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________________ ७२६ नाण-तय-दिrयरु वि सविहागय-सिद्धि बहुजत्थ पयास एरिसउं तहिं पागय- मणुयाभिमुहु इओ य - नेमिनाहचरिउ [३२७६] तुंग-पगइ वि विमल - दिट्ठी वि गलियपाय - संसार-बंधु वि । हु विवद्ध - तित्थयर - नामुवि ॥ मोह-वसिण मिच्छत्तु । किं तीरइ जंपित्तु ॥ [३२७७] पंडुमहुरहं जरकुमारेण परिकहिय वारasविनाय जण - मुहिण कोथुभ रणु विकर-चडिउ अवलोइवि पुणरुत्तु । पलवइ पंडब- जणु सयलु सुरगिरि- गरुय - दुहत् ॥ Jain Education International 2010_05 वइयरम्मि तह कण्ह - वइयरि । सयल-लोय-अच्चंत-दुहयरि ॥ [३२७८] अवर - अवसरि तेसि पंडव संसार- विहरिय- महं चरण - समउ मुणिऊण नेमिण । सिरि-धम्मघोसु तिमुणि सहिउ पंचसय साहु-विंदिण || पेसिउ तह पडिवोह कइ आगउ सुवि अइरेण । काणणिता पंडव सयल सह निय-परिवारेण ॥ [३२७९] किं-चि वियलिय -सोय- संताव आगंतु सूरिहि पुरउ जर- कुमरु ठafa नियपडिवज्जहिं पंचवि कमिण भाविण परिणय- जिण-वयण- विर्यालय-सयलावाह || ३२७९. २. क. सूरिहिं; ८. क. परिण. सुणिवि धम्म कह समय-सारिय । रज्जि दिक्ख कल्लाणगारिय || वियडिय-निय - अवराह । For Private & Personal Use Only [ ३२७६ www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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