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________________ ६१६ नेमिनाहचरिउ [२०५७] भहिं वणियग - अहह संसारि निभग्गिय अम्हि पर जं समिद्ध-जायव - विहूसिय । वित्त इह स-कय-दूसिय ॥ aras महा-नयरि को उज्झिवि जायव - कुमर अम्हई इच्छिउ दे । संखु वि विणु रयणायरह सदुहउं किं न रुएइ ॥ [२७५८ ] अछहिं बहु व महिहिं नर-राय निय - रज्ज-गव्वब्भहिय नउ जायव - निव- सरिस कुहिं समीहिय सिद्धि तहं सिर- विरइय-कर-कोस । सेवेहिं अणु-दिणु पय-पउम पसरिय-गुरु-संतोस ॥ स-घरि परहं अवमाण पयडिर । जेसि पहिं सुर-असुर निवडिर || Jain Education International 2010_05 [२७५९] इय सुविणु जाय- आसंक आउच्छर जीवजस इयरे विपुलवि तयणतरु संभंत - मुह ल्हसिय- चिहुर-वंधण स- दुह- पसरिय- गरुय - पलाव ॥ कह कह कहिं अछहिं जायव । सयल कहहिं निय- हत्थ - गयमिव ॥ वियलिय - कंति-कलाव । [२७६०] गंतु वेगिण पडिर अक्खुडिर जरसंघ- नराविह साहेइ विसेसयरु अमरिस-वस-कंपिर-अहरु रोसारुण - नयणिल्लु । सूरसेण- सेणावि agrat नियइल्लु ॥ कण्ह-मुसलि - वारवइ - वइयरु | तह कह - वि जह सो वि नरवरु ॥ २७५७. क. भणइ. २७५८. क. महिंठि; ६. क. समीहिंय [ २७५७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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