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नवमभवि वसुदेवघुत्तंतु
[२१४५]
तयणु आणिवि कुमरि एगति मई पुच्छिय - नणु सुयणु किं न कसु वि परमत्थु साहसि । न-हि निय-दुहि अ-कहियइ तुहुँ वि अ-सुह-अवसाणु पावसि ॥ अह दीहरु उत्तम्मिउण सोमस्सिरि पभणेइ ।
को मह विरहिण तमु पियह दुह-अवसाणु कुणेई॥ जओ
[२१४६] ___ आसि सत्तम-देवलोगम्मि सुर-सामि-समाण-सिरि नंदिसेण-सुरु मज्झ पिययम् । तेणं च समाणु मई विसय-सुक्खु सेविउ मणोरम् ॥ अवरम्मि उ दिणि समगु मई नंदीसर-वरि दीवि । गंतु करेविणु जिण-महिम निसुणिवि गुरुहुँ समीवि ॥
[२१४७]
धम्म-देसण-जणिय-जम्मंत संचल्लिउ सत्तमह तियस-गिहह निययस्सु सम्मुहु । जा ताव पंचम-अमर- मंदिरस्सु सविहम्मि वहु-दुहु ॥ दि-विणटु जु हुयउ लहु पवणाहय दीवु व्व । तयणंतर संजाय हउं दुह-दवग्गि-दड्ढ व्व ॥
[२१४८]
तत्थ तत्थ य भमिर कुरु-विसइ एगयर-पुरोववणि गंतु सविहि केवलिहि एगह । मई जंपिउ जह - कहसु हउं मिलेसु कइयहं स-दइयह ॥ तयणु पयंपिउ केवलिण सुंदरि भरह-क्खित्ति । उप्पन्नउ सो तुह दइउ हरि-वंसम्मि पवित्ति ॥ २१४५. ६. क. ख. उत्तम्मिऊण. २१४६. ८. क. महिन. २१४७. ९. क. ख. दट्ठव्व.
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