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२५३४]
नवमभवि जायवजरसंधविरोह
[२५३०]
सामि-सेवग-भावु पुणु इत्थ कड्या-वि कस्सु-वि हवइ जं सु-नीइ परि कमिहि किज्जइ । नीई उ सु-बुद्धियहं सा उ तुम्ह गलिय त्ति नज्जइ ॥ जं दीसइ सव्वायरिण अ-विसयम्मि पारद्ध । उभयहं भवहं विणासयरु पत्थुयत्थि निव्वंधु ॥
[२५३१] कयलीणं वंसाणं य होइ विणासाय जह फलं लोए। तह पुरिसाण अ-कज्जे पडिवंधो कुल-विणासाय ॥
[२५३२]
तयणु जल-निहि-सलिल-गंभीर सुर-सिहरि-थिरेग-मण गयण-मग्ग-विच्छिन्न-आसय । अवलोइवि कण्ह-वल गहिय-वयण-विनाण-अइसय ॥ सो सोमगु संकिय-हियउ जा चिट्ठइ खणु एगु । समुदविजय-निवु ताव इहु पभणइ विमल-विवेगु ॥
[२५३३]
भणसु सोमग तुहुं जरासंधु जह - नंदण-मग्गणउं मुइवि अम्ह आइससु सयल वि। अह सोमगु भणइ - नर- नाह एहु हउं मुणहुं वालु वि ॥ जइ न समप्पह तुम्हि मुय ता अच्छउ पुहईए । पायालम्मि वि न हविहइ ठाणु एहु स-मईए ॥
[२५३४]
सम्मु चिंतिवि देह पडिवयणु अरहटु म वट्टियहं विक्किणेह सव्वे वि मिलिउण । इय पुणु पुणु पभणिरह सोमगस्सु दुव्वयण मुणिउण ॥ कोव-पकंपिर-अहर-दलु अमरिस-अरुणिय-दिट्टि। हरिहि वंधु सविहि ट्ठियउ पभणेइ अणाहिहि ॥
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