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मिनाहचरिउ
[३१४८]
इय विचितिवि नियय-लद्धीए अवस्सु मई
भो
इय गवि दुक्करु अभिग्गहु ।
s - दियहु वि पडि भवणु भमइ दूर - उज्झिय- असग्गहु ॥ न उ भिक्खा मे वि लहइ सकय-वसिण भमिरो वि । तो सु-समाहित गमइ दिण तण्हा-छुह-बिहुरो वि ॥
[ ३१४९ ] इय एस कह दुक्कर-तव-कारी संपयं विसेसेण । ढंढण - महारिसी जं कुणइ तवं एवमेवं ति ॥
[३१५० ] तह तुट्ट-मणो पणमिय भयवंतं चलइ वारवइ समुहं । जा ताव ढंढण-रिसिं नियs पहे जह - कहिय- रूवं ॥ [३१५१] उत्तरिय गयवराओ पयाहिणा-तय-पुरस्सरं कण्डो । वंदे भाव -सारं पयारविंदाई से मुणिणो ॥
[३१५२] भाइ य - भयवं धन्नो कय- उण्णो तं सि जं जय-पहुणो । दुक्कर-तव-चारीणं मज्झम्मि पसंसिओ वहुहा ॥
[३१५३] अण लिय-गुण-संथवमिममुविंद - विहियं सुणेउ इन्भ-सुआ । एगो वियरेt महा- मुणिणो से सीह - केसरए ॥
[३१५४] सो उण अ-रत्त - दुट्ठो आलोयइ सामिणो पुरो गंतुं । कण्हस्ल इमा लद्धी इय भणियं भुवण - गुरुणा वि ॥
[३१५५] अह से अ- दीण मणसस्स भयवओ मोयगे चयंतस्स । जायं केवल - नाणं निग्धाइय घाइ-कम्मस्स ॥
[३१५६ ] अह भयवं भव-महणो तिलोय-तरणी य विहरन्नत्थ । ausो उण परिवालइ रज्जं सज्जण कयाणंदो ॥
३१५१. १. क. तव.
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