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________________ ५९३ २६४० ] नवमभषि रुप्पिणिहरण [२६३४] नियय-वहुयह सविहि खणु एगु चिट्ठिज्जसु भाय तुहुँ हउं दलेमि जिह दप्पु सत्तुहूं । ता पभणइ मुसलि - नणु वहुय-सविहि इह किह णु चिट्ठहुं॥ सत्तुहुँ एयहं पुणु हउं वि दप्पु दलेसु निरुत्तु । ता चिट्ठसु वीसत्थ-मणु तुहुं रूप्पिणि रक्खंतु ॥ [२६३५] ता रुप्पिणीए भणियं भेसय-निवई स-रुप्पियं पसिउं । रखिज्ज तुमे जइ वि-हु कुणंति ते तुम्ह अवराहो ॥ [२६३६] पडिवज्जिऊणमेयं रामो सत्तूण सम्मुहीहूओ । नंगल-मुसलत्थेहिं य खणेण ते तेण परिविजिया ॥ [२६३७] अह दो-वि सिद्ध-सज्झा आरुहिऊणं रहेसु अणुकमसो। वारवइ-सविह-देसे पत्ता जा ता पुरो हरिणो॥ [२६३८] जंपेइ रुप्पिणी - पिय किमिमं दीसइ पुरोरुणच्छायं । ता वियसिय-मुह-कमलो जणदणो जंपए - सुयणु ॥ [२६३९] नणु एसा कंचणमय-पायार-घरोह-विवणि-जिणभवणा । मज्झ कए सुरवइणा कारविया वारवइ नयरी ॥ [२६४०] __ तयणु रुप्पिणि भणइ - नणु नाह इह चिट्ठहिं तुह दइय अमर-तरुणि-सम-रूव-रिद्धिय । हउं आणिय वंदिणि व गहिवि वेस-सिंगार-वज्जिय ॥ इय आहरिय-विहूसियहिं तरुणिहिं अहरिय-चित्तु । मह समुह वि न निरिक्खिहिसि तत्थ पहुत्तु निरुत्तु ॥ ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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