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[ २६३०
नेमिमाहचरिउ [२६३०]
अह नियत्तते तेण निय-संखु आऊरिउ आयरिण तह ति नियय-माणवे पठाविउ । सिसुपाल-भेसय-निवइ- रुप्पि-निवहं सम्मुहु भणाविउ ॥ नणु गच्छइ हरि सयमवि-हु इह रुप्पिणि परिणेउ । जस्सु सुहाइ न एरिसउं . सो तुरंतु रणि एउ ॥
[२६३१]
अहह किं इहु इय विचिंतंतु सिरि-भेसय-निवइ सिमुपाल-रुप्पि-सहियउ तुरंतउ । चउरंगिण अ-परिमिय- वलिण सविह-देसम्मि पत्तउ ॥ ता परिकंपिर-थोर-थण भय-चंचल-नयणिल्ल । रुप्पिणि जंपइ - तुम्हि दु जि रिउ वहु-अनुमाणिल्ल ॥
[२६३२]
किं-पि हविहइ तं न याणामि तयणंतरु विहसिउण भणइ कण्हु - मा भाहि भामिणि । अवलोइसु एकु खणु किं-पि जमिह वट्टइ रणंगणि ॥ अम्हे थोडा रिउ वहुय एहु कायर जंपति । नियम नियंविणि गयणयलि रवि कित्तिय दिप्पंति ॥
[२६३३]
तीए पच्चय-हेउ लीलाए निय-मुद्दा-रयणु दुर्हि अंगुलीहिं चूरेइ अइरिण । तह वहुयहं पायवहं पंति लुणइ खग्गेग-घाइण ।। ता वियसिय-मुह-अंबुरुह हुय रुप्पिणि संतुट्ट । हरि पुणु पभणइ वल-पुरउ नणु एहि आगय दुट्ठ॥ २६३०. १. क. नियत्तहं तेण.
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