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नवममधि हरिवंसवुत्तंतु
[१९७२] सो न सुंदरु इय मुणिवि कंसमंजूसह मज्झि वहु- रयण कणय-आहरण-सहियउ । नव-जाउ वि चेडियहं करिहि जमुण-सरियाए पहियउ ॥ निवह निवेइउ पुणु - तणउ मउ 'जायउ देवीए । इय रयणीए वि पस्ठिकिंउ वहिहिं नेउ नयरीए ॥
[१९७३] नइ-पवाहिण नीय मंजूस सिरि-सोरिथपुरि नयरि गोस-समइ अह विहि-निओइण'। सविहम्मि समागरण तिण सुभद्द-वणिएण अइरिण॥ जल-मज्झह कढिवि गहिचि उग्घाडिय मंजूस । तत्थ य अवलोइय विधिह- भेष-कणय भणि दूस ॥
[१९७४] उग्गसेणह निवह अभिहाणकय-चिंध-मुद्दा-रयण- सहिउ सो ज्जि वर-रूत्रु नंदणु । ता निंदुहु निय-पियह करि विइन्तु सो रिद्धि-रंजणु ॥ कंसमयहं मंजूसियहं लद्धउ इय सु-विहाणु । जणणी-जणइहिं वियरियउं कंसु त्ति य अभिहाणु ॥
[१९७५] अह सुभद्दह भवणि सो वालु गिरि-काणणि विस-तरु व लहइ त्रुढि विग्घिहिं विवज्जिउ । परितावइ डिंभ-रूय कुणइ आलि न सहेइ तजिउ ॥ आणावइ पिउ-मायरहं नव नवयर उवलंभ । न य संसहइ स-वप्पिण वि कह-वि पयासिय डंभ ।।
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