________________
केमिचरिउ
[ २७४५] भणइ य सयमेगूणं तरुणिणं परिणियं मए चेव । परिणाविओ अहं पुण सच्चाए गहेउ वाहाए ॥
[२७४६] तत्तो सच्चा न हसइ नेय रुयइ चिट्ठए य सु-विसन्ना । विम्हओ हरि-मुहो जायव वग्गो समग्गो वि ॥
[२७४७]
जंववई वि-हु सहिय रुप्पिणिहिं
हरिसेण न महियलि वि वो विन्ह विस्सुयउ इय जायंतिण जायवहं कहो वि-हु स-कय-वसिण
[२७४८] लक्खण- नामं धूयं सिंहल - दीवाहिवस्स परिणे । अज्जवखुरीए नयरीए रट्ठवद्दण - निवस्सावि ॥
माइ तुटु पज्जुन्नु चित्तिण । जाउ जगि विनिय- विमल - कित्तिण ॥ संविहाण - सहसेण । थोवेण वि काले ॥
[२७४९] धूयं सुसीम- नामं परिणइ तह वीरभय-पुर-पहुणो । सिरि-मेरु-महीवइणो पियाए चंदमइ- नामाए ॥
[ २७५०] गउरी-नामा धूया परिणेइ महा-महेण सउरी-सुओ । पउमावई च परिणइ हिरण्णनाभस्स वर-धूयं ॥
Jain Education International 2010_05
[२७५१] गंधार - विसय पहुणो गंधारिं दुहियरं विवाes | अहं विमाहिं समं भुंजेइ निरंतरं विसए ||
[२७५२] तासिं अवराणं पि-हु देवीणं जाया सुया अणेगे महा-वला
विमल - लक्खण - महग्घा । उत्तिम - पगई ॥
[ २७४५
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org