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३०२३]
नेमि वुत्ततु [३०२०]
ससग-संवर-हरिण-भल्लुंकिछग-सूयर-वणमहिस चास-चडय-तेत्तिरिय-लावय । अवरे-वि हु विविह जिय वाड-खित्त करुण-प्पलावय ॥ अह जाणंतु वि भुवण-गुरु सारहि-पुरउ भणेइ । कहसु किह णु बहुविह-जियहं करुणु सदु सुम्मेइ ॥
[३०२१]
तयणु सारहि विहिय-कर-कोसु पहु-सविहिहिं विन्नवइ नाह तुज्झ वीवाह-वासरि । सस-सूयर-हरिण-हुड- महिस-पमुहु संपत्ति अवसरि ॥ जीवक्खाडउ करुण-रव- पसर-भरिय-जगु एहु । नणु हणियव्बउ जायवहं भोयण-कज्जि गहेउ ॥
[३०२२]
तयणु - धिसि घिसि निविवेयाहं परिचिट्ठिउ जं कुणहिं एम्ब जीव-वह-पमुह-पावइं। न गणंति उभय-भव- संभवंत-बहु-भेय-आवई ॥ इय चिंतिरु निरुवम-करुण- परम-अमय-रस-सित्तु । नेमि भणइ - नणु सारहिय रहु लहु वालि निरुत्तु ॥
[३०२३]
अह मुयाविवि जीव-संघाउ वालाविवि रहु कुमरु भणइ पुरउ निय-जणणि-जणयहं । गमियव्वु मइं सिव-पुरिहिं दाउ सलिल-अंजलिउ विसयहं ॥ ता नीलंवर-महुमहण- पमुहु सु जायव-वग्गु । भणइ - कुणसु तुहुं नर-रयण सु-पुरिस-सेविउ मग्गु ॥ ३०२१. २. क. सविहिहि.
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