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________________ २४२७ ] [२४२२] इय चिह्न जाव जिणो सुहेण नेमी समुहविजय- घरे | नाओ [ओ य स ] यलो वृत्तंतो कण्ह - मुसलीहिं ॥ [२४२३] अह सि दुवे पि- जाओ वयणेण अ-विसओ तोसो । एतो पुण+ महुराए सो निल्लज्जो कह-वि कंसो ॥ [२४२४] वसुदेव-घरम्मि गओ कण्णं छिन्नेग- नासियं तत्थ । कीलति निज्झायइ सुर ( ? ) सो वहु-विगप्पेहिं ॥ नवमभवि कण्हवालत्तणु [२४२५] ता [इ] मुत्य-महरिसि निवेइयं सुमरिऊण वृत्त । संजाय - गरुय - हिययासंको निय-मंदिरम्मि गओ ॥ इओ य - [२४२६] कंस - निवइहि भवणि संपत्तु अग-निमित्त-वस मुणिय-काल-तय- भावि - वइयरु । महरिहम्मि आणि कयायरु ॥ नेमित्तिउ एगु अह उववेसेवि स- संक-मणु उलि- मुह-अरविंदु | सविहिहिं तसु नेमित्तियहं पुच्छर कंस - नरिंदु ॥ तं वयणु अइमुत्तह जह सत्तमु देवइहि [२४२७] भद्द साह हुयउ किमलीउ २४२२ २. नाउ यलो. २४२३. २. यण. २४२४ २. कीलंति. Jain Education International 2010_05 संपाविय तारुन्न- भरु rea foo[]- अस्थि रिउ अ-विहिय वयण - वियारु ॥ २४२७. ८. अवह, अच्छि ६९ रिसिहि भणिउ जं आसि तइयहं । गब्भु मज्झ सालयहं ससुरहं ॥ for after संहारु । ५४५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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