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________________ नवमभवि जायवजरसंधविरोहु [२५५५] rea किं मह इयर - भणिएहिं पविसेविणु एयहं जि चियहं मज्झि ते गोव कङ्क्षिवि । - २५५८ ] हउं पियरहं मिलि इय कालिण खद्धउ कालु परिडज्झिर - अंगोवंगु । मयउ तयणु परिवारु तसु निहुराउं रुयइ समग्गु ॥ भणिव झत्ति तहि चियहं निवडिवि ॥ [२५५६ ] जवण - पमुह वि तेण सह पत्त गलिय- बुद्धि-वावार - पगरिस | सव्वे वि- निव-वसह अवलोइय-नियय-पहु कुमर-मरण - पसरंत - अमरिस ॥ किण सहुं जुज्झहिं कु व हणहिं कहिं पयडहिं आडोवु । मणि विरम्वावहिं कोवु ॥ अ- नियंता वइरियहं वलु सह काल - मणोरहिहिं अह जवण - प्पमुह निव ता विलवंत तह कह - वि उदियt दिण-इंदम्मि पुणु [२५५७] एत्थ-अंतरि तरणि अत्थमिउ Jain Education International 2010_05 फुरिउ तिमिरु सह तसु जि पाविहिं । fare - नाह तहिं चैव निवसहिं ॥ झीण रयणि नीसेस । हुय - पडिवोह - विसेस ॥ [२५५८] नियहिं न सु गिरि न त चियहं चक्कु न त सिविरु न तुरय न ति गइंद न वि सुहड़-सत्थय । न ति संण न ति विडवि किं-तु सुद्ध धरणियल अइगय || जा चिहहिं खणु एगु तर्हि ता पच्छन्न- नरेहिं । साहिउ जह – गच्छहिं सयल जायव परम-सुहेहिं || २५५५. ३. क. चियह; ख यहं ९. क. निहयंडं. २५५६. ६. क. हणई. २५५८. १. क. सुर गिरि. ७३ ५७७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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