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[२२७४
नेमिनाहचरिउ [२२७४]
पवण-चंचल-कमल-दल-नयण परिकंपिर-अहरदल- पाणि-पाय पीवर-पओहर । पिहु-जहण-नियंव-थल परिल्हसंत-उत्तरिय-अंवर ॥ कंठि विलग्गिवि जीवजस अइमुत्तयह रिसिस्सु । पभणइ - अवसरि आगयह मरहुं मरहुं दियरस्सु ॥
[२२७५]
गीय-वाइय कुणसु तुहुं अज्जु हउँ नच्चिसु तुह पुरउ इय भणंत कहमवि न विरमइ । न य कंठ-नालु विमुयइ जाव ताव महरिसि पयंपइ ॥ धिसि घिसि पाविणि जीवजसि जीए महि नच्चेसि । सत्तम-गम्भिण तीए तुहुं हय-जणय-प्पिय होसि ॥
[२२७६]
इय सुणंति विगलिय-मय-वेग भय-कंपिर-पीण-थणवह मुइवि जीवजस महरिसि । परिसाहइ एहु सिरि- कंस-निवह अह सो वि अ-सरिसि ॥ भय-जलहिम्मि निवुड्ड-तणु सिरि-वसुदेवह पासि । जाइ तयणु सउरिण भणिउ कज्ज-विसेसु पयासि ॥
[२२७७] ____ता पयंपिउ कंस नरवरिण वसुदेवह सविहि जह सत्त गब्भ देवइहि वियरह । अह अ-कहिवि देवइहि पत्थणत्थु अ-मुणेवि कंसह ॥ पडिवन्नउं कंसह वयणु वसुदेविण नीसेसु । एत्तो उण चिट्ठइ मलय- नामगु देस-विसेसु ॥ २२७७. ४. क. देवइवि.
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