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नवमभवि पज्जुघ्नचरिउ [२६८८] किं पुण खणेण हरि-नंदणेण सुहडा हया अ-पज्जंता ।
__ संवर-पुरो य भणियं - जणय तुमं दिहिमवमुयसु ॥
[२६८९] ता कुमर-चरियमिगिय-आगारेहिं मुणेउ विमलं ति ।
नाउं च मूल-सुद्धिं कुमारमुववूहए इयरो ॥
[२६९०]
एत्थ-अंतरि कुमर-सविहम्मि आगंतु नारउ भणइ कुसलु तुज्झ हरिवंस-भूसण । ता संवरु विहिय-पडिवत्ति वयइ - मह कहि निरंजण ॥ को पच्छिमु वइयरु इमह अह पुव्वुत्तु कहेउ । जंपइ नारय-रिसि वयणु अग्गिमु वइयरु एउ ॥
जहा
[२६९१]
कुमरि तियसिण तेण हरियम्मि सच्चाए वि जाउ सुउ तस्सु नामु भाणु त्ति दिन्नउं । संपइ तमु परिणयण- विहि समत्थि पारद्धमन्नउं ॥ करिहइ रुप्पिणि-कुंतलिहि सच्च दब्भ-कम्माइं ।
जहुचिउ कुणउ कुमारु लहु इयरिण भणियई काई ॥ तो य
[२६९२]
अभउ दाविवि कणयमालाए अणुजाणाविवि जणउ खयर-वग्गु सयलु वि खमाविवि । आरुहिवि विउव्वियइ वर-विमाणि नहयलिण आविवि ॥ वारवइहि नयरिहि उवरि नारय-पुरउ भणेइ । नाणिण खणु पेक्खेज्ज तुडं किंचि ज डिंभु करेइ ॥ २६८९. २. क. कुमार.
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