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२१८५ ]
नवमभवि वसुदेववुत्तंतु जहा
[२१८२] धरणि-मंडणि गिरिहिं वेयड्ढि सिरि-गयणवल्लहि नयरि विनमि-निवइ-वंसम्मि बहुइहिं । उदिओदिय-परक्कमिहिं अइगएहिं खयरिंद-तणइहिं ॥ संजायउ खयराहिवइ विज्जुदाम-अभिहाणु । तेण य गच्छंतिण नहिण उवसम-लच्छि-निहाणु ॥
[२१८३] काउसग्गिण ठियउ मुणि एगु उवसग्गिउ वहु-विहिहिं तयणु तस्सु उवरिम्मि रुहिण । धरणिंदिण अवहरिय विज्ज-सत्ति सयल वि पउट्ठिण ॥ ता खयरिंदिण अणुणइउ लग्गिवि पय-पउमेसु । जंपइ धरणाहिवइ जह केसु वि मंत-पएसु ॥
[२१८४]
तुज्झ कुलह वि सिद्धि हविहइ न उ रोहिणि-पमुह-गुरु- विज्ज-विसइ इय भणिवि पुणु पुणु । धरिणिंदु स-ठाणि गउ विज्जुदाढ-खयराहिवो उणु॥ चिट्टइ निय-दुक्कय-हयउ आणिय-स-कुल-कलंकु । वालचंद-अभिहाण पुणु हउं तसु धूय अ-संकु ॥
[२१८५]
मुणिय-लक्खण-छंद-साहिच्चसर-नट्ट-वाइत्त-विहि गहिय-विज्ज-वर-मंत-सत्थय । आराहिय-गुरु-चलण समुवलद्ध-असमाण-विज्जय ॥ जा परिसीलहुं विज्ज-विहि ताव नाग-पासेहिं । वंधेविणु हउं विहुर-तणु कय भुयगह पासेहिं ॥ २१८२. ४. क. ख. पक्खमिहिं. २१८५. ३. क. गहिए.
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