पल-दल-समाणम्मि कण्हम्मि निरिक्खियइ गोवि-वग्गु मयणग्गि-दुत्थिउ । तसु संगम-अमय-रसु लहिवि कह-वि जइ हवइ सुत्थिउ ॥ लायण्णामय-मइउ हरि जह जह वुइढि लहेइ । तह तह गोउलि गोवियहं मयणु मणाई दुहेइ ॥
[२३१४]
कण्हु गोउलि कील कुव्वंतु तह कहमवि हरइ मण सह ललंत गोवीण वग्गह । जह नूण निमेसमवि न-वि चलेइ लायण्ण-मग्गह ॥ लग्गइ छलिण करंगुलिहि पक्खंतरिहि भमेइ । मयण-परव्वसु गोवियणु हरिहिं जि समगु रमेइ ॥ २३१२. १. हरिहिं; ३. क. दंसणं.
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