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________________ ४७ नवममधि हरिवंसवुत्तंतु [१९७२] सो न सुंदरु इय मुणिवि कंसमंजूसह मज्झि वहु- रयण कणय-आहरण-सहियउ । नव-जाउ वि चेडियहं करिहि जमुण-सरियाए पहियउ ॥ निवह निवेइउ पुणु - तणउ मउ 'जायउ देवीए । इय रयणीए वि पस्ठिकिंउ वहिहिं नेउ नयरीए ॥ [१९७३] नइ-पवाहिण नीय मंजूस सिरि-सोरिथपुरि नयरि गोस-समइ अह विहि-निओइण'। सविहम्मि समागरण तिण सुभद्द-वणिएण अइरिण॥ जल-मज्झह कढिवि गहिचि उग्घाडिय मंजूस । तत्थ य अवलोइय विधिह- भेष-कणय भणि दूस ॥ [१९७४] उग्गसेणह निवह अभिहाणकय-चिंध-मुद्दा-रयण- सहिउ सो ज्जि वर-रूत्रु नंदणु । ता निंदुहु निय-पियह करि विइन्तु सो रिद्धि-रंजणु ॥ कंसमयहं मंजूसियहं लद्धउ इय सु-विहाणु । जणणी-जणइहिं वियरियउं कंसु त्ति य अभिहाणु ॥ [१९७५] अह सुभद्दह भवणि सो वालु गिरि-काणणि विस-तरु व लहइ त्रुढि विग्घिहिं विवज्जिउ । परितावइ डिंभ-रूय कुणइ आलि न सहेइ तजिउ ॥ आणावइ पिउ-मायरहं नव नवयर उवलंभ । न य संसहइ स-वप्पिण वि कह-वि पयासिय डंभ ।। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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