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नेमिवुत्तंतु [३१५७] अवर-अवसरि समवसरणम्मि वंदेउण सामि-पय चलिय समणि-जुय वसहि-अभिमुह राईमइ समणि जा ताव वुढि संजाय दुस्सह । अह क-वि कत्थ वि गय समणि राइमइ वि निय-वत्थ । उविल्लिर चिट्ठइ गुहह हुय जह-जाय-अवत्थ ॥
[३१५८] एत्थ-अंतरि विहि-निओएण रहनेमि वि तहिं गुहह मज्झि पुव्व-संठिउ जलुल्लिउ । पेक्खेविणु राइमइ तह-सरूव मयणेण सल्लिउ ॥ भणइ - अहह मयणानलिण चिरु मह दझंतस्सु । उवसमु तुह संगामइण हविहइ एण्हि अवस्सु* ॥
[३१५९] _ता पयंपइ राइमइ - हंत तुहं अंधगवण्हि-नरनाह- वंस-गयणयल-ससहरु । हउं भोजवण्हिहि निवह वंसि जाय इय सीलु मणहरु ॥ खंडिउ न खमु खणं पि सिव- संगम-कय-लक्खाहं । सुरगिरि-तुंग-कुलुब्भवहं दोण्डिं वि हु पक्खाहं ॥
[३१६०] अवि य जोव्वणु अ-थिरु जल-लवु वि पिय-संगु विओग-फलु विसय-सुक्ख परिणाम-दारुण । हिय-इच्छिय दुल्लहई जुवइ-संग दुग्गइहि कारण ॥ जं देहह अंतरि अछइ तं जइ वाहिरि होइ ।
ता तं काग-सिगालहं वि रक्खिउ तरइ न कोइ ॥ ३१५७. ३. वसइ. ४. क. राइम ६. क. उच्चिल्लर. ३१५९. ५. क. मणहर.. *At the end क. ख. ॥ ग्रंथाग्रं ॥ ७७०० ॥
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