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________________ ५०४ [२२१० नेमिनाहचरिउ [२२१०] कंठ-कंदल-लुलिर-नर-मुंड पुरिसहि-मालिय-विहिय- सयल-अंगुवंगिल्ल-मंडण । वसुदेविण वाल इग दिट्ठ तयणु संभंत-नयणिण ॥ पुच्छिय तावस जह किह णु एरिस वालिय एह । चिट्ठइ रूविण एरिसिण इय पसिऊण कहेह ॥ [२२११] ता पयंपिउ वुड्ढ-तावसिण एगेण - महा-पुरिस एय अस्थि गरुयर कहाणिय । तह वि-हु सुणि एग-मणु जह कहेमि हउँ जह वियाणिय ॥ सिरि-जरसंध-नराहिवइ- कुल-नहयल-ससिलेह । नंदिसेण-अभिहाण सिरि- जियसत्तुहु पिय एह ॥ [२२१२] कवड-वेसिण कूड-विज्जेण परिवायग-माणविण किण-वि कह-वि चिट्ठइ वसीकय । ता अवगय-वइयरिण निविण हणिउ सो एह इहागय ॥ एवं-विहु भूसणु करिवि परिवायग-अट्ठीहिं। चिट्ठइ सोय-जलाविलिहिं परिमिलाण-दिट्ठीहि ॥ [२२१३] अह खणेण वि सयलु वसियरणु उत्तारिउ वालियह नियय-सत्ति-जोगेण सउरिण । वसुदेवु वि तहिं धरिउ तवसि-जणिण कय-साहुकारिण ।' ता जियसत्तु-नराहिविण अवगय-वुत्तंतेण । सद्दावेविणु सउरि निय- मंदिरि स-निउत्तेण ॥ २९१३. ४. क. धरि. ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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