________________
नवमभनि कण्हजरसंधविग्गहु
[२७६१]
जह - लहुं पि-हु दूय पेसवसु भरहद्ध-निवासियहं निवहं कह-वि तह जेण सयलि वि । आगच्छहिं मह सविहि अइरिणावि विक्खेवु मेल्लिवि ॥ तह जि कयइ सेणाहिविण आगउ निवइ-समूहु । किं पुण तक्खणि हुयउ जरसंधु निवइ गय-सोहु ॥
[२७६२] __तयणु सचिविहि निरु निसिद्धो वि भवियव्व-वसेण निवु उक्खिवेइ जा चलणु दाहिणु । सहस च्चिय ताव तसु छीय हृय गुरु-असुह-कारणु ॥ कसिण-विरालिहि पुणु कह-वि आगंतुण पहु-छिन्नु । राव-हत्थु पुणु रत्त-वडु समुहीहुयउ विवन्नु ॥
[२७६३]
तह वि कुंजरि आरुहंतस्सु आयास-विवज्जिउ वि हार-रयणु परितुटु कंठह । धरणीयलि निवडियउ मउडु विरसु हुउ स? तूरह ॥ पवणु स-सक्करु खर-फरिसु वाइउ उब्धियणिज्जु । भग्गु दंड झय-छत्तहं वि साहिय-विवरिय-कज्जु ॥
[२७६४] ___ चलिरि कुंजर-तुरय-रह-सुहडसंकिन्नइ निवइ-वलि खुहिय-लवण-जलरासि-सलिलि व । करि-तुरय निरंतर वि मुयहिं विठ्ठ-मुत्तई स-रोगि व ॥ भज्जहि अक्ख सु-संदणहं सुहड गलिय-उच्छाह । वरिसइ रुहिरिण नीर-धरु संजाया दिसि-दाह ॥ २७६२. ५. क. सहसच्छिय.
___Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org