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नवमभवि कण्हजरसंधविग्गहु
[२७५३]
अवर-अवरि जउण-दीवाउ पोएहिं अणेग-विह वणिय विविह-कंवलिय-रयणई अवराई वि तस्विसय- संभवाई वहु-धण-कयाण ॥ गहिउण वह-लाहम्मणिय वारवइहि संपत्त । विवणिहिं पयडिय-निय-नियय- वत्थु अछहिं वणि-उत्त ॥
[२७५४]
तयणु जायव-कुमर-तरुणीउ निय-नियय-कुऊहलिण निइवि ताई वणियहं कियाणइं । ओनिण्हहिं इच्छियई तेसि दाउ मणि-कणय-दविणई ॥ अह ति भणहिं अप्पत्त-धुर अंत-लाह वणि-उत्त । नणु ता पूरिय-माण-पसर- हूय इह वि संपत्त ॥
[२७५५]
जइ कह-वि वि पुणु जरासंधपुरि गंतु इहि दंसियई वत्थु-सत्थ एरिसय ता लहु । संजायइ सय-सहस- गुणिउ लाहु अम्हाण इय बहु॥ चिंतिर गय जरसंध-पुरि तहिं पुणु ते अलहंत । लाहु कवड्डिय-मित्तिउ वि चिट्ठहिं परितम्मंत ॥
[२७५६]
तयणु सयलि वि रायगिह-नयरि गई अन्न अलहिर वणिय पत्त वि सइ गरुयर-विसायह । घेत्तण कयाणयइं जाहिं भवणि जरसंघ-रायह ॥ तयणंतर कंवल-रयण मग्गिय जीवजसाए । थोवयरिण मुल्लेण अह विहलिय-सयलासाए । २७५४. १. क. तरुणीओ. २७५६. २. क. अलेहिर. ६. क. रयणु.
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